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करियर के आख़िरी पड़ाव में भी झूलन की तीव्रता में कोई कमी नहीं

अपने आख़िरी अंतर्राष्ट्रीय सीरीज़ से पूर्व भारतीय महिला तेज़ गेंदबाज़ अभ्यास में पूरा ज़ोर लगाती हैं

Jhulan Goswami walks out at the start of the match, England vs India, Women's World Cup 2022, Mount Maunganui, March 16, 2022

तीन वनडे के बाद झूलन का लंबा करियर हो जाएगा समाप्‍त  •  Hannah Peters/Getty Images

ईडन गार्डन्स के ही पास स्थित ईस्ट बंगाल और एटीके मोहन बागान के क्लब टेंट के पास हाहाकार मचा है। दो दिन बाद इन दोनों प्रसिद्ध क्लबों के बीच डूरंड कप में एक कोलकाता डर्बी खेला जाना है और ऐसे में जितने भी टिकट बिकने के लिए बचे हैं, उनके लिए संघर्ष का माहौल है।
टिकट ख़रीदारी के लिए बनी कतार एक किलोमीटर के ऊपर है और भारत के सबसे पुराने क्रिकेट स्टेडियम के लगभग पास तक है और इतने में हल्की बारिश भी शुरू होती है। ऐसे में लोगों के ग़ुस्से में कटौती के बजाय वृद्धि होती है। रास्ते पर चल रहे लोग रुक कर यह नज़ारा देखने लगते हैं।
मैं कोलकाता में ही पली हूं और ऐसे में मुझे इस प्रतिद्वंद्विता और इससे जुड़े जोश के बारे में सब कुछ पता है। जब ईडन गार्डन्स में मैच नहीं रहता तब इस शहर की ऊर्जा इसी खेल पर आकर्षित होती है और यही ख़्याल मेरे मन में भी आता है। थोड़ी देर में एस्प्लनेड की ओर से एक एसयूवी गाड़ी गोश्तो पाल सरानी से आती हुई स्टेडियम के तरफ़ जाती है। गोश्तो पाल एक महान भारतीय फ़ुटबॉल खिलाड़ी थे जिन्हें उनकी डिफ़ेंस में निपुणता के लिए 'चीन की दीवार' कहा जाता था।
हालांकि एसयूवी के पीछे की सीट पर एक महान क्रिकेटर हैं। झूलन गोस्वामी अपने पेशेवर करियर में आख़िरी बार अपने घरेलू मैदान में अभ्यास के लिए पहुंच रहीं हैं।
39-वर्षीय झूलन के लिए फ़ुटबॉल ने उनके जीवन में एक बड़ी भूमिका अदा की है। झूलन को खेल से प्यार आठ साल की उम्र में तब हुआ था जब उन्होंने 1990 विश्व कप फ़ाइनल में आर्जेंटीना की हार के बाद डिएगो माराडोना को आंसू बहाते देखा। प्रेरणास्रोत के मामले में यह एक निराली कहानी है लेकिन झूलन के अपनी जीवन गाथा से कहीं अलग भी नहीं। कैसे बंगाल के एक छोटे नगर की लड़की दुनिया की महानतम तेज़ गेंदबाज़ बनीं और जिस पर एक जीवनी के रूप में फ़िल्म भी बनाई जा रही है।
शायद फ़िल्म की सार्वजनिक जानकारी के चलते ही गेट 14 का सुरक्षा कर्मचारी मेरे गले में कैमरा देख कर यही पूछता है कि क्या मैं "दीदी" पर फ़िल्म के सिलसिले में मैदान पर आई हूं। मैं कहती हूं मैं उनका अभ्यास देखने आई हूं। तो उन्होंने तुरंत जवाब दिया, "हां वह लॉर्ड्स में अपना आख़िरी अंतर्राष्ट्रीय मुक़ाबला खेलने वालीं हैं।"
झूलन कोलकाता में कुछ ही दिनों तक हैं और इससे पहले और इसके बाद वह बेंगलुरु के नेशनल क्रिकेट अकादमी में अभ्यास करने के बाद ही इंग्लैंड जाएंगीं।
मैं झूलन के पीछे-पीछे उनके साथ ग्राउंड फ़्लोर पर स्थित रिसेप्शन तक पहुंचती हूं। इतने में बंगाल की सीनियर महिला क्रिकेट दल नज़दीक़ के दो चेंज रूम से बाहर निकल कर उनसे मिलने आ जातीं हैं। इनमें कोई भी "झुलू दी" के क़द की खिलाड़ी नहीं, चाहे वह शारीरक या प्रतीकात्मक तौर पर ही कहें, लेकिन उनके मन में झूलन के लिए प्रेम और श्रद्धा देखते ही बनती है। इनमें कई क्रिकेट में उन्हीं को देख कर आईं होंगीं।
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घड़ी में दोपहर के 12 बज चुके हैं। अभ्यास के कपड़े पहनने के बाद झूलन एक ऐसी चीज़ शरीर पर पोत रहीं हैं जिससे खेल का कोई लेना-देना नहीं है। मच्छर से बचने के लिए झूलन 'ओडोमॉस' को "अनिवार्य" कह कर ठहाके मारने लगती हैं। यह किसी बंगाल के निवासी के लिए वाक़ई एक ज़रूरी प्रथा है।
इसके बाद टीम फ़िज़ियो उनके दाहिने कोहनी पर टेप लगाती हैं। इसका उद्देश्य है इंग्लैंड में तीन वनडे मुक़ाबलों से पहले उनके बोलिंग हाथ को अत्यधिक तनाव से बचाना। अब तक बंगाल टीम के 29 अन्य सदस्य इंडोर नेट्स के भीतर वॉर्म अप करने लगीं हैं। झूलन भी जाकर उनके साथ शामिल हो जातीं हैं। उनके पीछे एक बड़ी तस्वीर में झूलन 2018 में साउथ अफ़्रीका के दौरे पर अपने 200वें वनडे अंतर्राष्ट्रीय विकेट का जश्न मना रहीं हैं। बंगाल के प्रतिष्ठित क्रिकटरों के इस चित्रावली में झूलन इकलौती महिला हैं।
इंडोर सुविधा के एक छोर पर युवा खिलाड़ी कोचों की तिकड़ी प्रोबाल दत्ता, ऋतुपर्णा रॉय और शिवसागर सिंह की निगरानी में स्पीड-रनिंग में जुट जातीं हैं। झूलन भी उन पर अपनी नज़रें जमाएं रखतीं हैं।
अपने वॉर्म अप के समाप्ति पर वह कोचिंग स्टाफ़ के साथ अपनी राय रखतीं हैं और फिर बाक़ी खिलाड़ियों के साथ अभ्यास में शामिल होतीं हैं। मेंटॉर से टीममेट का यह सफ़र तात्कालिक होता है और जल्द ही स्पीड रनिंग में वह अपने से आधी उम्र की साथियों को भी पीछे छोड़ देती हैं।
उनकी टीममेट रह चुकी ऋतुपर्णा बाद में कहतीं हैं, "यही है झूलन और उनका अनुशासन। इसी वजह से हम एक दशक पहले गेम से बाहर निकल गए लेकिन वह अभी भी सर्वोच्च स्तर पर खेल रहीं हैं। और यह केवल एक अभ्यास सत्र की बात नहीं है। जब भी उन्हें दौरों से या एनसीए में अभ्यास से समय मिलता है तो वह जिम में या जादवपुर मैदान के चक्कर लगाते दिखेंगी।"
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इसके बाद अपने आप से खुलने और बंद होने वाले नेट्स को एक श्रृंखला से सजाया जाता है। तीन घंटे के सत्र के लिए बल्लेबाज़ों और गेंदबाज़ों को अलग ख़ेमों में बांटा जाता है। नेट्स के एक छोर पर तीन प्लास्टिक के स्टंप सजाए जाते हैं तो दूसरे छोर पर एक और। गुड लेंथ और ब्लॉकहोल को निर्धारित करने के लिए भी चार चिन्ह को सजाए जाते हैं।
झूलन अपने बाज़ुओं को सक्रीय करने के बाद आठ और गेंदबाज़ों के पीछे लाइन में लग जातीं हैं। इनमें बाएं हाथ की स्पिनर गौहर सुल्ताना और दाएं हाथ की तेज़ गेंदबाज़ सुकन्या परिदा तो भारत के लिए भी खेल चुकी हैं। जब भी झूलन की गेंदबाज़ी आती है तो आसपास बल्लेबाज़ी कर रहे खिलाड़ी भी उनकी तरफ़ देखने लागतीं हैं।
झूलन अपने पूरे रन-अप से आ रहीं हैं। वह हर गेंद पर मैच की ही शैली में कूद लगाकर गेंदबाज़ी करतीं हैं। मैच की ही तरह वह पीठ का पूरा उपयोग करतीं हैं और सिर को नीचे लाकर गेंद डालने की प्रक्रिया को समाप्त करतीं हैं। अधिकतर गेंदें प्लास्टिक की स्टंप्स पर जा टकराती हैं। कुछ विकेटकीपर के ग्लव्स में जाकर समा जाती है। उनके साथ मुग्ध होकर देखते हैं और अच्छी गेंदों की तारीफ़ करते हैं। शायद आपको लगे कि अपने करियर के इस पड़ाव में झूलन अपनी ऊर्जा को मैच के लिए बचाए रखना चाहेंगी।
लेकिन यह उनकी सोच नहीं है। उन्होंने हर अभ्यास सत्र को उतना ही सम्मान दिया है जितना अब तक हुए हज़ारों सेशन, अथवा लॉर्ड्स में तीसरे वनडे से पहले होने वाले सत्र। ऐसे में वह आपकी उम्मीदों से कहीं ज़्यादा गेंदें डालतीं हैं। अपने साथी स्पिनरों के गेंदों को जोड़कर जो संख्या बने उससे अधिक। आपके मेमरी कार्ड में जितने समा सके उससे भी ज़्यादा।
इस गेंदबाज़ी के बाद सिर्फ़ पांच मिनट का एक विराम और उसमें एक प्याली चाय। इसके बाद नेट्स में लौटकर पहले वह थ्रो-डाउन के लिए लाए सामान को आज़माती हैं और फिर खिलाड़ियों के अभ्यास को क़रीब से देखती हैं। चार युवा खिलाड़ियों को वह कोने में ले जाकर कुछ समझाती हैं।
उनमें एक है धरा गुज्जर, एक 21-वर्षीय बाएं हाथ की बल्लेबाज़ी ऑलराउंडर। धरा कहती हैं, "झूलन दी ने समझाया कि आप हर गेंद पर प्रहार नहीं कर सकते और स्ट्राइक रोटेट करना इतना महत्वपूर्ण क्यों है। उनका कहना था कि गेंदबाज़ हमेशा एक क़दम आगे की सोचता है और ऐसे में बल्लेबाज़ों को भी बुद्धि का परिचय देना पड़ता है।"
चैलेंजर ट्रॉफ़ी खेल चुकी धरा जैसे युवा खिलाड़ियों के लिए झूलन से खेल के गुण सीखने का यह सुनहरा मौक़ा है। खिलाड़ी के साथ मेंटॉर की भूमिका झूलन इतने आसानी से निभाती हैं कि लगता है उनके लिए संन्यास लेने के बाद कोचिंग में आना एक स्वाभाविक क़दम होगा। आनेवाले समय में बीसीसीआई की योजनाओं में एक राष्ट्रीय अंडर-16 टूर्नामेंट के साथ ही महिला आईपीएल भी है। फिर अगले साल पहले महिला अंडर-19 विश्व कप का आयोजन भी होगा। घरेलू क्रिकेटरों को विकसित करने के लिए इससे बेहतर समय नहीं।
जब मैं झूलन से पूछती हूं कि इसके तुरंत बाद वह क्या करेंगी, तो वह जोश के साथ कहती हैं, "मैं यही रहूंगी। हमारे बाद अंडर-16 खिलाड़ियों का अभ्यास भी है। इनमें ज़बरदस्त प्रतिभा है। अगर इसे अच्छे से संभाला जाए तो भारत आने वाले समय में विश्व की सबसे शक्तिशाली टीम बनेगी।"
अगले डेढ़ घंटे तक वह इन युवा खिलाड़ियों को देखती हैं और फिर उन्हें अपनी टिप्पणी देती हैं। कई खिलाड़ियों को अपनी एक्शन को सुधारने का अच्छा मौक़ा मिलता है। जब तक झूलन एक उबला हुआ अंडा, एक सैंडविच और एक बनाना खाकर स्टेडियम से रवाना होतीं हैं तब तक शाम के पांच बज जाते हैं।
मैदान के बाहर का कोलाहल अब शांत हो गया है। मोहन बागान और कालीघाट की टीमें एक अभ्यास मैच खेल रहीं हैं। जैसे झूलन अपनी गाड़ी में निकलती हैं तो सुरक्षाकर्मी मुझसे मुस्कुराते हुए पूछा कि अभ्यास में मैंने क्या देखा।
मैंने कहा कि मैंने भारतीय क्रिकेट का भूत, वर्तमान और भविष्य, तीनों की झांकी देखी।

ऑन्‍नेशा घोष फ़्रीलांस जर्नलिस्‍ट हैं। अनुवाद ESPNcricinfo में स्‍थानीय भाषा प्रमुख देबायन सेन ने किया है।