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कृष्णस्वामी : वॉनडरर्स में छा गए शार्दुल ठाकुर

टेस्ट करियर में पहली बार पंजा खोलते हुए वह अपने उपनाम 'बॉथम' पर खरे उतरे

मोहम्मद शमी और जसप्रीत बुमराह ने जोहैनेसबर्ग टेस्ट के दूसरे दिन सुबह और पहले दिन शाम को डीन एल्गर के बल्ले को कई बार बीट किया था। मोहम्मद सिराज ने भी शानदार गेंदबाज़ी का मुज़ाहिरा करते हुए कई बार ऐसा किया था। ऐसा नहीं था कि एल्गर काफ़ी निपुणता और दृढ़ता के साथ बल्लेबाज़ी कर रहे थे। मामला भाग्यशाली होने का था और एल्गर इस मामले में अव्वल थे। उन्हें लगातार भाग्य का सहारा मिल रहा था।
पहले दिन के आख़िरी सेशन में वह लगभग एक घंटे तक अपनी विकेट बचाने में सफल रहे। दूसरे दिन के पहले घंटे में भी उन्होंने अपने विकेट को बचाए रखा। इस दौरान शायद ही उन्होंने कोई आक्रामक शॉट खेला हो। अपने निजी स्कोर को 11 के योग पर पहुंचाने के बाद, उन्होंने लगातार 47 गेंदों तक कोई रन नहीं बनाया। वह गेंदों को रोकने का प्रयास कर रहे थे और उन्हें छोड़ रहे थे। इस दौरान वह कई बार बीट हुए, कई बार आउट होने से बचे और भाग्य पूरी तरह से उनका साथ दे रहा था।
'अतिभाग्यशाली' होने की भी हद होती है
हालांकि यह सब तब तक ही चला, जब तक शार्दुल ठाकुर गेंदबाज़ी करने नहीं आए थे। उन्होंने उसी तरह की गेंद फेंकी, जैसी शमी, बुमराह और सिराज ने एल्गर को कई बार फेंकी थी लेकिन शार्दुल एक मामले में अपने साथियों से आगे निकल गए- उनके साथी एल्गर को बीट कर रहे थे और शार्दुल की गेंद ने एल्गर के बल्ले को चूम लिया।
एल्गर - C पंत B शार्दुल 28, साउथ अफ़्रीका 88/2
शार्दुल ठाकुर। आप उन्हें कैसे परिभाषित करोगे?
सोशल मीडिया पर लॉर्ड नाम से प्रचलित शार्दुल एक शानदार क्रिकेटर हैं और वह हमेशा आत्मविश्वास से भरे हुए होते हैं।
एल्गर की विकेट को दोबारा देखने पर पता चलेगा कि दाएं हाथ के हज़ारों तेज़ गेंदबाज़ों ने टेस्ट क्रिकेट की शुरुआत से ठीक उसी तरह बाएं हाथ के हज़ारों बल्लेबाजों को आउट किया है। एक बढ़िया लेंथ की गेंद, ओवर द विकेट से कोण बनाती हुई लेग स्टंप या उसके आस-पास टप्पा खाती है, और एल्गर को उस गेंद को खेलना पड़ता है। ऐसा ख़ास कर के तब होता है जब उनकी गेंद गिरने के बाद (बाएं हाथ के बल्लेबाज़ के लिए) अंदर आती है।
हालांकि जिस गेंद पर एल्गर आउट हए, वह गिरने के बाद अंदर नहीं आई बल्कि बाहर निकली। इसके बावजूद गेंद की लाइन और लेंथ इतनी बढ़िया थी कि एल्गर को इसे खेलने पर मजबूर होना पड़ा। वह क्रीज़ में खड़े रहकर इस गेंद को खेलते हैं और आउट हो जाते हैं।
अब प्रश्न यह बनता है कि गेंद इस बार बल्ले का किनारा लेती हुई कीपर के पास क्यों गई? इससे पहले भी तो कई गेंदबाज़ों ने इसी तरह की गेंदबाज़ी की थी लेकिन ऐसा संभव क्यों नहीं हो पाया? ख़ैर, यह आंशिक रूप से भाग्य की बात है, या कहें संयोग की बात है और यह ऊपर पूछे गए प्रश्न के स्पष्टीकरण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हो सकता है।
इस स्पष्टीकरण का दूसरा हिस्सा यह हो सकता है कि ठाकुर अन्य तीन तेज़ गेंदबाज़ों की तुलना में औसतन कम से कम 5 किलोमीटर प्रति घंटे कम की गति से गेंद फेंकते हैं। इसलिए जहां सिराज की ठीक ऐसी ही एक गेंद एल्गर के बल्ले को बीट करती है, वहीं शार्दुल की गेंद बाहरी किनारे को छू जाती है। हर किसी की तरह शार्दुल भी अच्छी गेंदें फेंकते हैं जिन पर उन्हें विकेट नहीं मिलती। जिस ओवर में एल्गर आउट हुए, उससे ठीक पिछले ओवर में उन्होंने एल्गर को एक बार बीट किया था।
अच्छी गेंदों पर विकट मिले या ना मिले, वह हमेशा महत्वपूर्ण हैं। आप लगातार ऐसी गेंदबाज़ी करें और विकेट आपको अपने आप मिल जाएंगे। शार्दुल ने अब तक के अपने पूरे टेस्ट करियर में ऐसा किया है, और उन्हें इसका पुरस्कार भी मिल चुका है। वह एक स्वाभाविक आउट स्विंग गेंदबाज़ है (दाएं हाथ के बल्लेबाज़ के लिए), और वह एक शक्तिशाली निप-बैकर (अंदर आने वाली गेंद) भी डालते हैं।
वह क्रीज़ का चतुराई से उपयोग करते हैं, जैसा कि उन्होंने मंगलवार को काइल वेरेन के सामने भी किया। वह क्रीज़ के इतने कोने से गेंदबाज़ी करते हैं कि बल्लेबाज़ का बाहरी किनारा लगने से ज़्यादा इस बात की संभावना बढ़ जाती है कि बल्ले का भीतरी किनारा लगेगा। इस पिच पर अगर कोई गेंदबाज़ ज़ोर से गेंद पटक रहा था तो उसे अच्छा-ख़ासा उछाल मिल रहा था। ठाकुर ने ऐसा कई बार किया, भले ही वह कट्टर हिट-द-डेक गेंदबाज़ न हों।
संक्षेप में ठाकुर आक्रामक आउटस्विंग गेंदबाज हैं, लेकिन उनकी गति डरावनी नहीं है या कहें कि उनके पास तेज़ गति नहीं है। वह अपनी गेंदबाज़ी में लाइन, लेंथ और गति के साथ बढ़िया बदलाव करते हैं और बल्लेबाज़ों का विकेट लेते हैं।
बढ़िया गेंदबाज़ी के साथ-साथ उनके बल्लेबाज़ी कौशल के कारण भारतीय ड्रेसिंग रूम में उन्हें सब प्यार से "बीफ़ी" (इयन बॉथम) बुलाने लगे हैं। जब ठाकुर साउथ अफ़्रीका के बल्लेबाज़ी आक्रमण को धराशाई कर रहे थे तब ईएसपीएनक्रिकइंफ़ो व्हॉट्सएप ग्रुप में इयन बॉथम की जगह, उनकी तुलना मार्क इलहम और डॉजी ब्राउन से की गई।
स्पष्ट रूप से ठाकुर बॉथम नहीं हैं, लेकिन वह निश्चित रूप से इलहम भी नहीं हैं। वह रूढ़िवादी काउंटी गेंदबाज़ की तरह हैं, लेकिन उनकी गति कम नज़र आती है जब आप इसकी तुलना उनके साथी तेज़ गेंदबाज़ों से करें। वह विकेट लेने की क्षमता के साथ इलहम से अधिक मैथ्यू हॉगार्ड दिखते हैं। वह सिर्फ़ एक ऐसे युग में खेल रहे हैं, जहां वह भारत के तेज़ गेंदबाज़ी आक्रमण में गेंदबाज़ी की योग्यता के आधार पर छठे स्थान पर बैठे हैं।
अगर विदेश में टेस्ट मैच हो तो ठाकुर को टीम में जगह मिल जाती है क्योंकि उनमें बल्लेबाज़ी करने की क्षमता हैं। उन्होंने आठ टेस्ट पारियों में तीन अर्धशतक लगाए हैं। यह सभी पारियां भारतीय टीम के लिए बहुत ही अहम समय पर आई थी और उनमें टीम को जीत मिली थी।
वह टीम के लिए एक आकर्षक पैकेज हैं, और उन्हें टीम में जगह देना भारत के लिए उतना ही वैध विकल्प है जितना कि एक विशेषज्ञ छठे बल्लेबाज़ या एक विशेषज्ञ चौथे तेज़ गेंदबाज़ को टीम में जगह देना।
एक बात यह भी है कि भले ही ठाकुर इशांत शर्मा या उमेश यादव के बराबर नहीं हैं - जिन्होंने साउथ अफ़्रीका में अब तक दोनों टेस्ट मैच नहीं खेले हैं। एक अच्छे चौथे तेज़ गेंदबाज़ के तौर पर वह टीम के लिए बढ़िया पसंद हैं। वह सबसे तेज़ नहीं हैं, और वह बाक़ी गेंदबाज़ो की तुलना में एक ऐसा स्पेल फेंकना पसंद करते हैं जिसमें उनकी लाइन ऑफ़ स्टंप से काफ़ी बाहर होती है और वह लगातार बल्लेबाज़ों को आक्रमक शॉट खेलने के लिए मजबूर करते हैं। साथ ही एक बात यह भी है कि वह अच्छे बल्लेबाज़ों को आउट करने में सक्षम हैं।
कभी कभी ऐसा देखा जाता है कि उन्हें किसी पारी में काफ़ी कम गेंदबाज़ी दी गई हो। सेंचूरियन में उन्होंने दूसरी पारी में सिर्फ़ पांच ओवर की गेंदबाज़ी की थी। ऐसा इस कारण से नहीं है कि उनमें वह क्षमता नहीं है या उन पर विश्वास कम किया जाता है। ऐसा इसलिए होता है कि वह चौथे तेज़ गेंदबाज़ हैं और वह 1970-80 के दशक की वेस्टइंडीज़ टीम में नहीं है, जिन्हें गेंदबाज़ी का पर्याप्त मौक़ा मिलता था।
हालांकि एक बात यह भी है कि जब कभी ठाकुर को कप्तान गेंदबाज़ी के लिए बुलाते हैं तो वह सफल रहते हैं। सेंचूरियन में बुमराह को जब चोट लगी थी, तब शार्दुल को कप्तान ने गेंद थमाई और उन्होंने टीम को सफलता दिलाई थी।
मंगलवार को भी यही हुआ। उन्हें गेंदबाज़ी करने का ज़्यादा मौक़ा इस कारण से मिल पाया क्योंकि सिराज पूरी तरह से फ़िट नहीं थे। जब वह गेंदबाज़ी करने आए तो अफ़्रीकी टीम का स्कोर 75 रन था और उनका सिर्फ़ एक ही विकेट गिरा था। फिर बाद में शार्दुल की शानदार गेंदबाज़ी ने बल्लेबाज़ों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया।

कार्तिक कृष्णस्वामी ESPNcricinfo में सीनियर सब एडिटर हैं। अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी के सब एडिटर अफ़्ज़ल जिवानी ने किया है।