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कैसे चंदू सर ने बनाया एमपी को रणजी चैंपियन ?

एमपी के कोच चंद्रकांत पंडित की एमपीसीए और इसके खिलाड़ियों के साथ प्रतिबद्धता की कहानी

मध्यप्रदेश ने फ़ाइनल में मुंबई को शिकस्त देकर जीता ख़िताब  •  PTI

मध्यप्रदेश ने फ़ाइनल में मुंबई को शिकस्त देकर जीता ख़िताब  •  PTI

आंखों में नमी, जीत के बाद चिन्नास्वामी स्टेडियम के पवेलियन को प्रणाम। मध्य प्रदेश के कोच चंद्रकांत पंडित की यह कहानी भावुकता से भरी है। जीत के बाद जब ट्रॉफ़ी उठाने की बात आई तो पंडित का कहना चैंपियन कौन? खिलाड़ियों का जवाब देना मध्य प्रदेश। जीत के बाद पंडित ने कहा भी तो यह भावुकता से भरी कहानी है।
23 साल पहले एक सपना टूट गया था लेकिन अब कहा जा सकता है कि बाप नहीं कर सका तो उसके बेटे (आदित्य श्रीवास्तव) ने यह कर दिखाया। आख़िर चंदू सर की यह एमपी टीम चैंपियन बनी कैसे ?
बात 2020 मार्च की कोविड आने से तुरंत पहले की है। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के पूर्व सचिव और मध्य प्रदेश क्रिकेट संघ (एमपीसीए) के मेंटॉर संजय जगदाले एमपी के लिए कोच ढूंढ रहे थे। उन्हें पूर्व भारतीय क्रिकेटर किरण मोरे से पता चला कि चंद्रकांत पंडित अभी फ़्री हैं। उन्हें संपर्क साधा और बात बन गई, लेकिन शुरुआत में पंडित का एमपीसीए में विरोध भी हुआ।
"चंदू का हमेशा से ही सम्मान किया गया है, ठीक उसी समय से जब वे मध्य प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के खिलाड़ी थे। वह एमपी के लिए खेले हैं। व्यक्तिगत रूप से मैं उससे बहुत प्यार करता हूं और मैंने 2003 में उन्हें बीसीसीआई में भी जोड़ा था (उन्हें जूनियर चयन समिति का चेयरमैन बनाया था और तब हम विश्व कप जीते थे)। मुझे किरण मोरे से पता चला कि चंदू फ़्री है और तब मैंने यह मैसेज मौजूदा बीसीसीआई सचिव को भेजा। किरण इंदौर आए थे और संजीव राव हमारे सचिव हैं और पूर्व खिलाड़ी भी। मैंने यह मैसेज उन्हें दिया कि हमें उन्हें लेना चाहिए और उन्होंने हामी भर दी।"
संजय जगदाले, पूर्व सचिव, बीसीसीआई
"चंदू को लेकर एमपी ख़ासकर इंदौर में काफ़ी विरोध था। यह विरोध निजी था। चंदू ने टीम के हर एक सदस्य को बहुत आत्मविश्वास दिया।"
मार्च 2020 में पंडित की नियुक्ति हुई लेकिन तुरंत बाद ही देश में कोरोना फैल गया और सबकुछ बंद हो गया। कोरोना की जब पाबंदियां ख़त्म हुई तो तुरंत उन्होंने अपना काम शुरू किया लेकिन उन्होंने पहले ही आधार तैयार कर लिया था और अपनी योजना बना ली थी। पंडित ने कैंप आयोजित किए, मैच खिलाए और खिलाड़ियों के लिए दौरे आयोजित कराए। धीरे-धीरे खिलाड़ियों की शारीरिक भाषा और एटिटयूड में बदलाव दिखने लगा। हर खिलाड़ी में अनुशासन दिखने लगा।
जगदाले बताते हैं, "उनकी सच्चाई, प्रतिबद्धता, ईमानदारी और समर्पण किसी भी टीम की मदद करने के लिए बाध्य है। उनके आने के बाद हमने अपने खिलाड़ियों की शारीरिक भाषा और एटिटयूड में बहुत बदलाव देखा क्योंकि उन्होंने इस तरह का आत्मविश्वास उनमें भरा। उन्होंने प्रत्येक खिलाड़ी के साथ व्यक्तिगत तौर पर काम किया और एक ग्रुप के तौर पर उन्होंने प्रत्येक खिलाड़ी को एक रोल दिया।"
चंदू ने अपने तरीक़े से इन खिलाड़ियों को समझना शुरू किया। कई मैच कराए, उन्हें कई पोज़ीशन पर बल्लेबाज़ी कराई जिससे उनके कौशल को ठीक से समझा जा सके। खिलाड़ियों को आत्मविश्वास दिया गया कि उनका टीम में स्थान पक्का है। उन्होंने वेंकटेश अय्यर को मध्य क्रम से ओपनर बनाया और जिसका फल उन्हें मिला।
उन्होंने मध्य क्रम के बल्लेबाज़ यश दु​बे को रणजी ट्रॉफ़ी के बीच लीग दौर में ओपनर बनाया और दुबे ने कमाल करके दिखाया। अक्षत रघुंवशी कुछ साल पहले तक एमपी की अंडर 19 टीम में भी जगह नहीं बना पा रहे थे लेकिन पंडित ने उनका समर्थन किया और रघुंवशी ने एमपी की इस ख़िताबी जीत में अहम भूमिका निभाई।
जगदाले बताते हैं, "चंदू के रणनीतिक दिमाग़ और योजना के अलावा, उनकी प्रतिबद्धता क़ाबिल-ए-तारीफ़ है। वह खिलाड़ियों को बहुत अच्छे से संभालते हैं और जानते हैं कि उनसे कैसे बेहतर निकाला जा सकता है। वह जानते हैं कि हर खिलाड़ियों को क्या चाहिए- उदाहरण के तौर पर किस पर दबाव डालने की ज़रूरत है और किसे आत्मविश्वास की दरकार है। और यही प्रतिबद्धता वह अपने खिलाड़ियों से चाहते हैं। उनके बारे में एक अच्छी बात यह है कि उनकी प्रतिबद्धता खिलाड़ियों में प्रवाहित होती है। जहां तक ​​चंदू का संबंध है यह एक बड़ा, बड़ा बोनस है।"
उन्होंने आगे कहा, "उदाहरण के तौर पर 19 (18) साल का अक्षत रघुवंशी। पिछले साल तक उन्हें राज्य की अंडर 19 टीम में जगह तक नहीं मिल रही थी। उन्होंने उसे देखा और टीम में ले लिया। यही सबसे बड़ा बदलाव है कि उन्होंने सही लोगों को चुना और उनका समर्थन किया। वहीं, वह उनमें से भी हैं जो हार की जिम्मेदारी लेते हैं। अगर कोई सफल नहीं होता है तो वह ज़िम्मेदारी लेते हैं और अगर कोई अच्छा करता है तो क्रेडिट उसको देते हैं। कई लोग ऐसा नहीं कर सकते हैं। अगर उनकी रणनीति या फ़ैसले असफल होते हैं तो वह आरोप वाला गेम नहीं खेलते हैं। वह लड़कों को क्रेडिट देते हैं जो अच्छा करता है। खिलाड़ियों को पता है कि उनके पास चंदू का समर्थन है और वह उन्हें धोखा नहीं दे सकते हैं।"
एमपीसीए के सचिव संजीव राव भी पंडित की मेहनत को जानते हैं। पंडित ने कैसे एक टीम बनाई, उन्होंने उसको नज़दीक से देखा है।
"चंदू भाई ही थे जिन्होंने वेंकटेश से ओपन कराया और अब मध्य क्रम के बल्लेबाज़ यश दुबे को ओपनर में बदल दिया। लीग दौर के दौरान चंदू भाई ने सोचा कि हमारे ओपनर अच्छा नहीं कर रहे हैं और तब उन्होंने यश से ओपन कराया। उसने इस स्थान पर बहुत अच्छा करके दिखाया। मैच की तैयारियों के समय हर खिलाड़ी को विभिन्न पोज़ीशन पर खिलाया गया जिससे उनकी क्षमता और कौशल को समझा जा सके और तभी फ़ैसले लिए गए।"
संजीव राव, सचिव, एमपीसीए
उन्होंने कहा, अक्षत थोड़ा तेज़तर्रार था, लेकिन उसके पास बहुत कौशल और स्ट्रोक खेलने की क़ाबिलियत थी। चंदू भाई ने उसकी क्षमता को देखा और महसूस किया कि वह एक बड़े मैच का खिलाड़ी है और उसे पर्याप्त आत्मविश्वास दिया। पहली गेंद पर आउट होने पर भी चैंपियन की तरह खेलो। अब देखिए उसने करके दिखाया। हिमांशु मंत्री हमेशा से विकेटकीपर रहा है। उसने पिछले साल भी ओपनिंग की थी लेकिन सफल नहीं हुआ था। इस बार उसको साफ़ बोला गया था कि वह टीम में ओपनर के तौर पर है। तो उसने अपनी तकनीक पर काम किया और चंदू भाई ने भी उसको आत्मविश्वास दिया कि उसकी टीम में जगह पक्की है। वह उभरकर आया और इस तरह का प्रदर्शन करके दिखाया।"
बात सिर्फ़ खिलाड़ियों को समझने, उन्हें अभ्यास कराने और तैयार करने की ही नहीं थी। एमपी में खिलाड़ियों की ज़िम्मेदारी पंडित पर ही छोड़ दी गई थी। मार्च 2020 से पूरे 405 दिनों तक वह एमपीसीए में रम गए थे। उनका खिलाड़ियों के चयन में अहम रोल रहा, वह चयन बैठक में रहते। तैयारियों के लिए एमपीसीए में जो भी कमी थी, उसे पूरा किया। उनकी तैयारियां ऐसी थी कि कैंप के दौरान अगर कोई सफ़ेद टी-शर्ट में आ रहा है तो सभी उसमें ही आएंगे। अगर कोई शॉर्ट में आ रहा है तो पूरी टीम शॉर्ट में आएगी। उनकी प्रतिबद्धता का अंदाज़ा ही इस बात से लगाया जा सकता है कि दूसरी टीम जहां बेंगलुरु समय पर पहुंची तो पंडित 18 मई को ही यहां आ गए थे, यहां तक की उन्होंने कर्नाटका के साथ कुछ अभ्यास मैच के लिए भी लाइन अप किया।
जगदाले ने कहा, "चयन में भी उन्होंने अहम रोल निभाया। पहले एमपी में चयन हमारे लिए बहुत बड़ा सिरदर्द होता था। चीज़ें बहुत अलग़ तरह से होती थी। जब से वह कोच बने हैं, वह चयन बैठक में बैठते हैं और सीधा बताते हैं कि वह क्या चाहते हैं। यह हमारे लिए और हमारे क्रिकेट के लिए बहुत बड़ा प्रोत्साहन है। मेरी नज़र में सबसे अच्छी बात यह है कि उनके कोच बनने के बाद योग्य खिलाड़ियों को खेलने का मौक़ा मिला और अयोग्य खिलाड़ी टीम के आसपास भी नहीं थे।"
राव ने इस पर कहा, "हमारे लड़कों में हमेशा से कौशल रहा है लेकिन उनके अंदर आत्मविश्वास की कमी रहती थी। चंदू भाई ने उनके अंदर आत्मविश्वास भरा। लगातार मैच खिलाए और लगातार, हर बार उन्हें निज़ी तौर पर फ़ीडबैक दिए। हमने चंदू भाई पर सबकुछ छोड़ दिया था। जो भी उन्हें चाहिए था चाहे अभ्यास मैच हो या जिम के साथ कुछ दिक़्क़त, हमने सब सुलझाया। अब यह परिणाम के तौर पर सामने आ रहा है। सब कुछ व्यवस्थित तरीक़े से किया गया था और इसने सब कुछ बदल दिया है।"
अफ़्ज़ल जिवानी के द्वारा
देवेंद्र बुंदेला, मध्य प्रदेश के पूर्व कप्तान और रणजी इतिहास में दूसरे सबसे ज़्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी
"मैंने मैच के हर पल को देखा। मध्य प्रदेश को हावी रहते हुए रणजी ट्रॉफ़ी जीतते हुए देखना शानदार अहसास है। मैं निश्चित रूप से कह सकता हूं कि सर्वश्रेष्ठ टीम का चयन किया गया था। उनका व्यवस्थित नज़रिया शानदार था। कई सालों की मेहनत आख़िरकार रंग लाई। मैं 1998-99 के फ़ाइनल का हिस्सा था और वह हार दुखी करने वाला था। मेरे दिमाग़ में यह बात अभी भी ताज़ा है, लेकिन इन खिलड़ियों को एक क़दम आगे बढ़ते हुए देखकर मुझे बहुत गर्व महसूस हो रहा है। यह टीम अगले तीन-चार वर्षों तक हावी रहने की क्षमता रखती है। यह काफ़ी हद तक एक युवा टीम है। किसी ने मुझसे पूछा कि क्या हमने सौभाग्य से जीता है। मैंने कहा, नहीं, यह दल ही सौभाग्यशाली है।"

निखिल शर्मा ESPNcricinfo हिंदी में सीनियर सब एडिटर हैं। @nikss26