कोहली और रोहित की वनडे विरासत रनों और शतकों से नहीं मापी जा सकती
वनडे क्रिकेट में उनका योगदान पहचान और विश्वास पर आधारित है
ग्रेग चैपल
23-Oct-2025 • 6 hrs ago
कोहली और रोहित की सामूहिक यात्रा पर एक नज़र • ICC via Getty Images
लेखक और दार्शनिक बो बेनेट ने एक बार कहा था कि "सफलता यह नहीं है कि आपके पास क्या है बल्कि सफलता यह है कि आप क्या हैं।" ऐसे दौर में जहां क्रिकेट अमूमन छोटे प्रारूपों और तात्कालिक संतुष्टि के आगे झुक जाता है वहां दो भारतीय दिग्गजों ने अपनी अलग पहचान बनाए रखी, न सिर्फ़ इसलिए कि जितने रन उन्होंने बनाए बल्कि इसलिए कि वह किस तरह के व्यक्ति बने। आधुनिक भारतीय क्रिकेट के दो स्तंभ विराट कोहली और रोहित शर्मा अपनी अलग-अलग यात्राओं के ज़रिए अपनी विरासत गढ़ी जिसमें अपार कौशल, कड़ी तैयारी और 50 ओवर के प्रारूप के प्रतित अटूट सम्मान शामिल हैं।
कोहली कभी भी सिर्फ़ एक बल्लेबाज़ नहीं रहे, वह एक आंदोलन थे। 2008 में वनडे क्रिकेट में उनका आगमन एक नई उम्मीद के साथ हुआ था। और 2017 तक आते-आते वह पूर्णकालिक कप्तान बन गए और उन्होंने एक परिवर्तनशील टीम की कप्तानी संभाली। उन्होंने भारत की वनडे टीम को एक तेज़ और फ़िट टीम में बदल दिया जो घर और बाहर जीतने के लिए खेलती थी।
हालांकि जो बात उन्हें अपने से पहले आए दिग्गजों से भी अलग बनाती थी, वह थी व्यक्तिगत आंकड़ों के बारे में बिल्कुल भी चिंता न करना। जब पूरी दुनिया शतकों और रिकॉर्ड्स पर चर्चा में लगी रहती थी, तब कोहली की परवाह सिर्फ़ नतीजे से संबंधित होती थी। उन्होंने एक बार कहा था कि वह भारत के लिए खेलते हैं, रिकॉर्ड्स के लिए नहीं। यही भावना उनके नेतृत्व को परिभाषित करती थी। भारतीय क्रिकेट की कहानी अक्सर व्यक्तिगत उपलब्धियों के इर्द-गिर्द घूमती थी, लेकिन कोहली कुछ बड़ा हासिल करना चाहते थे। उनके लिए असली मायने आंकड़ों के नहीं बल्कि विरासत के थे।
उनके नेतृत्व में भारत ने 2018-19 की वनडे सीरीज़ में ऑस्ट्रेलिया को 2-1 से हराया। टीम ने घर में अपना दबदबा बनाए रखा और द्विपक्षीय सीरीज़ से लेकर ICC टूर्नामेंट तक लगभग हर जगह शानदार प्रदर्शन किया। कोहली ने रन चेज़ को प्राथमिकता दी और ऐसे फ़िनिशरों की टीम तैयार की जो दबाव की स्थिति में भी किसी भी टीम को हिला सकते थे। उन्होंने भारतीय टीम के रवैये को प्रतिक्रिया देने वाली मानसिकता से बदलकर लगातार आक्रामक बनाने की दिशा दी।
एकतरफ़ जहां कोहली की सफलता तेज़ी से आई और उनकी पहचान उनकी तीव्रता से बनी, वहीं रोहित का सफर महानता तक पहुंचने का एक धीमा लेकिन दृढ़ रास्ता था। सालों तक उन्होंने सीमित ओवरों के क्रिकेट में अपनी टाइमिंग, ठहराव और खू़बसूरती से सबको प्रभावित किया। उनका नाम हर घर तक पहुंचा, लेकिन यह सफ़र आसान नहीं था। 2007 में डेब्यू करने के बावजूद लगातार प्रदर्शन में अस्थिरता और मध्यक्रम में संघर्ष के कारण वह लंबे समय तक टीम में अपनी जगह पक्की नहीं कर सके, खासकर बड़े टूर्नामेंटों में।
फिर आया 2013 का साल। इंग्लैंड के ख़िलाफ़ घरेलू सीरीज़ में जब उन्हें पारी की आगाज़ करने का मौक़ा मिला, तो उन्होंने पूरे आत्मविश्वास के साथ इस अवसर को भुना लिया। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ उनका दोहरा शतक आया। उसी साल फिर ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ एक और शानदार शतक आया। स्विंग गेंदबाज़ी के ख़िलाफ़ वह अचानक काफ़ी सहज नज़र आने लगे। उनके तकनीक और विश्वास में काफ़ी कुछ बदल चुका था। इसके बाद जो हुआ, वह भारतीय क्रिकेट में सबसे अद्भुत कहानियों में से एक बन गया। ऐसा नहीं है कि रोहित ने सिर्फ़ वनडे क्रिकेट के अनुरूप खु़द को ढाला, बल्कि उसे पूरी तरह से अपने नियंत्रण में ले लिया।
उनकी बल्लेबाज़ी को अक्सर सहज कहा जाता था, लेकिन अब उसमें ज़िम्मेदारी का भार भी जुड़ चुका था। उनका छोटा लेकिन प्रभावी पुल शॉट, स्पिन के ख़िलाफ़ तेज़ और सटीक फ़ुटवर्क, और ऑफ़ स्टंप के बाहर संयम, यह सब मिलकर उन्हें ऐसा बल्लेबाज़ बनाते थे जो संघर्ष भी कर सकता था और सौंदर्य भी दिखा सकता था। 2014 में श्रीलंका के ख़िलाफ़ उनका 264 रनों का तूफ़ानी स्कोर उन्हें रिकॉर्ड बनाने वालों की सूची में स्थायी रूप से स्थापित कर गया। वहीं 2023 वनडे विश्व कप में उनका संतुलित नेतृत्व यह दिखाता था कि वह दबाव के बीच भी सहज बने रह सकते हैं।
जब कोहली ने 2021 में कप्तानी छोड़ी, तो यह ज़िम्मेदारी रोहित ने संभाली। यह किसी हंगामे या आग्रह से नहीं बल्कि उनकी शांत तैयारी से संभव हुआ। जहां कोहली मैदान पर दहाड़ते थे, वहीं रोहित देखते और सोचते थे। उनकी कप्तानी का आधार शांति, स्पष्ट योजना और युवा खिलाड़ियों को अडिग समर्थन देना था। वह कैमरे के पीछे नहीं भागते। वह अपने खेल से सब कुछ बयां कर देते थे और उनका खेल बहुत स्पष्टता से बोलता है।
उनकी कप्तानी अलग-अलग स्वभाव की थीं, लेकिन दोनों का उद्देश्य एक ही था कि भारत को वनडे में को सर्वश्रेष्ठ बनाना है। कोहली ने 95 वनडे में कप्तानी की और 65 में जीत दर्ज की। यह किसी भी भारतीय कप्तान के लिए सबसे अच्छे आंकड़ों में से एक है। उनका 68 प्रतिशत से अधिक का जीत प्रतिशत दुनिया की सबसे मज़बूत टीमों और कठिन परिस्थितियों में आया। रोहित, जो इस भूमिका में नए थे, उन्होंने लगभग आधे मैचों में नेतृत्व किया लेकिन उनका जीत प्रतिशत ( 75 प्रतिशत) इससे भी बेहतर रहा। दोनों ने मिलकर यह सुनिश्चित किया कि भारत सिर्फ़ टेस्ट में नहीं बल्कि वनडे में भी सबसे मज़बूत टीमों में से एक टीम बना रहे।
तकनीकी दृष्टि से कोहली का खेल आग में तपकर निखरा। ख़ासकर ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और साउथ अफ़्रीका के धुरंधरों के ख़िलाफ़ उनकी महारत ने उन्हें आधुनिक युग का योद्धा बना दिया। उनका कवर ड्राइव सिर्फ़ एक शॉट नहीं बल्कि हिम्मत और नफ़ासत का प्रतीक बन गया। मैदान से बाहर भी उनकी फ़िटनेस, अनुशासित खानपान और निरंतर सुधार के प्रति प्रतिबद्धता ने उन्हें एक उदाहरण बना दिया।
दूसरी तरफ़ रोहित लय पर खिलते हैं। उनकी स्ट्रोकप्ले टाइमिंग की पाठशाला है। बहुत कम बल्लेबाज़ स्पिन को उनसे बेहतर खेलते हैं, और पुल शॉट में तो शायद कोई भी उनका मुकाबला नहीं कर सकता। वह शुरुआत में गेंदबाज़ों पर हावी नहीं होते। पहले उन्हें मात देते हैं, फिर लगातार तोड़ते जाते हैं। मानसिक रूप से दोनों ही खिलाड़ी मज़बूत थे। कोहली विरासत की आग से प्रेरित थे, जबकि रोहित उस सुकून से जिसमें उन्हें यक़ीन था कि उनका समय आएगा।
खेल के साथ ही कोहली और रोहित अपने व्यक्तित्व के लिए भी याद किए जाएंगे•ICC/Getty Images
कई पल ऐसे भी आए जब उन्होंने सिर्फ़ चमक नहीं दिखाई, बल्कि खेल को रोक दिया। 2012 एशिया कप में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कोहली की 183 रनों की पारी ने दिखाया कि वह दबाव में पीछे हटने वालों में नहीं हैं। 2018 और 2019 में ऑस्ट्रेलिया में भारत की ऐतिहासिक सीरीज़ जीत में उनका नेतृत्व भारतीय क्रिकेट के इतिहास का अहम अध्याय बन गया।
रोहित की 264 रन की पारी ने उन्हें वनडे क्रिकेट में एक अदभुत मुक़ाम दे दिया। फिर 2019 विश्व कप में उनके पांच शतक तो एक ऐसा प्रदर्शन था, जहां उन्होंने विश्व के सबसे बेहतरीन आक्रमणों को सहजता से शांत किया। हाल ही में,कप्तान के तौर पर 2023 विश्व कप अभियान में उनकी सामरिक सूझबूझ कमाल की थी।
लेकिन वनडे में व्यक्तिगत प्रतिभा से परे कुछ और भी दुर्लभ था: टेस्ट क्रिकेट के प्रति उनका प्रेम और समर्पण। कोहली इसे ज़ाहिर करने में कभी नहीं हिचकिचाए। उन्होंने इस फ़ॉर्मैट की शुद्धता के बारे में अक्सर बात की। उन्होंने सफ़ेद जर्सी में खेलने की परवाह करने को फिर से 'कूल' बना दिया। रोहित ने अपने परिवर्तन के ज़रिए दिखाया कि टेस्ट क्रिकेट उन्हें पुरस्कृत करता है जो इसकी गति का सम्मान करते हैं।
एक ऐसे दौर में जहां खिलाड़ी अक्सर लीग, प्रसिद्धि और IPL कॉन्ट्रैक्ट्स का पीछा करते हैं, कोहली और रोहित 'नैचुरल' थे जो एक दशक से अधिक समय तक अपनी फ़्रैंचाइज़ी का चेहरा बन गए। फ़ॉर्मैट कोई भी हो, उन्होंने उस पर दबदबा बनाए रखा। वे कभी भी 'वायरल' होने की कोशिश नहीं कर रहे थे। साथ ही वे 'अति आवश्यक' बनने की कोशिश भी नहीं कर रहे थे।
उनकी प्रशंसा हर जगह से आई। माइकल वॉन ने वनडे खिलाड़ी के रूप में कोहली की प्रशंसा की, और रवि शास्त्री ने सफलता का पीछा करने की उनकी ज़िद को सराहा। बेन स्टोक्स ने रोहित के शांत नियंत्रण की तारीफ़ की। स्टीव स्मिथ ने कोहली की प्रतिस्पर्धी भावना की प्रशंसा की। अजिंक्य रहाणे ने एक बार कहा था कि रोहित हमेशा आपको यह महसूस कराते थे कि टीम सबसे पहले आती है। उनके साथी उन्हें प्यार करते थे। उनके विरोधी उनका सम्मान करते थे। उनके प्रशंसक उन्हें महज़ बल्लेबाज़ नहीं बल्कि एक ऐसा खिलाड़ी के तौर पर पहचानेंगे, जिन्होंने कुछ नया और सुदृढ़ करने का प्रयास किया था।
अब जैसे-जैसे क्रिकेट जगत आगे बढ़ रहा है, नए नाम उभरेंगे। नए कप्तान नेतृत्व करेंगे। लेकिन यह स्वर्णिम अध्याय (कोहली-रोहित युग) न केवल रिकॉर्ड बुक्स में, बल्कि हर उस प्रशंसक के दिल में अंकित रहेगा। कोहली का जुनून, उनका संतुष्ट न होना, आंकड़ों से ऊपर विरासत में उनका विश्वास। रोहित की नज़ाकत, उनकी विनम्रता और उनका 'रिडेम्प्शन आर्क' ने हम सभी को याद दिलाया कि समय ही सब कुछ है - क्रिकेट में भी, और ज़िंदगी में भी।
पूर्व ऑस्ट्रेलियाई कप्तान ग्रेग चैपल ने ऑस्ट्रेलिया के लिए 87 टेस्ट खेले। वह भारत के कोच और ऑस्ट्रेलिया के चयनकर्ता भी रह चुके हैं।