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इंग्लैंड में शॉट सेलेक्शन को लेकर बल्लेबाज़ों को बहुत सावधान रहना होगा: हनुमा विहारी

भारतीय बल्लेबाज़ ने कॉउंटी क्रिकेट के अपने अनुभवों और कोरोना से लड़ाई में सोशल मीडिया पर चलाई जा रही अपनी मुहिम के बारे में ईएसपीएन क्रिकइंफ़ो से विस्तार में बात की।

"ड्यूक गेंद दिन के किसी भी हिस्से में कभी भी मूवमेंट करने लगती है, इंग्लैंड में बल्लेबाज़ी के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती है"  •  Gareth Copley/Getty Images

"ड्यूक गेंद दिन के किसी भी हिस्से में कभी भी मूवमेंट करने लगती है, इंग्लैंड में बल्लेबाज़ी के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती है"  •  Gareth Copley/Getty Images

अप्रैल, 2021 में जब भारत में इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) चल रहा था, उस समय हनुमा विहारी इंग्लैंड में कॉउंटी क्रिकेट खेल रहे थे। उन्होंने वार्विकशायर के लिए खेलते हुए तीन मैचों की छह पारियों में 16.66 के औसत से 100 रन बनाए, जिसमें एक अर्धशतक शामिल है। इस औसत प्रदर्शन के बावजूद भारत में वह लगातार सुर्खियों में हैं, क्योंकि वह इंग्लैंड में रहकर भी सोशल मीडिया और अपने वालंटियर्स की टीम की मदद से कोविड-19 महामारी से लड़ने के लिए लोगों की लगातार मदद कर रहे हैं। विहारी ने ईएसपीएन क्रिकइंफ़ो से अपने इस प्रयास सहित कॉउंटी चैंपियनशिप के अपने अनुभवों को साझा किया, जो कि विश्व टेस्ट चैंपियनशिप फाइनल और इंग्लैंड के ख़िलाफ़ पांच मैचों की टेस्ट श्रृंखला में बहुत उपयोगी साबित हो सकता है।
कॉउंटी क्रिकेट खेलने के बाद मई के पहले सप्ताह से ही आप लगातार आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के लोगों की कोरोना से लड़ाई में मदद कर रहे हैं। यह सब कैसे शुरू हुआ?
चार मैचों के कॉउंटी करार के बाद मेरे पास बहुत सारा वक्त था और भारत में कोरोना से स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही थी। तो मुझे लगा कि अपने सोशल नेटवर्क के सहारे लोगों की मदद की जा सकती है। यह सब सोशल मीडिया से शुरू हुआ था लेकिन अब मेरे पास वॉलंटियर्स का समूह है, जो कि एक व्हाट्सएप्प ग्रुप की मदद से आपस में कोआर्डिनेट करते हैं और अधिक से अधिक लोगों तक मदद के लिए पहुंचने का प्रयास करते हैं।
शायद आपकी पत्नी प्रीति ने आपको इसके लिए प्रेरित किया था?
हां, मैं उससे अक्सर कहता था कि समाज सेवा में मेरी रुचि है। एक दिन भारत का समाचार देखते हुए उसने मुझसे कहा कि यह सही समय है, क्यों ना अभी से शुरू करें? अगले दिन मैंने इंस्टाग्राम पर शुरुआत की और कुछ ही दिन में यह कारवां ट्विटर पर बढ़ गया।
मैंने इसकी शुरूआत प्लाज़्मा डोनेशन के लिए लोगों से आगे आने के अपील के साथ की, क्योंकि कोरोना मरीजों को ठीक होने के लिए यह उस समय एक बड़ी आवश्यकता थी। मैंने अपने इंस्टाग्राम फॉलोअर्स से प्लाज़्मा डोनेट करने के लिए कहा। इसके बाद मुझे एहसास हुआ कि लोगों की इसके अलावा भी कई अन्य जरूरतें थीं, इसलिए मैंने एक टीम बनाने का फैसला किया।
इस टीम में अब लगभग 120 वॉलंटियर्स हैं, जिसमें डॉक्टर्स, कई कामकाजी पेशेवर और यहां तक कि आंध्र प्रदेश रणजी टीम के खिलाड़ी भी शामिल है। शुरू में, मैं लोगों के रिक्वेस्ट को साझा करने और उनको मदद पहुंचाने के लिए रोजाना लगभग आठ से नौ घंटे बिताता था। लेकिन अब यह घटकर तीन से चार घंटा रह गया है क्योंकि टीम इंडिया से जुड़ने से पहले मुझे अपनी ट्रेनिंग फिर से शुरू करनी थी।
आप किस तरह से अपनी टीम की सहायता से लोगों की मदद पहुंचाते हैं?
हमारी वॉलंटियर्स की टीम अब सभी समस्याओं का समाधान खुद कर लेती है। लेकिन कई बार इमरजेंसी परिस्थितियों में अगर किसी को वेंटिलेटर बेड नहीं मिलता है, तो वह मुझसे उस मामले को अपने सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के लिए कहते हैं। कई बार मैं मरीजों के परिवार के साथ-साथ डॉक्टरों से भी बात करता हूं। मैंने इस दौरान लोगों की आर्थिक मदद के लिए फ़ंड रेज़िंग का भी काम किया है।
दुर्भाग्य से हैदराबाद के एक मरीज़, जिनके लिए मैंने फ़ंड रेज़ किया था, उनका हाल ही में निधन हो गया। मैंने उनकी 20 साल की बेटी से कहा कि हम उनको पूरा सपोर्ट करेंगे। पिता के अलावा उनके दो बेटे भी उस समय कोरोना पॉजिटिव थे और परिवार कर्ज में डूब गया था। हमने उनसे कहा है कि हम उन्हें आर्थिक और भावनात्मक दोनों रूप से सपोर्ट देने के लिए हमेशा मौजूद रहेंगे। इसी तरह मैंने कई और परिवारों की मदद की है। इससे मुझे खुशी मिलती है।
इन सबका आप पर भावनात्मक रूप से भी प्रभाव पड़ा होगा?
हां, मरीजों और उनके परिवारों की कहानियां आपको अंदर तक हिला देती हैं। वे जिस दौर से गुजर रहे होते हैं, उसे सुनकर आप निश्चित रूप से भावुक हो जाते हैं। लेकिन हम जितना हो सके, मदद करने की कोशिश करते हैं। अगर उनके साथ कुछ दुर्भाग्यपूर्ण होता है, तो आप भावनात्मक के साथ-साथ आर्थिक रूप से भी उनकी मदद करने का पूरा प्रयास करते हैं।
क्या यह एक एलीट स्पोर्ट्समैन बनने में आपकी मदद करता है क्योंकि आपको तो बचपन से सिखाया गया होता है कि अपनी भावनाओं को परे रख कर खिलाड़ी को अपने काम और लक्ष्य पर ध्यान देना चाहिए।
ऐसा नहीं है। यह किसी के जीने-मरने का मसला होता है, जिंदगियां दांव पर होती हैं। अगर मैंने मदद करने का फैसला किया है, तो मुझे किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहने की भी जरूरत है। सिर्फ ख़ुद को ही नहीं, ग्रुप के अन्य सदस्यों को भी ऐसे मौकों पर संभालना होता है। वे भी भावुक हो जाते हैं, जब उन्हें किसी मरीज़ की कोई बुरी खबर मिलती है। उन्हें बुरा भी लगता है कि उनका प्रयास व्यर्थ गया। वे उनसे मुझसे ज़्यादा जुड़े होते हैं क्योंकि वे मरीज़ के परिवारों के लगातार संपर्क में रहते हैं और उन्हें ज़्यादा करीब से जानते हैं।
हमने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में कई लोगों की मदद की है और अब तक हमने अच्छा किया है। हमारे पास कुछ बुरी खबरें भी आईं। लेकिन यह यात्रा का हिस्सा है, हमें इसे स्वीकार करना होगा।
इंग्लैंड जाने से पहले आपने आखिरी प्रतिस्पर्धी क्रिकेट जनवरी में सिडनी टेस्ट में खेला था। वह कूकाबुरा गेंद के ख़िलाफ़ था, जबकि काउंटी क्रिकेट में आप ड्यूक गेंद के ख़िलाफ़ खेले हैं। क्या आप इन दिनों गेंदों के बीच के अंतर को स्पष्ट कर सकते हैं? और इन अलग-अलग गेंदों से निपटने के लिए आप अपनी तकनीक में किस तरह का बदलाव करते हैं?
ऑस्ट्रेलिया में कूकाबुरा गेंद थोड़ी देर बाद नरम हो जाती है, लेकिन ड्यूक गेंद में पूरे दिन कुछ न कुछ मूवमेंट रहता है। ड्यूक गेंद में गेंदबाजों के लिए हमेशा कुछ न कुछ होता है और यही सबसे बड़ी चुनौती है। जब मैं अप्रैल में इंग्लैंड आया तो यहां काफी ठंड थी। यहां तक ​​​​कि अगर आपको लगता है कि आप सेट हो चुके हैं, तब भी आपको कोई गेंद अचानक से परेशान कर सकती है। जैसे जब मैं एसेक्स के ख़िलाफ़ 30 या इसी के आस-पास के किसी स्कोर पर आउट हुआ, तो मुझे लगा था कि विकेट बल्लेबाजी के लिए काफी अच्छा है और मैं पूरी तरह से सेट हो चुका हूं। लेकिन सख्त ड्यूक गेंद के अजीब व्यवहार के कारण मुझे आउट होना पड़ा।
जैमी पोर्टर ने एंगल बनाकर अंदर की ओर आती हुई गेंद डाली, तो मैं उसी लाइन पर गेंद को खेल रहा था लेकिन गेंद अचानक से ऑफ स्टंप की ओर मुड़ गई। यह एक ठीक-ठाक गेंद थी लेकिन गेंद के मूवमेंट ने मुझे आश्चर्यचकित कर दिया। इससे पहले के ओवर्स में गेंद लगातार अंदर की ओर आ रही थी, लेकिन वह गेंद अचानक से बाहर की ओर मुड़ गई।
2018 में द ओवल में आपके टेस्ट डेब्यू पर, आपके पहले साथी बल्लेबाज़ विराट कोहली थे। आपने बाद में बताया था कि कोहली ने आपको जेम्स एंडरसन और स्टुअर्ट ब्रॉड के इनस्विंगर का सामना करने के लिए टिप्स दिए थे। आपके काउंटी क्रिकेट के अनुभव के बाद क्या वे टिप्स अब भी उपयोगी हैं?
उस समय का माहौल अब की तुलना में अलग था। मैं युवा था और अपना पहला गेम खेल रहा था। मैं उस समय ज़रूरत से ज़्यादा आगे बढ़ रहा था। उन्होंने मुझसे कहा कि मैं सीधी गेंदों को और बेहतर तरीके से खेल सकता हूं। उन टिप्स से मुझे बहुत मदद मिली और मैंने उस पारी में अच्छा स्कोर किया था। लेकिन अब मुझे लगता है कि मैं आउटस्विंगर और इनस्विंगर को और बेहतर ढंग से खेल सकता हूं। अब मेरे खेल पर मेरा नियंत्रण बढ़ गया है। अब मुझे पता है कि मेरा ट्रिगर मूवमेंट क्या है।
अब आप इंग्लैंड में मिडिल स्टंप पर गार्ड लेते हैं?
हां, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम कहां खेल रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया में यह लेग स्टंप की ओर अधिक था क्योंकि वहां कोई अंतिम समय पर मूवमेंट नहीं होता है, इसलिए आप गेंद की लाइन के बगल से खेल सकते हैं। यहां इंग्लैंड में आपको जल्द से जल्द गेंद की लाइन में आना होगा और गेंद की मूवमेंट के कारण अपने ऑफ स्टंप को भी गॉर्ड करना होगा।
मैं अब मिडिल स्टंप पर गॉर्ड लेना शुरू करता हूं और गेंद आने तक ऑफ और मिडिल के बीच में खत्म करता हूं। उसी समय आपको यह भी ध्यान रखना होता है कि अगर यह स्टंप लाइन की गेंद है तो आपको उसे सीधा खेलना होगा।
क्योंकि ड्यूक गेंद देर-सवेर कभी भी मूवमेंट करती है, तो क्या आप कहेंगे कि बल्लेबाज़ी के लिए इंग्लैंड सबसे कठिन जगह है?
निश्चित रूप से, यहां यही सबसे बड़ी चुनौती है। बादलों पर भी काफी कुछ निर्भर करता है। जब धूप होती है, तो बल्लेबाज़ी करना थोड़ा आसान हो जाता है, लेकिन जब बादल छाए रहते हैं, तो गेंद पूरे दिन मूवमेंट करती है। कॉउंटी क्रिकेट के इस सीज़न की शुरुआत में मुझे इसी चुनौती का सामना करना पड़ा क्योंकि ठंड काफी अधिक थी, आसमान में अक्सर बादल रहते थे और गेंद काफी मूवमेंट करता था।
कॉउंटी क्रिकेट में ट्रेंटब्रिज में अपने डेब्यू मैच में आपने एक शानदार कैच लिया, उसके बाद एक भूल जाने वाला ओवर फेंका और फिर 23 गेंदों में डक पर आउट हुए। इस दौरान आपने स्टुअर्ट ब्रॉड के लगभग तीन ओवरों का सामना किया। क्या आप उस अनुभव के बारे में बात कर सकते हैं?
जब मेरी पारी शुरू हुई, उस समय खेल समाप्त होने की ओर था। हमें क़रीब नौ ओवर बल्लेबाज़ी करनी थी। हर बल्लेबाज़ की तरह मैं भी उन ओवरों को खेलकर अगली सुबह नए सिरे से शुरुआत करना चाहता था और मैंने ऐसा लगभग कर ही दिया था। जब मैं आउट हुआ तब दिन की सिर्फ़ सात गेंद ही शेष थी। वह [ब्रॉड] अच्छी गेंदबाजी कर रहे थे। वह तरोताज़ा थे और उसने तब तक कोई मैच नहीं खेला था। फ़्लडलाइट्स भी ऑन थी। मैं वास्तव में ज़्यादा सोच नहीं रहा था, मैं बस उनसे मुक़ाबला करने की कोशिश कर रहा था। उन्होंने अच्छी गेंदबाज़ी की और मैं उतना अच्छा नहीं खेल पाया, जितना मैं खेल सकता था।
ब्रॉड की जिस गेंद पर आप आउट हुए, वैसी गेंदों का सामना आपको टेस्ट सीरीज़ के दौरान लगातार करना है। उस गेंद के बारे में आप कुछ और बता सकते हैं
मुझे लगा कि वह इतनी फ़ुल गेंद थी कि मैं असानी से ड्राइव खेल सकता था। लेकिन फिर से, इंग्लैंड में आपको अपने शॉट चयन में बहुत सावधान रहना होता है। भारत में, अगर गेंद आप से दूर भी रह जाती है, तो आप उसे ऑफ़ साइड की दिशा में पुश कर सकते हैं या फिर उसे ऑन दी अप हवा में खेलकर सर्किल के फील्डर्स को भेद सकते हैं। अब मुझे कभी भी वैसी गेंद खेलने को मिलेगी, तो मैं जितना हो सके देर से खेलने का प्रयास करूंगा।
काउंटी क्रिकेट में यह मेरी पहली पारी थी। मैंने सीखा कि मुझे थोड़ी देर से खेलना चाहिए। दूसरे मैच में एसेक्स के ख़िलाफ़ मैंने 30 और 50 का स्कोर किया। एसेक्स मौजूदा चैंपियन हैं और उनके पास पीटर सिडल और साइमन हार्मर की अगुवाई वाला एक अच्छा गेंदबाज़ी आक्रमण है। मुझे लगता है कि मैंने अच्छी बल्लेबाज़ी की, लेकिन मुझे इसे बड़े स्कोर में बदलना चाहिए था।

नागराज गोलापुड़ी ESPNcricinfo में न्यूज़ एडिटर हैं,अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी में सब एडिटर दया सागर ने किया है।