यह हमेशा याद रखा जाएगा कि स्पिन होती पिचों पर साहा ने अपनी बेहतरीन विकेटकीपिंग के दम पर पंत जैसे बल्लेबाज़ को टीम से बाहर रखा था • PA Photos/Getty Images
यह दुखदायक है। निराश होना बनता भी है। अगर आप दुखी नहीं है तो शायद कुछ गड़बड़ है। और सिर्फ़ ऋद्धिमान साहा ही नहीं, बल्कि अजिंक्य रहाणे, चेतेश्वर पुजारा और इशांत शर्मा भी इस समय निराश हैं। हमेशा से उनके पास क्रिकेट का ही साथ रहा है और टेस्ट क्रिकेट ही एकमात्र प्रारूप है जो वह खेलते हैं।
और जब ऐसा होता है तो बात और भी ज़्यादा चुभती है। बाहर बैठे सभी लोगों के लिए यह चयन के स्पष्ट और उचित निर्णय लग सकते हैं लेकिन जब आप दिन-प्रतिदिन लड़ रहे हैं, फ़िट रहने का प्रयास कर रहे हैं, अपने खेल पर काम करने की कोशिश कर रहे हैं तब कुछ भी आपको इस तरह के बहिष्कार के लिए तैयार नहीं कर सकता है।
साहा अपने समय के सबसे दुर्भाग्यपूर्ण क्रिकेटरों में से एक हैं। उनका करियर दो अविश्वसनीय विकेटकीपरों के साथ जुड़ा है। एमएस धोनी ने उन्हें अपने करियर के पहले भाग के दौरान टीम से बाहर रखा, और अब वह ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और साउथ अफ़्रीका में शतक बनाने वाले एकमात्र भारतीय विकेटकीपर से लड़ रहे हैं। बीच में, चोटों ने उन्हें टेस्ट मैचों से वंचित कर दिया, जिसका अर्थ है कि उनका करियर संभवतः 40 टेस्ट पर समाप्त हो जाएगा।
आज भी 37 वर्ष की उम्र में साहा अन्य देशों की टेस्ट टीम में आसानी से प्रवेश कर जाएंगे लेकिन भारत की नहीं। आप चयनकर्ताओं के तर्क में ग़लती नहीं निकाल सकते। जब पंत सब परिस्थितियों में टीम के नंबर एक कीपर बन गए हैं तो एक 37 वर्षीय खिलाड़ी को बैक-अप के तौर पर रखने का कोई मतलब नहीं बनता है। यही किसी युवा व्यक्ति को तैयार करने का अवसर है। यह हमेशा याद रखा जाएगा कि स्पिन होती पिचों पर साहा ने अपनी बेहतरीन विकेटकीपिंग के दम पर पंत जैसे बल्लेबाज़ को टीम से बाहर रखा था।
यक़ीन ही नहीं होता है कि इशांत केवल 33 साल के हैं। हालांकि उनका शरीर 33 वर्षीय की तरह नहीं लगता। 2007-08 में शुरुआत करने के बाद इशांत इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के भयानक दौरों का हिस्सा थे। इसके बाद वह विश्व क्रिकेट में सबसे बेहतर गेंदबाज़ों में से एक बनकर उभरे। टेस्ट क्रिकेट में वह 19 हज़ार गेंदें डाल चुके हैं जिसमें से केवल एक तिहाई हिस्सा एक घातक तेज़ गेंदबाज़ी क्रम के साथ आया है।
उन्होंने अपनी लंबाई में सुधार कैसे किया, इस पर बहुत सारे शब्द लिखे और बोले गए हैं, लेकिन सबसे बड़ा बदलाव यह रहा है कि अब कोई भी उनके द्वारा बनाए गए दबाव को कम नहीं करता है। अब वह दबाव का लाभ उठा सकते हैं। पहले के गेंदबाज़ी क्रमों में वे अक्सर अकेले ही चमकते थे और इस क्रम में गेंदबाज़ी करना जारी रखने के लिए वह उत्सुक होंगे।
हालांकि चयन किसी एक खिलाड़ी को नहीं बल्कि टीम को देखते हुए किया जाता है। मोहम्मद सिराज युवा गेंदबाज़ होने के साथ-साथ अधिक फ़िट और तेज़ हैं। पूरी तरह से फ़िट भारतीय टीम में जसप्रीत बुमराह, मोहम्मद शमी और सिराज टीम के टॉप तीन तेज़ गेंदबाज़ हैं। अगर चौथे गेंदबाज़ को मौक़ा देना है, तो उसे बल्लेबाज़ी करनी आनी चाहिए।
साहा की ही तरह बेहतर होगा अगर एक युवा गेंदबाज़ तेज़ गेंदबाज़ी समूह का हिस्सा रहे ताकि जब शमी का शरीर समय के साथ धीमा होता चला जाए, तब तक वह गेंदबाज़ पूरी तरह से तैयार हो जाए।
इशांत के लिए सबसे बड़ी बात यह रही कि वह विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के फ़ाइनल में सिराज को एकादश से बाहर रखने में सफल रहे। टीम ने इशांत के प्रदर्शनों का सम्मान किया और उनपर भरोसा जताते हुए फ़िट होने पर उन्हें एकादश में शामिल किया।
इन सबके बावजूद यह कहा जा सकता है कि रहाणे और पुजारा की तुलना में इशांत और साहा पर उतना भरोसा नहीं जताया गया। 2020 की शुरुआत से पुजारा और रहाणे ने कुल मिलाकर केवल एक शतक लगाते हुए क्रमशः 20 और 19 टेस्ट मैच खेले हैं। इस दौरान इशांत को नौ और साहा को केवल तीन मैच खेलने का मौक़ा मिला।
हालांकि क्रिकेट टीमों और इस खेल को इसी तरह से संरचित किया गया है। परिस्थितियों के अनुसार गेंदबाज़ों को बदला जाता है और उनके शरीर की बहुत अधिक देखभाल करने की आवश्यकता होती है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि गेंदबाज़ बल्लेबाज़ों की तुलना में अपने भाग्य के अधिक नियंत्रण में होते हैं। गेंदबाज़ खेल शुरू करते हैं और बल्लेबाज़ उस पर प्रतिक्रिया करते हैं। एक समय के बाद मुश्किल परिस्थितियों में गहरे गेंदबाज़ी क्रम के ख़िलाफ़ बल्लेबाज़ कुछ भी नहीं कर सकते हैं। और यह कठिन पिचों और अद्भुत आक्रमणों का युग रहा है। शायद यही कारण है कि भारत ने पुजारा और रहाणे को जितना उचित लग सकता था, उससे कहीं अधिक समय दिया।
जब तर्क से पता चलता है कि रक्षात्मक बल्लेबाज़ी को मददगार सतहों पर पहले से कहीं ज़्यादा फ़िट और गहरे आक्रमणों के ख़िलाफ़ सफल नहीं होना चाहिए, तब पुजारा अपने रक्षात्मक खेल को चरम पर लेकर गए। क्या कभी ऐसा कोई दूसरा खिलाड़ी हमें देखने को मिलेगा? और रहाणे के बारे में क्या, जो इस आख़िरी चक्र से पहले प्रत्येक दौरे पर एक लुभावनी पारी के साथ सभी को रोमांचित करते थे?
अब कोई शिकायत नहीं कर सकता कि उन्हें हटा दिया गया है। टीम में उनका सफ़र अच्छा रहा है। आप शायद यह कह सकते हैं कि प्रभारी लोगों ने कूटनीतिक निर्णय लिए हैं। उनमें से कोई भी खिलाड़ी युवा होने पर ड्रॉप किए जाने से अंजान नहीं है, लेकिन अब जब वे दिग्गज थे, तो उनमें से कोई भी ख़राब प्रदर्शन के बावजूद एक एकादश से बाहर नहीं था। दोनों को बाहर का रास्ता दिखाना उनमें से किसी एक को एकादश से बाहर करने और क्रमिक परिवर्तन की शुरुआत करने से कहीं अधिक कूटनीतिक है। ठीक वैसे ही, जैसे सालों पहले, धोनी ने राहुल द्रविड़ या वीवीएस लक्ष्मण को तब तक ड्रॉप करने से इनकार कर दिया जब तक वे टीम में थे।
फिर प्रतिस्पर्धी खेल में करियर शायद ही कभी सही तरीक़े से समाप्त होता है। और कौन कहे कि यह अंत है? वे सभी ढलते हुए प्रकाश के ख़िलाफ़ उग्र होंगे, और यदि एक या दो सफल वापसी होती है तो आश्चर्यचकित न हों। यदि यह वास्तव में उनके करियर का अंत है, तो यह केवल जीवन का एक तथ्य है - अच्छे करियर का जश्न मनाया जाना चाहिए, नए लोगों की प्रतीक्षा की जानी चाहिए। जो लोग आज बहिष्कार की चोट महसूस कर रहे हैं, वे शायद अगले खिलाड़ियों को बढ़ावा देंगे, या मीडिया में उनका समर्थन कर रहे होंगे।
और अब विराट कोहली अपने 100वें टेस्ट मैच में उन दो बल्लेबाज़ों के बिना उतरेंगे जिनको उन्होंने सबसे अधिक समर्थन किया था। उस गेंदबाज़ के बिना जिनको भारतीय टीम में चयन की ख़बर देने के लिए उन्होंने लात मारकर जगाया था। एक दिन आएगा जब कोहली भी टीम से चले जाएंगे और भारतीय क्रिकेट आगे बढ़ता चला जाएगा।