"मैं नंबर-3 पर खेलने के लिए अभी भी तैयार हूँ और आप सभी जानते हैं कि सिडनी टेस्ट में क्या हुआ था। मुझे जब भी दोबारा मौक़ा मिलेगा मैं अपना 110 फ़ीसदी दूँगा।"
ये आशा से भरे अल्फ़ाज़ों में से झलक रहे दर्द सिडनी के उस महानायक के हैं जो अचानक से डूबते सूरज की आग़ोश में समा गया।
आंध्रा के लिए रणजी ट्रॉफ़ी के इस सीज़न की शुरुआत कप्तान के तौर पर करने वाले
हनुमा विहारी छोटे-छोटे लक्ष्य के साथ आगे बढ़ने पर विश्वास करते हैं। विहारी इस सीज़न अब तक 52.14 की औसत से 365 रन बना चुके हैं जिसमें छत्तीसगढ़ के ख़िलाफ़ एक शतक (183) भी शामिल है। विहारी को विश्वास है कि वह अगर इसी तरह लगातार रन बनाते रहे तो एक बार फिर भारतीय टीम में उनका बुलावा आ जाएगा। हालांकि कुछ मैचों के बाद विहारी ने कप्तानी न करने का फ़ैसला किया और बतौर बल्लेबाज़ ही खेल रहे हैं। कप्तानी छोड़ने के पीछे का कारण विहारी सीज़न के बाद बताना चाहते हैं। वह नहीं चाहते कि सीज़न के बीच में उनके किए ख़ुलासे का असर टीम पर पड़े।
बिहार के ख़िलाफ़
पारी की जीत के बाद ESPNcricinfo के साथ पटना में बात करते हुए हनुमा ने कहा, "घरेलू क्रिकेट में लगातार रन बनाता रहा तो फिर भारतीय टीम में वापसी का रास्ता बन सकता हैं।"
भारत के लिए लंबे समय से टेस्ट न खेलने का दुख तो होता है। हर खिलाड़ी के साथ ऊपर-नीचे तो होता रहता है लेकिन मेरा काम है घरेलू क्रिकेट में लगातार रन बनाना। ये सीज़न मेरे लिए अभी तक ठीक चल रहा है और मेरी टीम आंध्रा भी अच्छा कर रही है। मेरी कोशिश यही है कि रनों का अंबार लगाते हुए टीम इंडिया में दोबारा वापसी करूं।
हनुमा विहारी, बल्लेबाज़, भारत
हनुमा विहारी का नाम आते ही
सिडनी का वह टेस्ट भी याद आ जाता है जब आर अश्विन के साथ मिलकर उन्होंने क़रीब-क़रीब हारा हुआ मैच बचा लिया था। विहारी को उस मैच के दौरान हैम्सट्रिंग इंजरी हो गई थी और वह इतनी गंभीर थी कि उन्हें खड़े होने में भी तकलीफ़ थी। साथ ही साथ अश्विन को भी पीठ में चोट थी, लेकिन दोनों डेढ़ सेशन तक पिच पर टिके रहे और भारत मैच ड्रॉ करने में क़ामयाब रहा। अगले टेस्ट में ऋषभ पंत के अद्भुत कारनामे की बदौलत भारत ने गाबा टेस्ट जीतते हुए ऐतिहासिक सीरीज़ जीत अपने नाम की थी। विहारी ने उस मैच में 161 गेंदों का सामना करते हुए 23 नाबाद रन बनाए थे।
विहारी आज भी सिडनी टेस्ट को अपने करियर का सबसे यादगार टेस्ट मानते हैं। उन्होंने कहा, " सिडनी टेस्ट हमारे लिए बहुत अहम था क्योंकि वह मैच हम हार जाते तो फिर गाबा में जीतकर भी सीरीज़ नहीं जीत पाते। मैं और अश्विन दोनों चोटिल थे और दोनों दौड़ नहीं सकते थे, लिहाज़ा हम यही कोशिश कर रहे थे कि हर गेंद बस खेलते जाना है। हमने आपस में बात की थी कि ओवर निकालते रहते हैं और फिर देखते हैं क्या होता है। इस तरह हमने डेढ़ सेशन बल्लेबाज़ी कर ली थी और फिर हमने वह टेस्ट ड्रॉ करा दिया।"
विडंबना ये है कि अपने नाम की ही तरह भारत के संकटमोचन बनने के बावजूद हनुमा विहारी ने उस टेस्ट के बाद केवल चार टेस्ट ही और खेले। विहारी का आख़िरी टेस्ट
इंग्लैंड के ख़िलाफ़ एजबेस्टन में था जहां उन्होंने दोनों पारियों में नंबर-3 पर बल्लेबाज़ी की थी।
विहारी को इस बात का मलाल और भी ज़्यादा है कि इंग्लैंड के ख़िलाफ़ उस टेस्ट के बाद उनसे टीम मैनेजमेंट या चयनकर्ता ने बात तक नहीं की। विहारी कहते हैं कि सिर्फ़
राहुल द्रविड़ ही एकमात्र ऐसे हैं जिन्होंने उनसे बात की हो।
हाल फ़िलहाल तो किसी चयनकर्ता या टीम मैनेजमेंट से मेरी बात नहीं हुई है, आख़िरी बार इंग्लैंड में जो टेस्ट खेला था मैंने उसके बाद बस राहुल द्रविड़ से बात हुई थी। और उन्होंने मुझे बोला था कि कैसे मैं अपना गेम और बेहतर कर सकता हूं। वही मेरी किसी सीनियर खिलाड़ी के साथ आख़िरी बात थी उसके बाद किसी चयनकर्ता या टीम मैनेजमेंट के किसी सदस्य से कोई बात नहीं हुई।
हनुमा विहारी, बल्लेबाज़, भारत
विहारी ने पहली बार सुर्खियां 2012 अंडर-19 विश्व कप में बटोरी थी जब वह उस विजेता टीम के सदस्य थे जिसके कप्तान
उन्मुक्त चंद थे। विहारी के पुराने दोस्त उन्मुक्त अब भारत से नहीं बल्कि यूएसए से खेल रहे हैं और विहारी ने भी उन्हें शुभकामनाएं दीं।
"उन्मुक्त चंद से बात अब ज़्यादा नहीं होती, अंडर-19 स्तर के बाद हम सीनियर लेवल पर अपनी अपनी क्रिकेट में व्यस्त हो गए। लेकिन जब वह अब यूएसए से खेल रहा है तो मैं उसके लिए बहुत ख़ुश हूँ। अंडर-19 स्तर पर वह बेहतरीन खेलता था लेकिन फिर उसको सीनियर स्तर पर वैसे मौक़े नहीं मिले, मेरी शुभकामनाएँ उसके साथ हैं।"