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अत्यधिक संरचित कोचिंग क्रिकेट को अमानवीय बनाती है : ग्रेग चैपल

कोचों को ऐसा माहौल बनाना चाहिए जहां खिलाड़ी मैच के संदर्भ में समस्या को सुलझाने और निर्णय लेने के बारे में सीख सकें

Kids play cricket beneath the stands ahead of the Hundred game, London Spirit vs Northern Superchargers, Men's Hundred, Lord's, August 3, 2021

सर्वश्रेष्ठ कोच खिलाड़ियों को सोचने और समस्याओं को हल करने के लिए मिलकर काम करने के प्रश्न पूछते हैं  •  Steven Paston/PA Photos/Getty Images

मेरा मानना ​​​​है कि क्रिकेट कोचों को हिप्पोक्रेट्स द्वारा एपिडेमिक्स में निर्धारित की गई शपथ "पहले कोई नुक़सान न करें" से अलग नहीं होना चाहिए।
ऐसे समय में जब ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट के साथ हेड कोचिंग की भूमिका सुर्ख़ियों में है, यह खेल में कोचिंग की भूमिका को अधिक व्यापक रूप से देखने लायक है।
विकसित क्रिकेट देशों ने प्राकृतिक वातावरण खो दिया है जो बीते समय में उनके विकास ढांचे का एक बड़ा हिस्सा थे। उन परिवेशों में, युवा क्रिकेटरों ने अच्छे खिलाड़ियों को देखकर और फिर परिवार और दोस्तों के साथ खेलकर उनका अनुकरण करना सीखा। उस समय आमतौर पर कोई भी निर्देश अल्पविकसित मिलता था और अक्सर प्रौढ़ व्यक्ति का हस्तक्षेप कम था। इन अव्यवस्थित संरचना में खिलाड़ियों ने अनुभवी खिलाड़ियों के सामने खेलकर एक प्राकृतिक शैली विकसित की, जिसके दौरान उन्होंने महत्वपूर्ण मुक़ाबला और दबाव को सोखना सीखा।
भारतीय उपमहाद्वीप में अभी भी कई शहर हैं जहां कोचिंग सुविधाएं बहुत कम है और युवा औपचारिक कोचिंग लिए बिना सड़कों और खाली ज़मीन पर खेलते हैं। यहीं पर उनके कई मौजूदा सितारों ने खेल सीखा है।
महेंद्र सिंह धोनी इसका एक अच्छा उदाहरण हैं, जिन्होंने इस तरह से अपनी प्रतिभा विकसित की और खेलना सीखा। धोनी ने अपने करियर की शुरुआत में कई तरह की पिचों पर अधिक अनुभवी व्यक्तियों के खिलाफ़ प्रतिस्पर्धा करके निर्णय लेने की क्षमता और रणनीतिक कौशल विकसित किए। जिसने उन्हें अपने कई साथियों से अलग खड़ा किया। वह सबसे चतुर क्रिकेट व्यक्तियों में से एक है जिनसे मैं मिला हूं।
दूसरी ओर इंग्लैंड में इन प्राकृतिक वातावरणों में से बहुत कम खिलाड़ी हैं और उनके खिलाड़ियों को पब्लिक स्कूलों के सीमित संसाधनों में तैयार किया जाता है, जिसमें कोचिंग की क़िताबों पर ज़ोर दिया जाता है। यही कारण है कि उनकी बल्लेबाज़ी ने अपना स्वभाव और लचीलापन खो दिया है।
जब कोई प्रौढ़ व्यक्ति क्रिकेट खेलने वाले बच्चों के साथ जुड़ता है, तो वो हमेशा खेल को रुकवा देता है और सही तकनीक पर ज़ोर देकर उसकी ऊर्जा को नष्ट कर देता है। यह एक सक्रिय और आकर्षक माहौल को कम करता है। साथ ही अभ्यास के एक सीधे और बेजान तरीक़े को सीखने का बढ़ावा देता है जो मैचों में बल्लेबाज़ी को बेहतर बनाने में बहुत कम मदद करता है।
बल्लेबाज़ों के अभ्यास में व्यवस्थित ट्रेनिंग में वृद्धि न केवल बल्लेबाज़ी को आगे ले जाने में विफल रही है, बल्कि वास्तव में बल्लेबाज़ी में गिरावट आई है। अत्यधिक व्यवस्थित माहौल और खिलाड़ियों को "सही" तकनीक सिखाने पर अत्यधिक ध्यान क्रिकेट को अमानवीय बना रहा है।
ऐसे माहौल जो बल्लेबाज़ी को तकनीक की महारत तक कम करने और इसे अलग-अलग भागों में तोड़ने का प्रयास करते हैं, इस गलतफ़हमी को दर्शाते हैं कि बल्लेबाज़ी कितनी जटिल है। अच्छी बल्लेबाज़ी के लिए अच्छी कल्पना, रचनात्मकता और मैचों में चुनौतियों की पहचान करने और उनका जवाब देने की क्षमता की आवश्यकता होती है।
इस समस्या के जवाब में हमें कोचों की शिक्षा में बदलाव करना होगा। उन्हें प्रशिक्षित करने से लेकर सभी चीज़ों के ज्ञानी बनाने के बजाय, हमें उन्हें सीखने के रचनात्मक माहौल का प्रबंधक बनाना चाहिए जिसमें प्रौढ़ व्यक्ति के कम से कम हस्तक्षेप में युवा क्रिकेटर खेल सीखते हैं।
मैं उन लोगों को सुन सकता हूं जो मानते हैं कि बल्लेबाज़ी, तकनीक पर निर्भर है। वे पूछ रहे हैं कि ये "फ़्री-रेंज" क्रिकेटर तकनीकी रूप से कैसे कुशल बनेंगे। लेकिन, मैं उन्हें याद दिला दूं कि टेस्ट क्रिकेट के पहले 100 वर्षों में इसी तरह से सबसे अच्छे बल्लेबाज़ हुए थे।
64 साल पहले डॉन ब्रैडमैन की अद्भुत क़िताब 'द आर्ट ऑफ़ क्रिकेट' प्रकाशित हुई थी। जिसमें उन्होंने लिखा है कि: "मैं एक युवा खिलाड़ी को यह बताना पसंद करूंगा कि इसे कैसे करना है (बल्लेबाज़ी को लेकर), इसके बजाय कि क्या करना है।" मैं यह सुझाव देकर इसे और आगे बढ़ाऊंगा कि अच्छे कोचों को भी उन्हें यह जानने में मदद करनी चाहिए कि कब और क्यों।
महानतम बल्लेबाज़ों ने छोटी उम्र से रचनात्मक, अनौपचारिक और सीखने के माहौल में खेलकर अपनी प्रतिभा विकसित की। किसी और के विचार पर अत्यधिक ध्यान दिए बिना कि एक आदर्श तकनीक कैसी दिखनी चाहिए।
ट्रेनिंग को इस संदर्भ में रखकर खेल को बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए कि खेल कहां होना है ताकि अभ्यास सत्रों में सुधार से मैचों में सुधार हो सके। इसका मतलब यह नहीं है कि अभ्यास को दरकिनार करते हुए केवल क्रिकेट खेला जाए। इसका अर्थ है कि कौशल के अनुकूल विशेष परिणामों के उद्देश्य से संशोधित खेलों और गतिविधियों को डिजाइन और प्रबंधित करना। चाहे वह खेल सीख रहे बच्चों के लिए हो या उच्चतम स्तर पर बल्लेबाज़ों के लिए।
सर्वश्रेष्ठ कोच खिलाड़ियों को सोचने और समस्याओं को हल करने के लिए मिलकर काम करने के लिए प्रश्न पूछते हैं। प्रश्नों का उद्देश्य खिलाड़ियों को उनके सामने प्रस्तुत समस्याओं के समाधान के लिए आकर्षित करना है।
यह तकनीक की उपेक्षा नहीं करता है, बल्कि खिलाड़ियों को एक मैच के संदर्भ में तकनीक पर अमल करने में सुधार और सीखने के द्वारा इसे विकसित करता है। यह निर्णय लेने, अमल करने के लचीलेपन, जागरूकता और बल्लेबाज़ों के सामने आने वाली चुनौतियों के अनुकूल होने की क्षमता विकसित करता है। महानतम बल्लेबाज़ों ने छोटी उम्र से रचनात्मक, अनौपचारिक और सीखने के माहौल में खेलकर अपनी प्रतिभा विकसित की। किसी और के विचार पर अत्यधिक ध्यान दिए बिना कि एक आदर्श तकनीक कैसी दिखनी चाहिए।
इंग्लैंड अपने कोचिंग के तरीक़ों और उसके सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज़ अपने कौशल को कैसे विकसित करते हैं, यह देखना अच्छा होगा। किसी भी समीक्षा के हिस्से के रूप में जो वे ऑस्ट्रेलिया में एक और करारी हार के पीछे शुरू करते हैं। इंग्लैंड की बल्लेबाज़ी में न कोई क्लास थी, न कोई सोंच थी और इस पूरे दौरे में लचीलेपन की कमी थी। अगर मैं इंग्लिश क्रिकेट का प्रभारी होता, तो मुझे पता होता कि मैं पहले क्या करता। लेकिन मैं वह जानकारी मुफ़्त में नहीं दूंगा! अगर वे कुछ कठोर फ़ैसले नहीं लेते हैं, तो उन पर उस कहावत के रूप में व्यवहार करने का आरोप लगाया जाएगा : एक ही काम को बार-बार करना और अलग-अलग परिणाम की उम्मीद करना पागलपन है।

पूर्व ऑस्ट्रेलियाई कप्तान ग्रेग चैपल ने 70 और 80 के दशक में 87 टेस्ट मैच खेले हैं। वह भारतीय टीम के कोच भी रहें और उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई टीम के चयनकर्ता की भूमिका भी निभाई। अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी के के एडिटोरियल फ़्रीलांसर कुणाल किशोर ने किया है।