बीते अंडर-19 विश्व कप में सौम्य भारत के लिए सबसे सफल गेंदबाज़ रहें • ICC/Getty Images
सौम्य पांडे के परिवार में आज से कुछ साल पहले तक क्रिकेट का नहीं बल्कि सिर्फ़ पढ़ाई-लिखाई का माहौल था। उनके माता-पिता गांव के पास ही एक इंटरमीडिएट कॉलेज में शिक्षक हैं, तो बाबा भी राज्य कृषि विभाग के एक रिटायर्ड अधिकारी हैं। बहन को आईएएस अधिकारी बनना है, वहीं मामा-मामी मध्य प्रदेश में पीसीएस अधिकारी हैं।
पहले घर की टीवी पर ग़लती से ही कोई क्रिकेट मैच चलता था, लेकिन अब सौम्य के बाबा-दादी से लेकर घर के छोटे-छोटे बच्चों तक सब टीवी से चिपके रहते हैं ताकि वे अपने दुलारे को क्रिकेट खेलता हुआ देख सके।
सौम्य साउथ अफ़्रीका में संपन्न हुई अंडर-19 विश्व कप में भारत के लिए सबसे सफल गेंदबाज़ हैं। उन्होंने सभी सात मैच खेलते हुए सात पारियों में 10.27 की शानदार औसत और 22.94 की स्ट्राइक रेट से सिर्फ़ 2.68 की इकॉनमी से रन देते हुए 18 विकेट निकाले, जो कि टूर्नामेंट में दूसरा सर्वाधिक है।
यह भारत के लिए अंडर-19 विश्व कप के इतिहास में सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज़ी प्रदर्शन भी है। उन्होंने रवि बिश्नोई के 17 विकेटों का रिकॉर्ड तोड़ा, जो बिश्नोई ने 2020 अंडर-19 विश्व कप के दौरान बनाया था।
सौम्य के परिवार के कुलगुरू ने सौम्य के लिए भी डॉक्टर या इंजीनियर होने की भविष्यवाणी की थी, लेकिन जब सौम्य ने एक बार बैट-बॉल पकड़ा तो फिर क्रिकेट के ही होकर रह गए।
सौम्य के पिता कृष्ण कुमार पांडे कहते हैं, "बचपन में जैसे सभी बच्चों का खिलौना आता था, वैसे इसके लिए भी घर पर ढेर सारे खिलौने होते थे। लेकिन वह बाक़ी खिलौनों को छोड़कर बस प्लास्टिक के बैट-बॉल से खेलता था। कब उसे इसकी आदत हो गई, हमें पता भी नहीं चला। पांच-छह साल की उम्र में जब परिवार के कुलगुरू ने उसके डॉक्टर या इंजीनियर बनने की भविष्यवाणी की तो वह तो रोने लगा और बोला कि 'मैं बस क्रिकेटर ही बनूंगा।' एक तब का दिन है और एक आज का दिन, आज वह भारत का प्रतिनिधित्व कर रहा है।"
बचपन में सौम्य शारीरिक रूप से बहुत कमज़ोर होते थे और उन्हें हर तीसरे महीने सर्दी, जुकाम या निमोनिया होता रहता था। मौसम बदलने पर बुखार होना तो बहुत ही सामान्य था। डॉक्टर ने कृष्ण कुमार को दवाईयों के साथ-साथ अपने बेटे को कुछ फ़िजिकल एक्टिविटी कराने की सलाह दी। कृष्ण कुमार को लगा कि अगर उसकी रूचि क्रिकेट में है तो फिर उसे क्रिकेट ही खिलाया जाए ताकि वह ख़ुश भी रहे और स्वस्थ भी। हालांकि उन्हें यह नहीं पता था कि क्रिकेट ही उनके बेटे का करियर हो जाएगा।
कृष्ण कुमार का स्कूल उनके गांव भरतपुर (मध्य प्रदेश) से महज़ दो किलोमीटर ही दूर था, लेकिन वहां पर क्रिकेट का कोई माहौल नहीं था। इसलिए कृष्ण कुमार अपने परिवार को लेकर पड़ोस के जिले रीवा में किराये के एक मकान में रहने लगे, जहां पर ऐरिल ऐंथनी की विंध्य क्रिकेट एकेडमी था। इस एकेडमी से पूजा वस्त्रकर, नुज़हत परवीन, ईश्वर पांडे और कुलदीप सेन जैसे राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी निकल चुके हैं।
ऐंथनी कहते हैं, "सौम्य मेरे पास सात-आठ साल की उम्र में आया था। वह दिमाग़ से बहुत तेज़ था और किसी भी सबक को बहुत जल्दी ही सीखकर अपने गेम पर लागू करता था। वह अपने खेल को लेकर गंभीर और अनुशासित था। अगर मैं सीनियर टीम के साथ एकेडमी से बाहर होता था तो भी वह बहुत ही गंभीरता, समर्पण व अनुशासन से अभ्यास करता था और कोई भी अभ्यास सत्र छोड़ता नहीं था। गेंदबाज़ी पर उसका शुरू से ही ज़्यादा ध्यान था और वह वैरिएशन का भी पूरा प्रयोग करता था। उसमें प्रतिभा तो थी, लेकिन वह धीरे-धीरे ही आगे बढ़ा है।"
ऐंथनी बताते हैं कि जब सौम्य अंडर-16 क्रिकेट खेल रहा था, तब ही मध्य प्रदेश के तत्कालीन चयनकर्ता कीर्ति पटेल की नज़र उस पर पड़ी और उन्होंने उसे 15 साल की उम्र में ही उसे राज्य के 30 रणजी संभावितों में शामिल कर लिया। उस साल अंडर-16 क्रिकेट में सौम्य ने 100 से अधिक विकेट लिए। हालांकि उसे तब रणजी ट्रॉफ़ी में खेलने का मौक़ा तो नहीं मिला, लेकिन वह एज़-ग्रुप क्रिकेट खेलने के साथ-साथ सीनियर डिवीज़न क्रिकेट भी खेलने लगा।
इस विश्व कप में सौम्य की गेंदबाज़ी देखी जाए तो उन्होंने 18 में से 12 विकेट बल्लेबाज़ को एलबीडब्ल्यू या बोल्ड करके लिए हैं, जिसमें से अधिकतर गेंदें गुड लेंथ पर गिरी हैं। वह अपने लाइन और लेंथ को लेकर बहुत अनुशासित हैं और रवींद्र जाडेजा की तरह स्टंप टू स्टंप गेंदबाज़ी के लिए जाने जाते हैं।
ऐंथनी कहते हैं, "उसके पास वैरिएशन है और इसे वह एंगल बदलकर प्राप्त करता है ना कि अपना लाइन-लेंथ बदलकर। उसे पता है कि कब उसे वाइड ऑफ़ द क्रीज़ जाकर गेंदबाज़ी करनी है और कब स्टंप के पास से गेंद डालना है, कब ओवर द विकेट से हवा में फ़्लाइट देनी है और कब राउंड द विकेट से आकर अंदर तेज़ गेंद डालनी है। उसका ऐक्शन सरल है और उसे पता है कि विकेट लेने के साथ-साथ रन कैसे रोकना है। आप इस विश्व कप में उसका औसत और इकॉनमी देखकर यह आसानी से समझ सकते हैं।"
हालांकि ऐंथनी और कृष्ण कुमार दोनों ही जाडेजा से हो रही उसकी तुलना पर सहमत नहीं हैं। दोनों का मानना है कि जाडेजा एक विश्व स्तरीय खिलाड़ी हैं और सौम्य को वहां तक पहुंचने के लिए अभी बहुत मेहनत करनी होगी। दोनों कहते हैं कि अंडर-19 विश्व कप अभी सौम्य के लिए पहला क़दम है, जबकि जाडेजा यह क़दम 16 साल पहले रख चुके थे (अंडर-19 विश्व कप, 2008) और फ़िलहाल वह देश के सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटरों में से एक हैं।
ग़ौरलतलब है कि सौम्य का ऐक्शन और गेंदबाज़ी पर नियंत्रण देखकर कई पूर्व क्रिकेटरों और कॉमेंटेटर्स ने उनकी तुलना जाडेजा से की थी। ICC ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर इससे जुड़ा हुआ एक वीडियो भी डाला था और सौम्य को जाडेजा का मिरर इमेज़ कहा था।
विश्व कप में शानदार प्रदर्शन के बाद सौम्य को कुछ IPL टीमों से नेट गेंदबाज़ बनने के ऑफ़र भी आए हैं, लेकिन अपने पिता और कोच से सलाह लेने के बाद उन्होंने इसे ठुकरा दिया है।
कृष्ण कुमार का मानना है कि अभी सौम्य को स्टेप बाय स्टेप आगे बढ़ना चाहिए और IPL से पहले प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेलना चाहिए। ऐंथनी भी इससे सहमत नज़र आते हैं। हालांकि उनका यह भी मानना है कि अगर नेट बोलर के तौर पर सौम्य को भारत सहित दूसरे अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों को गेंदबाज़ी करने का मौक़ा मिलता है, तो उस पर एक बार विचार ज़रूर किया जा सकता है।