वीवीएस लक्ष्मणः कभी हार नहीं मानने वाला एक स्टाइलिश बल्लेबाज़
क्रीज़ पर लंबे समय तक टिके रहने की क्षमता और शांत जुझारू स्वभाव लक्ष्मण को अन्य क्रिकेटरों से अलग करता है
दया सागर
01-Nov-2023
एक नवंबर, 1974 को तत्कालीन आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद में पैदा हुए वांगीपुरप्पु वेंकट साई लक्ष्मण (वीवीएस लक्ष्मण) को अक्सर ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ 2001 कोलकाता टेस्ट में खेली गई 281 रन की मैराथन पारी के लिए याद किया जाता है। लेकिन अपने करियर के अंतिम दिनों ख़ासकर 2010 के साल में उन्होंने जिस तरह से निचले क्रम के बल्लेबाज़ों के साथ मिलकर भारत के लिए कई मैच जिताए और बचाए, वे क्रिकेट फ़ैंस के ज़ेहन में एक दशक बाद अब भी ताज़ा हैं।
वैसे, वीवीएस लक्ष्मण एक ऊपरी क्रम के बल्लेबाज़ थे और उन्होंने अपनी सर्वश्रेष्ठ 281 रन की पारी भी नंबर तीन के बल्लेबाज़ के तौर पर खेली थी। लेकिन भारतीय टेस्ट टीम में राहुल द्रविड़, सचिन तेंदुलकर और सौरव गांगुली के रहते हुए उन्होंने अपने करियर का एक बड़ा हिस्सा नंबर 6 बल्लेबाज़ के तौर पर खेला। यह ऐसा बैटिंग पोज़िशन है, जब आपके टीम के प्रमुख बल्लेबाज़ पवेलियन में होते हैं और दूसरे छोर पर आपका साथ देने के लिए अधिकतर समय सिर्फ पुछल्ले बल्लेबाज़ ही बचते हैं।
लक्ष्मण की बल्लेबाज़ी शैली ऐसी थी कि उन्हें क्रीज़ पर टिकने के लिए अतिरिक्त समय और गेंद की ज़रूरत होती थी। इसलिए लक्ष्मण के लिए यह अक्सर एक बड़ी चुनौती रहती थी कि वह इस पोज़िशन पर टीम की ज़रूरत के अनुसार अपनी बल्लेबाज़ी को ढालें और टीम को संभाले भी रखें। उन्होंने ना सिर्फ़ इस चुनौती को स्वीकार किया बल्कि टेस्ट क्रिकेट में अपनी एक अलग पहचान भी बनाई।
2010 में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ मोहाली में खेली गई उनकी नाबाद 73 रन की पारी उनके कुछ यादगार टेस्ट पारियों में से एक है, जो उन्होंने सिर्फ़ 79 गेंदों में 92.41 की स्ट्राइक रेट से बनाए थे। इस मैच में ऑस्ट्रेलिया की पहली पारी के दौरान ही लक्ष्मण को पीठ दर्द की शिकायत हुई थी। इस वजह से वह पहली पारी में रनर के साथ नंबर 10 पर बल्लेबाज़ी करने आए थे और ऑस्ट्रेलिया की दूसरी पारी के दौरान उन्होंने एक ओवर भी फ़ील्डिंग नहीं की थी।
लेकिन जब दूसरी पारी में टीम इंडिया को उनकी ज़रूरत थी, तब वह टीम के लिए एक संकटमोचक बन कर उभरे। नाइट वाचमैन ज़हीर ख़ान के आउट होने के बाद नंबर 6 पर बल्लेबाज़ी करने आए लक्ष्मण के साथ क्रीज़ पर उस समय सचिन तेंदुलकर थे और उनके रहते हुए टीम की जीत आसान लग रही थी। लेकिन पारी के 30वें ओवर के दौरान सचिन तेंदुलकर आउट हो गए और 34वें ओवर तक आते-आते दो अन्य बल्लेबाज महेंद्र सिंह धोनी और हरभजन सिंह भी पवेलियन में थे।
216 रन के लक्ष्य का पीछा कर रही टीम इंडिया का स्कोर उस समय 124 रन पर 8 विकेट था। लक्ष्मण की चोट, उनका साथ देने के लिए बचे सिर्फ़ दो पुछल्ले बल्लेबाज़ और पांचवें दिन की पिच को देखते हुए टीम इंडिया की हार निश्चित लग रही थी। लेकिन लक्ष्मण ने अपने जुझारूपन और कभी ना हार मानने वाले स्वभाव का शानदार परिचय देते हुए टीम इंडिया को ना सिर्फ़ हार के जबड़े से बाहर निकाला बल्कि ईशांत शर्मा और बाद में प्रज्ञान ओझा के साथ मिलकर टीम को एक अनिश्चित जीत की ओर ले गए। लक्ष्मण ने दूसरे छोर पर पुछल्ले बल्लेबाज़ों को देखते हुए तेज बल्लेबाजी की, जो कि उनके स्वभाव के एकदम विपरीत था। इस पारी के दौरान वह एक बार प्रज्ञान ओझा पर गुस्सा भी हुए, जो कि उनके शांत स्वभाव के विपरीत था, लेकिन यह दिखाता है कि वह मैच के प्रति कितने इंटेंस थे।
साझेदारी के दौरान लक्ष्मण और प्रज्ञान•AFP
इस मैच के तुरंत बाद चोट से वापिस आते हुए लक्ष्मण ने न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ अहमदाबाद टेस्ट में हरभजन सिंह के साथ मिलकर मैच बचाने वाली पारी खेली थी। मैच की दूसरी पारी में भारत 15 रन पर 5 विकेट खोकर लड़खड़ा रहा था। लेकिन पहले धोनी और फिर टर्बनेटर हरभजन सिंह के साथ मिलकर ना सिर्फ़ उन्होंने पारी को संभाला बल्कि एक निश्चित ड्रॉ की ओर ले गए। इसके बाद डरबन में भी लगभग इन्हीं परिस्थितियों से टीम को निकालते हुए उन्होंने 96 रन की मैच जिताऊ पारी खेली थी। इस तरह 2010 का साल वीवीएस लक्ष्मण का साल था।
लक्ष्मण एक 'टीम मैन' थे। वह अपने करियर के आख़िरी दिनों तक शॉर्ट लेग और सिली मिड ऑफ़ पर फ़ील्डिंग करते रहे, जबकि अक्सर ऐसा होता है कि इन पोज़िशन पर युवा खिलाड़ियों को ही रखा जाता है। जैसा कि मयंक अग्रवाल और केएल राहुल भी बता चुके हैं कि टीम इंडिया में कोई भी नया बल्लेबाज़ आता है, तो चेतेश्वर पुजारा उनका स्वागत शिन पैड, एबडॉमिनल गॉर्ड और हेलमेट देकर करते हैं। टेस्ट टीम में नीचे खेलने की बात हो या वन डे टीम का हिस्सा ना होने का दर्द, उन्होंने कभी भी इसकी शिकायत नहीं की। वह कभी भी किसी विवाद का भी हिस्सा नहीं रहें।
एक क्रिकेट फ़ैन के तौर पर उनका वन डे करियर लंबा ना होने और एक भी विश्व कप ना खेलने का मलाल मुझे हमेशा रहेगा, लेकिन उनकी उपलब्धियों की कहानी हमेशा लिखी जाती रहेंगी।
दया सागर ESPNcricinfo हिंदी में सब एडिटर हैं. @sagarqinare