विश्व कप टॉप 5 : सचिन के संघर्ष के बीच कोलकाता की कड़वाहट, पोर्ट ऑफ़ स्पेन का पेन और जब गांगुली-द्रविड़ ने छीना चैन
2 नवंबर को मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में भारत और श्रीलंका के बीच विश्व कप का मुक़ाबला खेला जाएगा। भारतीय टीम की नज़र जहां सेमीफ़ाइनल की अपनी सीट कन्फ़र्म करने पर होगी तो वहीं श्रीलंका अंतिम चार की अपनी दावेदारी ज़िंदा रखने के इरादे से मैदान में उतरेगी। यह ग़ज़ब संयोग है कि भारतीय टीम ने वानखेड़े में अपना अंतिम विश्व कप मैच 2011 का फ़ाइनल खेला था और 12 वर्षों बाद भी वह श्रीलंका के ख़िलाफ़ ही इस मैदान पर खेलने उतरेगी।
भारत पाकिस्तान की विश्व कप भिड़ंत के परे भारत श्रीलंका भिडंत एकतरफ़ा नहीं रही है। दोनों टीमों के बीच अब तक विश्व कप के कुल नौ मुक़ाबले खेले गए हैं। एक मैच बेनतीजा रहा है तो वहीं दोनों टीमों ने क्रिकेट के सबसे बड़े मंच पर एक दूसरे को चार-चार बार धूल भी चटाई है। इन्हीं भिड़ंतों के तहखाने में घुसकर भारत की ओर से पांच बेहतरीन प्रदर्शनों को एक बार फिर से ताज़ा करते हैं।
सचिन का संघर्ष और कोलकाता की कड़वाहट, 1996
भारत और श्रीलंका के बीच विश्व कप में पहला मैच 1979 में खेला गया था। श्रीलंका उस मुक़ाबले को जीत गया था। लेकिन विश्व कप में श्रीलंका ने सबसे कड़वी याद 1996 के विश्व कप में दी थी जब भारत सेमीफ़ाइनल में पहुंच कर हार गया था। इस विश्व कप में श्रीलंका और भारत के बीच दो मैच खेले गए और दोनों में ही श्रीलंका ने बाज़ी मारी थी। कोलकाता में खेले गए सेमीफ़ाइनल में श्रीलंका ने अरविंद डीसिल्वा और रोशन महानामा की अर्धशतकीय पारियों की बदौलत 251 रन बनाए थे।
लक्ष्य का पीछा करने उतरी भारतीय टीम की मज़बूत शुरुआत हुई थी। भारत एक विकेट के नुकसान पर 98 के स्कोर पर था, लेकिन अचानक सचिन तेंदुलकर 65 के निजी स्कोर पर स्टंप हो गए और इसके बाद भारतीय पारी ताश के पत्तों की तरह बिखर गई। 98 पर 1 के स्कोर से टीम इंडिया अब 120 के स्कोर पर आठ विकेट गंवा चुकी थी। कोलकाता के भावुक क्राउड से भारतीय पारी की यह दुर्गति सहन नहीं हुई और उनके आक्रोश के बाद मैच को वहीं रोकना पड़ गया और श्रीलंका को विजेता घोषित कर दिया गया। विनोद कांबली के आंसू आज भी क्रिकेट प्रेमियों के ज़हन में हैं।
हालांकि सेमीफ़ाइनल में भारतीय पारी का बिखरना इतना चौंकाने योग्य भी नहीं था। उस विश्व कप में भारत की तरफ़ से सबसे ज़्यादा 523 रन सचिन तेंदुलकर ने बनाए थे। जबकि उनके बाद भारत की ओर से सबसे ज़्यादा रन नवजोत सिंह सिद्धू के नाम था। सिद्धु ने विश्व कप में 178 रन बनाए थे, जिसमें बेंगलुरु में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ खेली गई उनकी 93 रनों की पारी भी शामिल थी। कांबली ने भी 176 रन ज़रूर बनाए थे लेकिन इसमें उनकी 106 रनों की शतकीय पारी भी शामिल थी।
गांगुली-द्रविड़ की रिकॉर्ड साझेदारी, 1999
गतविजेता श्रीलंका और भारत इस बार टाउंटन में भिड़ रहे थे। यह मैच सौरव गांगुली और राहुल द्रविड़ के बीच हुई रिकॉर्ड साझेदारी के लिए याद किया जाता है। भारत ने पहले बल्लेबाज़ी करते हुए ओपनर सद्गोप्पन रमेश का विकेट गंवा दिया था लेकिन इसके बाद द्रविड़ और गांगुली के बीच दूसरे विकेट के लिए 318 रनों की रिकॉर्ड साझेदारी हुई और श्रीलंका मैच में पहले ही पिछड़ गया। गांगुली ने 183 जबकि द्रविड़ ने 145 रनों की पारी खेली थी। लेकिन इसी साल कुछ ही महीनों बाद सचिन और द्रविड़ के बीच न्यूज़ीलैंड के विरुद्ध हुई 331 रनों की साझेदारी ने इस रिकॉर्ड को तोड़ दिया। भारत ने श्रीलंका के ख़िलाफ़ स्कोरबोर्ड पर 373 रन टांग दिए थे और जवाब में श्रीलंका की टीम 216 के स्कोर पर ही सिमट गई।
पोर्ट ऑफ़ स्पेन का पेन और द्रविड़ की कप्तानी पारी, 2007
1999 की जीत के बाद भारत और श्रीलंका 2003 में भी भिड़े थे और जोहांसबर्ग में सचिन और सहवाग की अर्धशतकीय पारियों ने भारत को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी। हालांकि 1996 सेमीफ़ाइनल की कड़वी यादें अभी भी ज़िंदा थी और वेस्टइंडीज़ में खेले जा रहे विश्व कप में भारत को श्रीलंका एक और सदमा देने वाला था।
भारत ग्रुप स्तर में बांग्लादेश के ख़िलाफ़ पहला मुक़ाबला हार गया था। हालांकि बरमुडा के विरुद्ध उसे जीत मिल गई थी लेकिन सुपर आठ में पहुंचने के लिए उसे अभी भी श्रीलंका के ख़िलाफ़ एक निर्णायक मैच जीतना था। श्रीलंका को भारत एक ठीक ठाक स्कोर पर रोकने में तो सफल हो गया था लेकिन लक्ष्य को हासिल करना टीम इंडिया के लिए चुनौती थी। हालांकि विश्व कप से ठीक पहले भारत ने श्रीलंका के ख़िलाफ़ घरेलू एकदिवसीय सीरीज़ जीती थी, इसलिए भारत के लिए अगले दौर में प्रवेश करने की उम्मीद बची हुई थी। लेकिन 255 रनों के लक्ष्य का पीछा कर रही भारतीय बल्लेबाज़ी एक बार फिर बिखर गई।
सहवाग और द्रविड़ के बीच चौथे विकेट के लिए 54 रनों की साझेदारी ने उम्मीद बढ़ाई लेकिन इसके बाद द्रविड़ ही एक छोर पर टिके रहे और दूसरे छोर से विकेटों के गिरने का सिलसिला जारी रहा। द्रविड़ ने 60 रनों की जुझारू पारी खेली लेकिन 159 के स्कोर पर आठवें विकेट के रूप में उनके आउट होने के बाद भारत की उम्मीदें जवाब दी गईं।
इस विश्व कप में गांगुली, सचिन, सहवाग और रॉबिन उथप्पा के रूप में चार सलामी बल्लेबाज़ एक साथ प्लेइंग इलेवन में खेल रहे थे और इस कॉम्बिनेशन के लिए भारतीय टीम की काफ़ी आलोचना भी हुई थी क्योंकि इसके चलते भारतीय टीम ने ग्रुप स्टेज में भी काफ़ी प्रयोग किए और भारत पहले राउंड में ही बाहर हो गया। बांग्लादेश के ख़िलाफ़ सहवाग और गांगुली ने पारी की शुरुआत की थी। जबकि बरमूडा और श्रीलंका के ख़िलाफ़ उथप्पा को गांगुली के साथ ऊपर भेजा गया लेकिन एक भी मैच में ओपनिंग जोड़ी अर्धशतकीय साझेदारी भी नहीं कर पाई।
शतक अधूरा लेकिन सपना हुआ पूरा, 2011
15 वर्षों बाद भारत एक बार फिर घर में विश्व कप खेल रहा था। फ़ाइनल में भारत का सामना एक बार फिर श्रीलंका से था और इस बार भारत के साथ 1996 और 2007 दोनों विश्व कप की कड़वी यादें थीं। श्रीलंका 2007 विश्व कप का उपविजेता था और वह एक बार फिर फ़ाइनल जीतने की दहलीज़ पर पहुंच गया था। काग़ज़ पर दोनों टीमें ही मज़बूत नज़र आ रही थीं। पहले बल्लेबाज़ी कर रही श्रीलंका को ज़हीर ख़ान ने शुरुआत में ही उपुल थरंगा के रूप में झटका दे दिया था। ज़हीर की कसी हुई गेंदबाज़ी के चलते श्रीलंकाई बल्लेबाज़ पारी की रफ़्तार को बढ़ाने में असफल दिखाई दे रहे थे लेकिन महेला जयवर्दना की शतकीय पारी ने टीम को एक अच्छे स्कोर पर पहुंचा दिया था।
भारतीय पारी की शुरुआत बेहद ख़राब रही। सहवाग शून्य के स्कोर पर आउट हो गए और सचिन भी 18 के स्कोर पर पवेलियन लौट गए। वानखेड़े स्टेडियम में सन्नाटा पसर गया था। ऐसा लग रहा था कि भारत का विश्व कप जीतने का सपना एक बार फिर अधूरा रह जाएगा और श्रीलंका ही भारत के अभियान को रोकने का बड़ा कारण बनेगा। लेकिन वानखेड़े में पसरे सन्नाटे के बीच गौतम गंभीर और विराट कोहली ने पहले एक साझेदारी पनपाई और एक बार फिर भारत की उम्मीदें जगने लगीं। कोहली के आउट होते ही टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने मोर्चा संभाला और मुथैया मुरलीधरन की फिरकी को देखते हुए उन्होंने युवराज से ऊपर ख़ुद को प्रमोट कर दिया।
धोनी ने उस विश्व कप में अब तक एक भी अर्धशतकीय पारी तक नहीं खेली थी लेकिन मुरलीधरन आईपीएल में उनकी टीम चेन्नई सुपर किंग्स का हिस्सा थे इसलिए उन्हें मुरलीधरन की काट पता था। गंभीर और धोनी ने यहां से भारत की पारी को आगे बढ़ाया और दोनों के अर्धशतकों ने भारत की जीत सुनिश्चित कर दी। गंभीर अपने शतक से चूक गए और रन ज़्यादा ना शेष होने के चलते धोनी का शतक भी पूरा नहीं हुआ लेकिन भारत का सपना पूरा हो चुका था जो कि 28 वर्षों से अधूरा था। भारत ने अब श्रीलंका से विश्व कप में मिली दो कड़वी हारों का बदला ले लिया था।
रोहित और राहुल ने की श्रीलंका की बत्ती गुल
भारत अंतिम बार श्रीलंका से 2019 विश्व कप में भिड़ा था। लेकिन वनडे विश्व कप में श्रीलंका के ख़िलाफ़ भारत के प्रभुत्व की शुरुआत हो चुकी थी। 2015 विश्व कप की तर्ज पर ही भारत ने इस विश्व कप में अच्छी शुरुआत की थी। हालांकि सलामी बल्लेबाज़ शिखर धवन के चोटिल होने के बाद रोहित शर्मा और के एल राहुल भारत की पारी की शुरुआत करने की ज़िम्मेदारी संभाल रहे थे।
श्रीलंका ने पहले बल्लेबाज़ी करते हुए एंजेलो मैथ्यूज़ के शतक की बदौलत 264 रन बनाए थे। लेकिन रोहित और राहुल की सलामी जोड़ी ने ही भारत का बेड़ा पार लगा दिया। रोहित ने 103 जबकि राहुल ने 111 रनों की पारी खेलते हुए 189 रनों की साझेदारी की और इन दोनों के प्रदर्शन की बदौलत भारत के लिए जीत महज़ एक औपचारिकता ही रह गई थी।