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आख़िर कौन हैं प्रवीण तांबे?

क्रिकेट इस फ़िल्म की जान तो है लेकिन सफलता की मंज़िल पर तांबे का सफ़र इसकी रूह है

Pravin Tambe trains with Shreyas Talpade for Kaun Pravin Tambe?

एक साथ गेंदबाज़ी करते प्रवीण तांबे और श्रेयस तलपड़े  •  Kaun Pravin Tambe?

मुंबई, राजस्थान रॉयल्स और गुजरात लायंस के पूर्व लेग स्पिनर प्रवीण तांबे की बायोपिक के मध्यांतर के क़रीब एक ऐसा सीन है जो शायद अधिकतर लोग मिस कर जाएंगे।
यह सीन ठीक उस समय आता है जब तांबे का किरदार निभा रहे श्रेयस तलपड़े एक मुश्किल दौर से गुज़र रहे होते हैं। उनके बड़े भाई और सबसे बड़े समर्थक प्रशांत (वरूण वर्मा) काम के सिलसिले में नीदरलैंड्स जा रहे होते हैं। इस सीन में प्रशांत को अपने भाई को पैसों की मदद करनी होती है, जिसे वह विनम्रता के साथ ठुकरा देते हैं। इसी समय प्रवीण की पत्नी परदे पर आ जाती है।
इस सीन के बारे में तलपड़े कहते हैं, "मुझे नहीं पता वह सीन कब शुरू हुआ। उसने मुझे पैसे दिए, जो मैंने लेने से इनकार कर दिया और मुझे पता ही नहीं चला कि पत्नी कब आ गई। मैं इतना भावुक हो गया था कि मैंने वरूण को अपनी तरफ़ खींचा, उसे गले लगाया और ज़ोर ज़ोर से रोने लगा। वह भी रोने लगा और कैमरे के पीछे हमारे निर्देशक जयप्रद देसाई भी रोने लगे। एक मिनट के बाद उन्होंने कट का आदेश दिया।"
"मुझे पता ही नहीं चला कि जाने अनजाने में कब मैं प्रवीण तांबे बन गया!"
भारतीय खिलाड़ियों पर बायोपिक बनना आम बात नहीं है। क्रिकेटरों पर तो गिनी चुनी दो-चार बायोपिक बनी है। यह देखकर आश्चर्य होता है क्योंकि दशकों से इस देश में लोग क्रिकेट और फ़िल्मों के पीछे पागल हैं। शायद वह इसलिए है कि परदे पर आप खेल की असलियत को ठीक से बयान नहीं कर सकते। फिर भी मन में पहला विचार यह आता है कि उन्हें प्रवीण तांबे के जीवन पर फ़िल्म बनाने में इतना समय कैसे लग गया?
2013 में आईपीएल में पदार्पण, जिसके बाद चैंपियंस लीग जहां उन्होंने सर्वाधिक विकेट अपने नाम किए। अगले आईपीएल में कोलकाता नाइट राइडर्स के विरुद्ध हैट्रिक, जिसने सीज़न के 25वें मैच में उन्हें पर्पल कैप का हक़दार बनाया। इन सबके बीच उन्होंने अपनी घरेलू टीम मुंबई के लिए रणजी डेब्यू किया और फिर कैरेबियन प्रीमियर लीग (सीपीएल) में खेलने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बने। तांबे का यह अविश्वसनीय सफ़र 41 साल की नन्हीं उम्र में शुरू हुआ था।
इस फ़िल्म के निर्माता बूट रूम स्पोर्ट्स मीडिया के सुदीप तिवारी ने 2014 सीज़न के दौरान तांबे के जीवन पर बायोपिक बनाने की बात रखी थी। इस घटना को याद करते हुए तांबे कहते हैं, "मैं तो अचंभा रह गया। कोई फ़िल्म और वह भी मुझ पर? मैं तो अभी खेल ही रहा था और मुझे अभी और भी खेलना था। मुझे लगा ये लोग मज़ाक़ कर रहे हैं।"
वह आगे कहते हैं, "बहुत ही अच्छा लग रहा है क्योंकि किसने सोचा था कि मेरी कहानी इस फ़िल्म के ज़रिए इतने दर्शकों तक पहुंचेगी। मैंने कभी सोचा ही नहीं था कि मैं उच्च स्तर पर क्रिकेट खेल पाऊंगा। सिर्फ़ यह मेरी लगन ही थी कि अच्छा क्रिकेट खेल पाया और वह फिर दिल-ओ-जान से खेला। यह शायद उसका ही फल है कि इस फ़िल्म के ज़रिए सबके पास मेरी कहानी पहुंच रही है।"
आशीष विद्यार्थी, आरिफ़ ज़करिया और परमब्रत चटर्जी जैसे अनुभवी नामों से शुमार यह फ़िल्म देखने योग्य है। क्रिकेट इस कहानी की जान है लेकिन सफलता की मंज़िल पर तांबे का सफ़र इसकी रूह है।
तिवारी महाराष्ट्र के परिवार में जन्में तांबे के जीवन को सही ढंग से परदे पर लाना चाहते थे। सभी घरों की तरह हास्य-विनोद और मज़ाक इस कहानी में भी देखने को मिलता है। उदाहरण के तौर पर एक सीन में तांबे अस्पताल में अपने पैर में लगे फ़ैक्चर का इलाज करवा रहे हैं। जब उस डॉक्टर को पता चलता है कि वह एक लेग स्पिनर का इलाज कर रहा हैं तो वह अपनी गेंदबाज़ी में सुधार लाने के लिए उनसे सलाह मांगने लगता है।
इस कहानी को क्रिकेट शैली की दो बेहतरीन फ़िल्में - इक़बाल और एम एस धोनी : द अनटोल्ड स्टोरी को ध्यान में रखते हुए लिखा और फ़िल्माया गया है। संयोग की बात यह है कि जहां बूट रूम में तिवारी के साथी नीरज पांडे ने धोनी फ़िल्म का निर्देशन किया था, तलपड़े ने नागेश कुकनूर की इक़बाल फ़िल्म के साथ अपनी कला के झंडे गाड़े थे।
तलपड़े कहते हैं कि वह उन दिनों में एक साधारण क्रिकेटर थे। उन्होंने बताया कि उनके तीन बड़े भाई इस खेल में उनसे बेहतर थे। वह मज़ाक में यह भी कहते हैं कि उन्हें 15 खिलाड़ियों की सूची में भी शामिल नहीं किया जाता था।
तलपड़े कहते हैं, "मेरे सबसे बड़े भाई मुझसे निराश थे और 10वीं की परीक्षा के बाद एक सुबह वह मुझे रमाकांत आचरेकर सर की नेट्स में लेकर गए। उन्होंने वहां मेरा दाखिला करवाया। कुछ महीनों बाद कोच ने मुझे अंडर-14 की नेट से अंडर-19 की नेट में भेज दिया (शायद उन्होंने मुझमें कोई बात देखी थी)।" लेकिन जल्द ही तलपड़े को रंगमंच का कीड़ा लग गया। इसी वजह से टेबल टेनिस, बैडमिंटन, क्रिकेट, फ़ुटबॉल और हॉकी पर उनका ध्यान कम होता चला गया।
तलपड़े उन दिनों मध्यम तेज़ गति से गेंदबाज़ी करते थे और इस वजह से उन्हें इक़बाल के लिए तैयारी करने में आसानी हुई। इसके अलावा मराठी रंगमंच, टीवी और फ़िल्म जगत की हस्तियों के साथ वह कालिना, पुणे और डोंबिवली में क्रिकेट खेलते रहते हैं। इस फ़िल्म के लिए उन्हें तांबे की तरह लेग स्पिन सीखनी पड़ी।
तांबे ने बताया, "पहले मैं तेज़ गेंदबाज़ था। मेरा क़द अधिक नहीं था लेकिन मेरी गति अच्छी थी और मुझे स्विंग भी मिलता था। ओरिएंट के लिए खेलते हुए एक मैच में मुझे स्विंग नहीं मिल रही थी और मुझे बोला गया, 'स्पिन डाल सकता हो तो डाल।' मैंने उस मैच में स्पिन डाली और हम उस मैच को जीत गए। तो तब से मुझे स्पिन गेंदबाज़ी करने में मज़ा आने लगा।"
तांबे ने अपने कोच के साथ कलाई की पोज़िशन और अपने रन अप पर काम किया और नतीजे उनके सामने थे।
अपने इस किरदार के लिए तलपड़े ने तीन महीनों तक तैयारी की। उन्होंने कहा, "मध्यम तेज़ गति के गेंदबाज़ होने के कारण उनके एक्शन में अतिरिक्त गति है और वह थोड़ी लंबी छलांग लगाते हैं। मैंने सोचा कि क्यों ना मैं उन्हीं की तरह सीखूं। इसलिए जब भी मैं गेंदबाज़ी करता था, अभ्यास करता था या एक जगह बैठकर गेंद को घुमाता था, मैं उसे प्रवीण की तरह करने का प्रयास करता था।"
तांबे तलपड़े की सीखने की शक्ति की प्रसंशा करते नहीं थकते। वह कहते हैं, "मैंने देखा कि वह एक अच्छे ऐक्टर ही नहीं एक अच्छे स्पोर्ट्समैन हैं। मैं अब कोचिंग करता हूं और लेग स्पिन एक कठिन कला है। रिस्ट यूज़ करना पड़ता है और जंप करना है बराबर टाइमिंग के साथ। जैसे मैंने उनको बताया उन्होंने एक या दो हफ़्तों में वैसा कर लिया। वह एक अच्छे इंसान हैं और उनसे बात करने में ऐसा लग रहा था मैं अपने छोटे भाई से बात कर रहा था।"
यह दोस्ती एकतरफ़ा नहीं है। तलपड़े तांबे को "दूसरे मां से जन्मा भाई" की उपाधि देते हैं। साथ ही यह कहते हैं कि अगर आप तांबे की उंगलियों और हाथ में छाले देखेंगे तो उन्हें आप भी "क्रिकेट के जैकी चैन" कहेंगे। तलपड़े ने कहा, "ऐसा भी हुआ है कि उन्होंने आईपीएल मैच में खेलते हुए तीन गेंदें डाली और उनके पीठ में ऐंठन आ गई। तो उन्होंने कहा, 'मुझे ओवर समाप्त करना ही था। मैं किसीसे कुछ कह तो नहीं सकता था ना?' वैसे ही सब उनके उम्र पर टिप्पणी करते थे। तो उन्होंने कहा, 'मैं भयावह दर्द का अनुभव कर रहा था। लेकिन मैंने वह ओवर कम्पलीट किया और फिर और दो ओवर भी डाले। इसके बाद ही मैं अंदर लौटा।' तो मैंने कहा, "बॉस, आप किस मिट्टी के बने हैं?'"
जब आप इस फ़िल्म से जुड़े किसी भी व्यक्ति से बात करते हैं तो तांबे की कर्मठता, अनुशासन और प्रतिबद्धता का ज़िक्र होता है। निर्देशक देसाई कई बार अलग अलग कोण से शॉट लेने के लिए तलपड़े से लगातार 10 ओवरों की गेंदबाज़ी करवाते थे और वह तांबे से प्रेरणा लेते हुए अपने शरीर में दर्द और व्यथा को भुला देते थे।
तांबे कहते हैं कि उन्होंने कभी अपने उम्र को अपने करियर में बाधा डालने का मौक़ा ही नहीं दिया। वह कहते हैं, "मेरे लाइफ़ में कितनी नेगेटिविटी आई है लेकिन मैंने कभी उस पर ध्यान नहीं दिया। मैं बड़े प्लेयर को देखता था और यही देखता था की वह क्या कर रहे हैं और उनकी सोच क्या है।"
"जब मैंने खेलना शुरू किया था, हर कोई मेरी उम्र को लेकर बात कर रहा था। हालांकि उन्होंने कभी मेरे प्रदर्शन पर बात नहीं की। मुझे लगता था कि मैं अच्छा खेल रहा हूं।"
तांबे बताते हैं कि कैसे उन्होंने विश्व के कुछ बेहतरीन बल्लेबाज़ों के ख़िलाफ़ गेंदबाज़ी की। हालांकि एबी डीविलियर्स ने उन्हें परेशान किया और उनके आईपीएल करियर के दौरान उनकी गेंदों पर सर्वाधिक रन बनाए। इस विषय पर वह कहते हैं, "मैं हमेशा बल्लेबाज़ का दिमाग़ पढ़ लेता हूं, लेकिन वह पहले ऐसे बल्लेबाज़ थे, जो मेरे दिमाग़ के साथ खेल रहे थे।"
फ़िल्म के समाप्त होने के बाद तांबे और तलपड़े मीडिया से बातचीत करने के लिए क्रिकेट की सफ़ेद पोशाक पहनकर शिवाजी पार्क पहुंचे। तलपड़े ने तांबे को छह गेंदों की चुनौती दी और मज़ाक में दावा किया कि वह तांबे की गेंद को पास की किसी इमारत के ऊपर दे मारेंगे। तलपड़े कहते हैं, "हमेशा की तरह वह मेरी गेंदबाज़ी की प्रशंसा कर रहे थे। उन्होंने कहा कि देखो वह कैसे गेंद को स्पिन करवा रहा है। मैंने कहा, देखो तुम कैसे गेंद को घुमा रहे हो।"
"इसके बाद हमने किर्ती कॉलेज के पास वडा पाव और कटिंग चाय का आनंद लिया। यह पहला मौक़ा था जब हमने फ़िल्म ट्रेलर देखा था। वह भावुक हो गए थे और शुरुआत में कुछ कह भी नहीं पाए।"
तलपड़े के लिए यह फ़िल्म एक भावनात्मक अनुभव रही है क्योंकि प्रशंसकों की प्रतिक्रिया उन्हें बताती है कि यह उनके करियर के लिए एक नया पल है। वह कहते हैं, "मुझे बहुत सारी कॉमेडी फ़िल्में करने के लिए जाना जाता है, इसलिए लोग न केवल यह भूल गए थे कि मैंने इक़बाल जैसी गंभीर फ़िल्म के साथ शुरुआत की थी, बल्कि उनमें से ज़्यादातर लोगों ने मुझे भुला दिया था।"
सबसे अच्छी प्रतिक्रिया फ़िल्म की स्क्रीनिंग के बाद फ़िल्म के विषय (तांबे) के ज़रिए आई। तांबे ने कहा, "बुरा मत मानना लेकिन फ़िल्म में तुम मुझे दिखे ही नहीं। मैंने प्रवीण को देखा, मैंने अपने आप को देखा और उस सफ़र को दोबारा जिया।"
"इससे बेहतर और क्या ही हो सकता है, भला?"

देबायन सेन ESPNcricinfo में सीनियर असिस्टेंट एडिटर और क्षेत्रीय भाषा प्रमुख हैं