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फ़ीचर्स

विराट एक, रूप अनेक

वह अपनी बल्लेबाज़ी में लगातार परिवर्तन करते आए हैं, जिसका उन्हें फ़ायदा भी हुआ है

सचिन तेंदुलकर की बल्लेबाज़ी की एक ख़ूबी को देख कर वीवीएस लक्ष्मण दंग रह गए थे। 1996-97 सत्र में केप टाउन की तेज़ पिच पर तेंदुलकर ने अपनी स्टांस को थोड़ा खोला, पैरों के बीच की दूरी को थोड़ी बढ़ाई और बल्ले को दाएं पैड के पीछे रखने की जगह दोनों पैरों के बीच रखने लगे। ऐसा करते हुए उन्होंने एक यादगार शतक ठोका। और इस बदलाव के लिए उनकी तैयारी थी केवल कुछ थ्रोडाउन।
ईएसपीएनक्रिकइंफ़ो में लिखते हुए लक्ष्मण ने कहा, "मैं उनसे कई बार कह चुका हूं कि हम आम मनुष्यों को ऐसा परिवर्तन लाने के लिए थ्रोडाउन के बाद कुछ नेट्स और फिर उसे मैच में कोशिश करने की ज़रूरत पड़ती है और यहां वह दुनिया के सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज़ी क्रम के विरुद्ध ऐसा कुछ थ्रोडाउन के बाद सीधे मैच में करते हुए एक शानदार सैंकड़ा जड़ने में सफल हुए।"
बल्लेबाज़ी एक ऐसी नाज़ुक कला है कि इसका अभ्यास करने वाले छोटी-छोटी बातों को बदलने से संकोच करते हैं। तकनीक और आदतें तो ऐसी चीज़ें हैं जो आसानी से नहीं बदले जाते। कोचों को भी ध्यान में रखना पड़ता है कि अगर कोई सुझाव देना हो तो किस तरीक़े से दें ताक़ि बल्लेबाज़ उनकी बात मानें। और फिर उस बदलाव को नेट्स और अभ्यास में बार-बार करवा कर सटीक किया जाता है।
लेकिन कुछेक खिलाड़ी ऐसे भी होते हैं जो बदलाव को बहुत जल्दी अपना लेते हैं और फिर सहजता से उसका पालन भी करते हैं। शायद तेंदुलकर और उनके आध्यात्मिक उत्तराधिकारी विराट कोहली में यही सबसे बड़ी समानता है।
अपनी शतकीय टेस्ट जीवन में विराट कई बार बदलाव लाने में सफल हुए हैं। और विराट ने यह लगभग निरंतर तीन फ़ॉर्मैट खेलते हुए किया है। शुरुआत में वह निचले हाथ को प्राथमिकता देते हुए ऑन साइड के शॉट में माहिर थे। उसके बाद वह एक कवर ड्राइव पर निर्भर बल्लेबाज़ बने। और अब उन्होंने लगभग बैकफ़ुट पर जाकर ऑफ़ साइड में खेलना छोड़ ही दिया है क्योंकि बाहर जाती गेंदें उनका पतन का कारण बन चुकी थी। साधारण स्टांस, टांगों को ज़्यादा दूर रखना, बल्ला घुमाना, बल्ले को पीछे रखना, बल्ले को ऊपर रखना, आगे बढ़ते हुए खेलना और फिर इस ट्रिगर पर क़ाबू करना - बल्लेबाज़ी की शायद ही कोई शैली है जो विराट ने नहीं अपनाई हो।
तेंदुलकर की ही तरह विराट भी बिना ज़्यादा सोचे अपनी शैली बदल लेते हैं। 2018 में एजबैस्टन में इंडियन एक्सप्रेस के श्रीराम वीरा ने देखा था कि एक ही पारी में विराट ने अपना गार्ड कई बार बदला। कभी वह क्रीज़ के बाहर खड़े होते तो कभी उसके अंदर। उस मैच में उन्होंने कुल 200 रन दोनों पारियों में बनाए और शुरुआत में काफ़ी परेशान हुए। लेकिन शैली बदलने की वजह यही थी कि चार साल पूर्व के निम्न स्कोर ना दोहराए जाएं। उसी साल साउथ अफ़्रीका में वह कुछ गेंदबाज़ों के ख़िलाफ़ बल्ले को नीचे रखते थे और कुछ के विरुद्ध बिल्कुल नहीं। एक ही पारी में अलग गेंदबाज़ों के समक्ष अलग बल्लेबाज़।
यह सिर्फ़ लड़ने और बेहतर करने का जुनून नहीं है। यह है अपने गेम का सम्पूर्ण ज्ञान और साथ ही परिणाम से हटकर बल्लेबाज़ी करने का आत्मविश्वास। एजबैस्टन में बैटिंग कोच संजय बांगर ने कहा था, "इस पारी ने विराट की बल्लेबाज़ी की विविधता को दर्शाया। अधिकतर बल्लेबाज़ अपनी तकनीक या दृष्टिकोण को बदलते नहीं हैं लेकिन विराट औरों से अलग हैं।"
तेज़ गेंदबाज़ विराट को आउट करने के लिए उन्हें ऑफ़ स्टंप के बाहर ललचाते हुए अंदर आती गेंद का शिकार करने की कोशिश करते थे। कार्तिकेय डाटे ने हमारे संघठन के आंकड़ों को टटोलकर पाया कि विराट ऐसी दिशा की गेंदबाज़ी को अपना गार्ड बाहर लाते हुए और आगे बढ़ते हुए अपनी शक्ति में तब्दील कर दिया। विराट ने कवर ड्राइव का भी सहारा नहीं छोड़ा। स्पिन के ख़िलाफ़ उन्होंने अपनी गेम को यूं बदला कि 2016 में उन्होंने स्पिन खेलते हुए लगातार 805 गेंदों को हवा में नहीं खेला। स्पिन के विरुद्ध उनकी कुछ सर्वोत्तम पारियां शतक नहीं हैं, बल्कि तीसरी पारी में तेज़ फिरकी के सामने चालीस-पचास रन हैं जहां उनके अलावा और बल्लेबाज़ मुश्किल का सामना करते नज़र आए। ऐसे ही आज की पैनी तेज़ गेंदबाज़ी के ख़िलाफ़ उन्होंने तय किया कि अगर वह कवर ड्राइव नहीं लगाएंगे तो रन बनाना मुश्किल हो जाएगा। इससे बैकफ़ुट के रन थोड़े कम ज़रूर हुए हैं।
इस दौरान विराट ने अपनी बल्लेबाज़ी के बुनियाद को मज़बूत रखते हुए सीमित ओवर क्रिकेट में महारथ बरक़रार रखी है। इतने कम समय में 100 टेस्ट पहुंचना कोई छोटी बात नहीं है जब आप याद करें कि वह तीनों प्रारूप में अपनी टीम के प्रमुख बल्लेबाज़ ही नहीं बल्कि अधिकतर समय तक तीनों में कप्तानी भी करते रहे हैं।
2016 में नासिर हुसैन के साथ एक साक्षात्कार में उन्होंने तेंदुलकर से तुलना करे जाने के जवाब में कहा था कि वह कभी तेंदुलकर जितने साल तक नहीं खेलेंगे। शायद यह इस बात को मानते हुए कहा गया कि आज के क्रिकेट की तीव्रता ही कुछ और है। साथ ही भारत के लिए टेस्ट बल्लेबाज़ी करने का मतलब है कि आप में कुछ ख़ास ज़रूर है लेकिन हर कोई तेंदुलकर जैसी प्रतिभा लेकर नहीं आता।
विराट कोहली को पिछले छह महीनों में क्रिकेट के हर प्रारूप से कप्तानी को अलविदा कहना पड़ा है। साथ ही अपने 100वां टेस्ट से पूर्व उन्होंने दो साल से ज़्यादा समय से शतक नहीं लगाया है। उनके आंकड़े भले ही उतने अच्छे नहीं रहे हों लेकिन उन्होंने इस दौरान भी कुछ यादगार बल्लेबाज़ी की है। कभी-कभी लगता है कि क्या विराट कोहली भी आत्म संदेह का शिकार होते हैं? क्या एक बार वह फिर फ़ॉर्म पकड़कर शतकों की लड़ी लगा देंगे?
एक बात तय है - अगर उन्हें लगे की किसी बदलाव से उन्हें फ़ायदा होगा, वह उसे अपनाने से कतराएंगे नहीं। भले ही यह उनके जीवन का एक यादगार टेस्ट हो।

सिद्धार्थ मोंगा ESPNcricinfo में असिस्टेंट एडिटर हैं, अनुवाद ESPNcricinfo के सीनियर असिस्टेंट एडिटर और स्थानीय भाषा प्रमुख देबायन सेन ने किया है