तेंदुलकर बनाम इंग्लैंड : चेन्नई एक्सप्रेस की शुरुआत, बर्मिंघम के बादशाह और एक यादगार पचासा
रोड सेफ़्टी सीरीज़ में अब बारी है इंडिया लेजेंड्स बनाम इंग्लैंड लेजेंड्स की, बशर्ते मौसम मेहरबान रहे

रोड सेफ़्टी वर्ल्ड सीरीज़ (आरएसडब्ल्यूएस) में हमने सचिन तेंदुलकर बनाम ब्रायन लारा के महामुक़ाबले की उम्मीद में उनके इतिहास पर एक लेख लिखा लेकिन कानपुर में उस मैच में भारी वर्षा के चलते एक भी गेंद नहीं डाली गई।
उसके बाद हमने कोशिश की कि इंडिया लेजेंड्स और न्यूज़ीलैंड लेजेंड्स से पूर्व हम आपको याद दिलाएं कि आख़िर न्यूज़ीलैंड का तेंदुलकर के करियर में इतना ख़ास स्थान क्यों रहा है। इस बार मैच शुरू तो हुआ, और तेंदुलकर बल्लेबाज़ी करने भी उतरे, लेकिन इंदौर में भी हम इंद्र देव को प्रसन्न नहीं रख पाए।
अब काफ़िला आ पहुंचा है देहरादून और गुरुवार को भारत और इंग्लैंड के बीच 'लेजेंडरी' मैच से पहले मौसम का पूर्वानुमान बहुत आशावादी नहीं है। फिर भी, जब एक टीम तेंदुलकर जैसे महान खिलाड़ी के करियर में कुछ अद्भुत पलों की साक्षी रही है, तो उन्हें याद करना हमारा फ़र्ज़ बनता है, क्यों?
17 साल का हीरो
1990 में इंग्लैंड लॉर्ड्स में भारत को करारी शिकस्त देने के बाद ओल्ड ट्रैफ़र्ड टेस्ट में भी हावी था। भारत ने पहली पारी में जब फ़ॉलो-ऑन बचाया था तब छठे नंबर पर खेल रहे 17-वर्षीय तेंदुलकर (जी हां, क्रिकेट में ऐसे भी दिन हुआ करते थे) ने 68 रनों की उपयोगी पारी खेली थी।
मैच के अंतिम दिन जब दोबारा उनकी बल्लेबाज़ी आई तो भारत 109 पर लगातार तीसरी और चौथी विकेट गंवा चुका था और जीत के लिए 408 रनों से ज़्यादा दो पूरे सत्र बल्लेबाज़ी करने की चुनौती सामने थी। तेंदुलकर ने कमर कसकर 225 मिनट बल्लेबाज़ी की और मोहम्मद अज़हरुद्दीन, कपिल देव और मनोज प्रभाकर जैसे वरिष्ठ खिलाड़ियों के साथ मैच बचाया। साथ ही उन्होंने अपने अंतर्राष्ट्रीय करियर का पहला सैंकड़ा भी जड़ा और भारत की ओर से सबसे युवा शतकवीर बने।
चेन्नई : एक प्रेम कथा
वैसे तो जब इंग्लैंड 1993 के शुरू में भारत के दौरे पर आई तब तक तेंदुलकर किशोरावस्था के आख़िरी पड़ाव पर थे लेकिन उनका अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट का अनुभव साढ़े तीन साल का था। बहरहाल टेस्ट सीरीज़ से पहले उन्होंने भारतीय धरती पर अंतर्राष्ट्रीय शतक नहीं लगाया था।
यह मंज़र बदला चेन्नई के एम ए चिदंबरम स्टेडियम में खेले गए दूसरे टेस्ट के पहले ही दो दिनों में। भारत के 560 पर छह विकेट पारी घोषित के स्कोर, और आख़िरकार पारी की जीत में तेंदुलकर 165 रनों के साथ सर्वाधिक स्कोरर रहे। यहां से उनका और चेन्नई का एक ज़बरदस्त रिश्ता बना - उन्होंने यहां टेस्ट क्रिकेट में 88.18 की औसत से पांच शतक लगाए और 1000 रनों के कीर्तिमान से केवल 30 रनों से वंचित रहे। 1993 में इस मैदान पर पहली बार खेल रहे तेंदुलकर की यह पारी किसी भी प्रारूप में उनके लिए इस शहर में सर्वाधिक है।
इंग्लैंड में आक्रामक शतक...बस वो वाली नहीं जो आप समझ रहे हैं...
यूं तो तेंदुलकर की 2002 दौरे पर हेडिंग्ले में बनाई गई 193 रनों की पारी को काफ़ी मान्यता दी जाती है लेकिन वह एक 'सोलो ऐक्ट' नहीं था। बल्कि भारत के उस यादगार जीत का अनोखा रिकॉर्ड यह है कि पहली और आख़िरी बार राहुल द्रविड़, तेंदुलकर और सौरव गांगुली की तिकड़ी ने एक साथ एक टेस्ट में शतक लगाए हो।
इस सूची में हम रख रहे हैं इंग्लैंड में लगाया गया उनका दूसरा टेस्ट शतक, जो आया था 1996 सीरीज़ के पहले टेस्ट में। बर्मिंघम में तीसरे दिन तक भी पिच पर गेंदबाज़ी के लिए मदद मौजूद थी और ऐसे में भारत पहली पारी के आधार पर 99 रन से पिछड़ते हुए दिन की शुरुआत तक अपने सलामी बल्लेबाज़ 17 के स्कोर पर गंवा बैठा।
नयन मोंगिया और कप्तान अज़हर भी जल्दी चलते बने और यहां तेंदुलकर ने अपना प्रत्याक्रमण शुरू किया। उनके 122 रन केवल 177 गेंदों पर आए और 19 चौकों के साथ उन्होंने एक छक्का भी जड़ा। वह भी बाएं हाथ के स्पिनर मिनल पटेल की गेंद पर सीधा गेंदबाज़ के सिर के ऊपर से टापा स्ट्रेट ड्राइव जिससे वह 94 से 100 तक पहुंचे।
अब साफ़ ज़ाहिर होता है कि वीरेंद्र सहवाग कैसे तेंदुलकर को पूजते हुए टॉप के बल्लेबाज़ बने...
चेन्नई भाग दो
2008 की यह पारी की अहमियत थोड़ी और थी क्योंकि मुंबई में जघन्य आतंकी हमले के बाद इंग्लैंड की टीम टेस्ट सीरीज़ खेलने भारत लौटी थी और पहले टेस्ट का वेन्यू फिर वही चेपॉक का मैदान। भारत को जीत के लिए 387 का लक्ष्य मिला और तेंदुलकर ने सहवाग द्वारा दिलाई ताबड़तोड़ शुरुआत को ज़ाया नहीं होने दिया और 103 रनों की नाबाद एंकर पारी खेली, जिसमें मॉन्टी पानेसर और ग्रेम स्वॉन की स्पिन जोड़ी को उन्होंने बड़ी ख़ूबसूरती और सूझबूझ के साथ निरस्त किया।
एक वनडे पारी का उल्लेख तो बनता है?
वनडे क्रिकेट में तेंदुलकर के 49 शतकों में केवल दो इंग्लैंड के विरुद्ध आए। एक 2002 नैटवेस्ट सीरीज़ में और दूसरा 2011 विश्व कप में (मज़े की बात है एक मैच बारिश के कारण रद्द हो गया तो दूसरा टाई रहा) लेकिन हम आपका ध्यान आकर्षित करेंगे एक ऐसी पारी की ओर जो रन के मामले में ठीक 50 रनों की रही लेकिन जिसका एक शॉट अभी भी याद किया जाता है।
डरबन, 2003 और ऐंड्रयू कैडिक...कुछ याद आया? भारत का विश्व कप अभियान रुक कर चलने की प्रवृत्ति दिखा रहा था जब किंग्समीड में तेंदुलकर बैकफ़ुट पर गए और कैडिक की एक शॉर्ट गेंद को मिडविकेट के ऊपर से तारामंडल की सैर पर भेज दिया। बस वहां से भारत फ़ाइनल से पहले तक ओवरड्राइव में चला गया और आख़िरकार तेंदुलकर टूर्नामेंट के सर्वाधिक स्कोरर के साथ सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी भी बने।
देबायन सेन ESPNcricinfo में सीनियर असिस्टेंट एडिटर और स्थानीय भाषा प्रमुख हैं।
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