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क्या भारत की हार के लिए बल्लेबाज़ हैं ज़िम्मेदार?

हालांकि जल्दबाज़ी में कोई निर्णायक टिप्पणी करना उचित नहीं, लेकिन इंग्लैंड के ख़िलाफ़ टेस्ट सीरीज़ से पहले भारतीय बल्लेबाज़ों को कई सवालों का जवाब भी ढूंढ़ना होगा।

दूसरी पारी में अजिंक्य रहाणे का विकेट लेने के बाद ट्रेंट बोल्ट  •  ICC via Getty

दूसरी पारी में अजिंक्य रहाणे का विकेट लेने के बाद ट्रेंट बोल्ट  •  ICC via Getty

विश्व टेस्ट चैंपियनशिप फ़ाइनल हारने के बाद विराट कोहली की टीम इंडिया सूर्यास्त के बाद भी एजेस बोल के मैदान पर टिकी हुई थी। यह टीम मैदान से सटे होटल में अपनी हार पर चर्चा कर रही थी। वहीं दूसरी ओर केन विलियमसन की न्यूज़ीलैंड टीम बगल के ड्रेसिंग रूम में अपने पसंदीदा खानों और ड्रिंक्स के साथ विश्व चैंपियन बनने का जश्न मना रही थी।
महामारी की वजह से यह परिस्थिति उपजी थी कि पराजित टीम, विजेता टीम के जीत के उत्सव को देख-सुन रही थी। आप समझ सकते होंगे कि यह कितना दर्द भरा हो सकता है। इसके लिए आपको मैच खेलने की भी जरूरत नहीं है। अमूमन टीम होटल मैदान से दूर और अलग-अलग होता है लेकिन कोरोना महामारी के कारण यह मैच लॉर्ड्स की जगह साउथैंप्टन में हुआ, जहां पर होटल, स्टेडियम से बिल्कुल लगा हुआ है और जहां पर दोनों टीमें साथ रुकी थी।
रॉस टेलर के विजयी रन बनाने के तुरंत बाद विलियमसन, न्यूज़ीलैंड क्रिकेट के इतिहास के इस सबसे ऐतिहासिक पल का जश्न मनाने के लिए अपनी टीम के साथियों की तरफ चल पड़े। उनसे थोड़ी दूर पर ही खड़े कोहली ने पहले अपने साथियों से हाथ मिलाया। फिर भारत की बाकी टीम और कोचिंग स्टाफ़ के साथ हाथ मिलाने के बाद वह न्यूज़ीलैंड की टीम की ओर बढें।
कभी हार नहीं मानने वाले कोहली इसके बाद सर झुकाए भारतीय ड्रेसिंग रूम की ओर चले गए। ड्रेसिंग रूम की सीढ़ियों के बगल में खड़े भारतीय प्रशंसकों ने उन्हें चीयर करने की कोशिश की, लेकिन इसका उन पर कोई असर नहीं हुआ। बाद में एक हाथ में इंडिया ब्लेज़र और दूसरे हाथ में एक बैग लेकर वह अकेले ही टीम होटल की ओर चल दिए।
यह तीसरा आईसीसी का वैश्विक टूर्नामेंट था, जहां पर कोहली की टीम ख़िताब जीतने में असफल रही। इससे पहले 2017 चैंपियंस ट्रॉफ़ी और 2019 वनडे विश्व कप में भी ऐसा हो चुका है। दिलचस्प बात ये रही कि भारत के लिए ये तीनों हार इंग्लैंड में आई और तीनों बार हार की एक बड़ी वजह बल्लेबाज़ी की नाकामी रही।
2017 चैंपियंस ट्रॉफ़ी में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ फ़ाइनल के दौरान भारतीय बल्लेबाज़ी क्रम रोहित शर्मा और कप्तान कोहली के जल्द आउट हो जाने के बाद उबर ही नहीं सका। वहीं 2019 विश्व कप सेमीफ़ाइनल में हार का ठीकरा भी कप्तान कोहली और कोच रवि शास्त्री ने ख़राब बल्लेबाज़ी पर ही फोड़ा था, जहां न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ मैच में टीम ने आधे घंटे में ही में अपने शीर्ष क्रम को खो दिया था। इस विश्व टेस्ट चैंपियनशिप फ़ाइनल की दूसरी पारी के दौरान भी जब आसमान में धूप थी, न्यूज़ीलैंड के चार तेज़ गेंदबाज़ों द्वारा बनाए गए दबाव के सामने भारत के विश्वस्तरीय बल्लेबाज़ टिक नहीं सके और एक के बाद एक आउट होते चले गए। आख़िर, इन वैश्विक टूर्नामेंट्स के दौरान भारत की बल्लेबाज़ी को क्या हो जाता है?
हालांकि जल्दबाज़ी में इस पर कोई निर्णायक टिप्पणी करना मूर्खता होगी। इंग्लैंड के ख़िलाफ़ दो टेस्ट मैच खेलकर आ रही न्यूज़ीलैंड के विपरीत कोहली की टीम ने आईपीएल स्थगन (मई की शुरुआत) के बाद से कोई क्रिकेट नहीं खेला था। उन्होंने जो तीन दिवसीय इंट्रा-स्क्वॉड मैच खेला था, उस समय भी धूप खिली थी। जबकि पिछले शनिवार को पहली पारी के दौरान उन्हें सबसे कठिन परिस्थितियों में बल्लेबाज़ी के लिए उतरना पड़ा, जब आसमान में काले बादल थे और मैदान पर इतना अंधेरा था कि लगातार फ़्लड लाइट का सहारा लेना पड़ रहा था। जेमीसन के उछाल से परेशान भारत का कोई भी बल्लेबाज़ अर्धशतक नहीं बना सका। वहीं दूसरी पारी में भारतीय बल्लेबाज़ दबाव में बिखर गए।
मैच के बाद हुए प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कोहली ने कहा कि भारत ने रन ना बनाकर न्यूज़ीलैंड के गेंदबाज़ों को उन पर हावी होने का मौका दिया। लेकिन क्या सच में बस वही मामला था? यह पिच तेज़ गेंदबाज़ो के मुफ़ीद बनाई गई थी। फिर भी गेंदबाज़ो को अपनी सही लाइन-लेंथ ढूंढने में कड़ी मेहनत करनी पड़ी कि वे बल्लेबाज़ों से गलती करवा सकें। केवल जेमीसन ही एक ऐसे गेंदबाज़ रहें, जो ज़्यादा पसीना बहाए बिना दोनों पारियों में सफल रहे। इसके अलावा बाकी गेंदबाज़ों को सफल होने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी और फिर भी जसप्रीत बुमराह जैसे गेंदबाज़ को विकेट नहीं मिला।
एक मैच में जहां औसत स्कोरिंग दर दो रन प्रति ओवर के आसपास था, बल्लेबाज़ी कभी भी आसान नहीं होने वाली थी। फिर भी आपको एक रास्ता खोजना था। एक बल्लेबाज़, जिसने इस मैच में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया, वह थे न्यूज़ीलैंड के कप्तान केन विलियमसन। दोनों पारियों में विलियमसन ने पारंपरिक टेस्ट बल्लेबाज़ी की रणनीति अपनाई- धैर्य रखना, गेंद को देर और हल्के हाथों से खेलना, बाहर जाती गेंदों को छोड़ना और अंत में जब गेंदबाज़ थक जाए तो अपने मास्टरक्लास के ज़रिए रन बनाना।
बुधवार की दोपहर जब आर अश्विन ने टॉम लेथम और डेवन कॉन्वे को हवा में चकमा देकर आउट किया तो भारत एक असंभव वापसी करने की संभावना बना रहा था। लेकिन विलियमसन ने कोई पलटवार नहीं किया। वह अच्छी तरह से जानते थे कि अभी भी काफी ओवर बचे हैं और उनकी प्राथमिकता सही समय पर सही शॉट्स खेलने पर थी।
न्यूज़ीलैंड के कप्तान का धैर्य रंग भी लाया। भारत के तेज़ गेंदबाज़ मंगलवार की अथक गेंदबाज़ी के बाद थके हुए से थे, थोड़ी देर बाद अश्विन से भी निपटना अपेक्षाकृत आसान हो गया था। जैसे ही गेंदबाज़ों ने शॉर्ट और वाइड गेंदें फेंकनी शुरू की, रन बनाना आसान होता चला गया। टेलर के साथ विलियमसन ने न्यूनतम जोख़िम लेते हुए रन बनाने के लिए सही गेंदों का चुनाव किया। यह कोहली के सुझाव के विपरीत एक अलग रणनीति थी।
भारत को अपनी टीम के संतुलन पर काम करने की जरूरत है। उन्होंने फ़ाइनल की पूर्व संध्या पर 17 जून को ही अपने प्लेइंग इलेवन की घोषणा कर दी थी। अगले दिन बारिश के कारण खेल धुल जाने के बाद भी भारत ने उसी टीम को बरकरार रखा। जैसे ही इशांत शर्मा, मोहम्मद शमी और बुमराह थक गए, यह सवाल सामने आ गया कि क्या भारत एक अतिरिक्त तेज़ गेंदबाज़ के साथ उतर सकता था? लेकिन अब जब भारत इंग्लैंड के ख़िलाफ़ पांच टेस्ट मैचों की सीरीज़ की तरफ बढ़ रहा है, उन्हें यह भी विचार करने की आवश्यकता है कि क्या उन्हें हनुमा विहारी के रूप में एक छठे विशेषज्ञ बल्लेबाज़ की भी ज़रूरत है?
2018 के इंग्लैंड दौरे पर कोहली सीरीज़ के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज़ थे। पांच टेस्ट मैचों की सीरीज़ में वह 500 से अधिक रन बनाने वाले एकमात्र बल्लेबाज़ थे, लेकिन फिर भी यह सीरीज़ भारत 4-1 से हार गया था। तब कोहली ने कहा था कि इंग्लैंड के हरफ़नमौला सैम करन ने दोनों टीमों के बीच अंतर पैदा किया क्योंकि इस बाएं हाथ के गेंदबाज़ी ऑलराउंडर ने गेंद और बल्ले दोनों से प्रभाव डाला था। इस फ़ाइनल के दौरान यही अंतर जेमीसन ने पैदा किया।
भारत की इस टीम में आत्मविश्वास की कोई कमी नहीं है, नहीं तो वे कोहली सहित कई प्रमुख खिलाड़ियों की अनुपस्थिति में ऑस्ट्रेलिया में एक कम अनुभवी टीम के साथ बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफ़ी कभी नहीं जीत पाते। अजिंक्य रहाणे, चेतेश्वर पुजारा और रोहित शर्मा जैसे वरिष्ठ बल्लेबाज़ों को भारत की बल्लेबाज़ी का रीढ़ बनने के लिए कोहली की सहायता करने की ज़रूरत है। इन लोगों की सफलता ऋषभ पंत और शुभमन गिल को भी प्रेरित करेगी जो तेज़ी से बल्लेबाज़ी करने में सक्षम हैं और एक सेशन में ही पूरे खेल को पलट सकते हैं।
पंत ने बुधवार को लगभग ऐसा ही किया, लेकिन लंच के बाद बड़ा स्ट्रोक खेलने की कीमत भी चुकाई। इसके बाद मैच पूरी तरह से न्यूज़ीलैंड के पक्ष में चला गया। पंत युवा हैं और टीम प्रबंधन उनमें भविष्य देख रहा है। इससे भी उन्हें अपनी ज़िम्मेदारी समझने में मदद मिलेगी। लेकिन पुजारा जैसे सीनियर बल्लेबाज़ों को भी टीम के लक्ष्य के अनुसार काम करने की ज़रूरत है।
हार के बाद कोहली ने विश्व टेस्ट चैंपियनशिप का समर्थन करते हुए कहा कि टेस्ट क्रिकेट अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट के 'दिल की धड़कन' है। वह जानते हैं कि टेस्ट क्रिकेट को एक झटके में नहीं जीता जा सकता। इसके लिए बहुत सारी योजनाएं बनाने की ज़रूरत होती है और फिर बहुत सारी चीज़ें होती हैं, जिनमें आप कुछ नहीं कर सकते, वह आपके हाथ में नहीं होती। लेकिन किसी को भी टेस्ट क्रिकेट के लिए मानसिक, शारीरिक और कला हर तरह से तैयार रहना होगा अन्यथा कोई भी बहुत आसानी से फिसल कर गिर सकता है। इंग्लैंड के ख़िलाफ़ पांच टेस्ट मैचों की श्रृंखला शुरू होने पर भारत के बल्लेबाज़ों के पास चढ़ने के लिए एक पहाड़ है। लेकिन सवाल यही है कि क्या वे इस पहाड़ को चढ़ पाएंगे?

नागराज गोलापुड़ी ESPNcricinfo में न्यूज़ एडिटर हैं। अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी के सब एडिटर दया सागर ने किया है।