जब
भारत और इंग्लैंड 14 दिसंबर को नवीं मुंबई के डीवाई पाटिल स्टेडियम में आमने-सामने होंगे, तो यह नौ वर्षों में पहली बार भारत में महिला टेस्ट की वापसी होगी। वास्तव में, सदी की शुरुआत के बाद यह पहली बार होगा कि भारत की महिलाएं लगातार दो टेस्ट खेलेंगी।
मौजूदा टीम में केवल दो सदस्य हैं, जिन्होंने पहले घरेलू टेस्ट खेला है:
स्मृति मांधना और
हरमनप्रीत कौर। इस लिहाज से, महिला खिलाड़ियों की एक नई पीढ़ी को पहली बार इस प्रारूप से परिचित कराया जाएगा। यह देखते हुए कि बीसीसीआई ने महिलाओं के लिए घरेलू स्तर पर चार दिवसीय प्रारूप को बंद कर दिया है, तो ऐसे में खिलाड़ी इसके लिए शिविरों, अभ्यास मैचों और नेट सत्रों से तैयारी करेंगे।
टेस्ट के अलावा जाहिर तौर पर इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ सफ़ेद गेंद की सीरीज़ होगी क्योंकि अगले 18 महीनों में दो विश्व कप (T20 2024 और 50 ओवर 2025) में होने हैं। अब, जब भारत इन दो टूर्नामेंट की ओर बढ़ रहा है तो चुनौतियों पर एक नज़र डालते हैं।
शीर्ष पर स्थिरता
तुषार अरोठे के बाद रमेश पवार, डब्ल्यूवी रमन, रमेश पवार, ऋषिकेश कानितकर, नूशिन अल ख़दीर, ऋषिकेश कानितकर से घूमता हुआ कोच का पहिया अब मुंबई के पूर्व बल्लेबाज़
अमोल मज़ुमदार पर आकर रूका है।
मज़ुमदार को ठहरने का समय नहीं मिला और उनके सामने पहले ही दो बड़ी सीरीज़ हैं। इंग्लैंड के ख़िलाफ़ तीन मैचों की टी20 सीरीज़ और एक टेस्ट, फिर ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ घर में ही एक टेस्ट और तीन वनडे और तीन टी20आई।
मजु़मदार के पास दो दशकों का प्रथम श्रेणी अनुभव और कोच के रूप में एक शानदार ट्रैक रिकॉर्ड है। वह आईपीएल में राजस्थान रॉयल्स में युवा भारतीय प्रतिभाओं के प्रभारी रहे हैं।
महिला कोच बनने से पहले वह मुंबई की पुरुष टीम के कोच थे, जहां उन्होंने पांच सीज़न में पहली बार मुंबई को रणजी ट्रॉफ़ी फ़ाइनल में पहुंचाया।
अपने समय के दौरान मजु़मदार ने उन युवा खिलाड़ियों को लाने पर जोर देने की वक़ालत की जो बदलाव के लिए तैयार थे। रेड-बॉल सीज़न में ब्रेक आउट करने वालों में यशस्वी जायसवाल भी शामिल थे, जिन्होंने तब से अपना टेस्ट डेब्यू किया है। बाएं हाथ के स्पिन ऑलराउंडर शम्स मुलानी भारत ए के लिए खेले और सरफ़राज़ ख़ान शॉर्ट बॉल की कमजोरियों की चर्चा के बावजूद रन बनाते रहे।
सीज़न के दौरान टीम के एक सदस्य ने मजु़मदार के व्यवस्थित दृष्टिकोण और शांत रहने के उनके दो बड़े गुणों को श्रेय दिया। "उन्होंने कठिन समय में भी ड्रेसिंग रूम को शांत रखा, यह मानसिकता सही समय पर आई। उन्होंने अपना क्रिकेट एक निश्चित तरीके़ से खेला, लेकिन वह एक अलग मानसिकता वाले खिलाड़ियों का स्वागत करते थे और उन तरीक़ो पर टिके रहने के लिए उनका समर्थन करते थे।"
मौजूदा महिला टीम में ऐसी खिलाड़ियों की कमी नहीं है जो अपने अनूठे तरीक़ो का समर्थन करते हैं, जिसकी शुरुआत शेफ़ाली वर्मा से होती है।
डब्ल्यूपीएल प्रभाव
डब्ल्यूपीएल के आने से एक सिस्टम बना है। इसके लिए अंडर 19-विश्व कप ने भी अहम रोल अदा किया, जहां भारत पहला सीज़न जीता। इससे कई खिलाड़ियों को विश्व पटल पर चमकने का मौक़ा मिला।
इनमें
श्रेयंका पाटिल और
सैका इशाक़ दो खिलाड़ी हैं, जो इंग्लैंड के ख़िलाफ़ टी20आई डेब्यू कर सकती हैं। पाटिल पहले डब्ल्यूपीएल में रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु के लिए सबसे प्रतिभाशाली भारतीय खिलाड़ी थीं। गेंद के साथ, विशेषकर डेथ ओवरों में उनकी तेज़ ऑफ़ स्पिन प्रभावी साबित हुई। बल्लेबाज़ी में भी उन्होंने कई हिट लगाए।
उन्होंने महिला सीपीएल में शानदार प्रदर्शन किया, जहां वह सबसे अधिक विकेट लेने वाली गेंदबाज़ थीं। इंग्लैंड ए के ख़िलाफ़ हाल ही में समाप्त हुई तीन मैचों की सीरीज़ में भी उन्होंने इंडिया ए के लिए अच्छा प्रदर्शन किया, जहां उन्होंने तीन मैचों में पांच विकेट लिए। इसमें अंतिम ओवर में 12 रनों का बचाव करते हुए तनावपूर्ण मैच में शुरुआती जीत हासिल करना भी शामिल है।
इशाक़ एक अपरंपरागत बाएं हाथ की स्पिनर हैं जिनके पास कैरम बॉल सहित कई विविधताएं हैं। टी20 पारी के विभिन्न चरणों में गेंदबाज़ी करने की उनकी क्षमता डब्ल्यूपीएल चैंपियन मुंबई इंडियंस के साथ उनके कार्यकाल के दौरान सामने आई। उन्होंने टूर्नामेंट का अंत संयुक्त रूप से दूसरी सबसे अधिक विकेट लेने वाली गेंदबाज़ के रूप में किया।
तितास साधु और
मन्नत कश्यप दो अन्य युवा खिलाड़ी हैं, जिन्होंने पिछले 10 महीनों में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाई है। साधु को डब्ल्यूपीएल में बहुत अधिक अवसर नहीं मिले लेकिन वह कश्यप के साथ एनसीए के लक्ष्य समूह का हिस्सा रही हैं। साधु एशियाई खेलों की विजेता टीम का हिस्सा थीं, जहां उन्होंने फ़ाइनल में चार विकेट लिए थे। साधु की गेंद में तेज़ी है और वह गेंद को सीम से दोनों तरफ़ घुमा सकती हैं।
वहीं, कश्यप एक परंपरागत बाएं हाथ की स्पिनर हैं, जिन्होंने ए सीरीज़ में अपनी साख़ को बनाए रखा। मजु़मदार के लिए चुनौती युवा खिलाड़ियों को अवसर देने के साथ-साथ उन्हें लंबे समय तक बनाए रखना भी होगा।
निचले क्रम पर फ़ायरपावर
भारत के विश्व कप अभियानों के बाद बार-बार जो समस्या दिखी है, वह निचले क्रम पर फ़ायरपावर की कमी है। मांधना, शेफ़ाली, जेमिमाह रॉड्रिग्स और हरमनप्रीत कौर के शीर्ष चार में बल्लेबाजी करने से शीर्ष चार ही सबसे भारी है।
लेकिन मध्य और निचले मध्य क्रम की समस्याओं पर ध्यान देने की ज़रूरत है। ऋचा घोष ने अब तक केवल अपनी बड़ी हिटिंग क्षमता की झलक दिखाई है, लेकिन फ़ॉर्म और फ़िटनेस का उन पर असर पड़ा है।
यास्तिका भाटिया ने मुंबई इंडियंस और बड़ौदा के लिए शीर्ष क्रम में बल्लेबाज़ी की, लेकिन सीनियर टीम के साथ मध्य क्रम की भूमिका में तालमेल नहीं बैठा पाईं। एशियाई खेलों की टीम से बाहर किए जाने के बाद वह इंग्लैंड के ख़िलाफ़ टी20आई में वापसी करेंगी।
हालांकि
दीप्ति शर्मा एक प्रमुख गेंदबाज़ बनी हुई हैं, लेकिन वह अपनी घरेलू क्रिकेट की फ़ॉर्म को निचले क्रम की भूमिका में साबित नहीं कर पाई हैं। उनका डब्ल्यूपीएल बेहद ख़राब रहा और उन्होंने आठ पारियों में 83.33 की स्ट्राइक रेट से कुल 90 रन बनाए।
चयनकर्ताओं ने ऑलराउंड संतुलन लाने पर जोर दिया है, जिससे ऑलराउंडरों को खिलाया जाए। इससे भारत ए का नेतृत्व करने वाले पाटिल और मिन्नू मणि को टीम में जगह मिली, जबकि राजेश्वरी गायकवाड़ (टी20आई के लिए) जैसी अनुभवी खिलाड़ी को बाहर रखा है। पूजा वस्त्रकर भी हैं, जो तेज़ गेंदबाज़ी के अलावा निचले क्रम में हिटिंग क्षमता भी लाती हैं।
वे इस सीरीज़ में कैसा प्रदर्शन करते हैं, इससे टी20 विश्व कप के लिए अगले छह महीनों का रोडमैप तैयार करने में मदद मिल सकती है
शशांक किशोर ESPNcricinfo में सीनियर सब एडिटर हैं। अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी में सीनियर सब एडिटर निखिल शर्मा ने किया है।