मध्य प्रदेश की ओर से इस सीज़न यश दुबे और शुभम शर्मा ने बनाए सबसे ज़्यादा रन • PTI
रणजी ट्रॉफ़ी फ़ाइनल की पहली पारी में दूसरे विकेट के लिए अहम 222 रनों की साझेदारी करके शुभम शर्मा (116) और यश दुबे (133) ने मध्य प्रदेश की ख़िताबी जीत की नींव रख दी थी। पूरे सीज़न यह दोनों खिलाड़ी चंद्रकांत पंडित की सल्तनत के दो अहम सिपाही साबित हुए। चौंकाने वाली बात तो यह है कि दोनों ही इस बल्लेबाज़ी क्रम पर पहली बार बल्लेबाज़ी कर रहे थे। एक का पढ़ाई से दूर तक नाता नहीं रहा तो दूसरे के लिए पढ़ाई भी अहम रही। मध्य प्रदेश को पहला ख़िताब दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले दोनों खिलाड़ियों का सफ़र।
नंबर तीन पर दौड़ पड़ी शुभम की गाड़ी
इंदौर में एक शिक्षा से जुड़ा परिवार। मां सर्वेश शर्मा शिक्षिका, पिता श्याम सुंदर शर्मा सेवानिवृत प्रीसिंपल और भाई आईआईटी पास आउट। हालांकि उनके परिवार ने शुभम पर कभी भी पढ़ने का दबाव नहीं बनाया। हमेशा उनका समर्थन किया। उनका परिवार ही इतना पढ़ा हुआ है तो वह ख़ुद भी पढ़ने के शौक़ीन। इसी वजह से उन्होंने वेंकटेश अय्यर की ही तरह एचआर से एमबीए किया। हालांकि वह कभी कॉलेज की प्लेसमेंट में नहीं बैठे। अब शिक्षक परिवार से हैं तो संयम और अनुशासन तो होना ही था। मध्य प्रदेश के कोच पंडित ने उनके क्रिकेट के साथ उनके व्यक्तित्व को भी नज़दीक से पहचान लिया था। तभी तो अब तक अपने करियर में नंबर छह या सात पर बल्लेबाज़ी करने वाले शुभम को इस साल नंबर तीन जैसा अहम स्थान सौंपा गया।
शुभम ने कहा, "चंदू सर [चंद्रकांत पंडित] जब आए थे तो उन्होंने व्यक्तिगत इंटरव्यू लिए थे। उनकी समझ अच्छी है कि कौन सबसे अच्छा प्रदर्शन कहां कर सकता है। मुझे तीन नंबर पर बल्लेबाज़ी कराई, यश को ओपन कराया। अक्षत [रघुवंशी] को लेकर आए, जबकि अंडर-19 में उसको मौक़े नहीं मिल रहे थे। वह बल्लेबाज़ी देखते थे तो समझ आया कि रजत पाटीदार अगर चौथे नंबर पर आता है तो अच्छा रहेगा। मैंने रणजी में छह नंबर, सात नंबर पर बल्लेबाज़ी की थी, तो इसी सीज़न मुझे नंबर तीन पर खिलाया। हम सारे खिलाड़ियों ने चंदू सर से कभी कोई सवाल नहीं किया, हम परिणाम की जगह बस प्रक्रिया पर ध्यान देते रहे।"
"मुझे आज भी याद है वनडे के वक़्त उन्होंने बोला था कि अगर तू चाहे तो तुझे कोई आउट नहीं कर सकता। उससे मुझे आत्मविश्वास मिला था, लगा कि सर अगर ऐसा बोल रहे हैं तो उन्होंने कुछ देखा होगा।"
शुभम ने इस सीज़न छह मैचों में 76 की औसत से 608 रन बनाए, जिसमें चार शतक और एक अर्धशतक शामिल था। शुभम के लिए इस सीज़न कई यादगार मैच रहे लेकिन वह फ़ाइनल के शतक को सबसे अहम मानते हैं।
शुभम ने कहा, "वैसे तो गुजरात वाला मैच भी अहम था लेकिन मेरे लिए फ़ाइनल मैच का शतक ही पसंदीदा रहा है। यह शतक ज़रूरी था क्योंकि फ़ाइनल का दबाव था। यश के साथ मेरा रिश्ता बहुत अच्छा है। यश के साथ मैं काफ़ी समय से खेल रहा हूं। पहले से ही दोस्ती अच्छी है। जब हम खेल रहे थे तो यही बातचीत हो रही थी कि कौन कैसी गेंद कर रहा है, कहां रन बनाने हैं। जब मुंबई ने 374 रन बना दिए थे, तो बल्लेबाज़ी से पहले चंदू सर ने हमें बताया कि तुम लोगों ने इस सीज़न जो बल्लेबाज़ी की है, उसमें 480 की औसत निकल कर आ रही है। जब अभी तक रन बनाए हैं तो इस मैच में भी बना सकते हैं। बस गेंद की मेरिट पर खेलते रहो।"
टीम को पांचवें दिन जीत के लिए सात रन चाहिए थे और शुभम स्लॉग स्वीप पर छक्का लगाने के प्रयास में आउट हो गए। टीम जीत के क़रीब थी लेकिन शुभम डग आउट में पंडित की बातें सुन रहे थे।
शुभम ने उस बातचीत को याद करते हुए कहा, "मैं इस तरह का शॉट खेलता नहीं हूं। वह तो सात रन चाहिए थे तो सोचा कि छक्का मारता हूं और जीत दिला देता हूं। आउट होने के बाद मैं तो पवेलियन में अपने पैड उतारने जा रहा था, पता नहीं था कि चंदू सर डग आउट में बैठे हैं। उन्होंने बीच से ही मुझे आवाज़ लगाकर बुला लिया और अपने पास बैठाया। वह बोले अगर तुझे शॉट ही मारना था तो अपना शॉट मारता। सामने मारता तो वहां भी छक्का मिल सकता था।"
शुभम के करियर में संघर्ष भी कम नहीं रहा है। उन्मुक्त चंद के बैच के शुभम अंडर-19 के दिनों में दो सालों तक भारत में शीर्ष दो-तीन में रहे लेकिन टीम संयोजन की वजह से उन्हें मौक़े नहीं मिल पाए। विजय हज़ारे ट्रॉफ़ी में भी उन्होंने इस साल छह मैचों में 69.6 की औसत से एक शतक और चार अर्धशतक की मदद से 418 रन बनाए। वह इस ट्रॉफ़ी में रन बनाने के मामले में चौथे नंबर पर भी रहे और अब आईपीएल टीम में चुने जाने की उन्हें उम्मीदें होना ज़ाहिर भी थी लेकिन ऐसा हो नहीं सका।
दाएं हाथ के बल्लेबाज़ ने कहा, "निराशा तो रहती थी लेकिन मैं कभी उसके साथ नहीं रहा। बस यही सोचा इस साल नहीं तो अगली बार। एक आत्मविश्वास आता है कि अगर आपके साथ वाले वेंकटेश, आवेश [ख़ान], रजत आईपीएल में अच्छा करते हैं, तो मैं भी खेल सकता हूं। वे ड्रेसिंग रूम में साथ रहे हैं, तो उनका अनुभव काम आता है, वो मुझसे साझा करते हैं। विजय हज़ारे के बाद पंजाब किंग्स, चेन्नई सुपर किंग्स, मुंबई इंडियंस से कॉल आया। पंजाब और चेन्नई मुझे टीम में चाहते थे लेकिन ऐसा हो नहीं पाया।"
किताबों के शौक़ीन यश दुबे
मध्य क्रम में बल्लेबाज़ी करने वाले यश को रणजी के लीग दौर के बीच में ही ओपन करने को कह दिया जाता है। ओपनर का काम मध्य क्रम से एक दम अलग, नई गेंद को जितना हो सके पुराना कर सको, स्विंग और सीम को संभालो, जितना हो सके क्रीज़ पर जमे रहो, लेकिन यश ने यह काम बख़ूबी निभाया। यश को भी पंडित की तरह अनुशासन पसंद है। हर काम समय पर करना और उसके बाद एक कप कॉफ़ी हो और उसके साथ यश की पसंदीदा किताबों का जमावड़ा।
भोपाल के यश ने कहा, "चंदू सर की ही सोच थी। वह यह चाह रहे थे कि युवा बल्लेबाज़ अक्षत और मैं दोनों टीम में रहें। वह हम दोनों को टीम में चाहते थे क्योंकि उनको दोनों का खेल अच्छा लगा। उन्होंने केरला से मैच से पहले अचानक मुझसे पूछा क्या आप ओपन कर सकते हो या नहीं। मैंने कहा मैं तैयार हूं। केरला से मैच से पहले मुझे तीन से चार दिन दिए। इन दिनों मैंने कोचों से बात की, अपने साथी खिलाड़ियों से सलाह ली कि ओपनिंग के लिए क्या चीज़ ज़रूरी है। इसके बाद मैंने ज़्यादा कुछ सोचा नहीं।"
अब ओपनिंग का खेल तो लाल गेंद क्रिकेट में बिल्कुल जुदा होता है। इसके लिए आत्मविश्वास लाना भी बहुत ज़रूरी है। इसमें यश का साथ दिया उनके साथी ओपनर हिमांशु मंत्री ने।
यश ने कहा, "मेरे ओपनर साथी हिमांशु थे। उन्होंने आत्मविश्वास दिया कि नीचे आठ से नौ बल्लेबाज़ हैं, जो मेरे साथ साझेदारी कर सकते हैं। सकारात्मकता के साथ आगे बढ़ो। तुम्हारी बल्लेबाज़ी स्टाइल ऐसी है, जहां संयम है। मैंने बस यही ध्यान दिया कि ओपनर के तौर पर कुछ चीज़ ध्यान रखनी होती है, बल्ला हमेशा शरीर के पास होना चाहिए, ज़्यादा दूर नहीं जाना चाहिए। हाथ पास में रहें वरना गेंद पर कंट्रोल दूर हो जाएगा। मैं यह बातें लगातार अपने दिमाग़ में रखता था।"
शुभम के साथ फ़ाइनल में अहम साझेदारी करने वाले यश ने कहा, "वह मेरे से सीनियर हैं, जब मैं अंडर-19 खेलता था तो मैं उनको अपना आदर्श मानता था क्योंकि वह तकनीकी तौर पर बहुत अच्छे हैं। रणजी के दौरान मेरी लगातार उनसे बात होती रही, हम रूम पार्टनर बने। मुंबई के ख़िलाफ़ भी हम लगातार बात कर रहे थे कि विकेट कैसी चल रही है, गेंद कितनी सीम हो रही है।"
फ़ाइनल जैसे बड़े मंच पर रन बनाना बड़ी बात है, लेकिन नॉकआउट जैसे मैचों में लगातार रन बनाना उनके आत्मविश्वास को झलकाता है, लेकिन इसमें पंडित की एक सीख भी नतीजा रही।
यश क्वार्टर-फ़ाइनल मैच के एक लम्हे को याद करते हुए कहते हैं, "उन्होंने मुझे कहा कि तुम क्वार्टर-फ़ाइनल में पंजाब के ख़िलाफ़ ग़लत शॉट खेलकर आउट हो गए लेकिन तुमने अच्छी तरह से टीम की भूमिका निभाई। तुमने 90 गेंदें खेली, गेंद को पुराना किया। हालांकि मेहनत करने के बाद तुमने फल नहीं किया पर कोई बात नहीं। टीम के लिए तुमने बहुत अच्छा काम किया। मेरे लिए रन मायने नहीं रखते लेकिन जितनी तुमने गेंदें खेली हैं वह मायने रखती हैं।"
"सेमीफ़ाइनल में मैं दोनों बार ग़लत फ़ैसलों पर आउट हुआ तो सर बोले कि देख अब तुमने पंजाब के ख़िलाफ़ ग़लत शॉट खेला और यहां भी तुम ग़लत फ़ैसले पर दोनों बार आउट हुए। तो भगवान से माफ़ी मांगों की पंजाब के ख़िलाफ़ तुमने ग़लती की थी और अब इसे कभी नहीं दोहराउंगा। तब मैंने माफ़ी मांगी भगवान से कि अब ग़लती नहीं होगी अब अनुशासन में रहूंगा। सर ने कहा था कि देखों फ़ाइनल में तुम अच्छा करोगे मुझे विश्वास है। अब कोई ग़लत शॉट नहीं खेलना है, इस बार ग़लत शॉट खेला तो भगवान नहीं छोड़ेंगे तुम्हें।"
पहली बार ओपनिंग करते हुए भले ही केरला के ख़िलाफ़ अहम मैच में यश ने 289 रनों की अहम पारी खेली हो, लेकिन उनके दिल में यह मैच एक टीम के तौर पर यादगार बन गया है। टी तक मैच केरला के पक्ष में था और वह आसानी से क्वार्टर-फ़ाइनल में प्रवेश कर सकता था लेकिन गेंदबाज़ों ने मैच बदल कर रख दिया।
यश ने कहा, "केरला वाला मैच यादगार था। मैंने जो स्कोर किया वो तो था, लेकिन चौथे दिन टी तक उन्होंने तीन विकेट पर 359 रन बना लिए थे और हमें क्वालीफ़ाई करने के लिए उनको समेटना तो था ही, लेकिन स्थिति ऐसी थी कि अगर वह चार विकेट पर 400 बना लेते हैं तो भी क्वालीफ़ाई कर लेते और पांच विकेट पर 400 बनाते हैं तब भी। वह बहुत रोमाचंक मैच था जिसे शायद ही कभी भूल सकूं।"
जब पढ़ाई के बारे में यश से पूछा तो वह हंसते हुए ज़्यादा नहीं बता सके, बोले पढ़ाई तो ज़्यादा नहीं की है, लेकिन आज के वेब सीरीज़ के ज़माने में उन्हें किताबों से लगाव हो गया।
यश ने कहा, "किताब पढ़ने का शौक हो गया है। हम सब जैसे यूट्यूब या सीरीज़ देखते हैं, तो मैंने इससे सीखा कि पढ़ना कितना ज़रूरी है। मैंने तब किताब पढ़ना शुरू किया। किताब पढ़ने से चीज़ बदल जाती हैं तो अब कॉफ़ी के साथ किताब की आदत हो गई है। सुबह नाश्ते पर जल्दी जाने का, सबसे पहले पहुंचने का रहता था और उसके बाद कॉफ़ी पीते हुए बुक पढ़ना। ऐसा करके मुझे लगता है कि दिन में मैंने कुछ किया है। अभी मैं 5 एम क्लब और थिंक लाइक ए मंक पढ़ रहा हूं।"
यश के लिए रणजी ट्रॉफ़ी जीतना सपने के पूरे होने जैसा है। उन्होंने हमेशा सुना था कि मध्य प्रदेश की टीम रणजी में अच्छा नहीं कर पाती है लेकिन इस बार जब वह ट्रॉफ़ी जीतकर मध्य प्रदेश वापस लौटे तो वहां मिले प्यार ने उनको अभिभूत कर दिया।
यश ने कहा, "सबसे पहले तो शिवराज सर (शिवराज सिंह चौहान) ने होर्डिंग लगाए थे तो वहां गर्व महसूस हुआ। मम्मी और पापा ख़ुश थे। एमपीसीए में सभी ख़ुश थे कि हमने जो पाया है। मैदानकर्मी हमेशा मुझे कहते थे कि इस बार आपको कप लाना ही है। उनका समर्थन मेरे साथ रहा, उन्होंने मुझे प्रेरित किया। वह हमेशा ट्रॉफ़ी के दौरान कॉल और मैसेज करते। उनका प्यार काम आया।"
"लोग पहले भी बोलते थे कि एमपी की रणजी टीम अच्छा नहीं करती है। हम सब ने चंदू सर के अंडर में हासिल किया। 1999 में सर अपनी कप्तानी में हार गए थे लेकिन अब अच्छा एहसास है कि हमने सर का सपना पूरा कर दिया।"