सौरभ कुमार: अंधेरी रात की पैसेंजर ट्रेन से चमचमाती टेस्ट जर्सी तक का सफ़र
A little progress each day adds up to big results
"हर दिन किया गया प्रयास आपको बड़े परिणाम की तरफ़ ले जाता है"
पिछले साल फ़रवरी में जब सौरभ कुमार को भारतीय टेस्ट दल में एक नेट गेंदबाज़ के तौर पर पहली बार बुलाया गया, तो उन्होंने इंस्टाग्राम पर यही मोटिवेशनल कोट डालकर अपनी ख़ुशी जाहिर की थी। इसके साथ ही उन्होंने अपनी एक फ़ोटो भी डाली थी, जिसमें वह टीम इंडिया की अभ्यास करने वाली जर्सी पहनकर प्रैक्टिस कर रहे थे।
बकौल सौरभ यह उनके लिए एक छोटे से सपने के पूरा होने जैसा था। वह कहते हैं, "टीम इंडिया के ड्रेसिंग रूम का हिस्सा बनना भी एक बड़ी बात है। मैं बचपन से ही ये सपना देखा था कि मैं भारत के लिए टेस्ट खेलूं। मैं उस वक़्त टेस्ट मैच तो नहीं खेलने वाला था, लेकिन उसके सबसे क़रीब था। यह चीज़ अपने आप में मुझे रोमांचित कर रही थी।"
उत्तर प्रदेश के बाएं हाथ के स्पिनर सौरभ के लिए यह ख़ुशी निराशा भरे साल के बाद आई थी। निराशा इसलिए नहीं कि उन्होंने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया था, बल्कि इसलिए कि जब वह अपनी ज़िंदगी का सबसे बेहतरीन क्रिकेट खेल रहे थे, तब अचानक से ही बीच में कोरोना आ गया। कोविड आने से पहले 2019-20 के घरेलू सत्र में सौरभ आठ रणजी मैचों में 23.88 के बेहतरीन औसत से 45 विकेट ले चुके थे, जिसमें पांच बार पारी में पांच विकेट लेने का कारनामा शामिल था। इससे पहले वह 2018-19 के सत्र में भी 13 प्रथम श्रेणी मैचों में 18.15 के शानदार औसत से 70 विकेट ले चुके थे, जिसमें सात पंजे शामिल थे। इसके अलावा वह मौक़ा मिलने पर बल्ले से भी अपना योगदान दे रहे थे।
सौरभ के इस प्रदर्शन को देखते हुए चयनकर्ताओं ने उन्हें सौराष्ट्र के ख़िलाफ़ होने वाले ईरानी ट्रॉफ़ी मैच के लिए शेष भारत टीम में जगह दी थी। लेकिन उसी वक़्त देश में कोरोना फैल रहा था और सभी आयोजनों की तरह यह मैच भी रद्द कर दिया गया।
सौरभ कहते हैं, "वह दौर मेरे लिए बहुत कठिन था। मैं बहुत अच्छा कर रहा था और मुझे लगने लगा था कि मैं टीम इंडिया के आस-पास ही हूं। रेस्ट ऑफ़ इंडिया में शामिल होना तो यही दिखाता है। लेकिन अचानक से कोरोना आया और सब थम गया। उस वक़्त घर में बैठे-बैठे मैं हमेशा सोचता रहता था कि घरेलू क्रिकेट कब शुरू होगा? सब कुछ ऐसे रूका था कि कोई उम्मीद ही नज़र नहीं आ रही थी। आप आठ टीमों के लिए बॉयो-बबल बनाकर आईपीएल तो खेल सकते हो, लेकिन 38 टीमों का बबल बनाकर रणजी ट्रॉफ़ी आयोजित कराना बहुत मुश्किल था। लॉकडाउन में घर में बैठे-बैठे दिमाग़ में यही सब चलता था।।वह दौर मुश्किल था, लेकिन अच्छा हुआ कि वह समय निकल गया।"
"लेकिन मेरे लिए सबसे अच्छी बात यह हुई कि क्रिकेट शुरू होने पर चयनकर्ताओं ने मेरे पिछले प्रदर्शन को भूला नहीं, याद रखा। इंग्लैंड की टीम जब 2021 में भारत आई तो मुझे भारत के नेट गेंदबाज़ के तौर पर चुना गया। तब लगा कि नहीं यार, निराश होने की ज़रूरत नहीं है, अगर आप अच्छा करते हैं तो देर-सबेर आपको उसका फल ज़रूर मिलता है।"
इसके बाद से सौरभ के लिए चीज़ें अच्छी ही हुई हैं। 2021 के अंत में वह इंडिया ए की टीम के साथ साउथ अफ़्रीका दौरे पर गए और फिर उन्हें साउथ अफ़्रीका के ख़िलाफ़ टेस्ट सीरीज़ के लिए भी भारत का स्टैंड-बाई सदस्य बनाया गया। इसके बाद इस साल जब श्रीलंका की टीम दो टेस्ट खेलने के लिए भारत आई तो उन्हें टीम इंडिया के प्रमुख दल में भी जगह दी गई। सौरभ फ़िलहाल बेंगलुरु में मुंबई के ख़िलाफ़, उत्तर प्रदेश के लिए रणजी ट्रॉफ़ी का सेमीफ़ाइनल मुक़ाबला खेल रहे हैं। इससे पहले क्वॉर्टर फ़ाइनल में सात विकेट लेकर उन्होंने कर्नाटका के ख़िलाफ़ जीत दर्ज करने में अहम भूमिका निभाई थी।
हालांकि सौरभ के लिए यह सफ़र कतई भी आसान नहीं था। वह 10 साल की उम्र में ही क्रिकेट सीखने के लिए पैसेंजर ट्रेन की सवारी कर अपने घर बड़ौत से दिल्ली जाया करते थे। लगभग 60 किलोमीटर की यह यात्रा आधिकारिक रूप से दो-ढ़ाई घंटे की होती थी, लेकिन पैसेंजर ट्रेन होने की वज़ह से यह कब तीन-साढ़े तीन घंटे की यात्रा में बदल जाती थी, पता ही नहीं चलता था। शुरू में सौरभ के पिता रमेश चंद उन्हें उनके नेशनल स्टेडियम क्रिकेट एकेडमी तक छोड़ते थे और फिर अपनी नौकरी के लिए आकाशवाणी भवन जाते थे, जहां वह जूनियर इंजीनियर थे। जब सौरभ को रास्ते और दिल्ली का अंदाज़ा हो गया, तब वह अकेले ही यह सफ़र करने लगे।
सौरभ कहते हैं, "अगर सुबह आठ बजे का प्रैक्टिस सेशन या मैच होता था तो मैं भोर में 4.20 वाली पैसेंजर ट्रेन पकड़ता था। सिंगल लाइन होने की वजह से बीच-बीच में ट्रेन बहुत रूकती थी और आराम से तीन-साढ़े तीन घंटे में पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचाती थी। उसके बाद मैं बस पकड़ कर एकेडमी जाता था, जहां पर सुनीता शर्मा मैम और उनके पति दिनेश तोमर सर मुझे क्रिकेट सिखाते था। इसके अलावा अगर कहीं मैच हो तो स्टेशन से सीधा मैं मैदान पर पहुंचता था। यह सब थकाऊ तो होता था लेकिन जब आप युवा होते हो और आपके अंदर कुछ सपना होता है तो आप थकते नहीं हैं, बस चलते जाते हैं।"
सौरभ की इसी चलायमान स्वभाव ने क्रिकेट के संघर्ष भरे मैदान में भी उन्हें चलाए रखा। वह सप्ताह में तीन से चार दिन अभ्यास करने बड़ौत से दिल्ली जाते और फिर जब भी मौक़ा मिलता तो दिल्ली के स्थानीय टूर्नामेंट में भी खेलते। इन टूर्नामेंट में अच्छा प्रदर्शन करने का उन्हें ईनाम भी मिलता गया और जल्द ही वह उत्तर प्रदेश की एज-ग्रुप टीमों मसलन अंडर-13, अंडर-15 टीमों में भी चयनित होते गए। इसके अलावा उन्हें 15 साल की उम्र में ओएनजीसी का स्कॉलरशिप भी मिला और वह ओएनजीसी की टीम में एक स्टाइपेंड खिलाड़ी के तौर पर खेलते थे।
इसी दौरान सौरभ को महान स्पिनर बिशन सिंह बेदी के समर कैंप का हिस्सा होने का भी मौक़ा मिला। सौरभ कहते हैं, "मेरे करियर में बिशन सर का बहुत बड़ा योगदान है। वह हर साल समर कैंप आयोजित करते थे और मैं उनके कई समर कैंप का हिस्सा रहा हूं। वह लेफ़्ट आर्म स्पिनर थे और मैं भी, तो इसका मुझे अतिरिक्त फ़ायदा मिलता था। उनसे मेरी अब भी बात होती है। जब मेरा टेस्ट टीम में नाम आया तब उन्होंने मुझे वीडियो कॉल किया था। वह एक बड़े दिल के इंसान हैं और उनसे बात करने के बाद आप एकदम पॉज़िटिव हो जाते हैं।"
अंडर-16 और अंडर-17 क्रिकेट खेलने के बाद सौरभ ने तीन साल तक उत्तर प्रदेश के लिए अंडर-19 खेला, लेकिन उनके यूपी की सीनियर टीम में चयनित होने के कोई आसार नहीं थे। उस समय यूपी की टीम में पीयूष चावला, अली मुर्तज़ा, प्रवीण गुप्ता और अविनाश यादव जैसे स्पिनर थे, इसके अलावा कुलदीप यादव व सौरभ कश्यप जैसे युवा स्पिनर भी उभर रहे थे।
इधर दिल्ली में स्थानीय टूर्नामेंट खेलने के कारण एयरफ़ोर्स के लोगों की नज़र सौरभ पर थी। उन्होंने सौरभ से सेना द्वारा आयोजित इंटर-डिपार्टमेंटल टूर्नामेंट में एयरफ़ोर्स की टीम के लिए खेलने का प्रस्ताव दिया। यूपी सीनियर टीम में कोई जगह नहीं देख सौरभ ने यह प्रस्ताव स्वीकार भी कर लिया। तब सौरभ 20 साल के थे। उन्हें इसके साथ ही एयरफ़ोर्स में एयरमैन की नौकरी भी दी गई।
एयरफ़ोर्स की तरफ़ से इंटर-डिपार्टमेंटल स्तर पर अच्छा प्रदर्शन करने का ईनाम सौरभ को मिला और उन्हें सेना की रणजी टीम में जगह मिल गई। यह सौरभ का अपने बड़े सपने की तरफ़ एक पहला बड़ा क़दम था। उन्होंने 2014-15 में सेना की तरफ़ से रणजी ट्रॉफ़ी डेब्यू करते हुए सात मैचों में 36 विकेट लिए। हालांकि इसके बाद उत्तर प्रदेश की रणजी टीम में भी परिस्थितियां सौरभ के अनुकूल होने लगीं। मुर्तज़ा और चावला का घरेलू सत्र अच्छा नहीं जा रहा था और कुलदीप धीरे-धीरे राष्ट्रीय टीम की ओर जगह बनाने लगे थे।
ऐसे में फिर से यूपी की टीम में वापस आने के लिए सौरभ ने प्रदेश के चयनकर्ताओं से बात की। हालांकि उनके या उनके परिवार के लिए यह निर्णय आसान नहीं था। सेना के लिए खेलते हुए सौरभ के पास एक स्थायी सरकारी नौकरी थी। इसके अलावा यूपी के चयनकर्ताओं ने उन पर पहले अंडर-23 क्रिकेट खेलने का शर्त लगाया था।
सौरभ कहते हैं, "यह निर्णय इतना आसान नहीं था, लेकिन मुझे ख़ुशी है कि तब मैंने एक निर्णय लिया। अगर मैंने वह निर्णय नहीं लिया होता तो मुझे उसका पछतावा आज तक हो रहा होता। सेना की टीम का हिस्सा होकर मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला था। उनकी ट्रेनिंग अन्य क्रिकेट टीमों से अलग ही होती थी, जो सुबह 4.30 बजे शुरू होकर रात में 9.30 बजे तक चलती थी। उस समय यह सब मुझे थोड़ा कठिन भी लगता था लेकिन मैं उससे मानसिक रूप से बहुत मज़बूत हुआ, जिसका फ़ायदा मुझे अब होता है।"
बकौल सौरभ यूपी की टीम में वापसी के बाद उन्होंने तीन अंडर-23 मैच खेले, जिसमें उन्होंने 21 विकेट लिए। इसके बाद उनकी यूपी की टीम में जगह पक्की हुई। गुजरात के ख़िलाफ़ यूपी के लिए फ़र्स्ट क्लास डेब्यू करते हुए सौरभ ने 10 विकेट लिए।
इसके बाद से सौरभ ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और वह सीज़न-दर-सीज़न विकेट लेते गए। रणजी सेमीफ़ाइनल से पहले उनके नाम 48 प्रथम श्रेणी मैचों में 24.29 की औसत से 206 विकेट हैं, जिसमें 16 बार पारी में 5-विकेट और छह बार मैच में 10-विकेट का रिकॉर्ड भी शामिल है। इसके अलावा उनके नाम 66 पारियों में दो शतक और नौ अर्धशतक की मदद से 29.58 की औसत से 1657 रन भी हैं।
इसी रणजी सत्र में यूपी के आख़िरी लीग मैच के दौरान सौरभ ने नाबाद 81 रन की पारी खेल अपनी टीम को उमेश यादव की अगुवाई वाले विदर्भ की गेंदबाज़ी आक्रमण के सामने पारी की हार से बचाया था और टीम नॉकआउट के लिए क्वालीफ़ाई कर पाई थी। इस पारी के दौरान उन्होंने रिंकू सिंह (62) के साथ सातवें विकेट के लिए नाबाद 154 रन जोड़े थे।
सौरभ कहते हैं, "मेरी बल्लेबाज़ी पहले उतनी अच्छी नहीं थी लेकिन मैंने इसे अभ्यास से सुधारा है। मैं हमेशा से एक गेंदबाज़ ही बनना चाहता था लेकिन धीरे-धीरे आपको पता चलता जाता है कि आप अपनी विशेषज्ञता से इतर भी अपनी टीम के लिए योगदान कर सकते हैं। मैं अब अपनी बल्लेबाज़ी पर भी लगातार ध्यान देता हूं और जब भी मौक़ा मिले नियमित अभ्यास करता हूं। दो शतक, नौ अर्धशतक और 30 का औसत, ये ठीक है मेरे लिए।"
सौरभ जब विदर्भ के ख़िलाफ़ रणजी मैच खेल रहे थे, उसी दौरान उन्हें टेस्ट टीम में शामिल होने की सूचना मिली। यह उनके अब तक के क्रिकेटिंग करियर का सबसे बड़ा दिन था। वह बताते हैं, "दिन के खेल के बाद जब मैंने अपना मोबाइल देखा तो काफी फ़ोन कॉल आए हुए थे। मुझे समझ ही नहीं आया कि अचानक ऐसा क्या हो गया। फिर मुझे अपने सेलेक्शन के बारे में पता चला। सबसे पहले मैंने मम्मी, पापा और पत्नी से बात की। वे मुझसे ज़्यादा ख़ुश थे। आख़िर में मैं भारतीय टेस्ट टीम का हिस्सा था, जिसका सपना सिर्फ़ मैंने ही नहीं बल्कि उन्होंने भी बचपन से देखा था। चंडीगढ़ में जब मुझे भारतीय टेस्ट टीम की सफ़ेद जर्सी मिली तो मुझे लगा कि मैं अपने सपने के अब सबसे क़रीब पहुंचा हूं।"
हालांकि इस सीरीज़ में भी आर अश्विन और रवींद्र जाडेजा के टीम में रहते हुए सौरभ को मैच खेलने का मौक़ा नहीं मिल सका। सौरभ की उम्र अब 29 साल से अधिक हो गई है, उन्हें पता है कि एक स्पिन गेंदबाज़ के तौर पर खेलने के लिए उनके पास बमुश्किल चार-पांच साल बचे हैं। इसके अलावा स्पिन विभाग में भारत के पास उनसे पहले भी कई सारे विकल्प हैं। लेकिन वह इसे सोचकर कभी निराश नहीं होते।
वह कहते हैं, "मैं कभी इसके बारे में सोचता भी नहीं हूं। यह एक नकारात्मक सोच है। अगर मैं यह सब सोचने लगूंगा तो इसका असर मेरे खेल पर ही पड़ेगा। इसलिए जो मेरा काम है वह करता हूं। मैं पूरे जुनून से क्रिकेट खेल रहा हूं और मुझे पूरा विश्वास है कि मैं एक दिन टेस्ट क्रिकेट ज़रूर खेलूंगा।"
दया सागर ESPNcricinfo हिंदी में सब एडिटर हैं @dayasagar95