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चटगांव टेस्ट में कुलदीप यादव की सफलता का राज़

भारतीय स्पिनर ने अपनी गेंद की गति के अलावा और भी कई कई बदलाव किए हैं

कुलदीप यादव ने अपने पांच साल के टेस्ट करियर में सिर्फ़ आठ मैच खेले हैं  •  Associated Press

कुलदीप यादव ने अपने पांच साल के टेस्ट करियर में सिर्फ़ आठ मैच खेले हैं  •  Associated Press

कुलदीप यादव ने अब तक कुल 13 टेस्ट पारियों में गेंदबाज़ी की है। उनमें से छह पारियों में उन्होंने चार या उससे ज़्यादा विकेट लिए हैं। उन्होंने अपने टेस्ट करियर में जितने मेडेन ओवर नहीं फेंके हैं, उससे ज़्यादा विकेट लिए हैं। हालांकि एक बात यह भी है कि साढ़े पांच साल के टेस्ट करियर में उन्होंने सिर्फ़ आठ टेस्ट खेले हैं l
ऐसा प्रतीत होता है कि जब भी भारतीय टीम को एक अतिरिक्त स्पिनर की आवश्यकता होती है तो कुलदीप को टीम में शामिल किया जाता है। ऊपर दिए गए आंकड़े शायद कुछ इसी तरह के संकेत देते हैं कि उन्हें अतिरिक्त स्पिनर के तौर पर ही टीम में शामिल किया गया है लेकिन पांच सालों में सिर्फ़ आठ टेस्ट मैच?
भारतीय टेस्ट टीम के नियमित सदस्य बनने के लिए उन्हें दो बेहतरीन स्पिनरों के साथ प्रतिस्पर्धा करना पड़ा है। उसके अलावा भी और कई कारक हैं। सबसे पहले तो कलाई के स्पिनर के तौर पर किसी खिलाड़ी को टीम में शामिल करना, किसी जुआ से कम नहीं है। इसके अलावा टेस्ट क्रिकेट में भारत सिर्फ़ पांच बल्लेबाज़ के साथ खेलता है। इसी कारण से उन दो स्पिन गेंदबाज़ों का बल्लेबाज़ी करने में सक्षम होना भारतीय टीम के लिए काफ़ी फ़ायदेमंद है। इसके अलावा विदेशी पिचों पर जब भारत सिर्फ़ एक स्पिनर के साथ जाता है तो उसकी बल्लेबाज़ी क्षमता भी काफ़ी महत्वपूर्ण हो जाती है, जैसा कि आर अश्विन करते हैं।
हालांकि टीम संयोजन को अगर अलग रख दिया जाए तो कुलदीप सीमित ओवर के क्रिकेट से भी दूर रहे हैं। इसके अलावा आईपीएल में कोलकाता की टीम में भी उन्हें खेलने के ज़्यादा मौक़े नहीं मिले। कुलदीप के लिए यह एक ऐसा दौर है, जो काफ़ी मुश्किल रहा है। कई बार अलग-अलग कप्तान और कोच ने उनकी गेंदबाज़ी की कम गति के बारे में बात की है। इसके अलावा उन्होंने उस दौरान जब भी अपनी गति बढ़ाने का प्रयास किया, वह बढ़िया प्रदर्शन नहीं कर पाए और उसी कारण से उन्हें मौक़े भी कम मिले।
कुलदीप के लिए यह काफ़ी अच्छा होगा कि अगर वह चटगांव टेस्ट के तीसरे दिन अपने पांच विकेट पूरे कर लेते हैं। कुलदीप ने इस टेस्ट में 114 गेंदों का सामना करते हुए 40 रन भी बनाए हैं। यह टेस्ट एक ऐसी पिच पर खेला जा रहा है, जहां कई गेंदें नीची रह रही हैं और बल्ले पर काफ़ी धीमी भी आ रही है।
कुलदीप की गेंदबाज़ी में गति के अलावा और भी कई समस्याएं थी जिस पर कई कोच ने बात भी की है। जैसा कि भारत के पूर्व गेंदबाज़ी कोच भरत अरूण कहते थे कि कुलदीप गेंदबाज़ी के दौरान सीधा भागते हैं, साथ ही उनका पिछला पैर भी सही तरीक़े से लैंड नही हो रहा है। इसके अलावा वह जिस कंधे के सहारे गेंद फेंकते हैं, वह कान के काफ़ी क़रीब है।
कुलदीप के कोच कपिल पांडे ने इस साल की शुरुआत में हिंदुस्तान टाइम्स को बताया था कि उनके काम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा यह था कि सामने वाले हाथ की गति को बढ़ाना और फिर सटीकता हासिल करना है।
चटगांव टेस्ट में अगर आप स्पीड गन पर एक सरसरी नज़र डालेंगे तो यह पता चलेगा कि कुलदीप ने अपनी गति के अलावा और भी कई चीज़ों पर काम किया है। कुलदीप ने जो दो बार चार-चार विकेट लिए हैं, उस दौरान कुलदीप ने गेंद के पिच होने से पहले, हवा में ही वह काम कर दिया है, जिसने बल्लेबाज़ों को चकमा देने का काम किया है। अगर चटगांव टेस्ट में ही कुलदीप के द्वारा डाली गई पहली गेंद को देखें तो उसमें उन्होंने शाकिब अल हसन को क्रीज़ से बाहर आने के लिए मज़बूर किया। इसके बाद उन्होंने ऐसी गेंद फेंकी कि उसकी ड्रिफ़्ट और लाइन ने शाकिब को इस बात के लिए मज़बूर किया कि वह अपने बल्ले का मुंह बंद करें।
वहीं मुशफिक़ुर रहीम के विकेट को देखा जाए तो ऐसा प्रतीत होता है कि मुशफिक़र को पहले लगा कि गेंद काफ़ी फुलर लेंथ की है और उन्हें पैर आगे नहीं बढ़ाना होगा लेकिन गेंद की ड्रिफ़्ट ने गेंद और बल्ले के बीच के फासले को बढ़ा दिया और वहीं उनसे चूक हो गई।
बाक़ी के दो विकेट भी कुलदीप को कुछ इसी तरीक़े से मिले, जहां उन्होंने बल्लेबाज़ को खेलने पर मज़बूर किया या फिर बल्लेलबाज़ों को एक ऐसे पॉज़िशन में आना पड़ा जो उनके लिए सहज नहीं था।
कुलदीप ने मेज़बान प्रसारकों को बताया कि उन्हें बढ़िया टर्न मिल रहा है और वह इसे पसंद कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि "थोड़ी" तेज़ गति से गेंदबाज़ी करने के कारण उन्हें फ़ायदा मिल रहा है।
हालांकि भारतीय टेस्ट टीम की गहराई की बात करें तो रवींद्र जाडेजा की मौजूदगी में शायद ही कुलदीप को खेलने का मौक़ा मिल पाता। वैसी परिस्थिति में भारत जाडेजा, अक्षर और अश्विन के साथ मैदान पर उतरता क्योंकि इन तीनों खिलाड़ियों के पास बल्लेबाज़ी करने की क्षमता है।
अगर कुलदीप को अगले टेस्ट में फिर से खेलने का मौक़ा दिया जाता है तो उनके करियर में यह सिर्फ़ दूसरी बार होगा, जब उन्हें लगातार दो टेस्ट मैचों में खेलने का मौक़ा मिले। हालांकि अगर उन्हें इस सीरीज़ के बाद उनके प्रदर्शन के आधार पर फिर से ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ खेले जाने वाले बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफ़ी में शामिल किया गया तो शायद टीम में जगह बनाने के लिए उन्हें अक्षर पटेल की जगह पर चयनित करना होगा, जो औसतन हर 34.5वें गेंद पर विकेट लेते हैं। उस सीरीज़ में भारतीय टीम के द्वारा अगर एक छोटी सी भी चूक होती है तो उनका विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के फ़ाइनल में पहुंचने का सपना टूट सकता है।