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पर्थ की तेज़ पिच ने वनडे में भारत की रणनीति की परीक्षा ली 

रोहित और कोहली का इतनी छोटी पारियों पर आंकलन करना काफ़ी मुश्किल है, हालांकि उनके पास अनुभव की उपयोगिता साबित करने का सुनहरा अवसर भी है 

Josh Hazlewood struck early to remove Rohit Sharma, Australia vs India, 1st ODI, Perth, October 19, 2025

भारत को पर्थ में ऐसी परिस्थितियां मिली जो कि दुबई के मुक़ाबले एकदम ही विपरीत थीं  •  Getty Images

पर्थ की पिच ने भारत की परीक्षा ली जो कि जहां भारत के लिए वनडे प्रारूप में चैंपियंस ट्रॉफ़ी के मुक़ाबले पूरी तरह से बदली हुई परिस्थिति थी। फ़रवरी-मार्च में खेले गए टूर्नामेंट एक भी टॉस न जीतने के बावजूद हावी रहा था। दुबई की परिस्थितियों में भारत इस क़दर हावी था कि उन्होंने सिर्फ़ एक विशेषज्ञ तेज़ गेंदबाज़ और कुलदीप यादव और वरुण चक्रवर्ती के रूप में दो विशेषज्ञ स्पिनर खिलाए।
भारत की हर उस परिस्थिति में परीक्षा होनी निश्चित थी जो एक अधिक संतुलित एकादश की मांग करती है। वैसी परिस्थितियां जहां गति और उछाल होती है और वहां भारत के स्पिन गेंदबाज़ी ऑलराउंडर बतौर बल्लेबाज़ और गेंदबाज़ दोनों रूप से कमज़ोर पड़ जाते हैं।
इन परिस्थितियों या यूं कहें कि मानक परिस्थितियों में बड़ा सवाल यह है कि भारत वनडे में बीच के ओवरों में विपक्षी टीम के लिए कैसे घातक बना रह सकता है। चैंपियंस ट्रॉफ़ी में बीच के ओवरों में उन्होंने इतने विकेट लिए थे कि डेथ ओवर में पहुंचने से पहले ही प्रतिस्पर्धा ख़त्म हो गई थी।
जसप्रीत बुमराह की अनुपस्थिति में ऑस्ट्रेलिया में डेथ ओवरों में भी परीक्षा होनी थी, जिन्हें वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ लगातार दो टेस्ट मैच खेलने के बाद आराम दिया गया था। इन परिस्थितियों में रोहित शर्मा की आक्रामक शुरुआत भी कुछ हद तक कम हो जाती है।
हालांकि पर्थ में बारिश से प्रभावित मुक़ाबले में भारत की हार से हमें इन पहलुओं पर चर्चा से शायद कुछ अधिक हासिल नहीं होता। उन्होंने वनडे में लगातार 16वां टॉस गंवाया, ऑस्ट्रेलिया की गर्मियों की शुरुआत वाली परिस्थितियों में खेल रहे थे जो कि दुबई की तुलना में पूरी तरह से विपरीत थीं। और फिर बारिश के चलते ब्रेक से ठीक पहले दो बल्लेबाज़ लेग साइड में खेलने के प्रयास में दस्ताने पर गेंद लगने के चलते आउट हुए। जिसने DLS के चलते निर्धारित स्कोर में भूमिका अदा की।
भारत के गेंदबाज़ों को मूवमेंट प्राप्त हुई और उन्होंने कुछ सवाल भी पूछे लेकिन उनके पास बचाव करने के लिए पर्याप्त टोटल नहीं था। ऐसी स्थिति में विपक्षी बल्लेबाज़ बिना संकोच के सकारात्मक ढंग से खेल पाते हैं। छोटी ग़लतियों पर भी बल्लेबाज़ प्रहार करते हैं, इसकी एक बानगी दिखी जब ट्रैविस हेड ने डीप थर्ड की ओर गेंद को कट किया और वह कैच आउट हो गए। हालांकि हेड रोज़ ऐसा नहीं करेंगे।
कोई भी टीम इस तरह के दिन में हार सकती है। इससे ज़्यादा कुछ भी कहना ज़रूरत से ज़्यादा कठोर होगा। हालांकि चुनौती तो सामने खड़ी हो ही गई है। भार अब इस सीरीज़ में अपने कंफ़र्ट ज़ोन से बाहर होगा। चयन और परिस्थितियों में तुरंत ढलने की मांग दोनों ही मोर्चों पर उनकी परीक्षा होगी।
इतनी छोटी पारियों पर रोहित (8) और विराट कोहली(0) दोनों को आंकना काफ़ी मुश्किल है और हर मैच में उन्हें ट्रायल पर रखना भी उचित नहीं है। लेकिन यह उनके लिए अनुभव की उपयोगिता साबित करने का सुनहरा मौक़ा भी है।
टीम चयन की बात करें तो शुभमन गिल ने कुलदीप को बाहर रख बीच के ओवरों के लिए अपने आक्रामक विकल्प सीमित कर लिए। हर्षित राणा को नौवें नंबर पर बल्लेबाज़ी के विकल्प में रखकर यह संयोजन भारत को बल्लेबाज़ी में गहराई प्रदान करता है लेकिन इसका मतलब है कि भारत को ऑस्ट्रेलियाई परिस्थितियों में 20 ओवर फ़िंगर स्पिन और एक पार्ट टाइम तेज़ गेंदबाज़ी विकल्प से कराने होंगे, वह भी तब जब अन्य तीन तेज़ गेंदबाज़ पूरे 30 ओवर की गेंदबाज़ी कर सकें।
आदर्श स्थिति में भारत ऐसी परिस्थिति चाहेगा जहां दो तेज़ गेंदबाज़ और एक तेज़ गेंदबाज़ी ऑलराउंडर के विकल्प के साथ उतरना उसके लिए पर्याप्त हो, जिससे उनके लिए एक कलाई के स्पिनर या मिस्ट्री स्पिनर के लिए जगह बच जाए। उन्हें ऐसी परिस्थितियां 2027 के विश्व कप में मिल सकती हैं लेकिन वो टूर्नामेंट भी साउथ अफ़्रीका, ज़िम्बाब्वे और नामीबिया की गर्मियों की शुरुआत वाली परिस्थितियों में खेला जाएगा।
यदि भारत को आगे पर्थ जैसी परिस्थितियां मिलती हैं तो उन्हें तीन प्रमुख तेज़ गेंदबाज़ों के साथ उतरने पर मजबूर होना पड़ सकता है जहां बीच के ओवरों में विकेट लेने की क्षमता सुनिश्चित करने की क़ीमत पर बल्लेबाज़ी में गहराई पर ज़ोर देने की उनकी परीक्षा होगी।

सिद्धार्थ मोंगा ESPNcricinfo के वरिष्ठ लेखक हैं।