चार्ली डीन से सवाल क्यों नहीं पूछा गया - आख़िर वह क्रीज़ से बाहर क्यों थीं? • Christopher Lee/ECB/Getty Images
क्या दीप्ति शर्मा गेंद डालना भी चाहतीं थीं? उन्होंने ऐसा पहले क्यों नहीं किया और इंग्लैंड के मैच जीतने के काफ़ी क़रीब आने के बाद ही क्यों किया? क्या वह ऐसे जीतने में ख़ुश थीं?
क्या भारतीय कप्तान हरमनप्रीत कौर को इस बात का पता था? यह प्लान एक व्यक्तिगत प्लान था या इसमें पूरी टीम शामिल थी? क्या कोई चेतावनी दी गई थी? क्या हरमनप्रीत को ऐसे जीतना रास आया?
ऐसे सवाल काफ़ी हद तक सटीक हैं और पूछे जाने चाहिए। वैसे यही सवाल लॉर्ड्स में भारत की जीत के बाद पूछे भी जा चुके हैं। लेकिन शायद एक सवालों का गुट है जो पूछा जाना ज़रूरी है लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो रहा।
आख़िर चार्ली डीन क्रीज़ से बाहर क्यों थीं? वह गेंदबाज़ और गेंद को क्यों नहीं देख रहीं थीं? क्या उन्होंने क्रीज़ से कुछ दूरी बनाए रखने का मन पहले से ही बना लिया था? उन्होंने ऐसा कितने बार किया? क्या उनके साथ खेल रहे बल्लेबाज़ इस तरह रन बनाने के बारे में ख़ुश हैं? क्या यह उनकी व्यक्तिगत रणनीति थी या टीम का प्लान?
एक बात साफ़ कर दें कि डीन ने कुछ ग़लत नहीं किया। क्रीज़ से बाहर खड़े होना कोई नियमों का उल्लंघन नहीं है लेकिन क्रिकेट के नियमों में लिखा है कि अगर आप ऐसा करते हैं तो आप आउट हो सकते हैं। इसमें कोई भावनात्मक प्रतिक्रिया की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए। ईएसपीएनक्रिकइंफ़ो के पीटर डेला पेना के ज़बरदस्त ट्विटर थ्रेड के अलावा डीन और इंग्लैंड के इरादों पर कोई भी सवाल नहीं खड़े हुए हैं जितना भारत और दीप्ति पर उठाए जा चुके हैं।
इस असंतुलित विवाद से क्रिकेट में अधिकार और ताक़त के पदानुक्रम की समझ बढ़ती है। देखिए कैसे सबकी निगाहें उस खिलाड़ी पर आई हैं जिसने नियमों का पालन किया है। इससे वह अपने किए पर संदेह की दृष्टि से देख सकता है। जबकि पूरे मामले में दूसरे व्यक्ति पर कोई कुछ सवाल भी नहीं उठाता।
वेस्टइंडीज़ के कीमो पॉल ने ऐसा एक अहम अंडर-19 विश्व कप मैच में किया था और इसके बाद प्रतिक्रिया इतनी कठोर थी कि वह इसके बाद अपने होटल के कमरे में बैठकर रोते रहे। इसके बाद उन्होंने घोषणा की कि वह इस तरह किसी बल्लेबाज़ को कभी रन आउट नहीं करेंगे। इसलिए नहीं कि उन्होंने कुछ ग़लत किया था, लेकिन इस वजह से कि वह ऐसी प्रतिक्रिया का फिर सामना नहीं करना चाहते थे। इसके तीन साल बाद जब आर अश्विन ने ऐसा किया तो क्रिकेट नियमों के संरक्षक एमसीसी ने उनपर काफ़ी टिप्पणी की लेकिन किसी ने यह नहीं पूछा कि जॉस बटलर इतनी बार क्रीज़ से बाहर क्यों खड़े रहते हैं?
यह बात स्पष्ट रूप से ताक़त के पदानुक्रम की बात है। अब तो एमसीसी भी आईसीसी की तरह इस आउट होने के ज़रिए का समर्थन कर चुकी है। लेकिन फिर भी कुछ लोग इस बात को एक नैतिक विवाद का रंग देकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं।
पहला पदानुक्रम है क्रिकेट में बल्लेबाज़ों को गेंदबाज़ों से वरिष्ठ खिलाड़ी मानना। यह क्रिकेट की बहुत पुरानी रीत है और शायद इसकी शुरुआत इंग्लैंड में उस ज़माने में हुई जब बल्लेबाज़ 'जेंटलमेन' हुआ करते थे और गेंदबाज़ पेशेवर और अमूमन उनसे निम्न सामाजिक वर्ग से। अगर आप देखें तो अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में अधिकतर कप्तान बल्लेबाज़ ही होते हैं। आप आईसीसी की क्रिकेट कमेटी के गठन को देखेंगे तो इसमें आठ पूर्व बल्लेबाज़, दो गेंदबाज़ और एक ऑलराउंडर मौजूद हैं।
दूसरा पदानुक्रम थोड़ा ज़्यादा गंभीर है।
'विज़डेन डॉट कॉम' में पत्रकार अभिषेक मुखर्जी ने याद दिलाया कि नॉन-स्ट्राइकर छोर पर बल्लेबाज़ को आउट करना वीनू मांकड़ से पहले कई बार इंग्लैंड में हो चुका था। ऐसे अवसर पर कभी नैतिक ज़िम्मेदारी पर विवाद की बात नहीं हुई। ऐसे अजीब, अनियमित आचार संहिता का होना पदानुक्रम को बरक़रार रखने के लिए ज़रूरी है। अगर आप खेल के बाहर की दुनिया को देखें तो यह हमें वेश भूषा, प्रथाएं, आचरण के नियम, देशप्रेम की परिभाषा, तथाकथित धार्मिक भावनाओं के विरुद्ध बातों के उदाहरण में मिलती हैं।
क्रिकेट में कई खिलाड़ी हैं जो आउट होने पर भी 'वॉक' ना करने पर गर्व करते हैं, बेवजह बल्लेबाज़ के विरुद्ध अपील करते हैं, कुछ विपक्षी खिलाड़ियों को 'मानसिक तौर पर दुर्बल' कह कर चिढ़ाते हैं, फ़ील्डर के थ्रो के पथ पर दौड़ना सही समझते हैं। यह सब क्रिकेट के नियम के दायरे में रहते हुए अनुचित लाभ उठाने के उपाय हैं, लेकिन संयोग से यही खिलाड़ी इस प्रकार के रन आउट के ख़िलाफ़ सबसे ऊंची आवाज़ में बोलते हैं।
उनका मानना है कि यह अनैतिक है क्योंकि आप इस विकेट के लिए मेहनत नहीं करते। उस संदर्भ में यह ऐसे अवसरों से अलग है जब गेंद किसी नॉन-स्ट्राइकर के शरीर पर लगकर कैच की जाती है। उनको यह भी लगता है कि यह डिसमिसल गेंद को खेल में डाले जाने से पहले होता है, बावजूद इसके कि नियमों में साफ़ लिखा है कि गेंदबाज़ के रन-अप शुरू होते ही गेंद लाइव हो जाती है।
यह ऐसी अजीब तर्क़संगतता है कि जो इसमें विश्वास करते हैं उन्हें इस बारे में अगर ठहरकर सोचने को कहा जाए, तो शायद यह उनके समझ के परे हो। इस विवाद में आप अगर इसके बेतुके होने की बात करेंगे तो आप तुरंत 'बाहरवाले' बन जाते हैं। हर पदानुक्रम की तरह या तो आप चुप-चाप इसका पालन करेंगे या आप आलोचना और मज़ाक़ का पात्र बन सकते हैं।
ऑस्ट्रेलिया का 'हार्ड बट फ़ेयर' (प्रतिस्पर्धी लेकिन उचित) खेलने का तरीक़ा भी अपने-आप में अजीब है। इसमें प्रतिष्ठित कप्तान ज़मीन पर गिरने वाली कैच को क्लेम कर सकते हैं, विपक्ष की गाली-गलोच की जा सकती है, उनके खिलाड़ी आउट होने के बाद गेंदबाज़ के एक्शन का मज़ाक़ उड़ा सकते हैं, लेकिन जब विराट कोहली उनके कप्तान की ईमानदारी पर सवाल उठाते हैं तो आसमान टूट पड़ता है। जब कोई उनको जवाबी स्लेजिंग करता है तो एक दायरा बना दिया जाता है। कहां और किस आधार पर, यह ना ही पूछे तो अच्छा।
इंग्लैंड में खेलते हुए टॉफ़ी के इस्तेमाल से गेंद पर अधिक स्विंग प्राप्त किया जाना तब तक वैध है जब तक यह कोई और ना करे। एशिया में कोई टेस्ट अगर ढाई दिन में ख़त्म हो जाए तो पिच की योग्यता पर सवाल उठाए जाते हैं लेकिन हाल ही में ओवल टेस्ट में दो दिनों तक पुरानी गेंद भी अधिक लहराती दिखी। क्या आपने इनसे कोई बात सुनी? क्रिकेट में सही और ग़लत के अधिकतर प्रवचन दो देशों से ही निकलते हैं, और फिर उन आवाज़ों को न्यूज़ीलैंड तथा साउथ अफ़्रीका का सहारा मिलता है।
क्रिकेट का वाणिज्य एशिया और ख़ास तौर पर भारत के हाथों में है, लेकिन क्रिकेट की पटकथा अब भी इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया ही लिखते हैं। उनके खिलाड़ी युवावस्था से मीडिया ट्रेनिंग लेते हैं और अपनी बात को अधिक स्पष्टता से रख लेते हैं। उनकी टीमों के साथ का मीडिया प्रबंधन भी सबसे बेहतर होता है। उनके देश के कुछ कॉमेंटेटर इन्हीं बातों को और असरदार तरीक़े से बोल लेते हैं।
अपने पास की दुनिया को देखिए। ताक़त का पदानुक्रम आपको हर क्षेत्र में नज़र आएगा। जब आप इसमें निम्न वर्ग पर हैं - अल्पसंख्यक समुदाय, आप्रवासी, तथाकथित निचले जाति के सदस्य, महिला या किसी और लिंग के व्यक्ति, या कोई जो असमलैंगिकता के बाहर हो - तो आप पर अपने समुदाय की तरफ़ से उचित व्यवहार की अपेक्षा रहेगी। जो इन सब में बहुमत में हों उनसे इस बारे में कभी कोई बात नहीं की जाती।
इसी वजह से इस विवाद में भी हमें सोच बदलनी होगी। जब दीप्ति ने डीन को रन-आउट किया तो कॉमेंट्री पर अपने क्षेत्र के सर्वोत्तम नासिर हुसैन ने जो बोला, उससे कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण वो था जो उन्होंने नहीं कहा।
"मैं इस बारे में आश्वस्त नहीं हूं। मैं जानता हूं यह क्रिकेट के नियमों में है..."
यह कहना सही नहीं होगा कि अगली बार हमें बल्लेबाज़ की नीयत पर सवाल उठाने चाहिए, क्योंकि एक प्रतिस्पर्धी खेल में नैतिकता को अपनी जेब में ही रखना सही है। फिर भी, अगर हम इस विवाद को एक-तरफ़ा नहीं होने दें, तो शायद एक दिन वह बल्लेबाज़ जो कुछ दूरी बनाकर रन चुराने की सोचता है, वह भी ऐसे आउट होने पर आलोचना और प्रतिक्रिया से डरकर ख़ुद को संदेह की दृष्टि से देखेगा।