पिछले टी20 विश्व कप की तुलना में
इस बार भी बल्लेबाज़ी में शीर्ष सात में से पांच वही बल्लेबाज़ होंगे। नीचे
रवींद्र जाडेजा होंगे जो चोट के चलते पिछला विश्व कप नहीं खेल पाए थे।
पिछले विश्व कप के बाद से टी20 प्रारूप में भारतीय टीम की यात्रा देखने पर ऐस लग सकता है कि डेढ़ साल भारत के लिए उतने अच्छे नहीं बीते लेकिन कुछ छोटे बदलावों ने उन्हें अंतिम चार का दावेदार बना दिया है। इस पर भी दया देना ज़रूरी है कि सिर्फ़ सात महीने पहले ही बोर्ड को यह ध्यान में आया कि सामने टी20 विश्व कप है और इसे देखते हुए कोच, कप्तान से लेकर चयनकर्ताओं को एक साथ एक मंच पर लाया गया। यह एक ऐसा सवाल है जो बोर्ड से पूछा जा सकता है।
जसप्रीत बुमराह और
कुलदीप यादव इस विश्व कप में दो ऐसे बड़े नाम हैं जिनकी वापसी हुई है। ख़ास तौर पर जिस तरह के गेंदबाज़ हैं, उन्हें इस बात से अधिक फ़र्क नहीं पड़ता कि उनकी टीम ने कितना बड़ा स्कोर खड़ा किया है।
सबसे ज़्यादा ध्यान
यशस्वी जायसवाल और
शिवम दुबे की ओर जाना लाज़मी है क्योंकि इन दोनों के खेल से ना सिर्फ़ दर्शक प्रभावित हुए हैं बल्कि इन दोनों को लेकर टीम की लीडरशिप भी काफ़ी उत्साहित रहती है।
संजू सैमसन भी एक तरह से इस विश्व कप में नया चेहरा हैं लेकिन उनकी बल्लेबाज़ी की शैली अन्य भारतीय बल्लेबाज़ों से अधिक जुदा नहीं है।
दुबे और जायसवाल ही दो ऐसे चेहरे हैं जिनकी तलाश भारतीय टीम को थी। हालांकि यहीं पर भारतीय प्लेइंग इलेवन सुनिश्चित करने के लिए बड़ा सिर दर्द भी पैदा होता है क्योंकि इन दोनों में से किसी एक को ही एकादश में जगह मिल सकती है।
रोहित शर्मा की जगह पर सवाल ही नहीं खड़ा किया जा सकता,
विराट कोहली अपने करियर के सबसे बेहतरीन दौर में हैं, सूर्यकुमार यादव अगर लीग स्टेज में लगातार सात बार खाता भी ना खोल पाएं तब भी उनकी जगह पर सवाल नहीं उठाए जा सकते। इसके बाद भारतीय टीम को एक विकेटकीपर और दो ऑलराउंडर की जगह भरनी होगी। इतने में ही छह स्लॉट भर गए।
दो ही परिस्थितियां बनती हैं जब दुबे और जायसवाल को एक साथ एकादश में जगह दी जा सकती है। टीम मैनेजमेंट जाडेजा और दुबे से पांचवें गेंदबाज़ के लिए चार ओवर कराए और किसी प्रमुख गेंदबाज़ के संघर्ष करने की स्थिति में इन दोनों का इस्तेमाल बैक अप के तौर पर करे। या तो फिर यह किया जा सकता है कि टीम मैनेजमेंट जाडेजा, दुबे और हार्दिक पंड्या तीनों को मिलकर आठ ओवर की गेंदबाज़ी करने की ज़िम्मेदारी सौंप दे।
यह कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है कि टीम मैनेजमेंट जायसवाल की तुलना में दुबे को मौक़ा देने के अधिक पक्ष में होगी। इसकी बड़ी वजह यह है कि दुबे ज़्यादा बड़ा अंतर पैदा कर सकते हैं। वह स्पिन के ख़िलाफ़ आक्रामक बल्लेबाज़ी कर सकते हैं और वह एक बाएं हाथ के बल्लेबाज़ भी हैं जिसकी तलाश भारत को मध्य क्रम में है। IPL के बीते सीज़न में दुबे ने शॉर्ट गेंदों के ख़िलाफ़ भी अच्छी बल्लेबाज़ी की। भारतीय टीम मैनेजमेंट भी दुबे को वैसी ही छूट देने का फ़ैसला कर सकती है जैसा चेन्नई सुपर किंग्स (CSK) उन्हें देती है।
हालांकि बड़ी समस्या यही है कि दुबे को जगह देने के लिए जायसवाल को बाहर बैठाना होगा। जबकि रोहित और कोहली बाएं हाथ के स्पिनर्स को सहजता के साथ नहीं खेल पाते। कोहली ने इस तरह की गेंदबाज़ी के सामने अपने स्ट्राइक रेट में सुधार ज़रूर किया है लेकिन IPL में इस गेंदबाज़ी के सामने उनका 131 का स्ट्राइक रेट अपेक्षा से कम ही है। रोहित ने भले इस सीज़न ऐसी गेंदबाज़ी के सामने बड़े शॉट्स खेलने के प्रयास ज़रूर किए लेकिन इसके बावजूद उनका ओवरऑल स्ट्राइक रेट ऐसी गेंदबाज़ी के ख़िलाफ़ स्ट्राइक रेट से अधिक ही रहा।
हालांकि इस समस्या का व्यावहारिक समाधान तो यही शीर्ष सात नज़र आ रहा है - रोहित, कोहली, सूर्यकुमार, सैमसन/पंत, दुबे, पंड्या, जाडेजा/अक्षर।
यह तो एक विकल्प हुआ। हालांकि एक दूसरा विकल्प भी है जो कि पहली नज़र में उतना प्रासंगिक भले ही नज़र नहीं आए लेकिन इसे भी अमल में लाया जा सकता है। कोहली या रोहित में से कोई एक मध्य क्रम में खेले। शीर्ष क्रम निडरता के साथ खेले और अगर शीर्ष क्रम विफल रहता है तब इन दोनों में से कोई एक डैमेज कंट्रोल करने के लिए नीचे मौजूद हो।
कोहली बतौर ओपनर बहुत अच्छा कर रहे हैं। वहीं रोहित के पास डेथ में किसी भी गेंदबाज़ी आक्रमण को तहस नहस करने की क्षमता है। रोहित ने अब तक अपने टी20 करियर में कुल 750 गेंदें डेथ में खेली हैं, जिनमें से 50 गेंदें उन्होंने 2019 के बाद से खेली हैं। इन 50 गेंदों में से 29 गेंदें रोहित ने इसी साल खेली हैं, जिसमें उन्होंने बिना अपना विकेट गंवाए 79 रन बनाए हैं।