मैच (12)
IPL (2)
Women's One-Day Cup (1)
त्रिकोणीय वनडे सीरीज़, श्रीलंका (1)
PSL (1)
County DIV1 (3)
County DIV2 (4)
फ़ीचर्स

रैंक टर्नर का फ़ायदा क्यों नहीं उठा पाती भारतीय टीम

ऐसी पिच जहां बल्लेबाज़ी आसान नहीं होती, वहां विपक्षी टीम के कम स्किल वाले गेंदबाज़ भी गेम में आ जाते हैं

घर पर पिचों के बारे में लोगों का बात करना भारतीय खिलाड़ियों को पसंद नहीं है। इसकी एक वजह टर्निंग ट्रैक का वर्णन किए जाने के लिए उपयोग में लाई जाने वाली शब्दावली है : डस्टबॉल, रैंक टर्नर, रेसलिंग पिच। वे नहीं चाहते कि टर्निंग पिच पर होने वाले तीन दिवसीय टेस्ट को ग्रीन पिच पर खेले जाने वाले तीन दिवसीय टेस्ट से कमतर माना जाए।
2023 के वनडे वर्ल्ड कप में भी पांच वेन्यू जहां पिच औसत पिच तैयार की गईं, उनमें से तीन वेन्यू पर भारत ने मैच खेले। अब कौन सी पिच औसत या अच्छी होती है, यह एक बहस का विषय हो सकता है लेकिन इस बात के पूरे संकेत थे कि भारत ख़ास टीमों के ख़िलाफ़ ख़ास तरह की पिचों पर खेलना चाहता था और ICC टूर्नामेंट में भारतीय टीम की इच्छाएं पूरी की गईं।
यहां यह कहा जा सकता है कि पेशेवर खेल में फ़ायदा उठाने में कुछ भी ग़लत नहीं है। ग्राउंडस्मेन आदर्श पिच बनाने के लिए नहीं, होम टीम को जीत में मदद कर सकने वाली पिच तैयार करते हैं और ऑस्ट्रेलिया को छोड़कर ऐसा लगभग हर जगह होता है। इंग्लैंड में पिच इस प्रवृत्ति की हैं कि किसी विशेष ऐशेज़ साइकिल में ऑस्ट्रेलिया के मज़बूत पक्ष को देखते हुए उन पिचों को तेज़ गेंदबाज़ों के लिए मददगार बनाने के साथ ही टर्निंग ट्रैक में भी तब्दील किया जा सकता है। हाल ही में पाकिस्तान में राष्ट्रीय चयनकर्ताओं ने पिच तैयार करने की प्रक्रिया अपने हाथ में ले ली है। गौतम गंभीर ख़ुद भी जब एक खिलाड़ी थे तब उन्होंने भारत में मेहमान टीमों के लिए रैंक टर्नर बनाने की वकालत की थी।
पुणे और मुंबई में जैसी पिच पर भारत ने न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ खेला उसको लेकर इस बात पर बहस ज़रूर की जा सकती है कि इसने वास्तव में भारत के घरेलू परिस्थितियों में मिलने वाले फ़ायदे को कम ही किया। पिछले 12 वर्षों में घर पर हारे सात टेस्ट मैचों में चार हार भारत को स्पिन की मददगार पिच पर मिली हैं। अन्य तीन हार में एक बेंगलुरु वाली हार शामिल थी जहां पिच से शुरुआत में ख़ासकर पहले दिन की सुबह काफ़ी सीम मिली और दूसरी हैदराबाद की हार शामिल थी जो ओली पोप की भाग्यशाली पारी के कारण संभव हो पाई।
तीसरी हार चेन्नई में 2021 में इंग्लैंड के ख़िलाफ़ मिली थी जब जो रूट ने पहले बल्लेबाज़ी का फ़ैसला किया था। इसके बाद से ही पहले दिन से ही अत्यधिक टर्न की मांग बढ़ गई है। यह एमएस धोनी के उस सिद्धांत की पुष्टि करता प्रतीत होता है कि पहले दिन से ही टर्न प्राप्त करने वालीं पिचों पर तोड़ बेहद अहम हो जाता है। इसमें एक अहम योगदान वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप (WTC) साइकिल में घरेलू परिस्थितियों का फ़ायदा उठाकर अधिक से अधिक अंक बटोरने की चाह ने भी निभाया।
हालांकि इस बात का प्रमाण भी नहीं है कि रैंक टर्नर पर टॉस कम महत्वपूर्ण हो जाता है। लंबे समय तक भारत के पास ऐसे बल्लेबाज़ थे जो टॉस हारने के चलते सामने आने वाली चुनौतियों से निपट सकते थे।
ऐसी पिचों पर खेलने की इच्छा जहां गेंद पहले दिन से ही टर्न लेती हों और समय के साथ बल्लेबाज़ी करना कठिन हो जाता हो, इसका एक नुक़सान यह हुआ कि ऐसा करके भारत ने अपने बेहतरीन स्पिनर और मेहमान टीम के कम स्किल वाले स्पिनरों के बीच के अंतर को पाट दिया।
न्यूज़ीलैंड को 3-0 से मिली जीत में सामूहिक तौर पर स्पिनरों की औसत 24 से कम रही। ESPNcricinfo के शिवा जयरमन ने बताया कि 2017 से लेकर अब तक जब भी टेस्ट में स्पिनरों की औसत 24 से कम रही, उनमें भारतीय स्पिनरों की औसत 16.37 जबकि स्पिनरों की औसत 22.91 की रही।
2020 से लेकर अब तक छह मेहमान स्पिनर ने भारत में टेस्ट क्रिकेट में पहला पांच विकेट हॉल लिया है। घर पर जब बल्लेबाज़ी कठिन हो जाती है, उस दौरान भारतीय बल्लेबाज़ों की औसत में काफ़ी कमी देखने को मिली है। उदाहरण के तौर पर, 2017 से लेकर अब तक जिन पिचों पर स्पिनरों की औसत 24 के ऊपर गई है, उन पिचों पर विराट कोहली ने स्पिनरों के ख़िलाफ़ 90.25 की औसत से रन बनाए हैं। लेकिन इसी अवधि में जिन पिचों पर स्पिनरों की औसत प्रति विकेट 24 की औसत से कम है, वहां कोहली ने 20.13 की औसत से ही रन बनाए हैं।
रोहित शर्मा और राहुल द्रविड़ के दौर में भारत ने टेस्ट क्रिकेट में जैसी पिच मिली उस हिसाब से खेलने का निर्णय लिया। 2024 की शुरुआत में इंग्लैंड के ख़िलाफ़ मिली हार के बावजूद उन्होंने ऐसा करना जारी रखा। उन्होंने वो श्रृंखला 4-1 से जीती।
अगर भारत ने मुंबई और पुणे में टॉस जीत लिया होता तो वह अंतिम दो टेस्ट मैच जीत भी सकते थे। लेकिन अब भारत के पास टॉस हारने की स्थिति में होने वाले नुक़सान से निपटने के लिए उस क्वालिटी के बल्लेबाज़ नहीं हैं।
2017 से लेकर अब तक भारत ने ऐसी पिचों जहां पर स्पिनरों की औसत प्रति विकेट 24 से अधिक रही है, वहां पर 16 टेस्ट जीते हैं, पांच मैच ड्रॉ हुए हैं और तीन मैच हारे हैं। जबकि अधिक विषम परिस्थितियों में भारत ने 10 मैच जीते हैं और चार मैच हारे हैं। टॉस हारने पर यह आंकड़ा 6-2-3 और 6-3 हो जाती है। पिछले कुछ वर्षों में बहादुरी और जुए के बीच का फ़र्क धुंधला गया है।

सिद्धार्थ मोंगा ESPNcricinfo के वरिष्ठ लेखक हैं। अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी के कंसल्टेंट सब एडिटर नवनीत झा ने किया है।