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जम्मू और कश्मीर में तेज़ गेंदबाज़ों का ख़ज़ाना है : "हम और भी उमरान देखेंगे"

उमरान मलिक की वजह से इस राज्य के दूसरे तेज़ गेंदबाज़ों पर सभी का ध्यान है और एक ही सवाल सभी के ज़ेहन में है, क्या उमरान के जैसे और भी हैं ?

मोहसिन कमाल
27-Jun-2022
Multiple games of cricket are on at a ground in Srinagar, August 30, 2020

जम्मू और कश्मीर में कभी भी तेज़ गेंदबाज़ों की कमी नहीं देखने को मिली है  •  Tauseef Mustafa/AFP/Getty Images

जब पिछले साल इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) में उमरान मलिक ने डेब्यू किया था तो लोगों के मन में सवाल आने लगे थे कि "जम्मू और कश्मीर में और कितने इस तरह के उमरान छिपे हैं ?"
ये सवाल इस सीज़न और भी तेज़ी से बढ़ने लगा जब 22 साल के उमरान ने हैरतअंगेज़ रफ़्तार से आईपीएल 2022 में सभी को अपना मूरीद बना लिया। उन्होंने आईपीएल की तीन सबसे तेज़ डाली जिसमें एक गेंद 156.9 किमी प्रति घंटे की रफ़्तार से थी। सिर्फ़ रफ़्तार ही नहीं वह इस सीज़न 22 विकेट के साथ सबसे ज़्यादा विकेट लेने वाले दूसरे तेज़ गेंदबाज़ रहे, उनसे ऊपर कगिसो रबाडा थे।
भारतीय घरेलू सर्किट में वैसे तो जम्मू और कश्मीर एक कमज़ोर टीम की तरह जानी जाती है, क्योंकि अब तक अपने 62 साल के इतिहास में वह सिर्फ़ दो बार ही क्वार्टर-फ़ाइनल तक पहुंच पाई है। लेकिन तेज़ गेंदबाज़ हमेशा से ही इस राज्य की ताक़त रहे हैं, उदाहरण के तौर पर अगर रणजी ट्रॉफ़ी के 2021-22 सत्र की टीम पर नज़र डालें तो इस दल में आठ तेज़ गेंदबाज़ मौजूद थे। अगर आप एज ग्रुप क्रिकेट की तरफ़ नज़र डालेंगे तो वहां भी जम्मू और कश्मीर की टीम में आपको तेज़ गेंदबाज़ों की यही तादाद मिलेगी।
आईपीएल में उमरान के अलावा इस राज्य से दूसरे तेज़ गेंदबाज़ों की तरफ़ नज़र डालें तो कोलकाता नाइट राइडर्स में रसिख़ सलाम नज़र आएंगे। साथ ही सनराइज़र्स हैदराबाद में नेट गेंदबाज़ के तौर पर शाहरख़ दार और उमर नाज़िर मौजूद हैं। पंजाब किंग्स में बासित बाशिर और गुजरात टाइटन्स में आक़िब नबी शामिल हैं।
हमने कुछ पूर्व जम्मू और कश्मीर के खिलाड़ियों और कोच से बात की और उनसे पूर्व, वर्तमान और भविष्य के तेज़ गेंदबाज़ों के बारे में तफ़सील से जानने की कोशिश की।

जम्मू और कश्मीर में तेज़ गेंदबाज़ आसानी से कैसे मिल जाते हैं ?

जम्मू और कश्मीर के पूर्व कप्तान समिउल्लाह बेग़ ने कहा कि असल में दूसरे राज्यों की तुलना में यहां की सरंचना और साधन बिल्कुल अलग हैं। बल्लेबाज़ी और स्पिन गेंदबाज़ी के लिए आपको कई तरह के उपकरणों की ज़रूरत होती है, साथ ही साथ दूसरे साधनों और अच्छे कोच की भी ज़रूरत पड़ती है। लेकिन तेज़ गेंदबाज़ी के लिए प्राकृतिक तौर पर अलग प्रतिभा की आवश्यकता होती है, और हमारी खाने की आदतों की वजह से हम पैदाइशी मज़बूत और ताक़तवर होते हैं।
"दूसरी चीज़ जो मुझे लगती है वह है क्रिकेट को लेकर यहां दीवानगी। कुछ साल पहले मैं मुंबई में खेल रहा था और कई सारे खिलाड़ियों ने मुझसे कहा कि आज़ाद मैदान में बहुत सारे क्रिकेटर को एक साथ खेलता देख सकते हैं, समझिए कि वह खिलाड़ियों की फ़ैक्ट्री है। तब मैंने उन्हें श्रीनगर के ईदगाह मैदान के बारे में बताया जहां एक ही पिच पर दो से चार टीम एक साथ खेलती है - दो पिच की एक तरफ़ और दो पिच के दूसरी ओर।"
समिउल्लाह बेग़, पूर्व कप्तान, जम्मू और कश्मीर
जम्मू और कश्मीर के पूर्व कप्तान और कोच अब्दुल क़यूम जो 1984 में जूनियर क्रिकेट में बतौर विकेटकीपर खेला करते थे। वह सीके नायुडू ट्रॉफ़ी के ट्रायल्स के लिए जम्मू भी गए थे, उन्होंने उस पल को याद करते हुए बताया।
"मैं सीके नायुडू ट्रॉफ़ी के ट्रायल्स के लिए जम्मू गया था और दो दिनों तक मैंने विकेटकीपिंग की और फिर तीसरे दिन शाम में पुछल्ले बल्लेबाज़ों को मैंने बस मज़े के लिए गेंदबाज़ी भी की थी। और उस समय वहां के कोच गौतम सर मेरे पास आए और कहा कि अब्दुल कल से तुम विकेटकीपिंग नहीं करोगे बल्कि तेज़ गेंदबाज़ी करोगे। मैं हैरान रह गया लेकिन वह मेरे कोच थे इसलिए मुझे मानना पड़ा। और उसके बाद से मैं एक तेज़ गेंदबाज़ बन गया और सालों तक जम्मू और कश्मीर के लिए खेला। मैं नहीं जानता कि उन्हें मुझमें ऐसा क्या लगा था जो उन्होंने मुझे बदल डाला, शायद ये मेरी लंबी क़द काठी हो सकती है, और यही यहां सभी को प्राकृतिक तौर पर एक तेज़ गेंदबाज़ बनाती है। हम एक ऐसे क्षेत्र से आते हैं जो हमारी स्टेमिना को मुंबई या दिल्ली में रहने वालों से ज़्यादा बेहतर बनाती है।"
अब्दुल क़यूम, पूर्व कप्तान और कोच, जम्मू और कश्मीर
अब्दुल क़यूम: जब मैं गेंदबाज़ी करता था, जम्मू और कश्मीर के बाहर से आए लोग कहा करते थे, "यार ये घोड़ा है, थकता ही नहीं" आबिद नबी, जम्मू और कश्मीर के पूर्व तेज़ गेंदबाज़ और पूर्व भारतीय अंडर-19 खिलाड़ी : जब मैं खेलता था, तो वहां स्पीडोमीटर नाम की कोई चीज़ नहीं हुआ करती थी। आप अपनी रफ़्तार तभी देख सकते थे जब आप अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलते थे। लेकिन मुझे लगता है कि जम्मू और कश्मीर के पास हमेशा से ही तेज़ रफ़्तार वाले गेंदबाज़ रहे हैं। एक गेंदबाज़ हुआ करते थे जिनका नाम था सुरेंद्र सिंह बागल उनके ख़िलाफ़ कोई अंतर्राष्ट्रीय स्तर का बल्लेबाज़ भी सहज तरीक़े से नहीं खेल पाता था। इसके अलावा अब्दुल क़यूम, आसिफ़ पीरज़ादा और कई ऐसे तेज़ गेंदबाज़ रहे हैं जो अपनी रफ़्तार से सभी को चौंका दिया करते थे।

जम्मू और कश्मीर की प्रतिभाएं भारत के दूसरे राज्यों से कैसे अलग हैं ?

मिलाप मेवाड़ा, 2018 से 2020 तक जम्मू और कश्मीर के कोच थे: जम्मू और कश्मीर में तेज़ गेंदबाज़ों की पौध बहुत अलग है। यहां हर कोई चाहता है कि वह तेज़ गेंदबाज़ी करे, लेकिन इनमें से कई सीम गेंदबाज़ कभी टीम तक का सफ़र तय नहीं कर पाते। क्योंकि उनसे ऊपर कई सीनियर गेंदबाज़ पहले से ही टीम में खेल रहे होते हैं।
जो बड़ा फ़र्क़ है वह यहां के तेज़ गेंदबाज़ों की स्टेमिना, फ़िलहाल मैं हैदराबाद की रणजी टीम के साथ हूं। मैंने यहां भी कुछ तेज़ गेंदबाज़ों को देखा है जो काफ़ी तेज़ गेंद डाल सकते हैं। लेकिन जब मैं उन्हें काफ़ी देर तक गेंदबाज़ी कराता हूं तो उन्हें ब्रेक की ज़रूरत पड़ जाती है, यानि वह तेज़ गेंद फेंक तो सकते हैं लेकिन लगातार नहीं। अगर मैं इनकी तुलना जम्मू और कश्मीर के सीनियर तेज़ गेंदबाज़ मोहम्मद मुदस्सिर से करूं तो वह कहीं नहीं टिकेंगे। जब भी आप आप कहेंगे, "मुधी तीन ओवर", और वह तुरंत तैयार हो जाते। जबकि वह काफ़ी सीनियर खिलाड़ी हैं, तो सोचिए जब युवा रहे होंगे तो कैसे होंगे !

जम्मू और कश्मीर के गेंदबाज़ बड़े मंच पर क्यों नहीं पहुंच पाए ?

समिउल्लाह बेग़: इसके पीछे का सीधा कारण है 2013 तक चयन प्रक्रिया ही ग़लत थी। तब इसका फ़ायदा हमेशा बड़ी टीमों को ही मिलता था जैसे दिल्ली, मुंबई या कर्नाटका। कोई भी चयनकर्ता रणजी ट्रॉफ़ी के प्लेट ग्रुप मैचों को नहीं देखता था। अगर बहुत ज़्यादा हुआ तो बस बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को ज़ोनल टीम में जगह मिल जाती थी। लेकिन उन टीमों का कप्तान बड़ी ही टीमों के खिलाड़ी हुआ करते थे और वह अपने राज्य के खिलाड़ियों की ही तरजीह देते थे। मैं अपने करियर में छह बार ज़ोनल टीम का हिस्सा रहा लेकिन एक ही बार मुझे दलीप ट्रॉफ़ी में खेलने का मौक़ा मिला था। मैं हमेशा पानी की बोतलें ही उठाया करता था जबकि सबसे ज़्यादा विकेट मेरे नाम थी। मेरे साथ ऐसा हुआ और ठीक यही चीज़ आबिद नबी और अब्दुल क़यूम के साथ भी हुई होगी। अगर आईपीएल में उमरान नेट गेंदबाज़ नहीं होते तो उनके साथ भी ऐसा ही होता।
आबिद नबी: पहले हमारे बारे में कोई जानना भी नहीं चाहता था। कोई हमारे कंधे पर हाथ रखकर हमें सलाह देने वाला नहीं होता था। मुझे याद है 2004 में जब मैं इंग्लैंड में काउंटी क्रिकेट खेल रहा था और उस समय भारतीय टीम भी वहीं दौरे पर आई हुई थी। उनके कई गेंदबाज़ चोटिल हो गए थे और तब मैं उस समय अंडर-19 में 151.3 किमी प्रति घंटे की रफ़्तार से गेंद डाल चुका था। लेकिन किसी ने भी मेरे नाम की सिफ़ारिश तक नहीं की और मैं कभी भारत से नहीं खेल पाया।

क्या उमरान के आने के बाद अब चीज़ें बदलेंगी ?

अब्दुल क़यूम: उमरान को देखने के बाद मुझे पूरी उम्मीद है कि अब युवा गेंदबाज़ अपने खेल के प्रति और भी गंभीर होंगे। हम अभी जम्मू और कश्मीर में एक टैलेंट हंट चला रहे हैं और वहां मैंने कई बच्चों को तेज़ गेंदबाज़ी करते हुए देखा है। मैं कुछ दिन पहले अनंतनाग और बारामुला गया था, जहां मैंने कई तेज़ गेंदबाज़ों को देखा। बिना किसी सुविधा और माहौल के उमरान जब देश के लिए खेल सकता है तो सोचिए अगर यहां साधन अच्छे हुए तो कितने सारे उमरान को हम देख सकेंगे।
आबिद नबी: अगर उमरान मलिक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किसी एक मैच में भी अच्छा प्रदर्शन करते हैं तो इससे जम्मू और कश्मीर के उभरते हुए गेंदबाज़ों को काफ़ी मदद मिलेगी। पहले सिर्फ़ सुनने को मिलता था कि जम्मू और कश्मीर में काफ़ी अच्छे-अच्छे तेज़ गेंदबाज़ हैं लेकिन किसी को भरोसा नहीं होता था। लेकिन अब उमरान को देखने के बाद भारत और दुनिया के दूसरे देशों को भी हमारी प्रतिभाओं पर भरोसा हो गया होगा। हमारे समय में तो कोई हमारी ओर देखता तक नहीं था। कई बार अंडर-19 स्तर पर मैंने सर्वाधिक विकेट लिए लेकिन मुझे ज़ोनल टीम के लिए भी खेलने का मौक़ा नहीं मिला। मुझे लगता है ये सारी चीज़ें अब उमरान के करियर की तरह बदल जाएंगी।

मोहसिन कमाल एक लेखक हैं और क्रिकेट में ख़ास रूचि रखते हैं। अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी के मल्टीमीडिया जर्नलिस्ट सैयद हुसैन ने किया है। @imsyedhussain