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महिला एशिया कप : बेटी कायनात क्रिकेटर तो मां अंपायर, सलीमा इम्तियाज़ के लिए भावुक पल

पहली बार एशिया कप में सभी मैच अधिकारी सिर्फ़ महिलाएं हैं

सलीमा इम्तियाज़ 2006 से ही घरेलू मैचों में अंपायरिंग कर रही हैं  •  Getty Images

सलीमा इम्तियाज़ 2006 से ही घरेलू मैचों में अंपायरिंग कर रही हैं  •  Getty Images

भारत और श्रीलंका के बीच हुआ एशिया कप का मैच अंपायर सलीमा इम्तियाज़ के लिए पहला अंतर्राष्ट्रीय मैच था और वह किसी भी डेब्यू करने वाली खिलाड़ी की तरह नर्वस थीं। लेकिन यह नर्वसनेस बस एक ही गेंद तक रही। उन्होंने घरेलू मैचों में एक दशक से अधिक समय तक अंपायरिंग की है, इसलिए जब पहली गेंद फेंकी गई उसके बाद वह अपने कंफ़र्ट ज़ोन में आ गईं।
एशियन क्रिकेट काउंसिल (एसीसी) ने बांग्लादेश के सिलेट में हो रही महिला एशिया कप के लिए सिर्फ़ महिला अंपायरों की नियुक्ति का फ़ैसला किया है और यह सलीमा व उनकी जैसी महिला अंपायरों के लिए किसी बड़े मौक़े से कम नहीं है।
सलीमा ने ईएसपीएनक्रिकइंफ़ो से कहा, "मैं पिछले 15 साल से अंपायरिंग कर रही हूं लेकिन जब मुझे एसीसी से बुलावा आया तो मैं स्तब्ध रह गईं। मैं अंतर्राष्ट्रीय पदार्पण करने से पहले थोड़ा सा नर्वस और उत्साहित दोनों थीं। यह एक बेहतरीन अनुभव था। जब मैच में पहली गेंद फेंकी गई, मेरा आत्मविश्वास वापस आ गया और नर्वसनेस दूर हो गई। मैंने ख़ुद से कहा, 'मैं कर सकती हूं।' यह महिला अंपायरों और रेफ़रियों के लिए एक बेहतरीन मौक़ा है। हम अलग-अलग देश से आए हैं लेकिन यहां हम एक परिवार की तरह हैं। हम एक दूसरे की सहायता करते हैं, एक दूसरे से सीखते-सीखाते हैं। ऐसे मौक़े हमारे लिए और होने चाहिए।"
"बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे एशियाई देशों में महिला अंपायरों के लिए बहुत समस्याएं हैं।"
सलीमा इम्तियाज़
सलीमा पाकिस्तान से आई हुईं अकेली अंपायर नहीं हैं। उनके साथ हुमैरा फ़राह भी हैं। इसके साथ क़तर, मलेशिया और यूएई से भी महिला अंपायर एशिया कप में भाग ले रही हैं।
सलीमा ने 2006 में अपने अंपायरिंग करियर की शुरुआत की थी। इसके पहले वह एक क्रिकेटर बनना चाहती थीं। हालांकि वह घरेलू क्रिकेट में बस एक या दो साल ही खेल पाईं। वह कराची के निक्सर कॉलेज में स्पोर्ट्स को-ऑर्डिनेटर भी हैं। उनकी बेटी कायनात इम्तियाज़ पाकिस्तान की ओर से एशिया कप में हिस्सा ले रही हैं।
सलीमा ने बताया, "मैंने दो वनडे मैच में अंपायरिंग की है, जिसमें मेरी बेटी कायनात भी खेल रही थी। लेकिन मेरा और उसका काम अलग-अलग है, इसलिए हम मैदान में मां-बेटी नहीं होते हैं।"
सलीमा को अपनी बेटी पर गर्व है। उन्होंने कहा, "मैं पाकिस्तान के लिए खेलना चाहती थीं लेकिन ऐसा नहीं हो सका। अब कायनात मेरे सपने को जी रही है। यह मेरे, मेरे परिवार और दोस्तों के लिए गर्व की बात है। उसे अपने पिता से भी पूरा सहयोग मिलता है। जब उसने पहली बार पाकिस्तान क्रिकेट का ब्लेज़र पहना था तो मेरे आंखों में आंसू थे। यह किसी भी मां के लिए एक बड़ी बात है कि उनकी बेटी अपने देश का प्रतिनिधित्व कर रही है।"
सलीमा को लगता है कि कोई भी महिला खेलों में अपना करियर बना सकती है। वह कहती हैं, "मैं लोगों से कहना चाहती हूं कि अपनी बेटियों का सपोर्ट करें। उन्हें वह करने दें जो वह करना चाहती हैं। बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे एशियाई देशों में पुरूषों को उन समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता, जो महिलाएं सहती हैं। अगर लोग अपनी बेटियों, पत्नियों और माताओं पर विश्वास करेंगे तो वे परिवार के लिए सम्मान लाएंगी। मैं ख़ुश हूं कि मुझे ऐसे पति मिले हैं जो मुझे और मेरी बेटी को सपोर्ट करते हैं। अगर एक पिता अपने बेटी को सपोर्ट करता है तो वह दिल खोलकर मैदान में प्रदर्शन करेगी।"

मोहम्मद इसाम ESPNcricinfo के बांग्लादेश संवाददाता हैं