पुजारा के मौजूदा फॉर्म की पूरी दास्तान शायद उनके फुटवर्क में छुपी हुई है।
ये कमाल के आंकड़े है। ऐसे आंकड़े जो काबिले तारीफ़ है। इनमें वह अमूल्य पारियां भी जोड़ी जा सकती है जो पुजारा ने कठिन परिस्थितियों में कई बार टीम को बचाने के लिए खेली हैं।
पुजारा ने कई मुश्किल समय में अपनी बेहतरीन पारियों की बदौलत टीम को संभालने का काम किया है। वह एक छोर पर धैर्य के साथ बल्लेबाज़ी करते हुए, अपने साथी बल्लेबाज़ों को पूरी स्वतंत्रता के साथ बल्लेबाज़ी करने की अनुमति देते हैं।
ऐसा हर रोज़ नहीं होता है कि भारत का कोई बल्लेबाज़ ऑस्ट्रेलिया में खेली गई टेस्ट सीरीज़ को परिभाषित करता है, लेकिन 2018-19 सीरीज़ में पुजारा ने ठीक वैसा ही किया।
धैर्य एक ऐसी चीज़ है, जो पुजारी की बल्लेबाज़ी को पूरी तरह से परिभाषित करती है लेकिन यह मान लेना घोर अनुचित होगा कि पुजारा केवल धैर्य पर निर्भर हैं। और तो और, धैर्य को कम नहीं आंका जाना चाहिए क्योंकि इसे हासिल करना इतना आसान नहीं है। इसमें अपनी सोच को खेल के प्रति चालू और बंद करने की क्षमता और लंबे समय तक दबाव झेलने की कला शामिल है।
दुनिया में सभी के पास सब्र हो सकता है, लेकिन अगर आपके पास लगातार अच्छी गेंदों को सम्मान देने का खेल नहीं है, तो आप दूर तक नहीं जाएंगे। यह पुजारा का दूसरा पक्ष है - उनके पास बल्लेबाज़ी कौशल है जो उन्हें न केवल अच्छी गेंदों को सम्मान देने की अनुमति देता है, बल्कि क्रिकेट के सबसे कठिन प्रारूप में भी काफी रन बनाने का अवसर भी देता है।
पुजारा स्पिनरों के ख़िलाफ़ आक्रामक हैं। वह भले ही तेज़ गेंदबाज़ों के सामने अपना समय लेते है, वह शुरू से ही स्पिनरों पर आक्रमण करते हैं। स्पिन के ख़िलाफ़ वह अपने कदमों का इस्तेमाल करते हैं। वह ऑफ़-स्पिनरों के विरुद्ध गेंद की पिच तक पहुंचने के लिए चहलकदमी करते है, और बाएं हाथ के स्पिनर या लेग स्पिनरों के सामने बैक फ़ुट से खेलने के लिए क्रीज़ की गहराई का उपयोग करते है। वह स्पिन के ख़िलाफ़ हवाई शॉट्स नहीं खेलते है और ज़्यादा स्वीप भी नहीं लगाते, पर फिर भी वह गुणवत्ता वाले स्पिनरों को अप्रभावी बना देते हैं। तेज़ गेंदबाज़ी के विरुद्ध, उन्होंने हमेशा प्रतीक्षा करते हुए खेल खेलना पसंद किया है। ऐसा नहीं है कि पुजारा के पास शॉट्स की कमी है। वह पंच, ड्राइव, फ़्लिक और कभी-कभी पुल और हुक भी लगाते हैं।
जबकि स्पिन के ख़िलाफ़ उनका खेल अभी भी बरकरार है, हाल ही में तेज़ गेंदबाज़ी के सामने उनकी तकनीक की जांच की जा रही है। चूंकि हमने इस लेख को कुछ आंकड़ों के साथ शुरू किया है, आइए संदर्भ के लिए कुछ और संख्याओं पर नज़र डालते है।
विश्व टेस्ट चैंपियनशिप (डब्ल्यूटीसी) के पहले चक्र में पुजारा ने भारत की ओर से सारे टेस्ट मैच खेले। इस अवधि में उनकी 30 से भी कम की औसत का अब मात्र एक कमजोरी के रूप में नहीं देखा जा सकता है।
ऐसा नहीं है कि उन्होंने महत्वपूर्ण पारियां नहीं खेली (सिडनी और ब्रिस्बेन तुरंत याद आते हैं) लेकिन उनके आंकड़े मन को लुभाने वाले नहीं है।
पुजारा के साथ क्या गलत हो रहा है? क्या उनकी तकनीक बदल गई है?
अगर दूसरे प्रश्न पर ध्यान केंद्रित करे तो ऐसा लगता है कि वह तेज़ गेंदबाज़ी के सामने अपने पैरों को कम चला रहे हैं जिसके परिणाम स्वरूप उनके स्ट्रोक कम हो गए हैं।
कई सारे बल्लेबाज़ों के लिए स्ट्रोक लगाना उनके पैरों की पोज़ीशन पर निर्भर करता है और पुजारा उसी शैली के बल्लेबाज़ हैं। वह क्रिस गेल नहीं है जो अपनी बाज़ुओं की ताकत लगाकर गेंद को मैदान के बाहर भेजे और ना ही वह रोहित शर्मा है जो फुटवर्क की कमी को पूरा करने के लिए बल्ले की सुंदर डाउनस्विंग का इस्तेमाल करे। पुजारा के पास एक ऊंची बैकलिफ़्ट नहीं है और वह हैंडल के नीचले भाग से बल्ले को पकड़ते हैं जिससे बैट-स्विंग काफी कम हो जाती है। इस कारण उनके स्ट्रोक लगाने की शुरुआत शरीर को सही अवस्था में लाने से होनी चाहिए।
हाल में ऐसा कुछ नहीं हुआ है। ना तो सामने का पैर गेंद की पिच तक जा रहा है और ना ही पिछला पैर क्रीज़ के अंदर जा रहा है। जबकि अभी भी गेंद को उसकी योग्यता के आधार पर खेलने की एक ईमानदार कोशिश हो रही है, जो पुजारा के बल्लेबाज़ी डीएनए का मूल है, क्रीज़ के दोनों तरफ़ पैरों की चाल में हो रही कमी ने उनके प्रभाव के साथ समझौता किया है।
ऑस्ट्रेलिया में पैट कमिंस के ख़िलाफ़ लगातार आउट होने का यही कारण था - गेंद टप्पा खाने के बाद थोड़ी सी दूर जा रही थी और बल्ले का बाहरी किनारा खोज लेती थी (जो शरीर से उतना दूर भी नहीं था)। अगर आप आउट होने वाली उन ज़्यादातर गेंदों को गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि पुजारा हमेशा क्रीज़ में ही अटके रहते थे। कोई भी गेंद जो आपके पैरों को आगे नहीं बढ़ने देती है, वह बैक फुट से खेली जाती है। बेशक कुछ गेंदों पर निर्णय लेने में गलतियां होंगी और आप क्रीज़ में फंस जाएंगे, लेकिन अगर ऐसा बार-बार हो रहा है, तो खतरे की घंटी बजनी चाहिए।
मेरे विचार में, पुजारा के लिए अपने फ़ूट-मूवमेंट पर करीब से नज़र डालने का समय आ गया है, क्योंकि यह गेंद को खेलने की उनकी गति को धीमा कर रहा है। उन्हें लंबे समय तक क्रीज़ पर जमे रहने की अपनी क्षमता में बहुत विश्वास है और उनके आधार पर उन्होंने एक ऐसी शैली बनाई है जो लगभग जोखिम मुक्त है (बल्ला शायद ही कभी उनके शरीर से दूर जाता है)। लेकिन अगर वह रन बनाने के अवसर पैदा करने के लिए अपने पैरों को नहीं चला रहे हैं - और इसका बहुचर्चित "इरादे" या इसकी कमी से कोई लेना-देना नहीं है - तो वह एक ऐसी गेंद मिलने की संभावना बढ़ा रहा है जो जल्द ही उनकी विकेट ले जाएगी।
डब्ल्यूटीसी चक्र की तरह, इंग्लैंड में नौ टेस्ट मैचों में एक शतक के साथ पुजारा की औसत 30 से नीचे है। इंग्लैंड में उनके लिए जो गलत हुआ है, वह लंबे और गहरे मूल्यांकन का विषय हो सकता है। किसी भी देश में विदेशी दौरे कुछ वर्षों में केवल एक बार होते हैं, और उस समय आपको अपने व्यक्तिगत फ़ॉर्म के संबंध में कैसे आंका जाता है, इसकी बारीकी से जांच की जानी चाहिए।
मैं यह स्पष्ट कर दूं कि मैं इंग्लैंड सीरीज़ के लिए पुजारा को टीम से बाहर करने के सुझाव के सख़त ख़िलाफ़ हूं क्योंकि भारत के अन्य बल्लेबाज़ों के फलने-फूलने के लिए पुजारा जैसे एक ढ़ीट बल्लेबाज़ की ज़रूरत है।
मुझे 2008 में कोलकाता नाइट राइडर्स कैंप में पुजारा के साथ अपना समय और विशेष कर एक घटना याद है। मुझे और पुजारा को नृत्य करना नहीं आता था। इसलिए मैं कभी भी डांस फ़्लोर पर नहीं गया लेकिन पुजारा अक्सर ऐसा करते थे। उन्होंने कहा कि नृत्य करने से बल्लेबाज़ी करते समय उनके पैरों की चाल और गति में सुधार होगा। भला डिस्कोथेक में बल्लेबाज़ी के बारे में कौन सोचता है!
मैंने ऐसा कहने में उनकी ईमानदारी और सादगी की प्रशंसा की और मैं लंबे समय से पुजारा का प्रशंसक रहा हूं। अब उनके जैसे बल्लेबाज़ बहुत कम देखने को मिलते है, जो बल्लेबाज़ी के एक ख़ास ब्रांड को जीवित रख रहे हैं।
शायद उनके लिए एक बार फिर डांस फ़्लोर पर जाकर अपने पैर थिरकने का समय आ गया है।
भारत के पूर्व सलामी बल्लेबाज़ आकाश चोपड़ा (@cricketaakash) तीन किताबों के लेखक भी हैं। उनकी नवीनतम किताब का नाम 'द इनसाइडर: डिकोडिंग द क्राफ्ट ऑफ़ क्रिकेट' है। अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी के सब-एडिटर अफ़्ज़ल जिवानी (@jiwani_afzal) ने किया है।