अभी सुपर-12 का आधा ही सफ़र पार हुआ है और अब तक सभी टीमों ने अपने-अपने कम से कम दो मुक़ाबले खेल लिए हैं, जिसके बाद सेमीफ़ाइनल की रेस भी मज़ेदार हो गई है। दो हफ़्तों से ज़्यादा चलने वाले इस टी20 विश्वकप 2021 में अब तक अलग-अलग कहानी देखने को मिल रही है, कुछ तो ऐसी ही हैं जिनकी उम्मीद की गई थी और कुछ ऐसी भी हैं जिसका किसी ने अंदाज़ा नहीं लगाया था। आइए उन्हीं में से कुछ अहम बिंदुओं पर नज़र डालते हैं।
इसमें तो किसी को शक़ नहीं था कि संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में टॉस कितना अहम साबित होगा, क्योंकि पिछले दो इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के संस्करणों में हमने देखा था कि टॉस जीतने के बाद ज़्यादातर टीमें क्या करती हैं और नतीजा क्या होता है। ठीक वैसी ही कहानी विश्वकप में भी देखने को मिल रही है, जहां टॉस जीतने वाली टीम गेंदबाज़ी का फ़ैसला ज़्यादातर करती है और चेज़ करते हुए ही ज़्यादातर टीमों को जीत मिल रही है। अगर पहले दौर से अब तक आंकड़ों पर नज़र डालें तो कुल 28 मैचों में 20 बार उसी टीम को जीत मिली है जो लक्ष्य का पीछा कर रही होती है। अगर क्वालीफ़ाइंग राउंड को हटा दें और सिर्फ़ सुपर-12 को देखें तो टॉस की अहमयित और भी मज़बूत हो जाती है, सुपर-12 में अब तक 16 मुक़ाबले हुए हैं और इनमें 13 बार उस टीम को जीत मिली है जिसने बाद में बल्लेबाज़ी की हो। इसकी एक बड़ी वजह है शाम ढलते ही मैदान में ओस गिरना, और साथ ही पिच कैसा खेलेगी इसके बारे में भी दुविघा रहती है, लिहाज़ा अगर आप टॉस जीत जाते हैं तो समझिए कि मैच भी जीत गए।
पावरप्ले में नहीं है पावर
अगर पावरप्ले में आपकी टीम के तीन विकेट गिए गए तो माना जाता है कि आप मुक़ाबला हार सकते हैं, हालांकि दुबई में खेलते हुए इंग्लैंड का स्कोर भी पावरप्ले में 39/3 हो गया था। लेकिन इंग्लिश टीम ख़ुशक़िस्मत थी क्योंकि वह वेस्टइंडीज़ के बनाए गए सिर्फ़ 55 रन का पीछा कर रही थी। अब तक पावरप्ले में बैटिंग औसत 20.25 रहा है जो किसी भी टी20 विश्वकप में सबसे कम है। इतना ही नहीं अगर सिर्फ़ सुपर-12 को देखें तो ये औसत और भी गिर जाती है, सुपर-12 में पहले बल्लेबाज़ी करने वाली टीम ने पावरप्ले में 18.24 की ओसत से ही रन बनाए हैं। जबकि बाद में बल्लेबाज़ी करने वाली टीम की औसत पावरप्ले में 27.54 की रहती है।
अलग-अलग स्थान पर अलग-अलग हालात
प्रतियोगिता शुरू होने से पहले शारजाह, अबू धाबी और दुबई की पिचों के हालात कैसे होंगे इसकी संभावना लगाई जा रही थी, और ये तो अनुमान था कि इन पिचों पर चेज़ करना मुनासिब रहेगा। अबू धाबी का मैदान सबसे बड़ा है, जहां सबसे ज़्यादा रन बनने की उम्मीद लगाई जा रही थी, लेकिन सुपर-12 में इस मैदान पर एक ही स्कोर 126 के पार गया है। यहां तेज़ गेंदबाज़ों को 6.01 की इकॉनमी और 17.12 की औसत से विकेट मिले हैं, जबकि इसी मैदान पर स्पिन गेंदबाज़ों की औसत 22.34 रही है और इकॉनमी 6.23 की रही है। बात दुबई की करें तो यहां भी अपेक्षाकृत तेज़ गेंदबाज़ों को ही ज़्यादा मदद मिल रही है। जबकि शारजाह अब धीरे-धीरे लग रहा है कि रन बनाने वाली जगह बनता जा रहा है, इस मैदान की रनरेट सबसे अच्छी है और सुपर-12 के तीन बड़े स्कोर भी यहीं आएं हैं।
टी20 क्रिकेट में हाल के दिनों में एक प्रचलन देखने को मिला है कि टीम बड़े शॉट्स और छक्कों पर ज़्यादा भरोसा करती हैं। 2017 से 2020 तक आईपीएल के लगातार चार सीज़न में छक्का प्रति गेंद 20 से नीचे रहा था, यानि औसतन हर 20वीं गेंद पर छक्का देखने को मिलता था। लेकिन जब 2021 में आईपीएल का कारवां भारत से यूएई आया ये आंकड़ा 21 तक पहुंच गया था। अब इस टी20 विश्वकप में तो ये और भी बढ़ते हुए 27.3 तक जा पहुंचा है, यानी अब औसतन हर 27वीं गेंद पर टीम छक्का लगाती हैं। सुपर-12 स्टेज में ये थोड़ा बेहतर होते हुए 26.8 पर पहुंचा है, लेकिन बस दशमवल का ही अंतर है। लिहाज़ा जिस टीम में बड़े शॉट्स लगाने वाले बल्लेबाज़ हैं वह मैच का नख़्शा पलट सकते हैं जैसे हमने अफ़ग़ानिस्तान के ख़िलाफ़ आसिफ़ अली को देखा था, जिन्होंने एक ही ओवर में चार छक्के लगाते हुए हारी बाज़ी अपने नाम कर ली थी। इसी तरह वेस्टइंडीज़ के पास भी निकोलस पूरन जैसा बल्लेबाज़ मौजूद है जो किसी भी परिस्थिति में छक्का लगाते हुए मैच पलटने का माद्दा रखते हैं और यही ताक़त डेविड मिलर के तौर पर साउथ अफ़्रीका के पास भी है।
एक और चीज़ जो प्रतियोगिता से पहले कही जा रही थी और अंदाज़ा लगाया जा रहा था, वह थी स्पिन की ताक़त। लेकिन टूर्नामेंट शुरू होने पर ही ये दिखने लगा कि स्पिन के साथ साथ अगर आपके पास ऐसे तेज़ गेंदबाज़ मौजूद हों जो अपनी रफ़्तार से सामने वाली टीम के बल्लेबाज़ों को चौंका सके, तो ये भी इन हालातों में एक अच्छा हथियार है। शाहीन शाह अफ़रीदी, हारिस रउफ़, लहिरु कुमारा या जॉश हेज़लवुड इन सभी की रफ़्तार यूएई की पिचों पर भी असरदार है।