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एडिलेड की यादगार पारी पर द्रविड़ : जब आप अच्छी बल्लेबाज़ी कर रहे होते हैं तब थकावट नहीं होती

राहुल द्रविड़ ने वीवीएस लक्ष्मण के साथ अपनी साझेदारी, छक्के के साथ शतक पूरा करने सहित कई सवालों पर अपनी प्रतिक्रिया दी

2003 में एडिलेड में राहुल द्रविड़ की 233 और 72 नाबाद रनों की पारी ESPNcricinfo, स्टार स्पोर्ट्स और डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर चलाए गए Awesome in Australia के पोल में विजेता साबित हुई है। फ़ाइनल तक क़रीब 13 लाख वोट पड़े और द्रविड़ की पारी को ब्रिस्बेन में ऋषभ पंत की 89 नाबाद रनों की पारी के मुक़ाबले 61.5 फ़ीसदी वोट मिले। ऐसे में द्रविड़ ने ESPNcricinfo से ख़ास बातचीत की।

आपके उस यादगार प्रदर्शन को 21 वर्ष हो चुके हैं। लेकिन यह आज भी प्रशंसकों के ज़ेहन में ताज़ा है। हमारे ताज़ा पोल में आपकी इस पारी ने हाल ही के वर्षों में हुए कई प्रदर्शनों को हराया है। आप इसके बारे में सोचने पर कैसा महसूस करते हैं?

मैं इसका शुक्रगुज़ार हूं] लेकिन मैंने ख़ुद के लिए वोट नहीं किया होता। जिस तरह से भारत ने पिछली दो श्रृंखलाओं में प्रदर्शन किया है, वहां जाकर दो बार भारत ने श्रृंखला जीती हैं, यह काफ़ी मायने रखता है। भले ही मेरा या हमारा प्रदर्शन कितना भी अच्छा रहा हो लेकिन हम वहां श्रृंखला नहीं जीत पाए। हम श्रृंखला जीतने के क़रीब ज़रूर आए लेकिन सिडनी में अंतिम दिन हम विकेट नहीं निकाल पाए। ऑस्ट्रेलिया जाने वाली पिछली दोनों टीमों ने जीत हासिल की है और यह एक बेहतरीन उपलब्धि है और उन दौरों पर भी कई बेहतरीन प्रदर्शन हुए थे। मुझे नहीं पता कि इनमें से कौन से प्रदर्शन आपकी सूची में थे।
मैं आपको यह सूचित कर सकता हूं कि वोटिंग के अंतिम दौर में आपने गाबा में खेली गई ऋषभ पंत की 89 नाबाद की पारी को हराया।
हाश, इसे हराना तो काफ़ी मुश्किल था (मुस्कुराते हुए)। मुझे लगता है कि ऋषभ की पारी बेहतरीन थी। जिस तरह से दबाव में उन्होंने एक मज़बूत टीम के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया वह काबिल ए तारीफ़ है। वह एक ख़ास क़िस्म के खिलाड़ी हैं। जब एमएस (धोनी) ने संन्यास लिया था तब सभी ने यह सोचा होगा कि उनकी जगह भरने में समय लगेगा लेकिन टेस्ट क्रिकेट में उनका प्रदर्शन वाकई लाजवाब है।

एडिलेड का रुख़ करते हैं : ऑस्ट्रेलिया ने डेढ़ दिन में 556 रन बना दिए हैं। जब आप बल्लेबाज़ी करने आए तब आपके सामने विकेटों की झड़ी लगी हुई थी। 85 पर चार विकेट गिर गए थे। वीवीएस लक्ष्मण आपका साथ देने के लिए आए। उस समय आप क्या सोच रहे थे?

मैं बस यह सोच रहा था कि मैंने कप्तान को रन आउट करा दिया इसलिए बेहतर होगा कि मैं कोई सार्थक काम करूं (मुस्कुराते हुए)। मेरी ग़लती थी सौरव (गांगुली), उसे मैं स्वीकार करता हूं।
556 एक बड़ा स्कोर होता है, इसलिए आप सिर्फ़ बल्लेबाज़ी पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं, साझेदारी बनाने पर ध्यान होता है। हम चार विकेट गंवा चुके थे और अधिक से अधिक साथ बल्लेबाज़ी करते हुए स्कोर के क़रीब जाना चाहते थे। मैं और लक्ष्मण इससे पहले भी बड़ी साझेदारियां कर चुके थे। हमने कोलकाता में एक साझेदारी की थी, यहां तक कि हमने घरेलू क्रिकेट में भी 2001 में साउथ ज़ोन के लिए वेस्ट ज़ोन के ख़िलाफ़ साझेदारी की थी।
साझेदारी जैसे-जैसे बढ़ती गई, गेंद नरम होती चली गई और विकेट भी बल्लेबाज़ी के लिए अनुकूल थी और लक्ष्मण के साथ सबसे अच्छी बात यह है कि उन्हें खेलते देखना हमेशा सुखद अनुभव होता है।

स्कोरकार्ड देखने पर लगता है कि बल्लेबाज़ हावी रहे होंगे, लेकिन मैच में कई ऐसे अवसर आए थे जब रन आसानी से नहीं बन रहे थे। आपको उस दौरान क्या हो रहा था, कुछ याद है?

मुझे अधिक याद नहीं है। मैं चीज़ों से मूव ऑन करने की कोशिश करता हूं। जैसा कि आप ऑस्ट्रेलिया से अपेक्षा भी करते हैं, उन्होंने हमें चुनौती दी। जब कठिन परिस्थिति आई तब हमें यह सुनिश्चित करना था कि हम विकेट ना गंवाए।
लेकिन सामान्यतः एडिलेड में तेज़ी से रन बनते हैं। स्क्वायर बाउंड्री छोटी होती हैं, अगर ओवर पिच गेंद आती है या किसी तरह का आपको रूम मिलता है, तब आप उन अवसरों को भुना सकते हैं।

तीसरे दिन की दोपहर का रुख़ करते हैं। आपने 223वीं गेंद पर छक्का जड़ा और यह भारतीय पारी का इकलौता छक्का भी था। ऐसा क्या हो गया था?

वो शॉट मैंने अपने आप खेल दिया था (द्रविड़ ने जेसन गिलेस्पी की गेंद पर छक्का जड़कर अपना शतक पूरा किया था)। पारी की शुरुआत में अगर गेंद सख़्त और नई होती थी तो मैं हुक या पुल खेलने से परहेज़ करता था। लेकिन पता नहीं मैंने वो शॉट क्यों खेला और संपर्क भी अच्छा नहीं हुआ था। लेकिन वो बाउंड्री छोटी थी इसलिए छक्का चला गया। लेकिन मैंने यह शॉट सोचकर नहीं खेला था। शायद उन्होंने डीप फ़ाइन लेग पर फ़ील्डर रखा हुआ था, डीप स्क्वायर लेग पर कोई फ़ील्डर नहीं था, इसलिए कहीं ना कहीं मेरे ज़ेहन के किसी हिस्से में यह ज़रूर चल रहा होगा कि उस क्षेत्र में फ़ील्डर नहीं है।

आपके पूरे करियर में शतक के बाद सिर्फ़ दो बार ही उतने उत्साह से जश्न मनाते देखा गया था और यह दोनों जश्न ऑस्ट्रेलिया के ही ख़िलाफ़ उनके घर पर थे। क्या इससे यह पता चलता है कि यह आपके लिए काफ़ी मायने रखता है?

वो हमारी पीढ़ी की सर्वश्रेष्ठ टीम थी इसलिए उनके ख़िलाफ़ रन बनाना हमेशा ही ख़ास रहता था। वो भी ऑस्ट्रेलिया में रन बनाना, उस श्रृंखला में जिसमें हमसे बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद नहीं की जा रही थी। ब्रिस्बेन (पहला टेस्ट) में हमने टेस्ट मैच बचाया था और इसे बचाने में मौसम ने हमारा साथ दिया और फिर हम एडिलेड आए। चार विकेट गंवाने के बाद शतक बनाना। मैंने ऐसा जश्न अपने किसी भी अन्य शतक पर नहीं बनाया था लेकिन मुझे लगता है कि उस समय में ऑस्ट्रेलिया में रन बनाने का ही अपना अलग महत्व था।

इस मैच से पहले आपने ऑस्ट्रेलिया में चार टेस्ट में 137 रन बनाए थे। क्या यह आंकड़ा आपको सता रहा था?

हां, एक तरह से। 1999 का दौरा मेरे लिए अच्छा नहीं था। मैं हमेशा ही ऑस्ट्रेलिया में बेहतर करना चाहता था और मैं पहली बार ऑस्ट्रेलिया गया था। जब छोटा था तब सुबह-सुबह जल्दी उठकर ऑस्ट्रेलिया में हो रहे टेस्ट मैच देखता था और कॉमेंट्री सुनता था। उन टेस्ट मैचों और आइकॉनिक मैदानों की यादगार स्मृतियां ज़ेहन में कैद थीं। हम सभी इस सबके बारे में सुनते हुए बड़े हुए थे, हमने इन मैदानों पर खेल चुके भारत के महान खिलाड़ियों के बारे में सुना था और 1999 में ख़राब श्रृंखला जाने से मैं काफ़ी हताश था।
इस प्रदर्शन के चलते मुझे एहसास हुआ कि मुझे लगातार बेहतर करने केज कुछ पहलुओं पर काम करने की ज़रूरत है। तो हां, यहां दोबारा आकर बेहतर प्रदर्शन करने की भूख थी।

क्या आप बता सकते हैं कि 2003 से पहले आपने किन पहलुओं पर काम किया था?

मुझे लगता है कि मुझे अपने ऑफ़ साइड गेम को थोड़ा और ओपन करने की ज़रूरत पड़ी थी। बैंगलोर में बड़ा होने के दौरान मैटिंग विकेट पर खेलने के चलते लेग साइड पर मज़बूत खिलाड़ी होना स्वाभाविक था। लेकिन मुझे लगता है कि ऑफ़ साइड पर मेरा खेल उतना मज़बूत नहीं था जितना कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ज़रूरी होता है और गेंदबाज़ भी ऑफ़ साइड के चैनल में काफ़ी गेंदें करते हैं। तो इसलिए मुझे ऑफ़ साइड पर अपनी स्किल और बढ़ानी थी।
2003 के दौरे पर हम काफ़ी पहले ऑस्ट्रेलिया पहुंच गए थे। मुझे लगता है कि हम पहला टेस्ट शुरू होने से लगभग दो सप्ताह पहले ही ऑस्ट्रेलिया में थे। तो जब तक एडिलेड पहुंचे, हमने ऑस्ट्रेलिया में अच्छा खासा समय बिता लिया था। ब्रिस्बेन में 43 रन बनाने से ज़्यादा मुझे इस बात का एहसास हो गया था कि एडिलेड टेस्ट के लिए मेरी तैयारी अच्छी हो गई थी।

क्या इससे यह भी पता चलता है कि पिछले दो दशकों में टेस्ट क्रिकेट कितना बदल गया है? भारत पहले किसी दौरे पर अभी की तुलना में काफ़ी पहले जाया करता था लेकिन अब जिस तरह से व्यस्त कार्यक्रम होते हैं, भारतीय दल को अभ्यास करने का पर्याप्त समय नहीं मिल पाता।

मुझे लगता है इस बार स्थिति थोड़ी बेहतर है। वे कम से कम 12 दिन पहले ऑस्ट्रेलिया पहुंच गए हैं। लेकिन मैं भी अब काफ़ी समय से कोच भूमिका निभा रहा हूं, इसलिए अधिक क्रिकेट होने के चलते टीम को तैयार करना मेरे लिए चुनौतीपूर्ण हुआ करता था। हम सौभाग्यशाली हैं कि भारत के पास एक ही समय पर खेलने के लिए दो अलग अलग टीमें हैं। एक टीम साउथ अफ़्रीका में चार T20I खेल रही है और हम वहां सफल भी हो रहे हैं। लेकिन आप ज़रा सोच के देखिए जब आपको वहां खेलकर ऑस्ट्रेलिया जाना होता। इसलिए मौजूदा दौर में तैयारी के लिए पर्याप्त समय मिलना काफ़ी कठिन है।
वो दिन सही थे। इंग्लैंड में 1996 में मैंने पहला दौरा किया था, जब मैंने पहला मैच खेला उससे पहले हमने छह या सात अभ्यास मैच खेले थे।
हम 1999 में ऑस्ट्रेलिया गए थे। इससे पहले भारतीय टीम 1992 में ऑस्ट्रेलिया गई थी और हम 2003 में ऑस्ट्रेलिया गए। ऐसे में दो दौरों के बीच के चार वर्षों में आपको उस देश में खेलने का अनुभव नहीं होता था। लेकिन आज ए टूर होते हैं, वनडे क्रिकेट अलग से खेली जाती है। इससे इन देशों में खेलने का अनुभव प्राप्त हो जाता है।

पिछले 25 वर्षों में पहली बार ऐसा हुआ है जब भारतीय टीम आपके या बिना चेतेश्वर पुजारा के ऑस्ट्रेलिया गई है। नंबर तीन का रोल भारत के लिए ऑस्ट्रेलिया में काफ़ी अहम रहा है। क्या भारत को कमी खलेगी?

उनके पास शुभमन गिल हैं, जो कि एक बेहद ही शानदार खिलाड़ी हैं। पिछले ऑस्ट्रेलिया दौरे पर वह सफल भी हुए थे। हर कोई ऋषभ की पारी की चर्चा करता है लेकिन मुझे लगता है कि शुभमन के 91 रनों ने मैच को बनाने में अहम भूमिका निभाई।
शीर्ष क्रम से रन आना महत्वपूर्ण होगा, यह मायने नहीं रखता कि कौन से क्रम पर बल्लेबाज़ी करने वाला बल्लेबाज़ रन बना रहा है। शीर्ष क्रम में एक या दो बल्लेबाज़ के लिए अगर यह श्रृंखला बेहतरीन रहती है तब भारत काफ़ी अच्छी स्थिति में होगा। ऑस्ट्रेलिया में यह काफ़ी काम आता है। अगर शीर्ष क्रम शुरुआत की विषम परिस्थितियों को झेल जाता है तब इससे निचले क्रम को मैच में हावी होने का मौक़ा मिलता है।

एडिलेड 2003 और ब्रिजटाउन 2024। इन दोनों लम्हों में अलग क्या है?

ब्रिजटाउन में अंतर यह है कि मैं वहां सहयोगी की भूमिका में था। मैं और मेरी टीम ने रोहित और उनकी टीम को सफलता हासिल करने में मदद की। मैंने ब्रिजटाउन में एक भी रन नहीं बनाया। मैंने एक भी कैच नहीं लपका, एक भी विकेट नहीं लिया। लेकिन हमने रोहित के विज़न और उनकी टीम के लक्ष्य को हासिल करने में सहयोगी की भूमिका अदा की। और इसमें बड़ा संतोष प्राप्त होता है क्योंकि इसे (विश्‍व कप ट्रॉफ़ी) हासिल करना आसान नहीं होता है।
एडिलेड में मैं भाग्यशाली था कि मैं चीज़ें ख़ुद से कर सकता था। लक्ष्मण के साथ साझेदारी बनाने के साथ ही मैदान में जाकर कैच लपक सकता था। और इस बात का एहसास कर सकता था कि दूसरी पारी में बनाए गए 70 रन जीत ले लिए और भी महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।
इसलिए यह दोनों घटनाएं अपने अपने रूप में अलग हैं। एक कोच के रूप में आप लोगों को उनके सपने हासिल करने में मदद करते हैं। और मुझे लगता है दोनों ही भूमिकाओं में एक जैसी ही संतुष्टि मिलती है।