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स्कूल क्रिकेट से रणजी फ़ाइनल: सरफ़राज़-अरमान की जय-वीरू जोड़ी का सफ़र

स्कूली क्रिकेट की प्रतिस्पर्धा अब गहरी दोस्ती में बदल गई है

Sarfaraz Khan and Armaan Jaffer strike a pose after Mumbai's win, Mumbai vs Uttar Pradesh, Ranji Trophy 2021-22, 2nd semi-final, Bengaluru, 5th day, June 18, 2022

2008 में इस जोड़ी की मुलाक़ात हुई थी  •  ESPNcricinfo Ltd

मुंबई के स्कूली क्रिकेट और 'मैदान' में खेलने वाले खिलाड़ियों में प्रतिस्पर्धा अक्सर देखने को मिल जाती है। खिलाड़ियों के 200, 300, 500 रन बनाने की ख़बरें अक्सर क्रिकेट के गलियारों में गूंजती रहती हैं। इतने रन बनाने वाले ही खिलाड़ी मुंबई के भविष्य के खिलाड़ी बनकर उभरते हैं, लेकिन इन खिलाड़ियों में स्कूल क्रिकेट के समय में ग़जब की प्रतिस्पर्धा देखने को मिलती है। ऐसी प्रतिस्पर्धा एक समय साथ में क्रिकेट शुरू करने वाले मुंबई रणजी टीम के सदस्य सरफ़राज़ ख़ान और अरमान जाफ़र में भी देखने को मिलती थी। हालांकि इतने सालों बाद अब वह प्रतिस्पर्धा जय-वीरू की जोड़ी में बदल गई है।
दोनों ने अपने क्रिकेट करियर की शुरुआत 2008 में की थी। प्रतिस्पर्धा इतनी थी कि अगर एक खिलाड़ी 200 बनाता था तो दूसरे पर उससे ज़्यादा रन बनाने का दबाव होता था। एक 300 बनाता था तो दूसरे पर 400 रन बनाने का दबाव रहता था। यह दबाव उन पर ही नहीं, पीछे परिवार का भी होता था। दोनों के ही पिता उनके कोच रहे हैं। ऐसे में यह दबाव लाज़मी हो जाता है। तभी तो 2010 में अंडर 14 जाइल्स शील्ड ट्रॉफ़ी में 498 रन बनाकर अरमान का नाम पहली बार सुर्खियों में आया था। ऐसा ही कुछ इससे पहले 2009 में सरफ़राज़ ने किया था, जब उन्होंने हैरिस शील्ड कप में 421 गेंद में 439 रन बनाकर सचिन तेंदुलकर का 45 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया था।
सरफ़राज़ ने कहा, "2008 में पहली बार मेरी अरमान के साथ मुलाकात हुई थी। ये पहले से ही रिज़वी स्कूल में था और मैं एक साल बाद आया था। वहां से हम दोनों एक साथ खेलने लगे। यह कीपिंग पैड पहनकर बल्लेबाज़ी करता था क्योंकि बैटिंग पैड बहुत बड़े होते थे। दिन भर साइड में नॉकिंग करता रहता था। कलीम सर इसके पापा हैं। मैच चालू रहता तब भी यह नॉकिंग करता रहता था। तो मेरी मुलाकात इससे ऐसे ही हुई।"
भले ही दोनों किसी प्रतिस्पर्धा की बात को नकारते हों, लेकिन एक समय था जब पिता के दबाव की वजह से ये खिलाड़ी पूरे दिन पिच पर खड़े रहते थे, क्योंकि एक दूसरे से से कम रन बनाने पर उनकी शामत आनी तय होती थी।
सरफ़राज़ ने बताया, "प्रतिस्पर्धा तो नहीं रहती थी बस होता यह था कि कौन ज़्यादा रन बनाएगा। अरमान के पापा तो मारते नहीं थे लेकिन पृथ्वी और मेरे पापा तो बहुत मारते थे। तो हम लोग यही सोचते थे कि रन बनाने ही हैं।"
इनके बीच अब बॉन्डिंग इतनी है कि आज यह जय-वीरू की जोड़ी एक दूसरे को स्लो लोकल ट्रेन और फ़ास्ट ट्रेन के नाम से बुलाते हैं। दोस्ती इतनी गहरी हो गई कि जब भी होटल में पहुंचते हैं तो कोशिश करते हैं कि अगल-बगल में ही कमरा हो, जिससे ये दोनों एक दूसरे के कमरे में जा सकें। जय की तरह अरमान भी कम ही बोलते हैं और वीरू की तरह सरफ़राज़ रूकने का नाम नहीं लेते हैं।
सरफ़राज़ ने कहा, "अरमान तो आज भी ऐसे ही है, स्लो खेलता है। हम लोग इसको स्लो लोकल बुलाते थे, क्योंकि यह तब भी आराम से बल्लेबाज़ी करता था और आज भी ऐसे ही करता है। हम लोग आउट हो जाते थे लेकिन अरमान का यह रहता था कि एक विकेट ज़ल्दी गिर जाती थी कि तो यह तीसरे नंबर पर आकर पूरे दिन बल्लेबाज़ी करता था। अंडर-14 में 101, 105 पर यह दिन के अंत तक नॉट आउट रहता था।"
अरमान ने कहा, "मेरे परिवार की ओर से रन बनाने का दबाव नहीं रहता था, ना ही ऐसी प्रतिस्पर्धा रहती थी कि वो ज़्यादा रन बनाएगा या मैं। वह अपनी बल्लेबाज़ी करता था बस, वो तब भी तेज़ खेलता था और आज भी तेज़ ही खेलता है, तो यह सुपरफ़ास्ट ट्रेन है। जब हम होटल में होते हैं तो हमारी कोशिश होती है कि हम अगल-बगल में ही कमरा लें। सही मायनों में स्कूल के समय से अब हमारी बॉन्डिंग बहुत अच्छी हो गई है। हम एक दूसरे के बहुत गहरे दोस्त बन गए हैं। एक दूसरे को बहुत अच्छे से समझते हैं।"
दोनों ही खिलाड़ी अब एक दूसरे के खेल का सम्मान करने लगे हैं। दोनों जानते हैं कि स्कूल के समय से किसके खेल में क्या उभार आया है। कैसे वे आज मुंबई की रणजी टीम तक पहुंचे हैं।
सरफ़राज़ कहते हैं, "ओड़िशा के ख़िलाफ़ मैच में मैं हैट्रिक बॉल पर विकेट गंवा बैठा था, लेकिन तब अरमान ने एक बहुत ही अहम 125 रन की पारी खेली थी। अरमान के साथ जब मैं बल्लेबाज़ी पर आता हूं तो कुछ अलग नहीं लगता है। ऐसा लगता है कि हम स्कूल क्रिकेट ही खेल रहे हैं। दबाव, गेंदबाज़, रणजी ट्रॉफ़ी के बारे में नहीं सोचते। यह जब सामने खड़ा रहता है तो वही पुरानी यादें रहती हैं। हम कभी नकारात्मक बात नहीं करते। बस एक दूसरे को समझाते रहते हैं कि इसके ख़िलाफ़ ऐसा कर सकते हैं, इसको ऐसे फंसा सकते हैं। हम कभी ऐसे बात नहीं करते कि आउट हो जाएंगे।"
जब सरफ़राज़ से पूछा गया कि वह इतने सालों में अरमान के अंदर उन्होंने क्या बदलाव देखा है तो उन्होंने कहा, "इतने सालों बाद अरमान में बस यही देखा कि वह अब छक्के मारने लगा है (हंसते हुए)। मैंने देखा कि अरमान अब बहुत तेज़ खेलने लगा है। अब यह खेलने को देख रहा है, रन बनाने को देख रहा है। एक बार जब भी यह 100, 200 करेगा तो यह भी लंबे छक्के मार सकता है।"
जब अरमान से पूछा गया कि सरफ़राज़ की सबसे ख़ास बात क्या है तो अरमान ने कहा, "टीम में कोई स्थिति हो, कैसे भी हालात हो सरफ़राज़ रहेगा तो माहौल कभी भी गंभीर नहीं हो सकता है। यह ऐसी बात करता है कि हंसी आ जाती है और यह अभी से ऐसा नहीं है यह स्कूल के समय से ही ऐसा है। अगर यह ड्रेसिंग रूम में रहता है तो हमेशा माहौल शानदार बना रहता है।"

निखिल शर्मा ESPNcricinfo हिंदी में सीनियर सब एडिटर हैं। @nikss26