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जब हमारी विश्वास और निराशा, सब कुछ गावस्कर पर ही टिकी रहती थी

विश्व क्रिकेट पर राज करने से दशकों पहले भारत को गावस्कर ने इस खेल में पहली वैश्विक पहचान दी थी

Sunil Gavaskar drives down the ground, England v India, 1st Test, Lord's, 3rd day, June 12, 1982

सुनील गावस्‍कर को उन दिनों ब‍िना हेल्‍मेट बल्‍लेबाज़ी करने के लिए जाना जाता था  •  PA Photos

मैं उस समय 20 साल का भी नहीं रहा होऊंगा, जब सुनील गावस्कर संन्यास लिए थे। उन्होंने इससे पहले कोई चेतावनी, कोई संकेत नहीं दिए थे। बस अचानक से पता चला कि वह सफ़ेद स्कल कैप में फिर से बल्लेबाज़ी करते हुए नहीं दिखाई देंगे। उस समय तक क्रिकेट ही एक ऐसा खेल था, जिसके बारे में मैं कुछ जानता था। गावस्कर के संन्यास लेने के बाद एक बार तो मुझे ऐसा भी लगा कि मैं आगे कभी क्रिकेट नहीं देखूंगा। उनका जाना मुझे एक धोखा सा लगा।
कुछ महीने पहले ही तो उन्होंने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ एक महान टेस्ट पारी खेली थी।
एक टर्निंग बेंगलुरू पिच, जहां पाकिस्तानी टीम पहले ही दिन 116 पर ऑलआउट हुई और भारत की तरफ़ से पहली पारी का सर्वाधिक स्कोर दिलीप वेंगसरकर का 50 रन था, वहां गावस्कर ने चौथी पारी में कमाल दिखाया और 96 रनों की एक बेहतरीन पारी खेली।
भारत की तरफ़ से वह 8वें बल्लेबाज़ के रूप में आउट हुए। जब तक वह क्रीज़ पर थे, तब तक 221 का लक्ष्य हासिल होता दिख रहा था। हालांकि वह आउट हुए और भारतीय टीम 204 के स्कोर पर सिमट गई और मैच 16 रनों से हार गई। हारी हुई टीम का होने के बावजूद भी गावस्कर को उनकी इस दृढ़ संकल्प भरी पारी के लिए प्लेयर ऑफ़ द मैच चुना गया।
इससे कुछ साल पहले ही गावस्कर ने इंग्लैंड के ख़िलाफ़ शानदार दोहरा शतक लगाकर 438 रनों के लक्ष्य को लगभग संभव ही बना दिया था। भारत इस मैच में अंतिम गेंद फेंके जाने से पहले सिर्फ़ नौ रन पीछे रह गया था और मैच ड्रॉ हो गया।
बेंगलुरू मैच में जावेद मियांदाद के कहने पर पाकिस्तानी कप्तान इमरान ख़ान ने लेग स्पिनर अब्दुल क़ादिर की जगह दो उंगलियों के स्पिनरों को अंतिम एकादश में जगह दी। बाएं हाथ के स्पिनर इक़बाल क़ासिम ने वसीम अकरम के ख़िलाफ़ पारी की शुरुआत की, वहीं ऑफ़ स्पिनर तौसिफ़ अहमद भी जल्द ही आक्रमण पर लगा दिए गए। दोनों ने भारत की दूसरी पारी के दौरान लगभग 94 ओवरों में कुल 83 ओवर किए।
उस पारी में गावस्कर के अलावा सिर्फ़ तीन भारतीय बल्लेबाज़ दहाई के स्कोर तक पहुंच पाए, वहीं मोहम्मद अज़हरूद्दीन एकमात्र बल्लेबाज़ थे, जिन्होंने 20 के ऊपर का स्कोर बनाया। लेकिन अपनी तकनीक और फ़ुटवर्क के बल पर गावस्कर एक छोर पर बने रहे। उन्होंने गेंद का इंतज़ार किया, उसे शरीर के क़रीब आने दिया और काफ़ी लेट से हल्के हाथों से स्ट्रोक खेलें।
चौथी पारी की पिच होने के कारण पिच में दोहरा उछाल था और स्पिनरों को टर्न के साथ-साथ बाउंस भी मिल रहा था। कुछ गेंदो ने बाहरी किनारा लिया, कुछ गेंदें गुड लेंथ से उछलकर ग्लव्स पर भी लगीं और गावस्कर के साथी एक-एक करके पवेलियन लौटते रहें। लेकिन एक छोर पर दृढ़तापूर्वक खड़े गावस्कर ने अपनी टीम को मुक़ाबले में बनाए रखा।
96 का स्कोर था, जब गावस्कर आउट हुए। लेंथ पर पड़कर गेंद ने स्पिन होकर तेज़ी से उछाल लिया और गेंद उनके ग्लव्स पर लगकर नज़दीकी फ़ील्डर के हाथों में समा गई। इससे पहले अंपायर उंगली उठाते, गावस्कर ग्लव्स निकालकर ख़ुद पवेलियन लौटने लगे। किसे पता था कि यह उनकी अंतिम टेस्ट पारी होने वाली है!
हालांकि इस मैच के बाद उन्होंने कुछ ऐसी चीज़े भी की, जो वह अपने करियर में लंबे समय से करना चाहते थे, लेकिन नहीं कर पाए थे। उन्होंने MCC के ख़िलाफ़ रेस्ट ऑफ़ वर्ल्ड के लिए खेलते हुए लॉर्ड्स में शतक लगाया और फिर काऊ कॉर्नर पर कुछ बेहतरीन शॉट्स लगाते हुए न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ एक घरेलू विश्व कप मैच में अपने वनडे करियर का एकमात्र शतक ठोका।
सालों बाद जब मैं खेल पत्रकारिता में आया, तब मेरे मन में यह लगातार सवाल उठते थे कि भारतीय प्रशंसक टीम की बजाय व्यक्तियों के प्रति इतने समर्पित क्यों होते हैं, जिससे कई बार इस टीम गेम को नुक़सान भी पहुचंता है। लेकिन यह भी बात है कि उस समय हमारे पास क्या था ही?
गांधी और नेहरू लंबे समय पहले ही गोलोकवासी हो गए थे। राजनीति अव्यवस्थित और अस्त-व्यस्त तो अर्थव्यवस्था मंदी में चल रही थी। शॉर्टवेव रेडियो दुनिया से जुड़ने के लिए हमारी एकमात्र खिड़की थी। जैसे-जैसे रंगीन टीवी प्रचलन में आए, सिनेमा ने हमारी कल्पनाओं और क्रिकेट ने हमारी उम्मीदों व आकांक्षाओं को हवा देना शुरू किया। हमें उस समय सच में अपने नायकों, अपने हीरोज़ की ज़रूरत थी।
उस समय अमिताभ बच्चन का गुस्सा और उनकी भारी आवाज़ बड़े पर्दे पर तो मैदान पर बिना हेल्मेट के दुनिया के सबसे ख़तरनाक गेंदबाज़ों का सामना करने वाले छोटे कद के सुनील गावस्कर छाए हुए थे।
मैंने 1971 की जीत के बारे में सिर्फ़ पढ़ा था। तब भारत घर से बाहर बहुत ज़्यादा जीत नहीं पाता था। लेकिन गावस्कर वहां हमेशा मौजूद रहते थे, जिनका ख़ूबसूरत डिफेंस और ज्यामितीय सटीकता वाला कवर व स्ट्रेट ड्राइव गेंदबाज़ों के लिए सज़ा की तरह था। उस समय दुनिया में अपनी जगह को लेकर अनिश्चित राष्ट्र के लिए गावस्कर वीरता और उपलब्धि के आदर्श उदाहरण और आशा व गर्व के निरंतर स्रोत थे। वर्ष 1977 वह साल था, जब क्रिकेट की दुनिया के प्रति मैं पूरी तरह से समर्पित और आकर्षित हुआ।
मैं ऑस्ट्रेलिया दौरे पर गई भारतीय टीम के मैचों का लाइव प्रसारण सुनने के लिए भोर के पहर में ही उठ जाता था और सर्दियों की सुबह में कंबल के नीचे रेडियो को अपनी कान से चिपकाए रहता था। यह सीरीज़ रोमांचक रूप से ऑस्ट्रेलिया के पक्ष में 3-2 से समाप्त हुई, लेकिन वहां गावस्कर ने तीन बेहतरीन शतक बनाए। इससे पहले गावस्कर के बारे में मैं अपने रिश्‍तेदारों से भी बहुत कुछ सुन चुका था।
1978 का पाकिस्तान दौरा भारत के स्वर्णिम स्पिन चौकड़ी युग के अंत और कपिल देव के रूप में एक उभरते भारतीय सितारे के उदय का गवाह बना। लेकिन इस दौरे की महफ़िल गावस्कर ने लूटी, जिन्होंने सीरीज़ के दौरान दो शतकों की मदद से भारत की तरफ़ से सर्वाधिक 447 रन बनाए।
तब तक शायद यह तय हो गया था कि बॉम्बे मेरा अगला घर बनेगा, लेकिन वहां बसने से बहुत पहले ही मैंने बॉम्बे को अपनी रणजी ट्रॉफी टीम के रूप में देखना शुरू कर दिया था। जब मैं वहां पहुंचा तो पहली बार शिवाजी पार्क जाना मेरे लिए पहली तीर्थयात्रा की तरह थी।
हालांकि जब मैंने क्रिकेट का पेशेवर प्रशिक्षण लेना शुरू किया तो क्रिकेट के प्रति मेरा फ़ैनडम कुछ कम होता गया। लेकिन मेरे द्वारा संपादित पहली क्रिकेट पत्रिका के लॉन्च में मुख्य अतिथि के रूप में गावस्कर आए, जिन्हें सामने देखकर मुझे बहुत खुशी हुई। चूंकि मेरी बेटी और गावस्‍कर का जन्मदिन एक ही दिन पर आता है, तो मैं कभी भी उन्हें ईमेल पर जन्मदिन की बधाई देना नहीं भूलता हूं। वह हमेशा जवाब भी देते हैं।
चूंकि हम अब लगभग एक ही पेशे (क्रिकेट ब्रॉडकास्ट और पत्रकारिता) से जुड़े हैं, तो पिछले कुछ वर्षों से हमारे बीच कुछ मतभेद भी आ गए हैं। लेकिन वह हमेशा से मेरे पहले हीरो रहेंगे।
मेरे काम की मेज (वर्कडेस्क) के पीछे खिलाड़ियों का एक कोलाज है, जिसके एकदम बीच में फ़्रंटफ़ुट ड्राइव खेलते हुए गावस्कर की तस्वीर लगी है। इस तस्वीर में उनका सिर सीधे आगे की ओर झुका है, पूरा भार पहले पैर पर है, नज़र सीधे आगे की ओर टिकी हुई है और संभवतः आंखे गेंद को बाउंड्री तक जाता देख रही हैं। यह 'पूर्णता की एक तस्वीर' है, जो उस युग की याद दिलाती है, जब बादल या तूफान होने के बावजूद जब तक वह क्रीज पर रहते थे, लगता था कि धूप खिली है। 75वें जन्मदिन की शुभकामनाएं मेरे हीरो। ये यादें कभी फीकी ना पड़ें!

संबित बाल ESPNcricinfo में एडिटर इन चीफ़ हैं। अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी में सब एडिटर दया सागर ने किया है।