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मध्य प्रदेश को चंद्रकांत पंडित के तरीक़ों का पालन करने का फल मिल रहा है

मुंबई और विदर्भ को रणजी ट्रॉफ़ी जिताने के बाद वह एमपी के साथ कमाल कर सकते हैं

Kumar Kartikeya picked up six wickets in the second innings to see Madhya Pradesh through to the final four, Punjab vs Madhya Pradesh, Ranji Trophy 2021-22, 4th quarter-final, 4th day, Alur, June 9, 2022

आईपीएल में अपनी छाप छोड़ने के बाद कुमार कार्तिकेय रणजी ट्रॉफ़ी में मध्य प्रदेश के महत्वपूर्ण गेंदबाज़ बन गए हैं  •  ESPNcricinfo Ltd

"जल्दी करो।"
एक आवाज़ मध्य प्रदेश के ख़ेमे में सभी का ध्यान अपनी तरफ़ आकर्षित करने के लिए काफ़ी है।
यह उनके कोच चंद्रकांत पंडित की पहली और अंतिम चेतावनी है कि उन्हें जल्द से जल्द मैदान से निकलना है। रिकवरी सेशन, टीम मीटिंग और एकांत में चर्चा करने की व्यवस्था होटल में की गई है। वह नहीं चाहते हैं कि खिलाड़ी एक लंबे दिन के बाद बेंगलुरु की ट्रैफ़िक से थक जाए।
वह चाहते हैं कि मैदान और होटल के बीच एक घंटे की यात्रा में एक घंटे से अधिक समय न लगें। दिन का खेल समाप्त होने के 20 मिनट बाद सारे खिलाड़ी होटल जाने के लिए तैयार रहते हैं। एक के बाद एक अपने बैग के साथ वह टीम बस में बैठने लगते हैं।
इन सबका क्रिकेट और रणजी ट्रॉफ़ी से क्या लेना देना है? एमपी के ख़ेमे में यह ताका-झांकी बताती है कि वह समय, प्लानिंग और तैयारियों को कितना महत्व दे रहे हैं। यह पंडित के तहत व्यवस्थित रूप से निर्मित सबसे यादगार अभियान की सामग्री है। पंडित के इन निर्विरोध तरीक़ों ने उनके द्वारा कोचिंग दी गई कई टीमों को सफलता दिलाई है।
एक बार उन्होंने कहा था, "मैं कभी एक खिलाड़ी को चांटा मार दूंगा लेकिन उसके पीछे भी कोई वजह होगी जिसे वह खिलाड़ी समझेगा।"
मुंबई और विदर्भ के साथ रणजी ट्रॉफ़ी जीतने के बाद अब पंडित एमपी को कोचिंग दे रहे हैं। उनकी टीम इस शताब्दी में पहली बार इस प्रतियोगिता के फ़ाइनल में जगह बनाने की दहलीज़ पर खड़ी हुई हैं। और तो और हम उन खिलाड़ियों की बात ही नहीं कर रहे हैं जो उन्होंने राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी या अन्य जूनियर कैंप में तैयार किए हैं।
पिछले तीन हफ़्तों से मध्य प्रदेश टीम का होटल उनका घर बना हुआ है। बायो-बबल के हटने के बावजूद उन्होंने एहतियात बरतना जारी रखा है। बगल में गॉल्फ़ खेलने की बजाय खिलाड़ी एक अतिरिक्त घंटा जिम में बिताते हैं। मॉल में घूमने, सिनेमा देखने या बाहर खाना खाने की बजाय वह पूल के किनारे चाय और चर्चा का आनंद ले रहे हैं या वीडियो गेम खेल रहे हैं।
इन खिलाड़ियों ने सुख और दु:ख वाली सभी स्थितियों में एक दूसरे का साथ दिया हैं। टीम बॉन्डिंग उनके रणजी ट्रॉफी अभियान की नींव रही है। कई सफल टीमों में ऐसा देखा जाता है लेकिन यह टीम कुछ अलग है। या फिर ऐसा है कि इनकी एकता नैर्गिक अंदाज़ से अपने आप निखरकर सामने आई है।
आप समझ सकते हैं कि क्यों यह इस टीम के लिए एक बड़ा मौक़ा है। एमपी अमूमन रणजी ट्रॉफ़ी के फ़ाइनल तक नहीं पहुंचती है। पिछली बार उन्होंने 1998-99 में ऐसा किया था जहां उन्हें कर्नाटका के हाथों हार झेलनी पड़ी थी। मज़े की बात यह है पंडित उस समय टीम के कप्तान थे।
अब इस टीम के पास फ़ाइनल में जाने का सुनहरा मौक़ा है। अलुर में खेले जा रहे सेमीफ़ाइनल में बंगाल के ख़िलाफ़ उन्हें जीत के लिए छह विकेट चाहिए। हालांकि ड्रॉ भी टीम को फ़ाइनल में ले जाने के लिए काफ़ी होगा क्योंकि टीम ने पहली पारी में बढ़त ली थी। 350 के लक्ष्य का पीछा करते हुए बंगाल को अब भी जीत के लिए 254 रन और बनाने हैं।
शुक्रवार को बंगाल के चार में से तीन विकेट कुमार कार्तिकेय ने झटके। वह रणजी ट्रॉफ़ी को अपने हाथों में उठाने के लिए बेताब हैं। क़रीब 10 साल पहले घर छोड़ते समय उन्हें नहीं पता था कि वह आईपीएल खेलेंगे। उन्होंने केवल रणजी ट्रॉफ़ी के बारे में सुना था और उसमें खेलने का सपना देखा था। प्रतियोगिता जीतना उनके घर लौटने के सफ़र को और सुखद बनाएगा।
रजत पाटीदार ने पिछले छह महीनों में क्या कुछ नहीं देखा हैं। फ़रवरी में उन्हें आईपीएल की नीलामी में नहीं चुना गया। अप्रैल में वह अपनी शादी की तैयारी कर रहे थे लेकिन उन्हें बीच में ही अपना प्लान बदलना पड़ा। रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु के प्रमुख कोच संजय बांगर के एक कॉल के बाद छह घंटों के भीतर वह मुंबई में थे।
मई में वह आईपीएल के प्लेऑफ़ में शतक लगाने वाले इकलौते भारतीय अनकैप्ड खिलाड़ी बने। इसमें रणजी ट्रॉफ़ी के ख़िताब का जुड़ना सोने पर सुहागा होगा।
18 वर्षीय चुलबुले अक्षत रघुवंशी इस समय टीम में ही नहीं होते अगर वेंकटेश अय्यर भारतीय टीम के लिए नहीं खेल रहे होते। आयु वर्ग की क्रिकेट में लक्ष्य का पीछा करते हुए लगभग 20 गेंदों पर अर्धशतक बनाकर उन्होंने सभी का ध्यान अपने तरफ़ आकर्षित किया था।
एक अंडर-19 मैच में अंपायरिंग करते हुए पंडित ने रघुंवशी की पारी की शुरुआत में एक क्लियर पगबाधा की अपील को नकारा ताकि वह उनकी प्रतिभा को अपनी आंखों से देख पाए। वह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने सीधे उन्हें रणजी ट्रॉफ़ी में खेलने का मौक़ा दिया। इसका पूरा फ़ायदा उठाते हुए अपनी पहली पांच पारियों में रघुवंशी तीन अर्धशतक और एक शतक लगा चुके हैं।
फिर आते हैं टीम के कप्तान आदित्य श्रीवास्तव जो पांच साल के थे जब आख़िरी बार एमपी फ़ाइनल में पहुंची थी। 2015 में अपने प्रथम श्रेणी करियर की शुरुआत में वह टीम में होने पर इतने अचंबित थे कि सीनियर खिलाड़ियों के सामने उनकी आवाज़ ही नहीं निकलती थी। अब वह टीम के कप्तान हैं और लगातार अपने खिलाड़ियों को सलाह देते रहते हैं।
यह तो इस टीम में मौजूद केवल चंद खिलाड़ियों की कहानियां हैं। बहुत सारी कहानियां सुनना अभी बाक़ी हैं लेकिन वह तभी सामने आएंगी जब एमपी ख़िताब अपने नाम करेगी। वह इसलिए क्योंकि पंडित का एक नियम है : बात तभी करो जब आपने कुछ कर दिखाया हो।
कोई इस बात की शिक़ायत नहीं कर रहा है। इस निर्देश पर टिके रहने से हर कोई ख़ुश है। आख़िर रणजी ट्रॉफ़ी दांव पर है, और वे बाहरी शोर को बंद करके अपना सब कुछ इसे दे रहे हैं।
शनिवार को पंडित के साथ कई अन्य लोग टीम का समर्थन कर रहे होंगे। उनमें बुंदेला, खुरसिया, सक्सेना, ओझा के अलावा वह सभी खिलाड़ी होंगे जिन्होंने मध्य प्रदेश क्रिकेट को यह आकार देने में अपना योगदान दिया है। वे सभी अपनी टीम को शुभकामनाएं देंगे।

शशांक किशोर ESPNcricinfo में सीनियर सब एडिटर हैं। अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी के सब एडिटर अफ़्ज़ल जिवानी ने किया है।