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भारत का घर में वर्चस्व : गर्व करें लेकिन हल्के में मत लें

अश्विन, जाडेजा के साथ अच्‍छे तेज़ गेंदबाज़ों के ग्रुप की बदौलत भारत घर में लगभग अजेय रहा है लेकिन ऐसा हमेशा नहीं रहने वाला

R Ashwin and Ravindra Jadeja celebrate a wicket, India vs Australia, 2nd Test, Delhi, 1st day, February 17, 2023

गेंद के साथ-साथ जाडेजा-अश्विन की जोड़ी बल्ले के साथ भी कमाल दिखाती आई है  •  Getty Images

2016-17 में इंग्‍लैंड को विशाखापट्टनम टेस्‍ट को बचाने के लिए 150 ओवर बल्‍लेबाज़ी करनी थी, जिसमें से एलिस्‍टेयर कुक और हसीब हमीद दोनों ने अकेले 50 ओवर बल्‍लेबाज़ी की थी। इंग्‍लैंड जब आख़‍िरी दिन मैदान में उतरा तो उन्‍हें 90 ओवर बल्‍लेबाज़ी करनी थी और आठ विकेट हाथ में थे। तकनीक और भाग्य के सहारे एक घंटे खेलने के बावजूद इंग्लैंड के दो विकेट और गिर गए थे और अभी भी उसे 90 ओवर या संभवतः उससे भी अधिक बल्लेबाज़ी करने की संभावना दिखाई दे रही थी, क्योंकि भारत ने उस एक घंटे में 21 ओवर फेंके थे और मौसम भी पूरी तरह से साफ़ था।
ज़रा सोचिए कि 21 ओवरों तक थमकर सांस तक ना लेने देने वाली एकाग्रता के बाद एक संक्षिप्त ब्रेक लेना कितना निराशाजनक हो सकता है। ख़ासकर कि सर्वकालिक महानतम स्पिनरों से बचने की कोशिश करने के बाद यह मालूम पड़ना कि वास्तव में आपका प्रदर्शन आपको लक्ष्य की ओर नहीं बढ़ा पा रहा है। यही भारत में टेस्ट क्रिकेट है या अधिक सटीक रूप से कहें तो भारत में टेस्ट क्रिकेट का सिर्फ़ एक घंटा।
भारत की यात्रा करना और टेस्ट सीरीज़ जीतना संभवतः प्रतिस्पर्धी खेल में सबसे कठिन चुनौती है। टेस्ट क्रिकेट में तो ऐसा ही है। वनडे विश्‍व कप जीतना तो इससे आसान है। पिछली बार जब किसी टीम ने भारत में टेस्‍ट सीरीज़ जीती थी, तब से अब तक तीन वनडे विश्‍व कप निकल गए हैं। विश्‍व टेस्‍ट चैंपियनशिप जीतना आसान है। अब तक दोनों ही टेस्ट चैंपियनशिप के विजेता, चैंपियनशिप चक्र के दौरान भारत में सीरीज़ जीतने के आसपास भी नहीं भटक पाए हैं।
भारत को घर में टेस्‍ट सीरीज़ गंवाए क़रीब 11 साल से अधिक का समय हो गया है। इस दौरान ऑस्‍ट्र‍ेलिया ने घर में तीन, इंग्‍लैंड ने दो, न्‍यूज़ीलैंड ने दो और साउथ अफ़्रीका ने चार टेस्‍ट सीरीज़ गंवाई हैं। भारत का वर्चस्‍व केवल सीरीज़ जीतने से बहुत गहरा है। इस दौरान एक भी सीरीज़ ड्रॉ नहीं हुई और केवल एक ही सीरीज़ रही, जिसका नतीजा आख़‍िरी मैच में निकला था। जो 2016-17 में ऑस्‍ट्रेलिया के ख़‍िलाफ़ हुआ था। इन 11 सालों में भारत केवल तीन ही टेस्‍ट हारा है और जीत-हार का अनुपात भी 12 का रहा है, जो इस दौरान दूसरी सर्वश्रेष्‍ठ घरेलू टीम ऑस्‍ट्रेलिया से क़रीब दोगुना है।
यह प्रभुत्व मुख्य रूप से दो सर्वकालिकों की वजह से है। यह बहुत पुरानी बात लगती है जब हमने 2012-13 में इंग्लैंड के ख़‍िलाफ़ घरेलू सरज़मीं पर भारत की आख़‍िरी सीरीज़ हार के बाद भारत की स्पिन गेंदबाज़ी के भविष्य पर सवाल उठाया था। रविचंद्रन अश्विन फ़ॉर्म में नहीं लग रहे थे और सीरीज़ में उनका गेंदबाज़ी औसत भी 53 का था। रवींद्र जाडेजा ने उस सीरीज़ में नंबर छह पर ऑलराउंडर के तौर पर डेब्‍यू ही किया था। ये वो स्पिनर थे जो पहले ही आईपीएल में अपना नाम बना चुके थे। हमें चिंता थी कि भारत की गौरवशाली स्पिन विरासत को कौन आगे बढ़ाएगा।
एक दशक से भी अधिक समय के बाद, हम इनमें भारतीय क्रिकेट के दो महानतम मैच विजेताओं को देख रहे हैं, जिन्होंने पूरे टेस्ट इतिहास में भारत को घरेलू मैदान पर सबसे मज़बूत ताक़त बनाने के लिए अपनी कला, फ़‍िटनेस और उत्कृष्टता की भूख दिखाई है। कप्तान बदल गए हैं, कोच बदल गए हैं, कई आए और चले गए लेकिन ये दो स्‍थायी बने हुए हैं।
उन्होंने एक साथ 49 टेस्ट खेले हैं, जिनमें 20 से कुछ अधिक की औसत और तीन से कम की इकॉनमी दर से कुल 500 विकेट लिए हैं। अनिल कुंबले और हरभजन सिंह ने एकसाथ मिलकर 501 विकेट लिए थे।
अश्विन-जाडेजा के 49 टेस्ट मैचों में से 40 घरेलू मैदान पर हुए हैं। इन मैचों में भारत को एक विकेट की क़ीमत प्रतिद्वंद्वी की तुलना में लगभग 19 रन कम पड़ी। यह आधी कहानी से कुछ ही अधिक है। इन्होंने गेंद के अलावा, लगातार परिणाम निकलने वाले विकेटों पर बल्‍ले से लगभग 40 और 22 की औसत से रन बनाए हैं।
विपक्षी कभी-कभी इस हद तक प्रतिस्पर्धा करने में क़ामयाब हो जाते हैं कि वे अपने ही जितने स्कोर पर भारत के चार या पांच विकेट निकाल लेते हैं लेकिन भारत के स्पिनर बल्‍ले से भी रन बना डालते हैं।
ऐसी जोड़ियां हैं जो अधिक शानदार (वास और मुरली एक साथ 895 विकेट), अधिक बहुमुखी (मैकग्रा और वाॅर्न 1001 विकेट), अधिक ख़तरनाक (वसीम और वक़ार 559 विकेट), अधिक डराने वाली (एम्ब्रोस और वॉल्श 762 विकेट), या अधिक स्थायी (ब्रॉड और एंडरसन (1039) थीं, लेकिन उनमें से किसी में भी ऑलराउंडर बनने की क्षमता नहीं थी। अश्विन और जाडेजा की बात कुछ और है।
यह तर्क दिया जा सकता है कि ये दोनों इतने अच्छे हैं कि जिन देशों में वे यात्रा करते हैं उनमें से कम से कम तीन ने ऐसी पिचें तैयार करना शुरू कर दिया है जो उनकी गेंदबाज़ी के लिए अनुकूल नहीं होती। हाल ही में साउथ अफ़्रीका सीरीज़ में मेज़बानों ने स्पिनरों से एक गेंद तक नहीं कराई। न्‍यूज़ीलैंड हमेशा से ही स्पिन के लिए सबसे मुश्किल जगह रहा है और इंग्‍लैंड ऐसी पिचों की ओर लगातार बढ़ रहा है जहां पर स्पिनरों को मुश्किल से मदद मिले, ख़ासतौर पर जब भारत वहां जा रहा हो।
क्योंकि भारत के पास इन दो महान स्पिनरों के साथ खेलने के लिए एक अच्छा तेज़ गेंदबाज़ी आक्रमण है, इसलिए भारत की पिचें तेज़ गेंदबाज़ों को इतनी ज़्यादा ख़त्म नहीं करती हैं। घर में बनाए वर्चस्‍व के दौर में भारत ने जो 852 विकेट लिए हैं उनमें से एक तिहाई हिस्‍सा तेज़ गेंदबाज़ों के खाते में है। किसी भी अन्य वेन्यू पर कोई मेज़बान टीम अपने कमज़ोर पक्ष के लिए इतना नहीं करती।
कमज़ोर उन्‍हें स्पिनरों से तुलना में कहा जा सकता है लेकिन भारत के तेज़ गेंदबाज़ों ने इन परिस्थितियों में मेहमान टीम के तेज़ गेंदबाज़ों से अच्‍छा प्रदर्शन किया है। अगर मेहमान टीम की तुलना में भारत के स्पिनरों ने प्रति विकेट 20 रन कम ख़र्च किए हैं तो तेज़ गेंदबाज़ भी ज़्यादा दूर नहीं हैं, उन्‍होंने भी मेहमान टीम के तेज़ गेंदबाज़ों की तुलना में प्रति विकेट 17 रन कम ख़र्च किए हैं। इसका अंदाज़ा 2016-17 में ऑस्‍ट्रेलिया के भारत दौरे से लगाया जा सकता है जहां पर नेथन लॉयन और स्‍टीव ओ'कीफ़ ने भारत के स्पिनरों की बराबरी की थी और तेज़ गेंदबाज़ ही अंतर पैदा कर पाए थे।
मोहम्‍मद शमी और उमेश यादव घर में बेहतरीन रहे हैं। भुवनेश्‍वर कुमार और इशांत शर्मा जब भी खेले हैं तो प्रभावी रहे हैं। जसप्रीत बुमराह मुश्किल से भारत में खेले हैं, जिससे विरोधी टीम को थोड़ी राहत मिली है क्‍योंकि उनकी यहां पर 16 से कम की औसत है। मोहम्‍मद सिराज के पास वह ताक़त है जो उन्‍हें घर में ख़तरनाक गेंदबाज़ बना सकती है।
हमें इस वर्चस्‍व का जश्न मनाना चाहिए और इसे संजोना चाहिए क्योंकि अब से कुछ ही समय बाद एक टीम दो असाधारण स्पिनरों और एक मज़बूत तेज़ गेंदबाज़ी आक्रमण के साथ भारत आएगी और मेज़बान टीम को बदलाव के दौर में पकड़ लेगी और घर में सबसे बड़ी श्रृंखला जीतने वाली लकीर को समाप्त कर देगी।
पहले से ही संकेत मिल रहे हैं कि घर पर भारत का दबदबा कम हो रहा है। भारत ने पिछली बार 2019 में दो से अधिक टेस्ट मैचों की श्रृंखला में क्लीन स्वीप किया था। उन्होंने अपनी पिछली चार घरेलू श्रृंखलाओं में दो टेस्ट गंवाए हैं, इससे पहले उन्‍होंने 12 श्रृंखलाओं में सिर्फ़ एक टेस्ट गंवाया था। उन्होंने 2013 के बाद से अपनी सबसे छोटी जीत दर्ज की, भले ही पिछले साल मिली वो जीत छह विकेट से थी। पिछली घरेलू श्रृंखला में, अकल्पनीय घटित हुआ जब उन्होंने टर्नर पिच पर टॉस जीता और फिर भी टेस्ट हार गए।
इस सीज़न में इंग्लैंड जिन गेंदबाजों को भारत ला रहा है, उनके पास वह क़ाबिलियत नहीं है जो ऑस्ट्रेलिया के पास 2022-23 में थी, लेकिन उनकी बल्लेबाज़ी की नई शैली एक महान जोड़ी के लिए चुनौती पेश कर सकती है जो कुछ समय से अलग-थलग रही है। वर्ष के अंत में बांग्लादेश और न्यूज़ीलैंड भारत का दौरा करेंगे। भारत इस साल को हल्के में नहीं ले सकता, लेकिन अगर उन्होंने घरेलू सरज़मीं पर श्रृंखला जीतने का सिलसिला इस साल के अंत तक, 19 तक बढ़ा दिया तो हमें इस दौरान कुछ रोमांचक क्रिकेट देखने को मिलेगा।

सिद्धार्थ मोंगा ESPNcricinfo के वरिष्ठ लेखक हैं। अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी के सीनियर सब एडिटर निखिल शर्मा ने किया है।