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मनोज भैय्या के दिखाए भरोसे पर खरे उतरे शाहबाज़

मझधार में फंसी टीम के संकटमोचक बनते हुए उन्होंने प्रथम श्रेणी क्रिकेट में अपना पहला शतक जड़ा

शाहबाज़ अहमद और मनोज तिवारी की साझेदारी ने बंगाल को मुश्किल स्थिति से बाहर निकाला  •  Cricket Association of Bengal

शाहबाज़ अहमद और मनोज तिवारी की साझेदारी ने बंगाल को मुश्किल स्थिति से बाहर निकाला  •  Cricket Association of Bengal

"यह बंगाल के लिए अब तक का मेरा सबसे अच्छा मैच था।"
इन शब्दों के साथ शाहबाज़ अहमद ने इस सीज़न के पहले चरण में खेले गए एक रोमांचक मुक़ाबले को याद किया। बड़ौदा के ख़िलाफ़ पहले मैच की पहली पारी में बंगाल की टीम मात्र 88 रनों पर सिमट गई थी। परिणामस्वरूप दूसरी पारी में उन्हें 349 रनों के लक्ष्य का पीछा करना पड़ा।
ग्रुप स्टेज में केवल तीन मैच होने के कारण इस मैच में हार बंगाल के नॉकआउट में जाने की उम्मीदों को ठेस पहुंचा सकती थी। 176 के स्कोर पर पांचवां विकेट गंवाने के बाद शाहबाज़ क्रीज़ पर आए और उन्हें हाल ही में अंडर-19 विश्व कप का हिस्सा रहे अभिषेक पोरेल का साथ मिला।
इस जोड़ी ने अंतिम दिन 22 ओवरों में 108 रन जोड़े और बंगाल को एक यादगार जीत दिलाई। यह बंगाल द्वारा अंतिम पारी में हासिल किया गया अपना सबसे बड़ा और रणजी ट्रॉफ़ी के इतिहास का छठा सबसे बड़ा लक्ष्य था। जहां अभिषेक ने अर्धशतक जड़ा वहीं शाहबाज़ ने महत्वपूर्ण 71 रन बनाए।
गुरुवार को शाहबाज़ ने अपने छोटे से प्रथम श्रेणी करियर में एक और बड़ा कारनामा कर दिखाया। 54 रनों के भीतर आधी टीम को गंवाने के बाद क्रीज़ पर आते हुए उन्होंने अनुभवी मनोज तिवारी का साथ दिया और अपना पहला प्रथम श्रेणी शतक जड़ा। तिवारी के साथ शाहबाज़ ने 167 रन जोड़े।
सेमीफ़ाइनल से पहले एक बातचीत के दौरान शाहबाज़ ने अपनी बल्लेबाज़ी के बदले हुए अंदाज़ पर विस्तार से बात की थी। उन्होंने कहा था, "आईपीएल में सारा खेल अपनी पूरी ताक़त के साथ शॉट लगाने का है, रणजी में आपको अलग अंदाज़ से खेलना पड़ता है। मेरे खेल में एक बड़ा बदलाव यह है कि लाल गेंद को आपको अंतिम समय पर खेलना होता है क्योंकि वह सफ़ेद गेंद की तुलना में ज़्यादा स्विंग होती है। लंबे प्रारूप में एक और बदलाव यह था कि मुझे गेंदों को छोड़ना पड़ता था। नेट सत्रों में मैंने इन दोनों चीज़ों का अभ्यास किया।"
शाहबाज़ हमेशा से ही एक अच्छे बल्लेबाज़ थे लेकिन काफ़ी समय तक उन्हें एक स्पिनर के तौर पर तरजीह दी जाती थी जो थोड़ी बहुत बल्लेबाज़ी भी कर लेता है। जहां आईपीएल में रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु के लिए बल्ले से उनके योगदान ने कई लोगों को चौंकाया, शाहबाज़ के कोच और बंगाल टीम के सदस्यों के लिए यह आम बात थी कि शाहबाज़ अपने प्रमुख कौशल से कमाल कर रहे थे।
आईपीएल में अपनी ज़िम्मेदारियां निभाने के केवल दो दिन बाद शाहबाज़ रणजी ट्रॉफ़ी के नॉकआउट मैचों के लिए बेंगलुरु पहुंचे। तीन महीनों में लाल गेंद के ख़िलाफ़ अपने पहले मैच में झारखंड के ख़िलाफ़ उन्होंने 78 रन बनाए। अब उन्होंने प्रथम श्रेणी क्रिकेट में अपना पहला शतक जड़ा।
इस पारी की विशेषता यह थी कि किस तरह शाहबाज़ ने परिस्थिति को समझा और अपने अंदाज़ को बदला। पारी की शुरुआत में अपने शॉट्स को नियंत्रण में रखते हुए उन्होंने गेंदों को छोड़ने पर ध्यान दिया। वह जानते थे कि उनके बाद केवल गेंदबाज़ों का क्रीज़ पर आना बाक़ी था और ऐसे में उनकी परिपक्वता निखरकर सामने आई। तिवारी के साथ उनकी साझेदारी और भी ख़ास थी क्योंकि वह तिवारी ही थे जिन्होंने बंगाल टीम में शाहबाज़ के चयन का समर्थन किया था।
मोहम्मद शमी की ही तरह शाहबाज़ बंगाल से नहीं है। वह मेवात, हरियाणा में पले-बढ़े और 2013 में ही कोलकाता आए। क्लब क्रिकेट में अपनी छाप छोड़ने के बाद शाहबाज़ ने प्रथम श्रेणी क्रिकेट तक का सफ़र तय किया। इस दौरान उन्होंने आयु वर्ग क्रिकेट में हिस्सा ही नहीं लिया।
उन दिनों को याद करते हुए शाहबाज़ कहते हैं, "मेरे मित्र प्रमोद चंदीला, जो उस समय बंगाल के लिए खेल चुके थे, मुझे क्लब क्रिकेट खेलने के लिए कोलकाता लेकर आए। भले ही मैं वहां लगातार मैच खेलता था, मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं घरेलू क्रिकेट में बंगाल का प्रतिनिधित्व करूंगा। मैं केवल कोलकाता में क्लब क्रिकेट खेलना चाहता था।"
एक क्लब टूर्नामेंट के दौरान ही पहली बार तिवारी की नज़र शाहबाज़ पर पड़ी। "मुझे हमेशा से एक ऐसे स्पिनर की तलाश थी जो बल्लेबाज़ी भी करता हो क्योंकि रणजी ट्रॉफ़ी जीतने के लिए यह आवश्यक है," तिवारी ने बताया। "मैं ऐसे ही एक स्पिनर को खोज रहा था। टीम के चयन के दौरान उनके पास आंकड़े होते थे कि कौन रन बना रहा है और कौन अधिक विकेट ले रहा है। शाहबाज़ उन खिलाड़ियों में से थे जो लगभग 50 विकेट लेते और 1200-1500 रन बनाते। मैं हमेशा से उन्हें टीम में देखना चाहता था।"
तिवारी ने आगे कहा, "सीएबी (बंगाल क्रिकेट संघ) के बाहरी खिलाड़ियों के क्लब क्रिकेट खेलने और आने के जो भी मानदंड हैं, जहां तक ​​मेरी जानकारी है, उन्होंने सीनियर टीम में चुने जाने के लिए उस मानदंड को पूरा किया। इसलिए मुझे उनके "एक बाहरी व्यक्ति होने के बाद भी बंगाल के लिए खेलने" पर कोई आपत्ति ही नहीं थी। हालांकि इसके बावजूद कई सवाल उठाए गए थे और अब परिणाम आपके सामने है।"
तिवारी का समर्थन शाहबाज़ के लिए काफ़ी मायने रखता है। 2018-19 में केवल दो मैच खेलने के बाद 2019-20 में शाहबाज़ ने सभी को अपने कौशल का परिचय दिया और बंगाल को रणजी ट्रॉफ़ी के फ़ाइनल में पहुंचाया
तिवारी से मिले समर्थन पर शाहबाज़ ने कहा, "जब मैंने कोलकाता में खेलना शुरू ही किया था, वह मनोज तिवारी थे जिन्होंने मेरे खेल को पहचाना और फिर मैंने उनकी कप्तानी में (बंगाल की ओर से) अपना डेब्यू किया। अंडर-19 या आयु वर्ग की क्रिकेट खेले बिना घरेलू क्रिकेट के सर्वोच्च स्तर पर खेलना काफ़ी मुश्किल होता है लेकिन उन्होंने मुझे क्लब क्रिकेट से सीधे घरेलू क्रिकेट में खेलने का मौक़ा दिया था।"
"मनोज भाई की बल्लेबाज़ी की विशेषता यह है कि स्पिनरों के ख़िलाफ़ वह हावी होते हैं। उनको खेलते हुए देखने पर ऐसा लगता है कि स्पिन के ख़िलाफ़ उनके पास अनगिनत शॉट है। साथ ही जिस तरह वह मैच की स्थिति को समझते हैं वह मददगार होता है। दूरदर्शिता के साथ-साथ उनके पास चीज़ों को धुनने की कला है।"
यह सभी बातें मध्य प्रदेश के ख़िलाफ़ चल रहे सेमीफ़ाइनल मुक़ाबले में भी साफ़ देखने को मिली।
तिवारी के अलावा बंगाल के वर्तमान कोच अरुण लाल ने भी शाहबाज़ के करियर को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है। बतौर कोच लाल खुलकर अपनी बात रखने की विचारधारा पर विश्वास करते हैं। इस विचारधारा को अपनाने वाले शाहबाज़ मानते हैं कि उन्हें खेल के बारे में बेहतर विचारक बनने में मदद मिली है।
शाहबाज़ का कहना है, "बंगाल के लिए दो प्रथम श्रेणी मैच खेलने के बाद मुझे ड्रॉप किया गया था। उस समय स्ट्राइक लेते वक़्त मेरे पैरों के बीच बड़ा गैप था। अरुण लाल सर ने कहा कि भारतीय पिचों पर इस तकनीक के साथ रन बनाना कठिन होगा। ड्रॉप होने के बाद उन्होंने मुझे इस गैप को कम करने को कहा। जब से मैंने ऐसा किया है, मुझे बल्ले के साथ सफलता मिलने लगी, ख़ासकर रणजी ट्रॉफ़ी में।"
आईपीएल में मिली पहचान और सफलता के बीच शाहबाज़, लाल के लिए रणजी ट्रॉफ़ी जीतना चाहते हैं। वह कहते हैं, "वह (लाल) एक सकारात्मक व्यक्ति हैं और हमें यह कहते हैं कि जल्द ही हम भारत के लिए खेलेंगे। इससे हमें बहुत आत्मविश्वास मिलता है।"
शाहबाज़ की नज़र फ़िलहाल रणजी ट्रॉफ़ी पर है। भारतीय टीम में जगह बनाने पर उन्होंने कहा, "इस समय मुझे और विकसित होना है। इसके बाद ही मैं राष्ट्रीय टीम में जगह बनाने के बारे में सोच पाऊंगा। मुझे अपनी फ़ॉर्म को बरक़रार रखते हुए टीम को ज़्यादातर मैच जिताने होंगे। निरंतरता के साथ प्रदर्शन करने के बाद ही मैं वह मौक़ा प्राप्त कर सकता हूं।"
साल 2020 में ईएसपीएनक्रिकइंफ़ो के साथ बातचीत के दौरान शाहबाज़ ने कहा था कि वह बंगाल के बेन स्टोक्स बनना चाहते हैं। तो इस सफ़र में वह कहां तक पहुंचे हैं?
उन्होंने कहा, "मैं अपनी टीम के लिए एक बढ़िया फ़िनिशर बनना चाहता हूं। इसलिए मैं स्टोक्स को अपना प्रेरणास्त्रोत मानता हूं क्योंकि उन्होंने इंग्लैंड को विश्व कप और अकेले दम पर हेडिंग्ली टेस्ट जिताया है। मैं बेन स्टोक्स की तरह बंगाल को और आईपीएल में अपनी टीम को मैच जिताना चाहता हूं।"

हिमांशु अग्रवाल ESPNcricinfo में सब एडिटर हैं। अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी के सब एडिटर अफ़्ज़ल जिवानी ने किया है।