विश्व कप टॉप 5 : बांग्लादेश बनाम पाकिस्तान, 1979 में भारत की शर्मनाक हार और अन्य उलटफेर
अफ़ग़ानिस्तान ने इंग्लैंड को हराकर 2023 विश्व कप में नई ऊर्जा डाल दी है, लेकिन ऐसा पहले भी कई बार हुआ है
हां या ना : मुजीब को इंग्लिश बल्लेबाज़ हाथ और पिच दोनों से नहीं पढ़ पाए
अफ़ग़ानिस्तान की इंग्लैंड पर जीत से जुड़े अहम सवालों पर वसीम जाफ़र का फ़ैसलारविवार को दिल्ली में अफ़ग़ानिस्तान ने विश्व कप के गत विजेता इंग्लैंड पर आसान जीत के साथ इस विश्व कप के संस्करण के सबसे बड़े उलटफेर को अंजाम दिया। वैसे लगभग हर विश्व कप में कोई ना कोई फ़ेवरिट टीम किसी दूसरी टीम से एक ना एक बार पिटी है।
वैसे तो 2003 में केन्या (बनाम श्रीलंका), 2007 में बांग्लादेश (बनाम भारत और साउथ अफ़्रीका) और आयरलैंड की 2007 (बनाम पाकिस्तान) और 2011 (बनाम इंग्लैंड) के कारनामे प्रचलित हैं, हमने सोचा इस बार टॉप 5 में आपको 20वीं सदी के पांच सबसे बड़े ऐसे मुक़ाबलों की याद दिलाएं।
5. नॉर्थेंप्टन का चमत्कार, 1999
जब 1999 विश्व कप में पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच ग्रुप मैच खेला जाना था, तो दोनों टीमों की क़िस्मत का फ़ैसला हो चुका था। लगातार चार जीत के बाद पाकिस्तान सुपर सिक्स के लिए क्वालिफ़ाई कर चुका था, तो वहीँ आईसीसी ट्रॉफ़ी जीतकर विश्व कप खेल रहे बांग्लादेश के नाम सिर्फ़ स्कॉटलैंड के विरुद्ध एक जीत दर्ज थी।
वसीम अकरम ने टॉस जीता और पहले गेंदबाज़ी चुनी। सक़लैन मुश्ताक़ ने अपने फ़ॉर्म को जारी रखते हुए पांच विकेट लिए, लेकिन एक चुनौतीपूर्ण पिच पर कुछ जुझारू बल्लेबाज़ी से बांग्लादेश ने 223 का स्कोर बनाया, जिसमें पूर्व कप्तान अकरम ख़ान का 42 सर्वाधिक स्कोर रहा।
जवाब में ख़ालिद महमूद की अगुवाई में बांग्लादेश के सीमर्स ने परिस्थितियों का भरपूर फ़ायदा उठाते हुए सईद अनवर, शाहीद अफ़रीदी, इजाज़ अहमद, इंज़माम-उल-हक़ और सलीम मलिक जैसे बड़े नामों को दोहरे अंकों तक पहुंचने नहीं दिया और एक समय स्कोर 42 पर पांच था। महमूद ने 27 की पारी के बाद तीन विकेट लिए और पाकिस्तान को 161 पर ऑल आउट कर दिया। इस जीत से बांग्लादेश को टेस्ट स्टेटस मिलने में भी बहुत मदद मिली।
4. जब एडो बने हीरो, 1992
1992 विश्व कप में भी लीग पड़ाव का आख़िरी दिन था जब ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स में स्थित ऐल्बरी शहर में इंग्लैंड और ज़िम्बाब्वे की मुलाक़ात हुई। ज़िम्बाब्वे लगातार अपने तीसरे विश्व कप अभियान में था, लेकिन 1983 में ज़बरदस्त शुरुआत (जिस पर आएंगे जल्द ही) के बाद एक भी मैच नहीं जीता था। इंग्लैंड अंक तालिका के शीर्ष पर ही थे और यह भी लगभग सुनिश्चित था कि उन्हें सेमीफ़ाइनल में साउथ अफ़्रीका से खेलना होगा।
पहली पारी में जब इयन बॉथम और मौजूदा अंपायर रिचर्ड इलिंगवर्थ ने ज़िम्बाब्वे को 134 पर ऑल आउट कर दिया, तो किसी ने पलक नहीं झपकाए। जवाब में हरारे में एक मुर्गी फ़ार्म में काम करने वाले एडो ब्रांडेस ने अपने पहले ओवर में कप्तान ग्रैम गूच को चलता किया। ऑलराउंडर अली शाह ने अपने 10 ओवर में केवल 17 रन देकर दो विकेट लिए और ब्रांडेस ने कुल चार विकेटों में ऐलन लैंब, रॉबिन स्मिथ और ग्रैम हिक (जो ख़ुद 17 साल की उम्र में 1983 विश्व कप में ज़िम्बाब्वे दल का हिस्सा रहे थे) के विकेट निकाले। अंततः इंग्लैंड आख़िरी ओवर में जाकर 125 पर ऑल आउट हुआ।
3. ओल्ड ट्रैफ़र्ड में वह दो दिन, 1979
यह वैसे 2019 की बात नहीं हो रही। 1979 में पिछले दो अवसरों में बांग्लादेश और ज़िम्बाब्वे की ही तरह श्रीलंका एक एसोसिएट देश था। उनकी टीम भारत के ख़िलाफ़ मैनचेस्टर पहुंची तो बारिश की वजह से मैच देर से शुरू हुआ। नियमित कप्तान अनुरा टेनेकून चोटिल थे और बंदुला वर्णपुरा (जिनके भतीजे मालिंदा भी भारत के ख़िलाफ़ खेल चुके हैं) ने कमान संभाली। भारत ने टॉस जीतकर कपिल देव और करसन घावरी को पहले गेंदबाज़ी करने का मौक़ा दिया।
1980 के दशक में स्टार बनने वाले सिधात वेटीमुनि, रॉय डीआस और दुलीप मेंडिस ने अर्धशतक मारे और पूरे टूर्नामेंट के सबसे युवा खिलाड़ी, 17-वर्षीय स्कूलबॉय सुदाथ पासक्वाल ने भी 26 गेंदों पर 23 रनों की पारी खेली और 60 ओवर में स्कोर को 238 तक पहुंचाया।
मैच शनिवार को देर से शुरू हुआ था और उन दिनों इंग्लैंड में रविवार को क्रिकेट खेलने की प्रथा नहीं थी। ऐसे में सोमवार को भारत के लिए सुनील गावस्कर और अंशुमन गायकवाड़ ने 60 रनों की ठोस साझेदारी से शुरुआत की। वर्णपुरा ने गावस्कर का विकेट लिया और फिर लेगस्पिनर सोमचंद्र डीसिल्वा ने तीन बड़े विकेट निकाले। रही सही कसर सीमर टोनी ओपाथा ने निकाल दी और भारत इतिहास में पहली और आख़िरी बार किसी विश्व कप में अपने सारे मैच हारकर बाहर निकला।
2. पुणे की पलटन, 1996
1996 लीप इयर होने की वजह से वेस्टइंडीज़ का केन्या से मुक़ाबला 29 फ़रवरी को पुणे में खेला गया। वेस्टइंडीज़ ने टॉस जीता और कोर्टनी वॉल्श, कर्टली ऐंब्रोज़ और इयन बिशप जैसे धुरंधरों के सामने केन्या के बल्लेबाज़ लाचार नज़र आए। स्टीव टिकोलो, हितेश मोदी और 17-वर्षीय थॉमस ओडोयो ने कुछ अच्छे योगदान दिए और स्कोर को 166 तक पहुंचाया।
पिच पर हल्की नमी थी और मध्यम गति के गेंदबाज़ राजब अली ने दोनों तरफ़ स्विंग करवाते हुए कप्तान रिची रिचर्डसन को बोल्ड किया और स्टार बल्लेबाज़ ब्रायन लारा को बड़े डील-डॉल के कीपर तारिक़ इक़बाल द्वारा कैच आउट करवाया। शिवनारायण चंद्रपॉल और रॉजर हार्पर ने कुछ समय के लिए केन्या को रोका लेकिन राजब ने आख़िरी विकेट निकालकर दो बार विजेता रही वेस्टइंडीज़ को 93 पर समेट दिया। पूरे मैच में वेस्टइंडीज़ गेंदबाज़ों द्वारा दिए 37 अतिरिक्त रन टॉप स्कोरर रहा। यह केन्या की औपचारिक वनडे क्रिकेट में पहली जीत थी और वेस्टइंडीज़ का विश्व कप में दूसरा न्यूनतम स्कोर।
1. डंके की चोट पर फ़्लेचर का जादू, 1983
1983 विश्व कप में भारत बनाम वेस्टइंडीज़ को सबसे बड़ा उलटफेर माना जाता है, लेकिन ऐसा उस विश्व कप में दो बार हुआ था। ऊपर से भारत ने वनडे क्रिकेट में फ़ॉर्मूला क्रैक भले ही नहीं किया था, वह आधे शताब्दी से टेस्ट क्रिकेट खेल रहे थे।
नॉटिंघम में ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध मैच ज़िम्बाब्वे के इतिहास में पहला वनडे था। डेनिस लिली की अगुवाई में ऑस्ट्रेलिया ने ज़िम्बाब्वे को पांच विकेट पर 94 पर छोड़ा था। यहां से डंकन फ़्लेचर ने 84 गेंदों पर 69 की नाबाद पारी खेलते हुए टीम को 239 के सम्मानजनक स्कोर तक पहुंचाया।
जवाब में ऑस्ट्रेलिया एक समय 114 पर दो पर था लेकिन फ़्लेचर ने इस बार अपने मध्यम गति की गेंदबाज़ी से अंतर डाला। ग्रैम वुड और कप्तान किम ह्यूज़ पहले ही उनका शिकार बन चुके थे, लेकिन उन्होंने डेविड हुक्स और ग्रैम येलप को इसमें शामिल किया। केप्लर वेसेल्स (जिन्होंने बाद में विश्व कप में साउथ अफ़्रीका की कप्तानी की) और रॉड मार्श के अर्धशतकों के बावजूद ज़िम्बाब्वे को 13 रनों की यादगार जीत मिली।
देबायन सेन ESPNcricinfo में सीनियर सहायक एडिटर और स्थानीय भाषा लीड हैं @debayansen
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