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हिचकोलों और गड्ढों से भरी है बिहार क्रिकेट की पिच

बिहार के जर्जर हो चुके इकलौते मोइन-उल-हक़ स्टेडियम को नए सिरे से बनाने का तेजस्वी यादव ने लिया संकल्प

बिहार और झारखंड में हुए बंटवारे के बाद पहली बार रणजी ट्रॉफ़ी के एलिट ग्रुप में जगह बनाने वाली बिहार क्रिकेट टीम इन दिनों काफ़ी सुर्ख़ियों में है। विडंबना ये है कि ये सुर्ख़ियां मैदान के अंदर कम और बाहर ज़्यादा छाई हैं। मुंबई के ख़िलाफ़ जब बिहार ने अपने घरेलू और इकलौते क्रिकेट स्टेडियम में इस सीज़न (2024) का पहला रणजी मैच खेला, तो क्रिकेट पिच से ज़्यादा मोइन-उल-हक़ के जर्जर स्टैंड्स और बिहार क्रिकेट एसोसिएशन (BCA) द्वारा लगाए गए 'प्रवेश निषेध' के पोस्टरों से ख़ूब जगहंसाई हुई। साथ ही एक ही मैच के लिए काग़ज़ पर बिहार की दो टीमों का ऐलान होना तो अद्भुत था।
ESPNcricinfo ने जब इस ख़बर को प्रमुखता से दिखाया तो बिहार के उप-मुख्यमंत्री और पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी तेजस्वी यादव ने भी इसका संज्ञान लिया। दरअसल, BCA को मोइन-उल-हक़ क्रिकेट स्टेडियम बिहार सरकार ने खेलने के लिए लीज़ पर दिया हुआ है। BCA में क्रिकेट ऑपरेशंस, जेनरल मैनेजर के पद पर कार्यरत सुनील सिंह ने ESPNcricinfo को बताया, "बिहार सरकार की ओर से हमें ये पूरा स्टेडियम नहीं मिला है, बल्कि पिच सहित मैदान ही हमारे लिए हैं। मैदान के अलावा स्टैंड्स, पवेलियन ये सबकुछ बिहार सरकार के अंदर ही है। लिहाज़ा हम जर्जर हो रहे स्टैंड्स की न मरम्मत करा सकते हैं और न ही उसकी देखभाल हमारी ज़िम्मेदारी है। इसलिए ही हमने वे पोस्टर लगवाए हैं ताकि आने वाले दर्शकों के साथ कोई अनहोनी न हो जाए।"
सवाल सिर्फ़ जर्जर दिख रहे स्टेडियम का नहीं है, बल्कि उस सिस्टम और ढांचे पर भी है जो स्टेडियम से ज़्यादा जर्जर और ख़तरनाक है। यहां तक कि जिस पिच और आउटफ़िल्ड पर रणजी ट्रॉफ़ी के मैच खेले जा रहे हैं वह भी BCCI के मापदंडों में औसत से भी नीचे है। स्थानीय पिच क्यूरेटर के मुताबिक़, "सच कहूं तो यहां की पिच और आउटफ़िल्ड प्रथम श्रेणी के मुक़ाबले के लायक़ नहीं। BCCI के मापदंडो के हिसाब से आउटफ़िल्ड को मैं दस में से पांच जबकि पिच को दस में से दो या ढाई अंक ही दूंगा।"
इन बातों की तस्दीक हमने बिहार के उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी से भी और उनसे ये जानना चाहा कि बतौर पूर्व खिलाड़ी उन्हें ये बदहाली कितना झकझोर देती है।
"मैंने ख़ुद इस मैदान पर काफ़ी क्रिकेट खेला है और यहां के हालात से पूरी तरह वाक़िफ़ हूं, लेकिन अच्छी ख़बर ये है कि इस स्टेडियम को नए सिरे बनाने का फ़ैसला ले लिया गया है। अभी रणजी मैच चल रहे हैं, जैसे ही रणजी के मुक़ाबले ख़त्म होंगे तो इस स्टेडियम को तोड़कर हम नए सिरे से बनवाएंगे। मोइन उल हक़ एक बार फिर से अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट मैचों की भी मेज़बानी करेगा। मुझे याद है जब 1996 में यहां विश्व कप का मैच हुआ था और मैं तब यहां मौजूद भी था।"
तेजस्वी यादव, उप-मुख्यमंत्री, बिहार
बिहार में सिर्फ़ एक ही क्रिकेट स्टेडियम है जो प्रथम श्रेणी मुक़ाबले की मेज़बानी करने के क़ाबिल है। हालांकि पटना में एक और स्टेडियम है जहां पिछले सीज़न रणजी ट्रॉफ़ी का मैच खेला गया था। ऊर्जा स्टेडियम - लेकिन उस स्टेडियम की आउटफ़िल्ड काफ़ी छोटी है इसलिए अब वहां रणजी के मैच नहीं होते।

BCA की आपसी लड़ाई का ख़ामियाज़ा भुगत रहा खेल?

बिहार में सिर्फ़ स्टेडियम या पिच ही ऐसी नहीं कि जिसकी मरम्मत की ज़रूरत हो बल्कि यहां टीम चयन पर भी सवाल हैं। रणजी ट्रॉफ़ी के लिए बिहार क्रिकेट टीम का चयन पहले मैच से सिर्फ़ दो दिन पहले हुआ था। लिहाज़ा चुने गए खिलाड़ियों के लिए मुंबई जैसी टीम के ख़िलाफ़ मैच से पहले कैंप या प्रैक्टिस का भी समय नहीं था। शायद एक बड़ा कारण ये भी रहा कि बिहार ने अपना पहला मैच मुंबई के ख़िलाफ़ पारी और 51 रन से गंवा दिया।
सुनील सिंह ने कहा, "ये सही है कि रणजी के पहले मैच से पहले कोई कैंप नहीं लगा लेकिन टीम का चयन पूरी पारदर्शिता के साथ हुआ था। हमने दो कैंप लगाए थे जिसमें पहले कैंप में कई खिलाड़ी शामिल हुए थे और उन्हें अलग-अलग टीमों में बांटकर उनके बीच मैच आयोजित किए गए। जिसमें कुछ खिलाड़ियों को हमने शॉर्टलिस्ट किया और फिर दूसरे कैंप में भी उन खिलाड़ियों को हमने देखा। जिसके बाद उन खिलाड़ियों को फिर एक ट्रायल से भी गुज़रना पड़ा और फिर हमने उसी आधार पर सर्वश्रेष्ठ टीम का चयन किया। साकिब (साकिब हुसैन जिन्हें हाल ही में IPL नीलामी में कोलकाता नाइट राइडर्स ने अपने साथ जोड़ा है) या यशस्वी (टॉप ऑर्डर बल्लेबाज़) सभी ही किसी न किसी टीम में खेल रहे हैं और जब हमें लगेगा तो उन्हें रणजी टीम में भी चुना जाएगा।"
सुनील सिंह की इन बातों के उलट ESPNcricinfo को बिहार के एक वर्तमान खिलाड़ी के पिता ने बताया है कि चयन में सबकुछ साफ़ नहीं है। उनके बेटे को टीम में बने रहने के लिए पैसा देने का भी दबाव दिया गया, और जब उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया तो उसका चयन नहीं हुआ। खिलाड़ी के पिता ने ये जानकारी नवंबर 2022 में ही मेल के ज़रिए BCA के उस समय के सचिन अमित कुमार को दी थी। सचिव अमित को पिछले साल BCA के अध्यक्ष राकेश तिवारी ने निलंबित कर दिया है। अमित ने इसके ख़िलाफ़ कोर्ट का भी दरवाज़ा खटखटाया है और ये मामला अभी कोर्ट में लंबित है।
हमने चयन को लेकर लगे इन आरोपों पर BCA अधिकारी से भी सफ़ाई लेना चाहा। लेकिन उन्होंने ये कहते हुए ख़ारिज कर दिया कि, "हम इसका क्या और क्यों जवाब दें, कई लोग कुछ भी बकवास करते रहते हैं। मुझे इसपर कुछ नहीं कहना।"
जबकि रणजी ट्रॉफ़ी के 2021-22 सीज़न में बिहार क्रिकेट के मुख्य कोच और 2019-20 सीज़न के दौरान चयन समिति के चेयरमैन रह चुके ज़िशान उल यक़ीन ने कहा कि इस तरह की शिकायतें आम हैं।
"बिहार क्रिकेट का भला तब ही हो सकता है जब BCA के अंदर चल रही राजनीति को पूरी तरह से दूर किया जाए। खिलाड़ियों के चयन में पैसों के खेल से इंकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि कई खिलाड़ियों ने इसकी शिकायत मुझसे भी की थी जब मैं बिहार का मुख्य कोच था। हालांकि इसमें कोई शक़ नहीं है कि बिहार में कई प्रतिभाशाली क्रिकेटर हैं जिनके साथ चयन में पारदर्शिता की कमी नज़र आ रही है और उन्हें पर्याप्त मौक़े नहीं मिल पा रहे हैं।"
ज़िशान उल यक़ीन, पूर्व कोच और चयनकर्ता, बिहार
बिहार क्रिकेट की ये तस्वीर काफ़ी दुखद है, बिहार अब कई वर्षों से घरेलू क्रिकेट में ताक़तवर नहीं रहा है और BCA की अंदरूनी कलह इसका एक प्रमुख कारण है। बिहार भारत में क्रिकेट का सबसे बड़ा केंद्र नहीं है, लेकिन आपको याद दिलाते चलें बिहार की टीम 1975-76 सीज़न में रणजी ट्रॉफी के फाइनल में भी पहुंची थी। बिहार ने शुते बनर्जी, प्रकाश भंडारी, सुब्रतो बनर्जी, सबा करीम और एमएस धोनी जैसे बेमिसाल खिलाड़ी दिए हैं। लेकिन अफ़सोस इस बात का है कि मौजूदा हालात युवा और उभरते हुए बिहार के क्रिकेटरों के लिए आदर्श नहीं।

सैयद हुसैन ESPNCricinfo हिंदी में मल्टीमीडिया जर्नलिस्ट हैं।@imsyedhussain