घरेलू टेस्ट सीरीज़ में भारतीय टीम से जुड़े कुछ चौंकाने वाले आंकड़े
साउथ अफ़्रीका के ख़िलाफ़ भारत को मिली क़रारी शिकस्त के बाद हमने कुछ ऐसे रिकॉर्ड्स के बारे में बात की थी जो उस सीरीज़ के दौरान बने थे। यहां उन्हीं आंकड़ों की कहानी को थोड़ा और आगे बढ़ाया गया है।
पिछले 13 महीनों में भारतीय टीम को सात में से पांच मैचों में हार मिली है। इसके बाद से भारतीय फ़ैंस और क्रिकेट पंडितों ने टीम की तीखी आलोचना की है। एक दशक तक अपने घरेलू धरती पर अपराजित रही टीम का एकाएक बिखर जाना, थोड़ी सी चौंकाने वाली बात तो है। आंकड़े भी कुछ ऐसी ही दास्तां बयां करते हैं। भारत ने घरेलू धरती पर 65 साल पहले सात में से पांच टेस्ट मैच हारे थे। 1956 और 1959 में भारत ने ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ सात में से पांच मैच गंवाए थे।
भारत ने पिछले 13 महीनों में घरेलू धरती पर पांच टेस्ट मैच हारे हैं। इससे पहले की पांच हार आने में कुल 11 साल से ज़्यादा लगे थे। दिसंबर 2012 से जनवरी 2024 के बीच भारत ने 49 मैचों में से 36 जीते और सिर्फ़ आठ ड्रॉ हुए। इन पांच में से आख़िरी हार के बाद खेले गए छह टेस्ट भी भारत ने जीते। न्यूज़ीलैंड सीरीज़ से पहले तक 12 साल में उनका रिकॉर्ड 42 जीत और सिर्फ़ पांच हार का था। घरेलू परिस्थितियों में उनका 8.4 का जीत-हार का समीकरण इस दौर में सबसे बेहतर था।
इन पांच में से तीन हार इंग्लैंड के ख़िलाफ़ आई थी। लेकिन इसी दौरान भारत ने इंग्लैंड को सात मैचों में शिकस्त दी। ऑस्ट्रेलिया से उन्हें दो टेस्ट में हार मिली और बाक़ी 10 में जीत मिली। न्यूज़ीलैंड और साउथ अफ़्रीका के ख़िलाफ़ इस दौरान खेले गए 12 टेस्ट में वे 10 बार जीते।
अब सवाल यह है कि किन वजहों भारत को इस बुरे परिणाम का सामना करना पड़ा
टॉस
इन पांच में से चार हार में भारत ने टॉस गंवाया।बेंगलुरु टेस्ट में भारत ने परिस्थितियों को पढ़ने में ग़लती कर दी और पहले बल्लेबाज़ी चुनी थी। इसके बाद पूरी टीम 46 के स्कोर पर ऑलआउट हो गई। दूसरी पारी में उन्होंने 462 बनाए लेकिन वह जीत या ड्रॉ के लिए काफ़ी नहीं था।
टॉस हारने और पहले गेंदबाज़ी करने से भारत को शुरुआती परिस्थितियों का फ़ायदा नहीं मिला। स्पिनरों को सपाट पिचों पर गेंदबाज़ी करनी पड़ी और बल्लेबाज़ों को चौथी पारी की मुश्किल स्थितियों का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद यह नहीं कहा जा सकता कि टॉस भारतीय टीम को मिली हार का सबसे बड़ा कारण था। दिसंबर 2012 से सितंबर 2024 तक भारत ने 26 बार टॉस हारकर पहले गेंदबाज़ी की और इन मैचों में उनका रिकॉर्ड 19 जीत और सिर्फ़ तीन हार का था। ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के ख़िलाफ़ वे 14 जीत मैच जीतने में सफल रहे थे और उन्हें सिर्फ़ तीन मैचों में हार मिली थी।
तेज़ और स्पिन गेंदबाज़ी का प्रदर्शन
साइमन हार्मर ने इस सीरीज़ में 8.94 की औसत से कुल 17 विकेट लिए। उनका प्रदर्शन इस सीरीज़ की सबसे महत्वपूर्ण कहानियों में से एक है। किसी भी विदेशी स्पिनर ने भारत में 10 या उससे ज़्यादा विकेट कभी इतने बेहतर औसत से नहीं लिए। इस सूची में दूसरे नंबर पर मिचेल सैंटनर हैं, जिन्होंने पिछले साल न्यूज़ीलैंड की जीत में 12.07 की औसत से 13 विकेट लिए थे।
इन दो सीरीज़ में विदेशी स्पिनरों ने भारत के बल्लेबाज़ों को पूरी तरह से परेशान किया। रवींद्र जाडेजा 21.69 की औसत से 26 विकेट लेकर भारत के सर्वश्रेष्ठ स्पिनर रहे। लेकिन आंकड़ों में यह दिखाई देता है कि भारत के स्पिनरों की औसत 26.29 रही, जबकि विपक्षी टीम के स्पिनरों की औसत 20.25 रही। साउथ अफ़्रीका सीरीज़ में यह अंतर और भी बढ़ गया। वहां भारत के स्पिनरों की औसत 30.57 थी और साउथ अफ़्रीका के स्पिनरों की औसत 15.48 थी।
ऐसा नहीं था कि यह फर्क सिर्फ़ स्पिनरों के आंकड़ों में देखने को मिला। विदेशी तेज़ गेंदबाज़ों ने भी इस मामले में अच्छा-ख़ासा दबदबा दिखाया। इन दो सीरीज़ में उनकी औसत 17.51 रही जबकि भारतीय तेज़ गेंदबाज़ों की 32.71 रही। मार्को यानसन ने दोनों टेस्ट में बेहतरीन प्रदर्शन किया। उन्होंने 10.08 की औसत से 12 विकेट लिए, जो किसी भी भारतीय तेज़ गेंदबाज़ के आंकड़े से काफ़ी बेहतर था।
पिछले 19 घरेलू टेस्ट में भारत का प्रदर्शन बहुत मज़बूत था। उस दौरान उन्होंने 14 मैच जीते थे और सिर्फ़ तीन हारे थे। तब तेज़ गेंदबाज़ और स्पिनर दोनों ही विपक्ष से ज़्यादा किफ़ायती थे और हर विकेट पर लगभग 14 रन कम देते थे। लेकिन इस बार तस्वीर बदल गई है। अब भारत दोनों विभागों में पीछे है और खासकर तेज़ गेंदबाज़ी में यह कमी और भी साफ़ दिखती है।
बल्लेबाज़ों का ख़राब प्रदर्शन
जब विपक्ष की स्पिन और पेस दोनों ही धारदार हों, तो भारत की बल्लेबाज़ी के आंकड़ों में गिरावट आना तय था। शुभमन गिल (148 रन, औसत 37) और वॉशिंगटन सुंदर (213 रन, औसत 35.50) ही ऐसे बल्लेबाज़ रहे जिनकी औसत 35 से ऊपर रही। ऋषभ पंत 300 से ज़्यादा रन बनाने वाले अकेले बल्लेबाज़ रहे। उनके 310 रन 31 की औसत से आए। इसके अलावा सरफ़राज ख़ान ने एक शतक बनाया, लेकिन बाक़ी पांच पारियों में सिर्फ़ 21 रन ही जोड़ सके।
भारत के शीर्ष सात बल्लेबाज़ों के आंकड़े इन पांच टेस्ट में बेहद निराशाजनक रहे। उनकी औसत 22 से भी नीचे रही। 70 पारियों में सिर्फ़ एक शतक लगा। विपक्ष के टॉप सात की औसत 33.11 रही जो भारत से 50 प्रतिशत बेहतर थी। 2021 से 2024 के बीच भारत के बल्लेबाज़ी आंकड़े इससे कहीं बेहतर थे। उस दौर में औसत 38 से ऊपर रही और 221 पारियों में 17 शतक लगे थे। न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ मिली हार ने पिछले WTC चक्र में भारत की उम्मीदों को चोट पहुंचाई थी। साउथ अफ़्रीका के ख़िलाफ़ 2-0 की हार भी मौजूदा चक्र में भी वही असर छोड़ सकती है।
S Rajesh is stats editor of ESPNcricinfo. @rajeshstats
