KKR के CEO मैसूर : रसल KKR छोड़ने से दुखी थे

वेंकी मैसूर ने बताया कि रसल के IPL से संन्यास लेने और पावर कोच के रूप में KKR से जुड़ने से पहले क्यों KKR ने रसल को रिलीज़ करने का फ़ैसला किया था

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तीन बार की IPL चैंपियन कोलकाता नाइट राइडर्स ने कई खिलाड़ियों को रिलीज़ कर अपनी टीम में बड़ा बदलाव किया है। इनमें आंद्रे रसेल भी शामिल हैं। रसल KKR के साथ लगभग 11 साल तक रहे और इसी दौरान वह IPL के सबसे महान खिलाड़ियों में से एक बने। टीम ने भारतीय ऑलराउंडर वेंकटेश अय्यर को भी रिलीज़ कर दिया है, जिन्हें मेगा ऑक्शन में 23.50 करोड़ रुपये में ख़रीदा गया था। 2024 में आख़िरी बार IPL जीतने वाली KKR ने अपने कोचिंग स्टाफ़ में भी काफ़ी बदलाव किया है। टीम ने अभिषेक नायर को नया मुख्य कोच बनाया है। शेन वॉटसन और टिम साउदी को असिस्टेंट कोच नियुक्त किया है। रसल को 'पावर कोच' की भूमिका दी गई है। इन बदलावों के बाद कई सवाल उठे। KKR के लंबे समय से CEO वेंकी मैसूर ने इन फ़ैसलों पर विस्तार से बात की और यह भी बताया कि रसल ने IPL से रिटायर होने का फै़सला क्यों लिया।

क्या आंद्रे रसल को रिलीज़ करना आख़िरी वक़्त पर लिया गया फ़ैसला था? शाहरुख़ ख़ान ने उन्हें 'रसल मसल' कहा। उन्हें रिलीज़ करने का क्या कारण था?

वेंकी मैसूर: काश हर साल ऑक्शन नहीं होता क्योंकि कई बार यह बेहद तनावपूर्ण हो जाता है। कुछ ऐसे फ़ैसले भी लेने पड़ते हैं जो आप करना नहीं चाहते। लेकिन यह बिल्कुल अंतिम समय पर लिया गया फ़ैसला नहीं था। हम अलग-अलग समीकरण और संभावनाओं पर विचार कर रहे थे। काफ़ी सोच विचार के बाद हमने कहा कि यही फ़ैसला हमारे लिए सही होगा।

लेकिन बहुत लोगों ने मूल बात को समझा ही नहीं। रसल को रिलीज़ करने से हमारे पर्स से 18 करोड़ जुड़े, 12 करोड़ नहीं। उनका कॉन्ट्रैक्ट भले 12 करोड़ का था लेकिन हमारे पर्स में से कटौती 18 करोड़ की होती। इस तथ्य को कई लोगों ने नज़रअंदाज़ किया और कहा कि 12 करोड़ वाले खिलाड़ी को KKR क्यों नहीं रखना चाहेगी। 18 करोड़ ऑक्शन के संदर्भ में बहुत बड़ी राशि है। यही सबसे बड़ा कारण था।

मिनी ऑक्शन में आप जितनी ज़्यादा राशि के साथ जा सकें, उतना अच्छा होता है, ताकि जो भी संभावित विकल्प सामने आएं, उन्हें आप देख सकें। अगर कटौती 12 करोड़ होती तो शायद फ़ैसला बिल्कुल अलग होता।

अगर कटौती 12 करोड़ होती, तो क्या आप उन्हें रिटेन करते?

मैसूर: अगर कटौती 12 करोड़ की होती तो मामला अलग होता। 12 करोड़ की राशि कम नहीं होती लेकिन सवाल यह है कि क्या आप ऑक्शन में 12 करोड़ में उनकी गुणवत्ता का खिलाड़ी पा सकते हैं। मिनी ऑक्शन में इसकी संभावना बेहद कम है। लेकिन 18 करोड़ बहुत बड़ी रक़म है। इसलिए यह आख़िरी मिनट का फ़ैसला नहीं था, सिर्फ़ आख़िरी मिनट पर इसका ऐलान हुआ।

आपको यह भी देखना होता है कि विकल्प क्या हैं। जब आप किसी खिलाड़ी को ऑक्शन में भेजते हैं तो हमेशा यह मानकर चलना पड़ता है कि वह खिलाड़ी वापस न भी मिले। ऐसे में फिर टीम की संरचना कैसी होगी, किन विकल्पों पर जाएं, यह सब चर्चा होती रहती है। इसलिए रिटेंशन की समयसीमा से पहले के कुछ दिनों में हमने यह फ़ैसला ले लिया था।

रसल की प्रतिक्रिया क्या थी?

मैसूर: हमें कभी रसल को ऑक्शन में नहीं उतारना पड़ा, लेकिन हर बार जब रिटेंशन का समय आता है, तो ऐसी चर्चाएं होती हैं। मेगा ऑक्शन से पहले भी ऐसा हुआ था। ख़ास तौर पर पिछले साल, क्योंकि उस समय शुल्क की संरचना बिल्कुल अलग थी और काफ़ी सख़्त भी थी। अगर आप तीन से ज़्यादा खिलाड़ियों को रिटेन करते, तो आपको बड़ी रक़म देनी पड़ती थी। चौथे खिलाड़ी की रिटेंशन स्लैब 18 करोड़ थी।

आप हिसाब लगाते हैं कि क्या हम इस खिलाड़ी को ऑक्शन में 18 करोड़ या उससे कम में दोबारा हासिल कर सकते हैं। हम अपने किसी भी खिलाड़ी को जाने देना नहीं चाहते। इसी वजह से इस बार मैंने रसल से बात की और कहा कि हमें शायद उन्हें रिलीज़ करना पड़े। उन्होंने कहा, "वाह, 2014 के बाद कभी ऑक्शन में नहीं गया।" उससे पहले वह दिल्ली डेयरडेविल्स के साथ थे। फिर हमने उन्हें लिया और तब से वह कभी ऑक्शन का हिस्सा नहीं बने। इसलिए ये स्थिति हम दोनों के लिए अजीब थी। वह हमेशा बहुत समझदार और संवेदनशील रहे हैं। उनसे बात करना आसान होता है। वह भावुक हैं लेकिन कुछ खिलाड़ियों की तरह बेहद औपचारिक नहीं।

कुछ दिन बाद बात का असर उन पर साफ दिखा। वह मेरे पास आए और बोले, "मैंने कई रातें सोए बिना बिताई हैं। बस यही सोचता रहा कि आगे क्या होगा। मैं पर्पल और गोल्ड जर्सी का आदी हूं। नाइट राइडर्स के साथ जो रिश्ते बने हैं, आपके और मालिकों के साथ जो जुड़ाव है, वह बहुत गहरा है।"

हमने मज़ाक में कहा भी कि पिछले 11 सालों में शायद मैंने रसल से इतनी बात की है कि उतनी बात तो मैंने अपनी बीवी से भी नहीं की होगी। हम उन्हें दो बार डलास भेज चुके हैं ताकि वह NFL टीम के साथ ट्रेनिंग कर सकें और और भी फ़िट और मज़बूत बनें। 2017 में जब उन्हें एक साल का एंटी डोपिंग बैन मिला था, तब भी मैं लगातार उनके संपर्क में था। हमने TKR यानी त्रिबागो नाइट राइडर्स के फ़िज़ियो को जमैका भेजा ताकि वह रसल के साथ काम कर सकें, उनकी फ़िटनेस सुधार सकें और सबसे ज़रूरी, उनके मनोबल को बनाए रख सकें। क्रिकेटर के लिए एक साल का बैन बहुत कठिन समय होता है। सोचना भी मुश्किल है कि वह दौर कैसा रहा होगा। लेकिन ठीक उसके बाद 2018 का रिटेंशन वाला साल आ गया।

आंद्रे रसेल ने बल्ले और गेंद दोनों से KKR के लिए कई मैच जिताए हैं © BCCI

हमें पता नहीं था कि वह कैसे फ़ॉर्म में है, या उनका फ़िटनेस स्तर क्या है, लेकिन हमने उन्हें रिटेन किया। और वह हमेशा इस बात को मानते हैं और कहते हैं, "उस वक़्त को याद करते हुए मेरी आंखों में आंसू आ जाते हैं। मुझे एक मिलियन डॉलर का कॉन्ट्रैक्ट मिला था और मुझे रिटेन करने का फ़ैसला लिया गया।"

उन्हें रिलीज़ करने की शुरुआती बातचीत के लगभग 48 घंटे बाद, ये सारी बातें उन्हें बहुत ज़्यादा महसूस हुईं। फिर ऑक्शन को लेकर चर्चाएं शुरू हुईं कि अब इसे कैसे संभाला जाए? आगे क्या होगा? और ऐसे ही तमाम सवाल।

उस वक़्त तक उन्होंने ऑक्शन में आने का विचार नहीं छोड़ा था? आपकी बातचीत सिर्फ़ उन्हें रिलीज़ करने के बारे में थी

वेंकी मैसूर: बिल्कुल सही। फ़्रैंचाइज़ी चलाने के इन 15 सालों में मेरी ऐसी कई तरह की बातचीत हुई है। खिलाड़ी बहुत कम ही मानते हैं कि उनका समय अब ख़त्म हो चुका है। उन्हें हमेशा लगता है, 'मेरे अंदर अभी क्रिकेट बाक़ी है। एक साल, दो साल, तीन साल...' रसल भी यही सोच रहे थे। और शायद वह सही भी हैं, लेकिन उन्हें यह भी एहसास हुआ कि जब 2026 का IPL आएगा, तो वह 38 साल के हो चुके होंगे। उनके जैसे ऑलराउंडर के लिए, जो डेथ ओवरों में तेज़ गेंदबाज़ी करता है, जिसे ज़ोरदार हिट मारना पड़ता है, जिसे ख़ूब दौड़ना पड़ता है, मैदान पर उनकी तरह फ़ील्डिंग करनी पड़ती है, उस उम्र में करना आसान नहीं होगा। वह एक प्राकृतिक एथलीट हैं, लेकिन शरीर और उम्र तो हावी हो ही जाते हैं।

लेकिन कहीं न कहीं, वह बातचीत IPL से संन्यास लेने की एक विकल्प के रूप में सामने आई, और उन्होंने इस पर ज़्यादा विचार किया। कई अलग-अलग कारणों से उन्हें यह विचार पसंद आया।

यह आपका सुझाव था या उनका ?

मैसूर: मैं देख रहा था कि वह इस फै़सले को लेकर भीतर ही भीतर परेशान हैं। जब मैंने यह बात SRK यानी शाहरुख़ ख़ान से साझा की तो उन्हीं ने वह सुझाव दिया। कोई भी खिलाड़ी अपने मन के किसी हिस्से में सोचता है कि रिटायर होने के बाद क्या होगा। लेकिन मुझे नहीं लगता कि वे इस बारे में ज़्यादा सोचना चाहते हैं। पेशेवर एथलीट ऐसे ही होते हैं। उन्हें भरोसा रहता है कि वे अब भी अच्छे हैं। इसमें कोई दो मत नहीं कि रसल अब भी अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। वह शानदार खिलाड़ी हैं और कई दूसरी लीगों में भी खेल रहे हैं।

कल यानी तीन दिसंबर को अबू धाबी नाइट राइडर्स और शारजाह वॉरियर्ज़ के बीच हुए ILT20 मैच में भी वह आए और पहली ही गेंद पर वह छक्का जड़ दिया। गेंद साइट स्क्रीन पर लगकर सीधी पिच के बीच में लौट गई। गेंदबाज़ी में भी उन्होंने पहली ही गेंद पर डीके यानी दिनेश कार्तिक को क्लीन बोल्ड कर दिया।

रिटायरमेंट का फै़सला लेने के बाद वह मानसिक रूप से बहुत आज़ाद दिखे। उन्होंने दो कैच भी लिए और स्लाइड भी किया और डाइव भी लगाई और कुछ अच्छे थ्रो भी किए। मैंने बाद में उन्हें एक नोट भेजा कि यहां क्या चल रहा है रसल। कैसे हो पावर कोच ? मैं बस मज़ाक कर रहा था। अब हर कोई उन्हें पावर कोच कहने लगा है और मुझे लगता है कि उन्हें यह पसंद भी है। हम सभी बहुत खु़श हैं। मुझे लगता है कि वह भी बहुत खु़श हैं। वह इसे पूरी तरह स्वीकार कर चुके हैं और बिल्कुल सहज हो गए हैं।

रसल ने कहा कि पावर कोच वाला आइडिया आपका था। उन्होंने कहीं कोचिंग नहीं की है। तो यह कैसे तय हुआ

मैसूर: यह एक तरह से अचानक आया हुआ विचार था। हम बात कर रहे थे कि वह कौन सा रोल सबसे अच्छी तरह निभा सकते हैं। मैंने उनसे कहा कि आप किस चीज़ के लिए सबसे ज़्यादा जाने जाते हैं। कम गेंदों में मैच ख़त्म करने की आपकी क्षमता और पहली ही गेंद से खेल बदल देने की ताक़त। फ़ील्डिंग में भी मैंने उनके जितना एथलेटिक खिलाड़ी नहीं देखा। अब भले चीज़ें अलग हों लेकिन जब वह कम उम्र के थे और अगर वह बाउंड्री पर खड़े हों तो कोई भी खिलाड़ी दो रन लेने की हिम्मत नहीं करता था। वह तेज़ी से स्लाइड करते थे, गेंद उठाकर थ्रो मारते थे और उनके अंदर जबरदस्त ताक़त थी।

वह जब क्रीज़ पर आते हैं तो सिर्फ़ उनकी मौजूदगी ही इतनी भारी होती है कि लगता है अब पावर हिटिंग शुरू होने वाली है। मैंने उनसे कहा कि आप टीम की सबसे ज़्यादा मदद किस तरह कर सकते हैं। आपका सारा कौशल और अनुभव जब एक साथ आते हैं तो सब कुछ पावर पर आधारित होता है। मैंने कहा कि हम आपको पावर कोच कहेंगे।

यह सुनकर उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई। रसल ने कहा कि मुझे यह बहुत अच्छा लगता है। शायद यह अपनी तरह का पहला मामला है जहां किसी को इस तरह की भूमिका का नाम दिया गया है। यह सिर्फ़ कोचिंग नहीं है। यह उन खिलाड़ियों के साथ संवाद की बात भी है जो वही भूमिका निभाने वाले हैं। यह उनके अनुभवों को साझा करने का मामला भी है।

KKR के कोच अक्सर उनसे बात करवाते थे। और जब मैं उनके साथ अनौपचारिक बातचीत करता था तो मैं पूछता था कि आप क्या सोचते हैं। आप डगआउट में बैठे हों। एक ओवर में सोलह रन चाहिए हों और जब आप क्रीज़ पर आएं तो आपके दिमाग़ में क्या चलता है। वह कहते थे कि मैं खु़द पर भरोसा करता हूं कि मैं हर ओवर में 15-16 रन बना सकता हूं क्योंकि मुझे लगता है कि मैं हर ओवर में कम से कम दो सिक्सर लगा सकता हूं। इसलिए मैं बाक़ी गेंदों में कितने सिक्सर की ज़रूरत होगी यह गणना करता रहता हूं। यह अनोखी क्षमता है। ऐसे कितने ही लोग हैं जो यह सोच पाते हों।

Andre Russell ने IPL में 223 सिक्सर लगाए हैं © Getty Images

हां, कुछ ही खिलाड़ी दबाव भरी परिस्थिति में मैदान में जाकर सफलता हासिल कर पाए हैं। ड्रे ऐसा कर सकते हैं और अब टिम डेविड ऐसी भी भूमिका निभा रहे हैं।

मैसूर: एकदम सही। आप किसी को ताकत नहीं सिखा सकते हैं लेकिन आप खिलाड़ियों को वैसा माइंडसेट तैयार करने में मदद ज़रूर कर सकते हैं क्योंकि उनके पास क्षमता है।

ड्रे बहुत प्रैक्टिकल व्यक्ति भी हैं क्योंकि जब वह कोचिंग स्टाफ़ के रूप में जुड़ने के लिए तैयार हो गए तो उन्होंने कहा, "देखो मैं तो उस स्पोंज की तरह हूं जो वहां आकर सबकुछ सोख लेगा।" उन्हें पता है कि सपोर्ट स्टाफ़ में काफ़ी अनुभव है, अभिषेक (नायर) हमारे साथ 2018 से जुड़े हुए हैं। (ड्वेन) ब्रो 2015 से TKR के साथ जुड़े हैं और पिछले साल से वह KKR के मेंटॉर हैं। (शेन) वॉट्सन MLC और अन्य जगह मुख्य कोच की भूमिका में हैं और IPL में सहायक कोच हैं। गेंदबाज़ी कोच के रूप में टिम साउदी अपने साथ काफ़ी अनुभव लेकर आते हैं। तो सपोर्ट स्टाफ़ में काफ़ी अनुभव है। तो ड्रे ने मुझसे कहा, "मैं इन लोगों से काफ़ी कुछ सीख सकता हूं और मेरे पास देने के लिए भी बहुत कुछ भी है। "

मिनी ऑक्शन में 64.3 करोड़ के पर्स के साथ जाने का मतलब आपके पास इतनी राशि होती है कि आप जिसे चाहें ख़रीद सकते हैं। क्या आप KKR को उस स्थिति में देखते हैं कि वह एक मज़बूत दल बना पाए?

मैसूर: हम वैसी टीम नहीं रहे हैं जो नीलामी में सबसे बड़े पर्स के साथ जाते रहे हों। लेकिन यह दो खिलाड़ियों को रिलीज़ (वेंकटेश और रसल) करने के चलते हो पाया जिनकी क़ीमत 41.5 करोड़ थी। तो ऐसा KKR के साथ आम तौर पर नहीं होता। तो हम अभी इस स्थिति में हैं कि देखते हैं क्यो होता है। लेकिन कई खिलाड़ियों ने नीलामी से अपना नाम भी वापस ले लिया है, ऐसे में यह काफ़ी रोचक रहने वाला है।

आपने वेंकटेश अय्यर को पिछले साल 23.5 करोड़ में ख़रीदने के बाद रिलीज़ किया। बड़ी नीलामी के बाद आपने कहा था कि आप खिलाड़ियों को ख़रीदने के बाद इसलिए रिलीज़ नहीं करते ताकि वह सस्ते में मिल जाए। अब क्या बदल गया है?

मैसूर: जैसा कि मैंने हमारी चर्चा की शुरुआत में ही कहा था, आप इसे दुविधा या जो भी नाम दें, नीलामी ऐसी परिस्थितियां बनाती हैं। अगर उन्होंने 500 रन बनाए होते तो वह यह कहते, "क़ीमत मायने नहीं रखती।" लेकिन शायद इसका असर हुआ। उनकी क्षमता के लिहाज़ से 2021 से लेकर अब तक पिछला सीज़न उनका सबसे बुरा साल रहा। यह पूरी तरह से परिस्थितियों के आधार पर लिया गया फ़ैसला था, छोटी नीलामी की प्रवृति को देखते हुए हमने उन्हें रिलीज़ करने का फ़ैसला किया।

हाल ही के एक साक्षात्कर में राजस्थान रॉयल्स के लीड ऑनर मनोज बडाले ने कहाकि वह मेगा नीलामी से उत्पन्न होने वाली चुनौतियों का लुत्फ़ उठाते हैं। बड़ी नीलामी पर आपकी राय क्या है?

मैसूर: जब पिछले साल IPL के साथ रिटेंशन और अन्य ज़रूरी विषयों पर फ़्रैंचाइज़ियों की चर्चा हुई थी तब हमने अपना पक्ष बहुत स्पष्टता के साथ रखा था। हमने कहा था कि आप उन फ़्रैंचाइज़ियों को सज़ा नहीं दे सकते जिन्होंने प्रतिभाओं को तलाशने और तराशने के लिए कड़ी मेहनत की है। और आप अचानक कहते हैं कि हर तीन वर्ष में बड़ी नीलामी कर लेते हैं।

लीग के 18-19 वर्ष होने के बाद ऐसा नही होना चाहिए। मैं इसका पक्षधर नहीं हूं। इससे लीग की मदद नहीं होती और न ही इससे प्रशंसकों की कोई मदद होती है। जब 2011 में मैं पहली बार नीलामी का हिस्सा बना तब उसमें रिटेंशन की व्यवस्था नहीं रहने वाली थी लेकिन यह व्यवस्था लाई गई क्योंकि ऐसे कई अहम खिलाड़ी थे जिन्हें कुछ फ़्रैंचाइज़ी रिलीज़ नहीं करना चाहती थीं।

वास्तविक योजना यह थी कि हर तीन साल में हर खिलाड़ी नीलामी में जाए। ऐसा नहीं है कि मैं इससे असहमत हूं। मैं रिटेंशन सिद्धांत के पक्ष में हूं लेकिन इसके पीछे मुख्य उद्देश्य यह है कि आप टीमों को पुरस्कृत करना चाहते हैं जिन्होंने खिलाड़ियों और फ़्रैंचाइज़ी को विकसीत करने में मेहनत की है। और ज़रा सोचिए कि आप ख़िताब जीतते हैं और इसके बाद आपकी टीम बिखर जाती है।

मेरे विचार में बड़ी नीलामी नहीं होनी चाहिए। हमने यह राय दी थी कि आप हर साल एक छोटी नीलामी आयोजित करें जिससे टीमों के पास खिलाड़ियों को अपने साथ बरक़रार रखने का अधिकार हो। लेकिन फिर यह सवाल उठता है कि खिलाड़ियों को क्या होगा? अगर आपने किसी खिलाड़ी को 50 लाख में ख़रीदा और उसने तीन वर्ष की अवधि में काफ़ी बेहतर प्रदर्शन किया। लेकिन मैंने कहा कि यह एक ऐसा कारण नहीं है जिसके चलते नीलामी आयोजित करानी पड़े। इसके लिए अलग प्रणाली बन सकती है। आप टीमों को खिलाड़ियों के साथ उनके वेतन तय करने की छूट दे सकते हैं।

आप इसे कैसे सुनिश्चित करेंगे?

मैसूर: खिलाड़ियों के सात बात की जा सकती है कि अगर वह नीलामी में जाते हैं तो किसे पता उन्हें किस दाम पर ख़रीदा जाएगा? अगर मुझे अनुमित मिले तो ऐसा होना चाहिए कि पहले खिलाड़ी के साथ चर्चा होनी चाहिेए और अगर वह नहींं मानता है तो रिलीज़ की चर्चा होनी चाहिएI उदाहरण के तौर पर हमने एक खिलाड़ी को 18 करोड़ में नीलामी में ख़रीदा लेकिन अब हम अगले सीज़न के लिए उन्हें 12 करोड़ में रखना चाहते हैं। अगर खिलाड़ी राज़ी हो जाता है तो हम अतिरिक्त पैसा अन्य खिलाड़ियों में वितरित कर सकते हैं जिन्होंने बढ़िया प्रदर्शन किया है और बेहतर पैसा पाने के हक़दार हैं। नीलामी भी ऐसा करता है लेकिन क्या ऐसा होना चाहिए कि कोई फ़्रैंचाइज़ी अपने खिलाड़ी को सिर्फ़ इसलिए खो दे क्योंकि कोई अन्य ज़्यादा पैसे के साथ इंतज़ार कर रहा है?

लेकिन मान लीजिए कि खिलाड़ी राज़ी नहीं होता है और अन्य फ़्रैंचाइज़ी खिलाड़ी से रिलीज़ होने के लिए कहती है। आपको लगता है कि ऐसा बड़ी संख्या में नहीं होगा?

मैसूर: आप सही हैं, ऐसा हो सकता है लेकिन बड़ी संख्या में नहीं। क्योंकि खिलाड़ी को ख़ुद इस बात का एहसास हो जाएगा कि अगर काफ़ी टीम खिलाड़ियों को रिलीज़ नहीं कर रही हैं तो उसे नीलामी में शायद बड़ी राशि न मिले।

लेकिन आप जिस व्यवस्था का सुझाव दे रहे हैं उसे खिलाड़ियों के लिए पारदर्शी और न्यायसंगत होना चाहिए।

मैसूर: यह सभी ऐसी समस्याएं हैं जिनका समाधान निकाला जा सकता है। उदाहरण के तौर पर, जब एक अनकैप्ड भारतीय खिलाड़ी कैप्ड खिलाड़ी बनता है तो उसकी फ़ीस स्वत: बढ़ जाती है। तो इन सबका समाधान निकालना संभव है, हमें बस अपना दिमाग़ लगाना है और समाधान मिल जाएगा।

तो क्या ऑक्शन पर्स को भी बढ़ा देना चाहिए??

मैसूर: नहीं। सैलरी कैप बढ़ाने से चीज़ें नहीं बदलेंगी। किसी भी नीलामी में सैलरी कैप का 20 से 25 फ़ीसदी की राशि पर अधिकतम बोली लगती है, अगर 125 करोड़ की सैलरी कैप होगी तो खिलाड़ी पर अधिकतम बोली 25 करोड़ के आसपास लगेगी। तो इससे सिर्फ़ खिलाड़ियों की फ़ीस बढ़ेगी और उन पर लगाई जाने वाली अधिकतम बोली की राशि में इज़ाफ़ा होगा।

लेकिन खिलाड़ी यह भी कह सकता है कि 'मैं भी एक हितधाकर हूं। IPL फ़्रैंचाइज़ियां मेरे प्रदर्शन से मुनाफ़ा कमा रही हैं।' तो खिलाड़ी को अच्छी क़ीमत क्यों नहीं मिलनी चाहिए?

मैसूर: हां, सही बात है। लेकिन इसका भी एक जवाब है, तो फिर प्रदर्शन के हिसाब से पैसे का भुगतान किया जाए। एक तय फ़ीस हो, एक न्यूनतम फ़ीस हो और अच्छा प्रदर्शन करने पर प्रोत्साहन राशि भी शामिल कर ली जाए ताकि खिलाड़ी यह कह सके कि चूंकि वह अच्छा प्रदर्शन कर रहा है तो उसे इसका भुगतान किया जाना चाहिए। लेकिन इसी तरह किसी खिलाड़ी को बड़ी रक़म मिल रही है लेकिन उसका प्रदर्शन औसत से काफ़ी नीचे है, ऐसा नहीं है कि हम उसकी फ़ीस में कटौती कर रहे हैं। हालांकि यह अभी शुरुआती दौर में है। लेकिन इसके पीछे विचार यह है कि आपको उस मुर्गी को नहीं मारना चाहिए जो आपको सोने के अंडे दे रही हो। फ़्रैंचाइज़ी आधारित खेल दशकों से वजूद में है और उन्होंने ऐसे विचारों पर काफ़ी चर्चा की है कि इन्हें कैसे अमल में लाया जा सकता है। तो हम विचार उधार ले सकते हैं ताकि हमें फिर से टीम को नए सिरे से तैयार न करना पड़े।

नागराज गोलापुड़ी ESPNcricinfo में न्यूज़ एडिटर हैं।

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