कितना फ़ायदेमंद साबित होगा रणजी ट्रॉफ़ी का दो चरणों में आयोजन?
इस साल के भारतीय घरेलू क्रिकेट की संरचना में कई बदलाव हुए हैं, जिसमें दलीप ट्रॉफ़ी में ज़ोनल टीमों का रद्द होना, सीज़न की शुरुआत में ही रणजी ट्रॉफ़ी का होना, रणजी ट्रॉफ़ी को दो चरणों में बांटना, अंडर-23 सीके नायुडू ट्रॉफ़ी में टॉस का ना होना और भारतीय कॉन्ट्रैक्ट में शामिल सभी फ़िट खिलाड़ियों को घरेलू क्रिकेट के लिए उपलब्ध रहना शामिल है।
भारतीय घरेलू क्रिकेट से जुड़े वर्तमान व पूर्व खिलाड़ियों और कोचों ने इन बदलावों का कमोबवेश स्वागत किया है। उनका मानना है कि ये बदलाव बहुत ज़रूरी थे और इनमें से कुछ की मांग लंबे समय से खिलाड़ियों और कोचों द्वारा की जा रही थी। ये बदलाव भारतीय घेरलू क्रिकेट के लिए बेहतर क़दम साबित हो सकते हैं।
दलीप ट्रॉफ़ी
भारतीय घरेलू क्रिकेट सीज़न 2024-25 की शुरुआत 5 सितंबर से दलीप ट्रॉफ़ी से होने जा रही है। इस बार दलीप ट्रॉफ़ी की संरचना बदली हुई है और ज़ोनल टीमों की बजाय भारत के शीर्ष खिलाड़ियों से भरी चार टीमें इस बार आपस में प्रतिस्पर्धा करेंगी।
इन टीमों में भारतीय कप्तान रोहित शर्मा, विराट कोहली, आर अश्विन और जसप्रीत बुमराह को छोड़कर भारत के सभी शीर्ष और फ़िट खिलाड़ी शामिल हैं। भारत और मुंबई के पूर्व सलामी बल्लेबाज़ और वर्तमान में पंजाब के कोच वसीम जाफ़र दलीप ट्रॉफ़ी के इस बदलाव से बहुत ख़ुश हैं। उनका मानना है कि इससे दलीप ट्रॉफ़ी के महत्व में फिर से वृद्धि होगी और आपसी प्रतिस्पर्धा में भी बढ़ावा होगा।
वह कहते हैं, "बहुत सारे अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों का दलीप ट्रॉफ़ी खेलना एक सकारात्मक पहल है। आप चाहते हो कि जब अगर अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट नहीं हो रहा है तो ये खिलाड़ी घरेलू क्रिकेट का हिस्सा हों। इसके अलावा राष्ट्रीय चयनकर्ताओं ने इन टीमों का चयन किया है तो यह भी एक बेहतर क़दम है क्योंकि कई बार दलीप ट्रॉफ़ी की टीमों में प्रत्येक ज़ोन से किसी एक टीम या राज्य के प्रभुत्व होने की बात सामने आती है। ये चारों टीमें बहुत मज़बूत दिख रही हैं और हमें एक अच्छी प्रतियोगिता देखने को मिल सकती है।"
किसी एक राज्य का प्रभुत्व ख़त्म होगा : फ़ज़ल
इस साल ही प्रथम श्रेणी क्रिकेट से संन्यास लेने वाले भारत और विदर्भ के पूर्व बल्लेबाज़ फ़ैज़ फ़ज़ल का भी मानना है कि दलीप ट्रॉफ़ी का यह रूप ज़ोनल क्रिकेट से अधिक बेहतर है क्योंकि इससे घरेलू क्रिकेट में अच्छा करने वाले अधिकतर खिलाड़ियों को एक लेवल ऊपर जाकर अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेटरों के साथ खेलने का मौक़ा मिलेगा।
वह कहते हैं, "पहले ऐसा होता था कि किसी ज़ोन में किसी एक राज्य का वर्चस्व हो। आप मेरा ही उदाहरण ले लिजिए, मैं हर बार अपने ज़ोन से रणजी ट्रॉफ़ी में सबसे अधिक रन बनाने वाला ओपनर होता था, लेकिन मेरे नाम पिछले आठ-नौ सालों में सिर्फ़ तीन दलीप ट्रॉफ़ी ज़ोनल मैच हैं। ऐसा इसलिए भी था क्योंकि हमारे सेंट्रल ज़ोन में यूपी (उत्तर प्रदेश) का वर्चस्व है। उत्तर प्रदेश के ही मैनेजर, कोच और कप्तान होते थे और प्लेइंग इलेवन में भी यूपी के ही अधिकतम खिलाड़ियों को जगह मिलती थी। अभी चारों टीम का चयन राष्ट्रीय चयनकर्ताओं ने किया है, जो कि एक उचित प्रक्रिया है और इससे किसी एक राज्य का प्रभुत्व और भेदभाव कम होगा। मुझे लगता है कि चयनकर्ता टीम के कोच और कप्तानों को बोले होंगे कि उन्हें किस नए खिलाड़ी को खेलते देखना है, किसे मौक़ा मिलना चाहिए। इसके अलावा यह भारतीय टेस्ट क्रिकेटरों के लिए भी एक अच्छा अभ्यास होगा कि वह लाल गेंद की प्रैक्टिस के साथ नए टेस्ट सीज़न में उतरें।"
भारत और उत्तर प्रदेश के अनुभवी लेग स्पिनर पीयूष चावला भी जाफ़र और फ़ज़ल की बातों से सहमत नज़र आते हैं। उनका मानना है कि भारतीय घरेलू क्रिकेट के इस महत्वपूर्ण टूर्नामेंट को ज़ोनल की बजाय ए, बी, सी और डी टीमों में कराना व अधिकतर उपलब्ध भारतीय खिलाड़ियों का भाग लेना इस इस टूर्नामेंट को और प्रतियोगी व आकर्षक बनाएगा। इसके अलावा कई नए घरेलू खिलाड़ी, अनुभवी भारतीय खिलाड़ियों से बहुत कुछ सीख सकेंगे।
रणजी ट्रॉफ़ी
पिछले साल रणजी ट्रॉफ़ी के मैच सीमित ओवर टूर्नामेंट्स (विजय हज़ारे ट्रॉफ़ी (VHT) और सैयद मुश्ताक़ अली ट्रॉफ़ी (SMAT)) के बाद हुए थे। यह टूर्नामेंट जनवरी में शुरू होकर मार्च के मध्य तक चला था और उत्तर व पूर्वी भारत के कई मैच ठंड से पड़ने वाले कोहरे से प्रभावित हुए थे। तब कई टीमों ने टूर्नामेंट के शेड्यूल पर पुनर्विचार करने की मांग की थी। इसके अलावा शार्दुल ठाकुर जैसे कई खिलाड़ियों ने दो रणजी ट्रॉफ़ी मैचों के बीच गैप बढ़ाने की भी मांग की थी, ताकि खिलाड़ियों को पर्याप्त आराम, यात्रा और अगले मैच की तैयारी का समय मिल सके। इसका तत्कालीन भारतीय कोच राहुल द्रविड़ ने भी समर्थन किया था।
इस बार के घरेलू क्रिकेट कैलेंडर में रणजी ट्रॉफ़ी को दो चरणों में बांट दिया गया है। भारत के इस सबसे प्रतिष्ठित घरेलू टूर्नामेंट के पहले पांच लीग राउंड 11 अक्तूबर से 16 नवंबर के बीच होंगे, बाक़ी के दो राउंड और नॉकआउट मैचों को जनवरी के आख़िर में कर दिया है, जो मार्च की शुरुआत तक चलेगा। मध्य नवंबर से जनवरी के आख़िरी सप्ताह तक भारत के सफ़ेद गेंद के टूर्नामेंट्स चलेंगे, जब उत्तर और पूर्वी भारत पर ठंड और कोहरे का साया सबसे अधिक होता है। ऐसा इसलिए किया गया है ताकि लाल गेंद की क्रिकेट के मैच मौसम से प्रभावित होकर ड्रॉ ना हों और किसी भी टीम के क्वालिफ़िकेशन पर असर ना पड़े। इसके अलावा कुछ राउंड्स में दो रणजी मैचों के बीच गैप को भी बढ़ाया गया है और इसे तीन दिन की बजाय कहीं-कहीं चार, पांच और छह दिन भी किया गया है।
जाफ़र कहते हैं, "मैंने बहुत पहले भी इसके बारे में ट्वीट किया था कि सीज़न की शुरुआत लाल गेंद की क्रिकेट से होनी चाहिए। जब मैं खेलता था तो रणजी ट्रॉफी के मैच पहले होते थे और फिर VHT और SMAT होता था। सीज़न की शुरुआत से पहले KSCA और बुची बाबू टूर्नामेंट होते थे, जो कि प्री-सीज़न तैयारी थी। इसके अलावा सीज़न की शुरुआत में ही ईरानी ट्रॉफ़ी और दलीप ट्रॉफ़ी के मैच भी होते थे। इससे रणजी ट्रॉफ़ी में उतरने से पहले खिलाड़ियों को लाल गेंद की क्रिकेट का पर्याप्त अभ्यास मिल जाता था। मुझे लगता है कि यह बेहतर क़दम है और आप इससे उत्तर भारत के मौसम की मार से भी बच सकेंगे क्योंकि कोई भी मैच अगर ख़राब मौसम की वजह से रद्द या पूरा नहीं होता है, तो इससे टीम के क्वालिफ़िकेशन पर फ़र्क पड़ता है।"
हालांकि जाफ़र का कहना है कि रणजी ट्रॉफ़ी को दो चरणों में करना और उनके बीच में SMAT और VHT कराना एक थोड़ा सा अलग क़दम है और यह खिलाड़ियों के साथ-साथ कोचों और टीम प्रबंधन के लिए भी बहुत चुनौतीपूर्ण है।
पंजाब के कोच ने कहा, "रणजी ट्रॉफ़ी के पांचवें राउंड और SMAT की शुरुआत में सिर्फ़ छह दिन का ही गैप दिया गया है। इसमें ही खिलाड़ियों को ट्रैवल करना है, आराम करना है और फिर नई जगह पर पहुंचकर टी20 क्रिकेट की तैयारी शुरु करनी है, जो कि प्रथम श्रेणी क्रिकेट से एकदम उलट (360 डिग्री) है। चूंकि SMAT के प्रदर्शन से खिलाड़ियों की IPL नीलामी के मूल्य और मौक़ों पर भी असर पड़ता है, इसलिए मुझे लगता है कि यह गैप आठ से दस दिन का होना चाहिए था ताकि खिलाड़ी एक फ़ॉर्मैट से दूसरे फ़ॉर्मैट में आसानी से ढल जाए और फिर टूर्नामेंट में उतरें। हालांकि यहीं पर ही खिलाड़ियों और कोचों के पेशेवर रवैये का भी इम्तिहान होगा कि वह इस बदलाव को कम समय में कैसे ढालते हैं।"
"SMAT और VHT खेलकर फिर से अंतिम दो मैचों और नॉकआउट के लिए लाल गेंद की क्रिकेट की तरफ़ लौटना भी भारतीय घरेलू खिलाड़ियों के लिए एक नई चुनौती की तरह होगी। ऐसा भी हो सकता है कि कुछ टीमें या खिलाड़ी पहले चरण के फ़ॉर्म को बरक़रार नहीं रख पाए। लेकिन यही क्रिकेट है और आपको पेशेवर होकर हर परिस्थिति में अपने आपको ढालना होता है। अडाप्टबिलिटी ही आधुनिक क्रिकेट की सबसे बड़ी चुनौती और मांग है," जाफ़र ने आगे कहा।
चावला भी रणजी ट्रॉफ़ी को दो चरणों में होने के फैसले का स्वागत करते हैं क्योंकि वह भी नहीं चाहते कि कोई भी टीम ख़राब मौसम के कारण मैच ना होने और 2-3 अंकों की वजह से नॉकआउट में पीछे छूट जाएं। चावला का यह भी मानना है कि रणजी ट्रॉफ़ी के दो चरणों में होने से खिलाड़ियों की निरंतरता पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि उनके अनुसार सीनियर लेवल के क्रिकेट में खिलाड़ियों को इतना पेशेवर तो होना होगा कि ऐसी चुनौतियों को स्वीकार कर सके। उन्होंने कहा कि इससे खिलाड़ियों का स्तर भी पता चलेगा। "यह एक उत्साहित करने वाला और चुनौतीपूर्ण क़दम है।"
वहीं फ़ज़ल ने कहा, "यह एक बहुत अच्छा क़दम है। मैं जब पिछले साल रणजी ट्रॉफ़ी खेल रहा था तब भी मुझे लगता था कि तीन दिन का गैप सिर्फ़ तेज़ गेंदबाज़ों नहीं बल्कि बल्लेबाज़ों के लिए भी बहुत कठिन है। मान लो मैं बल्लेबाज़ हूं और मैच के आख़िरी दिन शतक या दोहरा शतक लगाकर टीम के लिए मैच बचा रहा हूं या जिता रहा हूं। फिर अगले दिन ही मुझे तड़के सुबह की फ़्लाइट लेकर अगले मैच के लिए पहुंचना है, चेक इन करना है, जिससे मेरी नींद भी प्रभावित होगी। होटल पहुंचने और खाना खाने के बाद आराम का मुझे उस शाम और रात ही थोड़ा मौक़ा मिलेगा। अगले दिन से फिर मैं नेट्स में जाकर अगले दिन की प्रैक्टिस कर रहा होऊंगा। तो यह सिर्फ़ गेंदबाज़ नहीं बल्कि बल्लेबाज़ के लिए बहुत कठिन है। इसलिए अच्छा है कि शार्दुल, उमेश (यादव) जैसे कई खिलाड़ियों ने इसके लिए आवाज़ उठाई, राहुल (द्रविड़) भाई ने इसका समर्थन किया और इस सीज़न कुछ मैचों में अधिक गैप मिला है।"
"रणजी ट्रॉफ़ी को दो चरणों में कराना भी एक अच्छा क़दम है। हालांकि कुछ टीमें सीज़न के आख़िरी में अपने परिणामों के अनुसार शिक़ायत कर सकती हैं कि उनका मोमेंटम टूटा और वे पहले चरण के आख़िरी दो मैच जीत गए थे कि ब्रेक आ गया। इसके कारण उनकी निरंतरता प्रभावित हुई और वे अगले दो राउंड के मैच नहीं जीत पाए। यह सब होने वाला ही है और यह मुझे पता है। ऐसा कुछ टीमें, कोच और खिलाड़ी शिकायत कर सकते हैं। लेकिन ख़राब मौसम के कारण कोई मैच रद्द हो या पूरा ना हो इससे बेहतर है कि आप ब्रेक ले लें और दूसरे फ़ॉर्मैट खेलें, जिस पर मौसम का उतना प्रभाव ना हो। काउंटी क्रिकेट में भी ऐसा होता है और अलग-अलग राउंड के वनडे कप व काउंटी चैंपियनशिप के मैच भी साथ-साथ चलते रहते हैं। इसलिए इस प्रयोग का स्वागत करना चाहिए और देखना चाहिए कि यह भारतीय संदर्भ में किस तरह से काम करता है," फ़ज़ल ने आगे कहा।
अंडर-23 सीके नायुडू ट्रॉफ़ी में टॉस का ना होना
इस साल अंडर-23 सीके नायुडू ट्रॉफ़ी की सरंचना में भी दो अहम बदलाव हुए हैं। पहला यह कि लाल गेंद के इस टूर्नामेंट में टॉस नहीं होगा और यात्रा करने वाली टीम को पहले बल्लेबाज़ी या गेंदबाज़ी चुनने का विशेषाधिकार होगा, ताकि घरेलू टीम को पिच और परिस्थितियों से मिलने वाले लाभ को न्यूनतम किया जा सके। वहीं टीमों को पहली पारी की बढ़त के अलावा उत्कृष्ट बल्लेबाज़ी और गेंदबाज़ी पर भी अंक मिलेंगे। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर ये दोनों प्रयोग सफल रहे तो आगे आने वाले सालों में इसे सीनियर क्रिकेट यानि रणजी ट्रॉफ़ी में भी लागू किया जाएगा। काउंटी क्रिकेट में टॉस ना करने का नियम 2016 से 2019 के बीच लागू था, लेकिन 2020 के सीज़न से इसे समाप्त कर दिया गया।
भारतीय अंडर-23 क्रिकेट से जुड़े कोचों ने इस प्रयोग का स्वागत करते हुए कहा है कि इसके लागू होने के बाद परिणामों के आधार ही कोई टिप्पणी की जा सकती है। 2017 में दिल्ली को यह टूर्नामेंट जिताने वाले कोच राजकुमार शर्मा ने कहा कि यह एक अच्छा क़दम है और क्रिकेट की बेहतरी के लिए ऐसे प्रयोग होते रहने चाहिए। उनका मानना है कि इस क़दम से घरेलू टीम को मिलने वाला अवांछित लाभ कम होगा। वहीं पिछले सीज़न झारखंड के अंडर-23 कोच रहे रतन कुमार ने कहा कि इससे टॉस का आकर्षण और उसकी अनिश्चितता समाप्त होगी, हालांकि हमें इस पर कुछ भी आगे बोलने से पहले कम से कम एक सीज़न का इंतज़ार करना चाहिए।
पूर्व भारतीय क्रिकेटर और बंगाल के पूर्व अंडर 23 कोच लक्ष्मी रतन शुक्ला ने कहा, "यह एक कोशिश है जिससे घरेलू टीम के मिलने वाले लाभ को समाप्त किया जा सके और कोशिशों को हमेशा सराहा जाना चाहिए। कम से कम एक सीज़न में प्रयोग हो जाने के बाद ही खिलाड़ी, कोच और अंडर 23 क्रिकेट से जुड़े अन्य लोग इस पर टिप्पणी कर सकते हैं कि यह नियम कितना उचित है और इससे क्या लाभ या हानि है। इससे पहले जब इम्पैक्ट प्लेयर का नियम आया था, तब भी मैने कहा था कि इसको सिरे से दरकिनार करने के बजाय पहले इसे लागू करके देखना चाहिए। अब इंपैक्ट नियम का प्रभाव, लाभ-नुक़सान सबके सामने है। इसी तरह सुपर सब का भी नियम था। जब वह लागू हुआ तो पता चला कि यह क्रिकेट के लिए ठीक नहीं है। इसी तरह इस नियम को भी कमियां निकाले जाने की बजाय इसे प्रयोग के तौर पर एक बार ज़रूर देखा जाना चाहिए। लेकिन मुझे यह भी लगता है क्रिकेट के साथ जितना छेड़खानी कम किया जाए, क्रिकेट उतना ठीक रहेगा। क्रिकेट जैसा है, उसे वैसे ही रहने देना चाहिए।"
हालांकि जाफ़र इस नियम के ख़िलाफ़ हैं। उन्होंने अपने काउंटी अनुभव को साझा करते हुए कहा, "काउंटी क्रिकेट में भी यह कुछ सालों तक लागू था और मैं वहां तब खेलता भी था। लेकिन इससे क्या था कि होम टीम फिर फ़्लैट सी विकेट बनाने लगती हैं और अलग-अलग तरह के सीम और स्पिन फ़्रेंडली विकेट कम देखने को मिलते हैं, जिससे फिर ड्रॉ मैचों की संख्या अधिक हो जाती है। इससे टॉस की अनिश्चितता समाप्त हो जाती है। अगर पिच का प्रभाव कम करना है तो BCCI पहले से ही न्यूट्रल क्यूरेटर भेजता है। इसलिए यहां पर यह नियम ज़रूरी नहीं था।"
दया सागर ESPNcricinfo हिंदी में सब एडिटर हैं।dayasagar95