परंपरा, प्रतिष्ठा, अनुशासन: मध्य प्रदेश की बल्लेबाज़ी के तीन स्तंभ
दिन के पहले चार ओवर, चारों मेडन। पहले 11 ओवर में सिर्फ़ 14 रन और कोई बाउंड्री नहीं। पारी के 30वें ओवर में पहला चौका और स्कोर दो से भी कम के रन रेट से 56 पर शून्य।
मध्य प्रदेश की इस शुरुआत को टी20 के युग में 'महाधीमी' कही जा सकती है। कर्नाटका स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन, अलूर के बड़े से स्टेडियम में रणजी क्वार्टर फ़ाइनल के तीन मैच खेले जा रहे हैं। दूसरे दिन जहां मुंबई-उत्तराखंड मैच में रनों का पहाड़ खड़ा हो रहा था, वहीं कर्नाटका-उत्तर प्रदेश मैच में विकेटों का पतझड़ चल रहा था। स्टेडियम के सबसे कोने में चल रहे मध्य प्रदेश-पंजाब मैच में ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा था, जिससे मैच में कोई रोमांच पैदा हो। ना पंजाब के गेंदबाज़ विकेट निकाल पा रहे थे और ना ही एमपी के बल्लेबाज़ रन बना रहे थे। हालांकि जहां पंजाब के गेंदबाज़ों के लिए यह मज़बूरी-सी थी, वहीं एमपी के बल्लेबाज़ों के लिए यह एक रणनीति का हिस्सा था, जो कि दिन के दूसरे हिस्से में साबित हुआ।
पहली पारी में 219 रन पर आउट होने के बाद पंजाब के दो अनुभवी तेज़ गेंदबाज़ों सिद्धार्थ कौल और बलतेज सिंह ने नई गेंद से दिन की शुरुआत बेहतरीन अंदाज़ में की। ऑफ़ साइड के चैनल में गुड और बैक ऑफ़ गुड लेंथ से लगातार गेंदबाज़ी करते हुए उन्होंने एमपी के दोनों सलामी बल्लेबाज़ों यश दुबे और हिमांशु मंत्री को बांधे रखा। इस दौरान मैदान पर बादल छाए हुए थे और हवा भी चल रही थी। सिद्धार्थ और बलतेज के हालिया घरेलू फ़ॉर्म, उपयुक्त वातावरण और मध्य प्रदेश के हद से अधिक रक्षात्मक रुख़ को देखते हुए कभी भी विकेट संभव दिख रहा था। लेकिन पंजाब की टीम पारी के 33वें ओवर में ही एमपी का पहला विकेट निकाल पाई, जब दुबे, मयंक मार्कंडेय की एक बाहर टर्न होती फ़ुल गेंद को स्लॉग स्वीप करने के चक्कर में अपना विकेट उपहार में फेंक बैठे।
कुल मिलाकर पूरे दिनभर में पंजाब के गेंदबाज़ों को सिर्फ़ दो ही विकेट मिल सके, जबकि एमपी के बल्लेबाज़ों ने धीमी शुरूआत को बड़ी पारी में बदलते हुए दो विकेट पर 238 रन का स्कोर खड़ा किया। एमपी की बढ़त 19 रन की है और उसके आठ विकेट शेष हैं। ऐसे में वे एक बड़े स्कोर की तरफ़ बढ़ते हुए दिख रहे हैं, जहां से मैच में पंजाब की वापसी की राह बहुत ही मुश्किल हो जाएगी।
एमपी की इस पारी में एक शतक, एक 89 और दो 20-20 रन की पारियां शामिल हैं, लेकिन ये पारियां दिखाती हैं कि टी-20 के इस फटाफट दौर में लाल गेंद पर पारंपरिंक ढंग से बल्लेबाज़ी कर भी टीम के लक्ष्य को पाया जा सकता है। पारंपरिंग ढंग मतलब नई गेंद को बिना अधिक छेड़छाड़ किए ही उसे छोड़ते जाना, गेंदबाज़ों को हताश करना और फिर गेंद पुराना होने पर मौक़ा मिलते ही हाथ चलाना। चंद्रकांत पंडित की कोचिंग वाली एमपी की इस टीम ने बल्लेबाज़ी की इसी परंपरा का निर्वाह किया।
सलामी बल्लेबाज़ दुबे ने पारी की शुरुआत में ग़ज़ब की दृढ़ता दिखाई। दाएं हाथ के इस बल्लेबाज़ ने 89 गेंदों की पारी में सिर्फ़ 22 की स्ट्राइक रेट से 20 रन बनाए, जिसमें एक भी बाउंड्री शामिल नहीं था। वह ऑफ़ स्टंप के चैनल से बाहर निकलती गेंदों को छोड़ते ही जा रहे थे, जिससे पंजाब के गेंदबाज़ झुंझलाते हुए नज़र आए। इस झुंझलाहट में उन्होंने कुछ कमज़ोर गेंदें की, जिसका दुबे के साथी बल्लेबाज़ हिमांशु ने फ़ायदा उठाया।
हालांकि इसका मतलब यह नहीं था कि बाएं हाथ के विकेटकीपर बल्लेबाज़ हिमांशु ख़ासा आक्रामक थे। पारी के 12वें ओवर में विनय चौधरी पर लगाए गए दो छक्कों को छोड़ दिया जाए तो उन्होंने भी दुबे की तरह ही पंजाब के गेंदबाज़ों को बस उलझाए रखा। वह भी बाहर जाती गेंदों को छोड़ रहे थे जबकि स्टंप पर आती गेंदों को सीधे बल्ले से रोक रहे थे। टी के बाद पारी के अपने दूसरे हिस्से में उन्होंने दिखाया कि उनके तरकश में कट, ड्राइव, फ़्लिक और इनसाइड आउट जैसे हथियार भी हैं, लेकिन वह उसका उपयोग तभी करेंगे, जब विकेट खोने का ख़तरा न्यूनतम हो।
मार्कंडेय की गेंद पर स्टंप आउट होने से पहले हिमांशु ने 242 गेंदों में छह चौकों और दो छक्कों की मदद से 36.77 के स्ट्राइक रेट से 89 रन बनाए। इस दौरान एक मौक़े को छोड़ दिया जाए तो हिमांशु कभी भी परेशानी में नहीं दिखे। यह प्रथम श्रेणी में हिमांशु का पहला अर्धशतक था। हालांकि यह अफ़सोसनाक रहा कि वह पहला शतक नहीं बना पाए और एक ख़राब शॉट-चयन करते हुए अपना विकेट फेंक बैठे।
दिन के सबसे बड़े आकर्षण तीसरे नंबर पर बल्लेबाज़ी करने आए शुभम शर्मा रहें, जिन्होंने नौ चौकों और एक छक्के की मदद से 211 गेंदों में नाबाद 102 रन बनाए। 2013 में ही रणजी डेब्यू करने वाले सौरभ ने पिछले आठ सीज़न में सिर्फ़ तीन ही शतक लगाए थे, लेकिन इस सीज़न वह महज़ पांच पारियों में ही तीन शतक लगा चुके हैं।
शुभम, अपने दो पूर्ववर्ती बल्लेबाज़ों की तरह 'ज़रूरत से अधिक धीमे' नहीं थे और उन्होंने जब भी मौक़ा मिला, अपना हाथ खोला। जहां तेज़ गेंदबाज़ों को उन्होंने विकेट में रहते ही हुए गेंद की लेंथ के अनुसार कट, ड्राइव, बैकफ़ुट पंच, पुल और फ़्लिक किया, वहीं स्पिनरों पर वह खुलकर आगे बढ़ें और बड़ा शॉट लगाने की कोशिश की। इस दौरान उन्हें एक-आध मौक़े भी मिले, जब बाहरी, भीतरी, मोटा किनारा लगा या मिसटाइम हुआ शॉट फ़ील्डर तक नहीं पहुंचा।
लेकिन कहते हैं ना कि भाग्य भी बहादुर का साथ देता है। दिन के अंत में जब शुभम बल्ला उठाकर पवेलियन की ओर वापस जा रहे थे तो वह इसी मुहावरे को सच साबित कर रहे थे।
दया सागर ESPNcricinfo हिंदी में सब एडिटर हैं @dayasagar95