धर्मशाला टेस्ट का दूसरे दिन
देवदत्त पड़िक्कल के लिए बहुत विशेष था। लंच के बाद पुरानी गेंद से हो रही रिवर्स स्विंग के आगे भारतीय टीम दो ओवर के अंतराल में ही रोहित शर्मा और शुभमन गिल के महत्वपूर्ण विकेट खो चुकी थी। पड़िक्कल पहली बार टेस्ट क्रिकेट में बल्लेबाज़ी करने उतरे थे और नर्वस थे। दो लगातार झटकों के बाद उनको अपनी टीम को इन झटकों से उबारने का भी दबाव था।
उनका पहला चौका भी बाहरी किनारे से आया, जो उनकी नर्वसनेस को दिखा रहा था। उन्होंने पहले संभलकर खेला और फिर जब कमज़ोर गेंदें मिली, तो मैदान के चारों तरफ़ शॉट भी लगाए। शोएब बशीर की एक बाहर निकलती गेंद पर बोल्ड होने से पहले उन्होंने 103 गेंदों में 65 रन बनाए, जिसमें 10 चौके और एक छक्का शामिल था।
दिन के खेल के बाद पड़िक्कल ने कहा, "आपको पहले से पता हो या ना हो, लेकिन जब आप डेब्यू करते हैं तो नर्वस होते ही हैं। मुझे एक रात पहले ही संकेत मिला था कि मैं शायद डेब्यू कर सकता हूं, इसलिए मैं थोड़ा सा नर्वस था और ठीक से सो भी नहीं सका। लेकिन यह एक ऐसी चीज़ है, जिसे आप नर्वस होते हुए भी इन्जॉय करते हो। कोई भी क्रिकेटर इसी दिन के लिए इतनी मेहनत करता है।"
24 वर्षीय पड़िक्कल के लिए यह सुनहरा दिन एक लंबे संघर्ष के बाद आया है। उन्होंने कर्नाटका के लिए 2018-19 के दौरान प्रथम श्रेणी डेब्यू किया था और तब से वह लगातार घरेलू सर्किट में रन बना रहे हैं। 2020 और 2021 के अच्छे IPL सीज़न के बाद उन्हें जुलाई 2021 में श्रीलंका के ख़िलाफ़ डेब्यू करने का मौक़ा मिला, लेकिन वह इस सीमित मौक़े को कुछ ख़ास भुना नहीं पाए और भारतीय टीम से बाहर हो गए।
कोरोना काल के दौरान उन्हें कोविड हुआ और वह इसके बाद लगातार पेट की बीमारी से परेशान रहे। इसके कारण उनके शरीर का वजन बहुत अधिक कम हुआ और फ़ॉर्म भी ख़राब होता गया। हालांकि 2023-24 के घरेलू सीज़न में पड़िक्कल एक अलग बल्लेबाज़ के रूप में उभरे। पहले उन्होंने विजय हज़ारे ट्रॉफ़ी के पांच मैचों में 155 की बेहतरीन औसत से 465 रन बनाए, जिसमें दो शतक शामिल थे। इसके बाद उन्होंने चार रणजी मैच की छह पारियों में 93 की औसत से 723 रन बनाए, जिसमें तीन शतक थे। उन्होंने इंग्लैंड लायंस के ख़िलाफ़ भी एक शतक और एक अर्धशतक के साथ तीन पारियों में 191 रन बनाए।
पड़िक्कल ने कहा, "इस सीज़न मैंने अपनी बल्लेबाज़ी में ज़्यादा कुछ बदलाव नहीं किए, बल्कि माइंडसेट में बदलाव किया। रन बनाने से सबको आत्मविश्वास मिलता है और मुझे भी मिला। मैं लगातार मेहनत कर रहा था ताकि अपने खेल को सुधार सकूं। मैं अभी भी सीख रहा हूं और अपनी बल्लेबाज़ी में छोटे-मोटे एडजस्टमेंट करता रहता हूं। मैं बस सुनिश्चित करता हूं कि अपने खेल का लुत्फ़ उठाऊं क्योंकि मैं इस खेल को बचपन से प्यार करता हूं।"
पड़िक्कल ने अपनी इस सफलता का श्रेय अपने परिवार और अनुशासन को दिया। वह कहते हैं, "अनुशासन ही सफलता की कुंजी है फिर चाहे वह अभ्यास हो या फिर खान-पान की आदत। अनुशासित बने रहना ही मेरा प्रमुख लक्ष्य है। बीमारी के दौरान मैं ज़्यादा शारीरिक अभ्यास नहीं कर पाता था, लेकिन मानसिक रूप से मैं अपने ऊपर काफ़ी मेहनत करता था ताकि पीछे नहीं रह जाऊं। यह टेस्ट डेब्यू मेरे परिवार के लिए बहुत ख़ास है। उन्होंने मेरे पीछे बहुत मेहनत की है ताकि मैं खेल सकूं। इस ऋण को किसी तरह से चुकाया नहीं जा सकता। उम्मीद है कि देश के लिए अच्छा करके मैं उनको ख़ुश रख सकूंगा।"
पड़िक्कल ने सरफ़राज़ ख़ान के साथ चौथे विकेट के लिए 97 रनों की साझेदारी की और सुनिश्चित किया कि भारत एक बड़ी बढ़त हासिल करे। पड़िक्कल ने कहा कि सरफ़राज़ के साथ बल्लेबाज़ी करने में हमेशा मज़ा आता है और उन्होंने ही पड़िक्कल के नर्वसनेस को कम किया।
पड़िक्कल ने कहा, "सरफ़राज़ के साथ बल्लेबाज़ी करने में मुझे हमेशा बहुत मज़ा आता है। उनका आस-पास रहना ही बेहतरीन अनुभव है। उनके पास हमेशा कुछ हल्की-फुल्की चीज़ें होती हैं, जो वह बल्लेबाज़ी के दौरान बोलते रहते हैं। हम साझेदारी के दौरान कुछ गंभीर बातें नहीं कर रहे थे, बल्कि एक-दूसरे की बल्लेबाज़ी का लुत्फ़ उठा रहे थे। मेरे पहले चार रन भले ही बाहरी किनारे से आए, लेकिन मैंने उस बाउंड्री का सबसे अधिक लुत्फ़ उठाया क्योंकि वे मेरे पहले टेस्ट रन थे।"