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सचिन धस: एक 'जुनूनी' तेंदुलकर फ़ैन और 'ज़िद्दी' पिता के फ़ितूर की कहानी

'अगर बच्चे के लिए कुछ करना है और अपनी ख़्वाहिश भी पूरी करनी है तो उसके पीछे पागल होना ही पड़ेगा'

Sachin Dhas celebrates his century, India vs Nepal, Bloemfontein, Under-19 Men's World Cup, February 2, 2024

वर्तमान अंडर-19 विश्व कप में सर्वाधिक रन बनाने वाले बल्लेबाज़ों में सचिन तीसरे स्थान पर हैं  •  ICC/Getty Images

90 का दशक। भारत के करोड़ों युवाओं की तरह संजय धस भी सचिन तेंदुलकर के दीवाने थे। ख़ुद संजय के शब्दों में वह तेंदुलकर के लिए 'पागल' थे और उनकी हर मैच, हर पारी और हर गेंद देखते थे। कभी किसी काम की वजह से सचिन की पारी की 10 गेंद भी छूट गई तो उन्हें लगता था कि उन्होंने कोई 'पाप' कर दिया है।
संजय भी अपने हीरो की तरह क्रिकेट खेलते थे, लेकिन क्लब और जिला स्तर पर क्रिकेट खेलने पर ही उन्हें पता चल गया था कि शुरुआती और बुनियादी ट्रेनिंग ना होने के कारण वह क्रिकेट में अधिक आगे तक नहीं जा सकते हैं। हालांकि उन्होंने तय किया कि जब भी उनको बेटा होगा, उसका नाम वह 'सचिन' ही रखेंगे और उसे क्रिकेटर ही बनाएंगे।
कट टू 2000s। नई सदी और नए दशक में जब 2005 में उन्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई तो पहले से तय मुताबिक उन्होंने अपने बेटे का नाम 'सचिन' रखा और उसे 'इंडिया क्रिकेटर' बनाने के अपने मिशन में लग गए। इस मिशन में उनके रास्ते में कई कांटे, कई दिक्कतें भी आईं, लेकिन यह संजय का दृढ़ निश्चय, जिद, लगन और जुनून ही था कि वह अपने बेटे को 'इंडिया खेलने' के अपने 'सपने' के क़रीब लाते चले गए।
कट टू 2024। लगभग दो दशक बाद अब संजय का बेटा सचिन धस साउथ अफ़्रीका में चल रही अंडर-19 विश्व कप में भारतीय टीम का एक प्रमुख हिस्सा है। तेंदुलकर की ही तरह 10 नंबर जर्सी पहनने वाले सचिन ने इस टूर्नामेंट में 73.50 की औसत और 116.66 के स्ट्राइक रेट से 294 रन बनाकर इंडिया अंडर-19 टीम को फ़ाइनल में पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसमें एक शतक और साउथ अफ़्रीका के ख़िलाफ़ सेमीफ़ाइनल में 96 रन की बेहद महत्वपूर्ण पारी शामिल है।
संजय कहते हैं, "जब वह पैदा भी नहीं हुआ था, तब ही मैने ठान लिया था कि वह क्रिकेट ही खेलेगा, उसके अलावा कुछ नहीं करेगा। इसके लिए मुझे चाहे जो करना पड़ता, मैं करता। जब वह दो-ढाई साल का था, तभी मैंने उसे MRF का बैट थमा दिया और रोज़ सुबह उसे अपने साथ क्रिकेट ग्राउंड ले जाता था। जब वह चार-साढ़े चार साल का था, तभी मैंने उसे क्रिकेट एकेडमी में डाल दिया। मुझे पता था कि अगर उसे बड़ा करना है और इंडिया खेलना है तो काफ़ी कम उम्र से ही उसे ट्रेनिंग शुरू करनी होगी। मैं नहीं चाहता था कि वह मेरी तरह जिला स्तर का क्रिकेटर बनकर रहे।"
यह 2009-10 की बात है। संजय अपने बेटे को अज़हर शेख़ की एकेडमी में डाल देते हैं, जो ज़िले के सरकारी छत्रपति शिवाजी महाराज स्टेडियम में आदर्श क्रिकेट एकेडमी नाम से एक प्राइवेट क्रिकेट ट्रेनिंग सेंटर चलाते थे। अज़हर के पास सचिन से पहले और सचिन के बाद बहुत बच्चे आए लेकिन उन्होंने पहली नज़र में ही पहचान लिया था कि यह बच्चा कुछ अलग है।
ख़ुद अज़हर के शब्दों में, "एकेडमी में 60-70 बच्चे थे, लेकिन सचिन उनमें से बहुत अलग था। जो भी सिखाओ, वह दूसरे बच्चों के मुक़ाबले जल्दी सीख जाता था और फिर दूसरी नई चीज़ें सीखने के लिए कहता था। उसे अपना अनुशासन पता था। वह सुबह 500 से 600 तो शाम को 700 से 800 गेंदें खेलता था। गेंदबाज़ थक जाते थे, लेकिन उसने कभी शिक़ायत नहीं कि वह थक गया है या उसे अब आगे नहीं खेलना है।"
समय बीतता गया और सचिन आगे बढ़ता गया। क्लब स्तर से आगे उठकर वह ज़िले स्तर की क्रिकेट खेलने लगा। किसी मैच में अगर वह जल्दी आउट हो जाता था तो वह अपने पापा से उसी टीम के विरूद्ध फिर मैच लगाने की बात करता ताकि उसी गेंदबाज़ को निशाना बनाया जा सके, जिसने उसे आउट किया था। वह 12 साल की ही टीम में महाराष्ट्र की अंडर-14 टीम में आ गया और इसके बाद उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
संजय बताते हैं, "जब वह राज्य की अंडर-14 टीम में आ गया, तब उसकी मम्मी (सुरेखा धस) को भी विश्वास हो गया कि यह क्रिकेट में बहुत आगे जा सकता है। उससे पहले सुरेखा को सचिन का क्रिकेट खेलना नहीं पसंद था और वह चाहती थीं कि सचिन पढ़ाई पर ध्यान दे। उसे लगता था कि बीड जैसी छोटी जगह से क्रिकेट सीखकर कोई इसे करियर नहीं बना सकता है। मैंने कभी भी अपनी पत्नी की नहीं सुनी। मैंने सोच लिया था कि सचिन का करियर ही क्रिकेट है और बाक़ी कोई करियर नहीं है।"
उस समय बीड में क्रिकेट का उतना माहौल नहीं था। जिले के स्टेडियम में एक ही ग्राउंड था, जिसमें मैटिंग विकेट पर क्रिकेट सिखाया जाता था। सचिन के अंडर-14 क्रिकेट खेलने के दौरान सत्येन लांडे, अजय च्वहाण और राजू काने जैसे पूर्व महाराष्ट्र के क्रिकेटरों, चयनकर्ताओं और कोचिंग स्टाफ़ के लोगों ने सचिन की खेल की तारीफ़ की, लेकिन यह भी सलाह दिया कि अगर सचिन को आगे बढ़ना है तो उसे मैट की जगह टर्फ़ विकेटों पर अभ्यास करना होगा।
उस समय बीड में कहीं भी टर्फ़ विकेट नहीं था। संजय ने इसके लिए अपने अधिकारी भाई और साले से आर्थिक मदद ली, जिलाधिकारी से अनुमति मांगा और लगभग छह से सात लाख रूपये ख़र्च कर सरकारी स्टेडियम में चार टर्फ़ विकेट बनवा दिए। इससे सचिन ही नहीं बीड के सैकड़ों बच्चों को भी फ़ायदा हुआ, जो टर्फ़ पिच पर अभ्यास के अभाव में आगे नहीं बढ़ पाते थे। संजय को बीड के उन दर्जनों बच्चों के नाम मुंहजुबानी याद हैं, जो अब राज्य, रणजी या राष्ट्रीय स्तर पर क्रिकेट में बीड व महाराष्ट्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। उनका नाम लेते वक़्त संजय का सीना गर्व से फूल जाता है कि सिर्फ़ सचिन ही नहीं बीड के अन्य लड़के भी क्रिकेट में अब आगे निकल रहे हैं।
ख़ैर, सचिन का सफ़र जारी था। उसने 12 साल की उम्र में अंडर-14, 14 साल की उम्र में अंडर-16 और 16 साल की उम्र में अंडर-19 क्रिकेट खेल लिया। अब सचिन के एक लेवल और ऊपर जाने की बारी थी।
संजय को लगता था कि एकेडमी में और भी बहुत बच्चे हैं, जिसके कारण सचिन पर्याप्त अभ्यास नहीं कर पाता है। संजय चाहते थे कि उनका बेटा सुबह तीन से चार घंटे और शाम को दो से तीन घंटे अभ्यास करे, कम से कम रोज 1200 से 1400 गेंद खेले और इसके कारण दूसरे बच्चों का अभ्यास भी नहीं प्रभावित हो।
इसके लिए संजय ने अपने एक पुराने पुश्तैनी घर को गिरवा दिया और उसे एक इनडोर प्रैक्टिस ज़ोन के रूप में विकसित किया। वहां उन्होंने फ़्लड लाईट लगवाई ताकि देर रात में भी सचिन अभ्यास कर सके; छत लगवाया, ताकि बारिश में भी उनका बेटा ना रूके; एस्ट्रोटर्फ़ बिछवाया; ताकि सही पिच पर अभ्यास मिले और फिर एक महंगा बोलिंग मशीन भी लगवाया ताकि वह अलग-अलग गति और अलग-अलग तरह के गेंदबाज़ों का सामना करने के लिए तैयार हो। अब सचिन सुबह स्टेडियम में और शाम को इनडोर ज़ोन में अभ्यास करता था।
इसी अभ्यास का फल सेमीफ़ाइनल में देखने को मिला। जब साउथ अफ़्रीकी तेज़ गेंदबाज़ों के बाउंसर गेंदों से भारत की युवा टीम के अन्य बल्लेबाज़ परेशान हो रहे थे, वहीं सचिन धस ने उन्हें बिना किसी ख़ास दिक्कत के खेला और 96 रन की संकटमोचक और मैच-जिताऊ पारी खेली।
सचिन की इस पारी की ख़ास बात उनकी शॉर्ट आर्म जैब रही, जिससे उन्होंने मिडविकेट एरिया में पांच चौके बंटोरे। इससे पहले नेपाल के ख़िलाफ़ सुपर-6 मैच में शतक लगाने के दौरान भी सचिन ने इस शॉट का प्रदर्शन किया था और मिडविकेट एरिया में सर्वाधिक रन बनाए थे।
कोच अज़हर बताते हैं कि उन्होंने साउथ अफ़्रीका की तेज़ और उछाल भरी विकेटों को देखते हुए शॉर्ट बाउंसर गेंदों पर सचिन की विशेष तैयारी करवाई थी।
"साउथ अफ़्रीका जाने से आठ दिन पहले तक वह मेरे साथ अभ्यास कर रहा था। हमने एक स्टील का प्लेट लिया और उसे बैक ऑफ़ लेंथ पर रखकर प्लास्टिक की गेंद से थ्रोडाउन गेंदबाज़ी की ताकि तेज़ गति से गेंद सचिन के शरीर पर जाए। इससे सचिन को कई बार चोट भी लगे, लेकिन वह डिगने वाला नहीं था। पहले सचिन उन गेंदों को पुल मार रहा था, जिससे गेंद हवा में बहुत ऊपर जा रही थी और ताक़त व टाइमिंग कम होने के कारण उसे लंबाई नहीं मिल पा रही थी। फिर मैंने उसे गेंद को नीचे रखने को कहा, ग्राउंडेड पुल मारने की बात कही। हमने लगातार दो महीने तक अभ्यास किया और अब देखिए वह शुभमन गिल की तरह शॉर्ट आर्म जैब मार रहा है," अज़हर कहते हैं।
अपने पिता की तरह सचिन भी तेंदुलकर के बहुत बड़े फ़ैन हैं। हालांकि उन्होंने बड़े होते हुए विराट कोहली को खेलते देखा है तो कोहली भी उनके फ़ेवरिट हैं। वैसे तो वह तेंदुलकर की तरह नंबर चार (टेस्ट मैचों में) पर बल्लेबाज़ी करते हैं, लेकिन इस टूर्नामेंट में उन्हें टीम प्रबंधन द्वारा फ़िनिशर का रोल दिया गया था, जिसे टीम की ज़रूरत समझते हुए सचिन ने स्वीकार किया और उसके साथ अभी तक न्याय किया है।
संजय अपने बेटे की इस तरक्की से बहुत ख़ुश हैं। उनकी इच्छा है कि उनका बेटा विश्व कप जीतकर आए और उसे उनके आदर्श तेंदुलकर का आशीर्वाद मिले। "यह सचिन नाम का ही आशीर्वाद है कि वह इतना अच्छा कर रहा है। भगवान (तेंदुलकर) का हाथ मेरे बेटे के सिर पर बना रहे और वह एक दिन इंडिया के लिए खेले," भावुक संजय इसी इच्छा के साथ अपनी बातों को ख़त्म करते हैं।

दया सागर ESPNcricinfo हिंदी में सब एडिटर हैं. @sagarqinare