मध्य प्रदेश 536 (यश 133, रजत 122, शुभम 116, शम्स 5-173) और 108-4 (हिमांशु 37, रजत 30*) ने मुंबई 374 (सरफ़राज़ 134, यशस्वी 78, गौरव 4-106) और 269 (सुवेद 51, सरफ़राज़ 45, कार्तिकेय 4-98) को 6 विकेट से दी मात
रविवार को मध्य प्रदेश के तौर रणजी ट्रॉफ़ी को एक नया चैंपियन मिल गया, जब उन्होंने 41 बार की चैंपियन मुंबई को छह विकेट से रणजी ट्रॉफ़ी 2021-22 के फ़ाइनल में शिकस्त दी। 69 साल पहले ने होल्कर ने ज़रूर इस ख़िताब को जीता था लेकिन मध्य प्रदेश ने पहली बार इसपर अपना नाम लिखा है। इससे पहले 1998-99 में मध्य प्रदेश ख़िताब जीतने के बेहद क़रीब ज़रूर आए थे लेकिन तब फ़ाइनल में उन्हें हार नसीब हुई थी।
मध्य प्रदेश को ये जीत बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम में पांचवें दिन टी से कुछ देर पहले मिली, जब
रजत पाटीदार ने सरफ़राज़ ख़ान की गेंद को प्वाइंट की तरफ़ खेलते हुए एक रन लिया और लक्ष्य पूरा किया। पाटीदार ने पहली पारी में 122 रन बनाए थे और इस जीत में वह पारी बेहद अहम रही, दूसरी पारी में वह 34 रन पर नाबाद रहे।
मुंबई के गेंदबाज़ों के पास 107 रन के अंदर मध्य प्रदेश को ऑलआउट करने का लक्ष्य था जो बेहद मुश्किल था। हालांकि अनुभवी धवल कुलकर्णी ने तीसरे ओवर में ही पहली पारी के शतकवीर यश दुबे को पवेलियन की राह दिखा दी थी। लेकिन मध्य प्रदेश पर कहीं से दबाव नहीं दिख रहा था, वह आसानी से रन चुरा रहे थे और ढीली गेंदों पर बाउंड्री बटोर रहे थे।
बड़े शॉट्स के प्रयास में हिमांशु मंत्री और पार्थ साहनी का विकेट ज़रूर गिरा लेकिन कभी भी ऐसा नहीं लगा कि एमपी संकट में हो। पाटीदार के शॉट्स का स्टेडियम में बैठे दर्शक ख़ूब मज़ा ले रहे थे और आरसीबी-आरसीबी की गूंज सुनाई दे रही थी।
इससे पहले मुंबई का बड़ा स्कोर खड़ा करने का सपना
कुमार कार्तिकेय ने चकनाचूर कर दिया था, कार्तिकेय ने चार विकेट झटके और मुंबई को खुलकर खेलने की इजाज़त नहीं दी।
सरफ़राज़ ख़ान स्वीप का अच्छा इस्तेमाल ज़रूर कर रहे थे और एक बार फिर पचासा पार करने के क़रीब आ गए थे। लेकिन 45 रन पर बड़ी हिट की कोशिश में वह बाउंड्री लाइन पर लपके गए। उन्हें पार्थ साहनी ने अपना शिकार बनाया, सरफ़राज़ ने इस सीज़न 982 रन बनाए। जो दूसरे स्थान पर मौजूद रजत पाटीदार से 354 रन ज़्यादा है।
सरफ़राज़ के आउट होने के बाद साफ़ हो गया था कि अब मुंबई की आख़िरी उम्मीद भी ख़त्म हो गई है, पूरी टीम कुछ ही देर बाद 269 रन पर ढेर हो गई।
108 रन का लक्ष्य हासिल करते ही मध्य प्रदेश ने इतिहास रच दिया था और पूरा ख़ेमा ख़ुशी से झूम उठा था। पिछले पांच दिन से एमपी के ड्रेसिंग रूम में जो शख़्स चुपचाप और गंभीर नज़र आते थे, वह भी अब जश्न मना रहे थे। जी हां, एमपी के कोच चंद्रकांत पंडित ने 1998-99 में वह दौर भी देखा था जब ट्रॉफ़ी उनके हाथ में आते-आते रह गई थी। लेकिन इस बार कोच के तौर पर उन्होंने टीम को चैंपियन बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।