सितंबर में इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) फिर से शुरू होने के बाद जब वह कोलकाता नाइट राइडर्स के लिए पारी की शुरुआत करने के लिए निकले, तो ज़्यादातर लोगों ने वेंकटेश अय्यर के बारे में नहीं सुना होगा, लेकिन अब ऐसा नहीं है। केकेआर के सीज़न को फ़र्श से अर्श तक लाने में उन्होंने जो भूमिका निभाई, उसके बाद तो क़तई नहीं। यह सिर्फ़ रन नहीं थे, बल्कि उनका रवैया और उनका दृष्टिकोण था, जिसे अब न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ टी20 अंतर्राष्ट्रीय के लिए राष्ट्रीय टीम में चयन के साथ पुरस्कृत किया गया है। 27 वर्षीय अय्यर ने इस साक्षात्कार में अपनी यात्रा, एक घरेलू खिलाड़ी के संघर्ष, अपनी सफलता, बदलती धारणाओं, अपने आदर्शों के बारे में बात की है।
क्या यूएई में दूसरे हाफ़ में मिले मौके़ ने आपको चौंका दिया?
मुझे लगता है कि मैं पहले लेग में भी खेल सकता था, बैज़ [ब्रेंडन मैक्कलम] ने मेरे रोल के बारे में मुझसे बात की थी, लेकिन बदकिस्मती से मैं खेल नहीं पाया क्योंकि शीर्ष क्रम में जगह नहीं थी, लेकिन दूसरे लेग में बैज़ को लगा कि शीर्ष क्रम में बदलाव करना चाहिए। उन्हें लगा कि हमें एक मज़बूत और स्पष्ट इरादे की ज़रूरत है, एक ऐसा खेलने का तरीक़ा जहां पर विपक्षी टीम पर दबाव बनाया जा सके और मुझे ऐसा करने को कहा गया। सच कहूं तो सभी अभ्यास मैचों में जो मैंने खेले, मैंने अच्छे रन बनाए, तेज़ी से बनाए और बैज़ को मेरा यह इरादा बेहद पसंद आया। तो दूसरे लेग की शुरुआत में उन्होंने मुझसे कहा कि मैं खेलने जा रहा हूं। नेट्स और अभ्यास मैच मेरे लिए फ़ायदेमंद साबित हुए, जिससे मैं इस रोल में खुद को ढाल सका।
आपको आईपीएल में सफलता शीर्ष क्रम पर मिली, लेकिन भारतीय टी20 टीम में आपको फ़िनिशर की भूमिका निभानी पड़ सकती है। आप कितने तैयार हैं?
मध्य क्रम या निचले क्रम पर बल्लेबाज़ी करना मेरे लिए नया नहीं है। मैंने मध्य प्रदेश (एमपी) के साथ ना केवल आयु वर्ग क्रिकेट बल्कि सीनियर स्तर पर भी इस क्रम पर बल्लेबाज़ी की है और इसे मैं सर्वोच्च स्तर मानता हूं। तो मेरे लिए इस क्रम पर ढलना क़तई मुश्किल नहीं होने जा रहा है। एक चीज़ है, आपको अपने शरीर को तैयार करना लेकिन दूसरी चीज़ है आपको इस क्रम के लिए ख़ुद के दिमाग़ को तैयार करना और मैं पहले ही यह स्वीकार कर चुका हूं कि मैं किसी भी रोल के लिए तैयार हूं जो मुझे दिया जाएगा। तो मैं मानसिक रूप से तैयार हूं कि बल्लेबाज़ी या गेंदबाज़ी में जो भी रोल मुझे दिया जाएगा उसमें मैं अपना 100 प्रतिशत दूंगा।
पिछले वर्ष, आपने घरेलू क्रिकेट में पहली बार ओपनिंग की थी। तो 12 महीनों में बहुत कुछ बदल गया है आपके लिए।
मेरी सफलता के पीछे सबसे बड़ा हाथ चंदू सर [चंद्रकांत पंडित, एमपी कोच] का रहा है। जिस तरह से उन्होंने मुझे संभाला, उनके पास दुनिया का बड़ा अनुभव है। उन्होंने अपने सामने हज़ारों क्रिकेटरों को उभरते हुए देखा है। जिस तरह से उन्होंने मुझे और एमपी की टीम को संभाला वह वाक़ई क़ाबिल-ए-तारीफ़ है। हम अब ऐसी जगह पर हैं जहां पर उनके लिए ट्रॉफ़ी जीतना चाहते हैं ना की अपने लिए। इस स्तर की प्रतिबद्धता वह दिखा रहे हैं।
मुझे लगता है कि कभी-कभी रेजिमेंटल भूमिका (सख़्त होना) निभाना अच्छा होता है, जहां वह सीधे हमसे चीज़ें करने को कहते हैं, ऐसे में आपने दिमाग़ में कोई शंका नहीं रहती है। जब उन्होंने मुझसे ओपनिंग करने को कहा, तब मेरे दिमाग़ में कुछ नहीं था, मुझे कोई संदेह नहीं था। मैं बस जो कोच ने कहा वह करने के लिए तैयार हो गया था और इससे मुझे फ़ायदा मिला।
आपको अपने टीम इंडिया में चयन के बारे में कब पता चला और आप उस समय क्या कर रहे थे?
हम उस दिन केरल से मैच हार गए थे, मैं बस अपने कमरे में बैठकर सोच रहा था कि क्या ग़लत हुआ। तभी आवेश ख़ान मेरे कमरे आए और मुझे ख़बर दी, मुझे बधाई दी और बताया कि उनका भी चयन टीम में हो गया है। तो मुझे उसके लिए बहुत ज़्यादा खुशी थी। मैं कई सालों से उसको देखते आया हूं, उससे ज़्यादा कोई डिज़र्व नहीं करता है। तो मैं उसके लिए बहुत ख़ुश था। तब मैंने अपने पेरेंटस और बहन को कॉल किया कि मेरा चयन हो गया है। इसके बाद बस मेरी टीम के सारे लोग मुझसे मिलने आए और मुझे बधाई दी। तो हां वह एक अच्छा छोटा सा मोमेंट था मेरे लिए कि हां अब चीज़ें मेरे लिए शुरू हो रही हैं।
आवेश और आप अच्छे दोस्त हैं और आप दोनों ही एक साथ टीम में चुने गए हैं।
आवेश के साथ मेरी बचपन में कोई दोस्ती नहीं थी, लेकिन जैसे ही हम सीनियर क्रिकेट खेलने लगे तो हम अचानक रूममेट बनने लगे। हां, उसके बाद से हमारी दोस्ती अच्छी बढ़ी। सबसे अच्छी बात यह है कि हम लोग हमेशा एक दूसरे की क्रिकेट को बेहतर करने पर ही चर्चा करते हैं। वह भी मेरी तरह है, जो केवल मैदान में क्रिकेट के बारे में सोचता है और मैदान के बाहर आम ज़िंदगी जीना पसंद करता है। हमारे बीच में क्रिकेट की बातें होती हैं, लेकिन बहुत कम होती हैं, हालांकि जब भी होती हैं तो यह बहुत फ़लदायी बातचीत होती है। मुझे लगता है कि उसकी प्रगति में, जैसा मैंने आपको बताया भी कि उससे ज़्यादा ख़ुशी मुझे हुई, क्योंकि मैंने उसकी प्रगति देखी है। उसने जो कड़ी मेहनत की है तो बड़ा अच्छा लगता है जब लोग बात करते हैं आवेश के बारे में।
आप टी20 विश्व कप में भारतीय टीम के साथ नेट बोलर के तौर पर भी रहे, क्या सीखने को मिला वहां पर?
मैं दो नेट सेशन टीम के साथ रहा। काफ़ी कुछ सीखने को मिला। मेरी कोच से बात हुई, माही भाई, विराट, बुमराह से बात हुई। सभी ने एक ही बात कही कि बल्लेबाज़ी के साथ गेंदबाज़ी पर भी फ़ोकस करना है। दोनों अलग चीज़ हैं, लेकिन अगर दोनों पर फ़ोकस किया तो एक खिलाड़ी के तौर पर टीम के लिए बहुत अच्छा होगा। तो मैंने भी बुमराह से गेंदबाज़ी पर बातचीत की कि मैं गेंदबाज़ी करते हुए यह सोचता हूं आप क्या सोचते हैं, क्योंकि मैं बल्लेबाज़ के तौर पर तो वहां गया नहीं था, गेंदबाज़ के तौर पर गया था तो वहां मेरी बुमराह से, भरत अरुण सर से बात हुई कि कैसे अप्रोच करना है गेंदबाज़ी पर, ख़ासतौर पर टी20 और वनडे प्रारूप में और डेज़ क्रिकेट में कैसे गेंदबाज़ी में अंतर होना चाहिए। तो दो दिन तक मैंने वहां पर अच्छा समय बिताया।
धोनी और सौरव गांगुली के आप फ़ॉलोअर रहे हैं। तो दोनों से मुलाक़ात के बारे में बताइए।
मैं ही माही भाई से मिलने गया था। मुझे कोई अवार्ड लेना था मैच के बाद और वह भी सीएसके के कप्तान के तौर पर वहीं खड़े हुए थे तो उन्होंने एक ही चीज़ कही कि आप अपनी आंखें और दिमाग़ सीखने के लिए खोले रखें। जब आप एक खिलाड़ी के तौर पर खेल रहे हैं तो आपको हर मैच से कुछ ना कुछ सीखने को मिलेगा। वैसे तो मैं भी यही सोचकर गया था कि मुझे हर मैच में कुछ सीखना है, लेकिन जब किसी बड़े आदमी से वह बात आती है तो वाक़ई अच्छा लगता है। अच्छा लगा उनसे बात करके और दादा का तो मैं बचपन से फ़ैन रहा हूं, उनसे तो जब भी बात करता हूं तो मैं भूल ही जाता हूं कि कहना क्या है, क्योंकि मेरे लिए वो फ़ैन ब्वॉय मोमेंट हो जाता है। इस बार भी जब मैं मिला तो मैंने बस यही कहा कि दादा मैं आपका बहुत बड़ा फ़ैन रहा हूं। उन्होंने मुझे शुभकामनाएं दी।
कई पूर्व खिलाड़ियों ने आपकी तारीफ़ की। तो किसी तारीफ़ को आपने संजोकर रखा है?
एक चीज़ जो हरभजन सिंह ने सीधे मेरे मुंह पर कही जब आईपीएल शुरू हुआ था। मैं उस समय सेट अप का हिस्सा भी नहीं था और जब उन्होंने मुझे कुछ नेट सेशन में देखा तो उन्होंने कहा, "तुम इस सीज़न केकेआर की खोज होगे, मुझे तुम पर पूरा विश्वास है और जब तुम्हें मौक़ा मिलेगा तो वाकई तुम कर दिखाओगे।" सच कहूं तो मुझे विश्वास नहीं हुआ। मैंने सोचा कि क्यों यह मुझे कह रहे हैं, जबकि उन्होंने अभी तक को मुझे अभ्यास मैचों में नहीं देखा। मुझे लगा कि यह बस उनके अंदर का एक अच्छा आदमी बोल रहा है, जिससे कि मैं सहज़ हो सकूं, लेकिन मैं ख़ुश हूं कि उनकी यह बात मेरे लिए सच साबित हो गई। यह कुछ ऐसा है जो मेरे दिल को छू गया।
तीन महीने पहले, आप कई लोगों के लिए अनजान थे। अब आप भारत में पदार्पण के कगार पर हैं। आप इस तेज़ प्रगति को कैसे देखते हैं?
यह उनके लिए बदला होगा जो मुझे अब देख रहे हैं। मैं एक दशक से ज़्यादा से मेहनत कर रहा हूं। इसीलिए कि बस मैं आईपीएल नहीं खेल रहा था, मैं टीम इंडिया के दरवाज़े नहीं खटखटा रहा था तो इसका मतलब यह नहीं था कि मैं मेहनत नहीं कर रहा था। मैं घरेलू क्रिकेट खेल रहा था, तो मुझे लगता है कि यह मेरी बड़ी उपलब्धि थी। लगातार घरेलू क्रिकेट खेलना बड़ी चीज़ है, जहां काफ़ी प्रतिस्पर्धा होती है। जो लोग मुझे अभी जानना शुरू किए हैं, उन्हें लगता है कि मैंने बहुत जल्दी सफलता पाई है। मुझे लगता है कि मैंने बस हर घरेलू क्रिकेटर की तरह मेहनत की है। यह बस ऐसा था कि यह खिलाड़ी खेलने का हक़दार है लेकिन नहीं खेल रहा था। मुझे नहीं लगता है कि मुझे जल्दी सफलता मिली है, इसके पीछे बड़ी मेहनत है, लेकिन मैं ख़ुश हूं कि मुझे मौक़ा मिला है और मैं लंबे समय तक इस स्तर पर खेलने का प्रयास करूंगा।
आपको शिक्षा और क्रिकेट को साथ लेकर चलना पड़ा। आपने क्रिकेट को आगे बढ़ाने के लिए एक आकर्षक नौकरी को ठुकरा दिया, क्या तब यह एक बड़ा जोखिम लगता था?
मुझे लगता है कि दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमें हमारे नंबरों से आंका जाता है, लेकिन मैंने कभी नहीं सोचा कि मैं कभी ज़्यादा नंबर लाऊं या ज़्यादा रन बनाऊं लोगों को दिखाने के लिए। मैं बहुत भाग्यशाली हूं कि मैं ऐसी सोच रखता हूं जहां पर लोगों की पहचान नंबर से नहीं होती है। मुझे लगता है कि मैं हमेशा कोशिश करना चाहता हूं, एक प्रक्रिया पर चलना चाहता हूं। मैंने कभी नहीं सोचा कि मुझे कारपोरेट ऑफ़िसर होना चाहिए था या सीए होना चाहिए था। मैं बस एक परीक्षा पर एक समय ध्यान लगाता हूं और अगर यह क्रिकेट है तो मैं एक मैच पर एक समय ध्यान लगाता हूं, इससे अलग कुछ नहीं है।
क्रिकेट में आपका पसंदीदा व्यक्ति कौन रहा है?
मेरे क्लब के कोच दिनेश शर्मा मेरी यात्रा की आधारशिला रहे हैं। जिस तरह से उन्होंने मुझे संभाला है, मैं उन्हें अपने कोच के रूप में पाकर धन्य हूं। उनकी सबसे अच्छी बात यह है कि वह मुझे हमेशा ज़मीन से जुड़ा रखते हैं। चाहे मैं उच्चतम स्तर या क्लब स्तर पर खेला हो, वह मेरे साथ समान व्यवहार करेंगे और मुझे मूल बातों के बारे में बताएंगे, जो बहुत महत्वपूर्ण है। जब इंदौर में मेरा समर्थन करने वाला कोई नहीं था, तो उन्होंने अपना हाथ बढ़ाया था और मुझसे कहा कि मैं तुम्हें किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में तैयार करूंगा जो आपको संभावित रूप से होना चाहिए, जो एक कोच की ओर से एक बहुत बड़ा बयान है। मैंने वास्तव में उन पर भरोसा किया और एक समय यह रिश्ता ऐसा हो गया जहां उन्होंने जो कुछ भी कहा, मुझे लगा कि अगर मैंने कोशिश की तो मैं अच्छा करूंगा। एक कोच से ज़्यादा, वह एक पिता के समान, एक शुभचिंतक रहे हैं, जिन्होंने निस्वार्थ भाव से मेरी प्रगति के लिए सब कुछ दिया है।
आपकी मां ने हमसे कहा था कि आप बचपन में कई बार क्लब से मैदान तक किटबैग के साथ पैदल आते थे। अपने संघर्ष के बारे में बताएं।
मैं ही नहीं बस सभी क्रिकेटरों ने ही ऐसा संघर्ष किया है। मैं यह नहीं कहना चाहूंगा कि मैं स्पेशल हूं और सिर्फ़ मैंने ही संघर्ष किया है। मैंने तो ख़ुद से ज़्यादा संघर्ष करते लोगों को देखा है, तो उनके सामने तो मेरा संघर्ष कुछ भी नहीं है। हर कोई लड़का जो देश के लिए खेलना चाहता है उसको संघर्ष तो करना ही पड़ता है, हां बस संघर्ष किसी का ज़्यादा होता है तो किसी का कम। और हां उस समय संसाधन तो होते नहीं थे कि मैं ऑटो से जाऊं या कैब से जाऊं। तो तब कुछ सूझता नहीं था क्योंकि खेलने का जोश इतना था कि किटबैग को रगड़कर सड़क पर चल लेते थे और हां इसमें कोई बड़ी बात नहीं है, यह तो सभी करते हैं, सभी क्रिकेटर करते हैं। जो उच्च स्तर पर खेलना चाहते हैं और उनके पास संसाधन नहीं है तो वह ऐसा करते हैं, लेकिन इतना ज़रूर है कि मैदान पर आकर उनकी भूख बढ़ती है खेल को लेकर। मैं तो ख़ुद को भाग्यशाली मानता हूं कि शुरुआती दिनों में मुझे संघर्ष करना पड़ा, तभी क्रिकेट की अहमियत समझा गया।
दो महीने में आपकी ज़िंदगी में बहुत कुछ हुआ है। ज़िंदगी कितनी बदल गई है?
यह वाक़ई एक बदलाव रहा है, ऐसा बदलाव जिसके बारे में मैंने उम्मीद नहीं की थी। यह एक ख़ूबसूरत बदलाव है, लेकिन मुझे इसका सामना करना मुश्किल नहीं लगा। मैं उस तरह का इंसान नहीं हूं जो हर जगह जाए और बहुत सारे लोगों से बात करे। मैं अपने आप को सीमित रखता हूं, उस तरह से बहुत रिज़र्व हूं, लेकिन जब भी मैं बोलता हूं, मैं सुनिश्चित करता हूं कि मैं अपना दिमाग़ लगाकर बोलूं, शिक्षित हूं तो मुझे लगता है कि मुझे सही चीज़ें सामने लानी चाहिए, बयानों का सही विकल्प ज़रूरी है, लेकिन बदलाव की बात करें तो यह क्षेत्र के साथ आता है। मैं इस पर ज़्यादा ध्यान नहीं दे रहा हूं, सबसे महत्वपूर्ण काम है खेलना और इसे अच्छे से करना।
शशांक किशोर और निखिल शर्मा ESPNcricinfo में सीनियर सब एडिटर हैं।