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विश्व कप टॉप 5 : सचिन तेंदुलकर की स्टंपिंग, युवराज सिंह की हुंकार और अन्य भारत-ऑस्ट्रेलिया यादें

8 अक्तूबर को भारत-ऑस्ट्रेलिया मैच से पहले विश्व कप इतिहास में इन दोनों के बीच पांच यादगार मैचों पर एक झलक

Yuvraj Singh lets out a victory cry, India v Australia, 2nd quarter-final, Ahmedabad, World Cup 2011, March 24, 2011

2011 में युवराज सिंह ने ऑस्ट्रेलिया को हराने में बड़ी भूमिका निभाई  •  AFP

मेज़बान भारत अपनी 2023 विश्व कप अभियान की शुरुआत 8 अक्तूबर को चेन्नई में ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध करने जा रहा है। 2011 का चैंपियन भारत एक बार फिर इस ख़िताब पर कब्ज़ा करते हुए तब से अब तक मेज़बानों की जीत के सिलसिले को बरक़रार रखना चाहेगा। वहीं पांच बार चैंपियन रह चुका ऑस्ट्रेलिया उसी देश में फिर से विजयी होना चाहेगा जहां ऐलन बॉर्डर की टीम ने 1987 में अपना पहला विश्व कप जीता था।

वैसे इन दोनों प्रतिद्वंद्वियों के बीच भी विश्व कप मैचों में एक ज़बरदस्त राइवलरी रही है। आज हम आपको इनके टॉप फ़ाइव यादगार मैचों के बारे में याद दिलाते हैं।

5. एक चेन्नई थ्रिलर, 1987

इत्तेफ़ाक़ से 1987 विश्व कप में भी दोनों टीमें अपने पहले मैच में चेन्नई में भिड़े थे और यह मुक़ाबला उस साल के 9 अक्तूबर को हुआ था। यह टॉम मूडी और नवजोत सिद्धू का डेब्यू भी था।

टॉस जीतकर कपिल देव ने गेंदबाज़ी ली, लेकिन जेफ़ मार्श ने 141 गेंदों पर 110 बनाकर ऑस्ट्रेलिया पारी को ऐंकर किया। डीन जोंस ने केवल 35 गेंदों पर 39 बनाए, लेकिन मध्यक्रम ने निराश किया। फिर भी भारत के सामने 271 का लक्ष्य आया।

सुनील गावस्कर (32 गेंदों पर 37), कृष्णामचारी श्रीकांत (83 गेंदों पर 70) और सिद्धू (79 गेंदों पर 73) ने तेज़ शुरुआत दिलाते हुए भारत को 200 के पार केवल दो विकेट के नुक़सान पर पहुंचाया। लेकिन फिर तेज़ गेंदबाज़ क्रेग मैक्डरमट ने सिद्धू, मोहम्मद अज़हरउद्दीन और दिलीप वेंगसरकर को तेज़ी से पवेलियन पहुंचाया और पारी लड़खड़ाई। अंत में युवा स्टीव वॉ ने कमाल की गेंदबाज़ी की और भारत आख़िर के चार ओवर में 15 नहीं बना सका और एक रन से चूका।

वैसे मैच का सबसे बड़ा टर्निंग प्वॉइंट शायद मध्यांतर के दौरान आया। जोंस के शॉट को अंपायर (जो इंग्लैंड और वेस्टइंडीज़ से थे) ने चौका दिया था और ऑस्ट्रेलियाई ख़ेमा ज़िद पर अड़ा था कि उसे छक्का देना चाहिए था। रवि शास्त्री गेंद के क़रीब थे और उनका कहना था कि गेंद टप्पा खाकर बाउंड्री पारी गई थी लेकिन कपिल ने स्पोर्टिंग अंदाज़ में माना कि ऑस्ट्रेलिया को छह मिलें। अगर वह इसे नहीं स्वीकारते तो भारत एक विकेट से विजयी होता।

4. चेम्सफ़र्ड के जादूगर, 1983

1983 विश्व कप में भारत और ऑस्ट्रेलिया वेस्टइंडीज़ और ज़िम्बाब्वे के साथ एक ही ग्रुप में थे। टनब्रिज वेल्स में कप्तान कपिल की करिश्माई पारी के बाद भारत एसेक्स के काउंटी ग्राउंड में पहुंचा, जहां मामला आसान था। जो जीतता वह दो बार विजेता वेस्टइंडीज़ के साथ सेमीफ़ाइनल्स पहुंचता।

ऑस्ट्रेलिया के लिए नियमित कप्तान किम ह्यूज़ अस्वस्थ्य थे और डेविड हुक्स को कप्तान बनाया गया था। 60 ओवर के मुक़ाबले में भारत की 247 ऑल आउट की पारी एक वास्तविक टीम एफ़र्ट थी। सुनील गावस्कर और नंबर 11 बलविंदर संधू के अलावा सब ने 10 या उससे अधिक रन बनाए।
यशपाल शर्मा (40) और अतिरिक्त रन (37) ने सबसे बड़े योगदान दिए, लेकिन संदीप पाटिल (30), कपिल (28), श्रीकांत (24) और रॉजर बिन्नी (21) ने अच्छा साथ दिया।

ऑस्ट्रेलियाई पारी में भारतीय सीम गेंदबाज़ों को परिस्थितियों से मदद मिलने लगी और ऑस्ट्रेलिया 46/1 से 78/7 तक लुढ़कते हुए नहीं संभला और 118 के बड़े अंतर से हारा। बिन्नी इस विश्व कप के सर्वाधिक विकेट लेने वाले गेंदबाज़ बने थे और इस मैच में उनके 4/29 और मदन लाल के 4/20 बेहद क़ीमती योगदान साबित हुए।

3. जब तेंदुलकर का बल्ला गरज कर बरसा, 1996

मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में मार्क वॉ (126) और मार्क टेलर (59) की सलामी जोड़ी ने 103 रन तेज़ गति से बनाए और ऑस्ट्रेलिया को शानदार शुरुआत दिलाई। वेंकटेश प्रसाद के आख़िरी ओवर में ऑस्ट्रेलिया ने चार विकेट बिना कोई रन बनाते हुए गंवाए। भारत ने आख़िर के सात विकेट केवल 26 रन देते हुए ऑस्ट्रेलिया को 258 ऑल आउट किया, जो एक सपाट पिच पर चेज़ होने लायक स्कोर लग रहा था।

जवाबी हमले में सचिन तेंदुलकर कड़क फ़ॉर्म में नज़र आए और वह ग्लेन मैक्ग्रा को शुरुआती सम्मान दिखाने के बाद उन पर बरस पड़े। तेंदुलकर के अलावा शीर्ष चार के और तीनों ने कुल 11 ही बनाए, लेकिन उन्हें संजय मांजरेकर का साथ मिला। ऐसे में मार्क वॉ की चतुराई ने एक बार फिर मैच का पासा पलटा।
तेंदुलकर, वॉ की पार्ट-टाइम ऑफ़-स्पिन को अटैक करने आगे बढ़ते हुए आए और गेंदबाज़ ने लेग साइड पर वाइड लेकिन तेज़ गेंद डाली। इयन हीली ने गेम को रीड करते हुए स्टंपिंग को अंजाम दिया। तेंदुलकर (90) के अलावा इस मैच में एक और स्टार रहे ऑस्ट्रेलियाई तेज़ गेंदबाज़ डेमियन फ़्लेमिंग (5/36), इत्तेफ़ाक़ से दोनों का जन्मदिन एक ही दिन (24 अप्रैल) पड़ता है।

2. गाबा का ड्रामा, 1992

1992 विश्व कप में भारत इंग्लैंड से एक क़रीबी हार और श्रीलंका से रद्द हुए मैच के बाद ब्रिस्बेन पहुंचा मेज़बान से भिड़ने, जो ख़ुद टूर्नामेंट में न्यूज़ीलैंड और साउथ अफ़्रीका से अप्रत्याशित हारों के चलते अच्छी शुरुआत से वंचित थे। हीली चोटिल होने के कारण डेविड बून को कीपिंग की ज़िम्मेदारी मिली थी। ऑस्ट्रेलिया ने पहले बल्लेबाज़ी करते हुए 237 बनाए, जिसमें डीन जोंस की 90 की पारी अहम थी।

जवाब में भारत एक विकेट पर 45 की स्कोर पर था, जब बारिश के चलते मैच में रुकावट आई। उनकी पारी में तीन ओवर घटे, लेकिन उस साल के अजीब नियमों के अनुसार ऑस्ट्रेलिया के सबसे कम स्कोरिंग वाले ओवर के रन (दो रन) ही लक्ष्य से काटे गए।
कप्तान अज़हर ने 93 की आक्रामक पारी खेली और मांजरेकर ने भी 100 से अधिक का स्ट्राइक रेट रखते हुए 47 बनाए, हालांकि दोनों खिलाड़ी रन आउट हुए। मूडी के आख़िरी गेंद पर भारत को चार रन चाहिए थे, जवागल श्रीनाथ ने डीप मिडविकेट की दिशा में बड़ा शॉट लगाया, लेकिन स्टीव वॉ से कैच छूटा। नॉन-स्ट्राइकर वेंकटपति राजू को लगा की गेंद छक्के के लिए गई है और वह श्रीनाथ को बधाई लेने के लिए क्षणभर के लिए रुके। रिटर्न थ्रो बून के पास आया और राजू तीसरा रन लेते-लेते रन आउट हुए। ऑस्ट्रेलिया एक बार फिर 1 रन से मैच जीता, हालांकि आजकल प्रयोग में रहने वाली DLS प्रणाली के तहत जीत भारत की ही होती।

1. युवराज की हुंकार, 2011

शीर्ष स्थान हम उस मैच के लिए रिज़र्व करते हैं जो एक उम्र से अधिक हर भारतीय समर्थक को याद रहेगा। ऑस्ट्रेलिया 1996 के बाद कोई नॉक-आउट मैच नहीं हारा था और तीन बार लगातार विश्व कप विजेता के तौर पर अहमदाबाद में इस क्वार्टरफ़ाइनल के लिए उतरा था। रिकी पोंटिंग ने टीम के वरिष्ठ सदस्य और कप्तान के रूप में ज़िम्मेदाराना बल्लेबाज़ी करते हुए 104 बनाए और टीम को 260 के स्कोर तक पहुंचाया। जवाब में सचिन तेंदुलकर (53) और गौतम गंभीर (50) ने अच्छी नींव रखी, लेकिन जब भारत का पांचवा विकेट गिरा तब जीत के लिए लगभग रन-अ-बॉल 74 रन बचे थे। आनेवाले बल्लेबाज़ी में आर अश्विन के बाद हरभजन सिंह, ज़हीर ख़ान और मुनाफ़ पटेल ही बचे थे। ऐसे में युवराज सिंह (65 गेंदों पर 57 नाबाद) और सुरेश रैना (28 गेंदों पर 34 नाबाद) ने स्थिरता बनाए रखा और ऑस्ट्रेलिया को 1992 के बाद पहली बार फ़ाइनल से पहले विश्व कप से बाहर का रास्ता दिखाया।

देबायन सेन ESPNcricinfo में सीनियर सहायक एडिटर और स्थानीय भाषा लीड हैं