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सासाराम के सिकंदर के 'आकाश' में उड़ने के सपने को मां ने दिए पंख

आकाश दीप की मां ने कहा कि अपने बेटे के सपने को सच होता देखने से अच्छा कुछ नहीं हो सकता

बिहार के सासाराम से क़रीब आठ किलोमीटर की दूरी पर एक छोटा सा गांव है - बड्डी। यहां एक मास्टर साहब (रामजी सिंह) का घर था। मास्टर साहब के दो बेटे हुए, एक बेटा प्राइवेट जॉब में था और एक क्रिकेट के असीम आकाश में अपना परचम लहराने को बेताब था। हालांकि पापा चाहते थे कि बेटा बड़ा अधिकारी बने लेकिन बेटे को पसंद था क्रिकेट और बिज़नेस। मम्मी ने वही किया जो हर मां करती है और उन्होंने बेटे की पंसद को स्वीकार करते हुए, उसे प्रोत्साहित किया।
हालांकि परिवार में एक दुर्घटना होती है। साल 2015 में मास्टर साहब और प्राइवेट नौकरी करने वाले भाई इस दुनिया को हमेशा-हमेशा के लिए अलविदा कह देते हैं। आठ महीने के अंतराल में हुई इन दोनों ही घटनाओं ने क्रिकेट खेलने का सपना देखने वाले लड़के को रोकने का प्रयास किया। ऐसा हुआ भी लेकिन उसने हार नहीं मानी। मां ने भी सपोर्ट किया और अपने विश्वास को तनिक भी डगमगाने नहीं दिया।
हम बात कर रहे हैं आकाश दीप की। भारत और इंग्लैंड के बीच रांची में चल रहे चौथे टेस्ट में उन्हें भारतीय कोच राहुल द्रविड़ ने डेब्यू टेस्ट कैप दिया। इस मौक़े पर उनकी मां (लडुमा देवी) , बड़े भाई की दो बेटियां और चचेरे भाई बैभव कुमार चौबै वहीं पर मौजूद थे।
आकाश दीप की मां कहती हैं, "मेरे लिए इससे ज़्यादा बड़ा दिन नहीं हो सकता है। हालांकि इसका पूरा श्रेय भगवान और उनकी मेहनत को जाता है। मैंने एक मां के तौर पर वही किया है, जो हर मां करती है। मैं उसके पीछे लगी रही। उसका ख़्वाब था भारतीय टीम में शामिल होना। आज उसका वह सपना पूरा हो रहा है और मैं बहुत ख़ुश हूं।"
"एक समय था जब गांव के लोग नहीं चाहते थे कि उनके बच्चे आकाश के साथ रहें। उन्हें लगता था कि आकाश की संगत में उनके बच्चे आवारा बन जाएंगे। हालांकि आकाश के मन में एक जुनून था। यहां तक कि उसके पापा भी नहीं चाहते थे कि वह क्रिकेट खेले लेकिन वह हमेशा कहता था कि उसे या तो क्रिकेटर बनना है या फिर बिज़नेसमैन।"
आकाश दीप ने गुरुवार शाम को अपने परिवार को फ़ोन कर के बताया था कि चौथे टेस्ट में उसका डेब्यू हो सकता है। साथ ही उन्होंने अपने परिवार को रांची भी बुलाया। जैसे ही यह ख़बर उनके परिवार को मिली तो घर का माहौल ख़ुशी और भावुकता के समंदर से लबरेज़ हो गया। अफरा-तफ़री के माहौल में जल्दी से ड्राइवर को कॉल किया गया और रात दो बजे के क़रीब उनका परिवार सासाराम से रांची पहुंचा।
आकाश दीप को जब डेब्यू टेस्ट मिला तो वह सीमा रेखा के पास खड़े अपने परिवार से मिलने पहुंचे। उनकी मां कहती हैं, "मैंने उसे आर्शीवाद देते हुए यह कहा कि अभी आपको और आगे बढ़ते रहना है।"
इस मौक़े पर वह साल 2015 की घटना को याद करते हुए कहती हैं, "2015 में मृत्यु से पांच-छह साल पहले से ही उन्हें लकवा की समस्या थी। आकाश उनकी सेवा में लगे रहे। जब भी ज़रूरत होती थी या तबीयत ज़्यादा ख़राब होती थी तो वह अपने पिता को बनारस (वाराणसी) लेकर जाते थे। अगर परिवार की स्थिति वैसी नहीं होती तो आकाश काफ़ी पहले ही क्रिकेट में आ जाते।
16 फ़रवरी 2015 को उनके पिता और फिर 12 अक्तूबर को उनके भाई चल बसे। इसके बाद अपने क्रिकेट को जारी रखने के लिए आकाश ने ट्रांसपोर्टेशन का कारोबार किया। हालांकि उन्होंने क्रिकेट कभी नहीं छोड़ा।
उनकी मां कहती हैं, "उनकी मृत्यु के बाद परिवार की जो स्थिति हुई, उसे बयां कर पाना भी काफ़ी कठिन है। हालांकि सारे मुश्किलों के बावजूद भी आकाश ने क्रिकेट नहीं छोड़ा। मैं भी उनकी पसंद के साथ चलती रही और कभी उसे मना नहीं किया।"

राजन राज ESPNcricinfo हिंदी में सब एडिटर हैं