देबायन : क्यों ऐंजलो मैथ्यूज़ टाइम्ड आउट मामले में शाकिब अल हसन को दोषी मानना उपयुक्त नहीं है
मैथ्यूज़ का आउट होना दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन आधुनिक क्रिकेट में आप नियमों के दायरे में जीतने के लिए ही खेलते हैं
ऐंजलो मैथ्यूज़ अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट इतिहास में पहले ऐसे बल्लेबाज़ बने जिन्हें टाइम्ड आउट दिया गया • Associated Press
पहले टाइम्ड आउट के पूरे सिलसिले को समझ लेते हैं। सदीरा समरविक्रमा के आउट होने पर ऐंजलो मैथ्यूज़ मैदान पर उतरते हैं। यह विश्व कप का मैच है, जहां प्रतिद्वंद्वी बांग्लादेश और श्रीलंका के बीच वैसे ही हालिया राइवलरी काफ़ी मसालेदार रही है। इस मैच के परिणाम से इन दोनों टीमों के 2025 चैंपियंस ट्रॉफ़ी में शामिल होने की संभावनाएं भी जुड़ी हैं।
मैथ्यूज़ आते हैं और लगभग दो मिनट बाद (हालांकि मैथ्यूज़ के अपने सोशल मीडिया पोस्ट्स के मुताबिक़ केवल एक मिनट और 50 या 55 सेकंड ज़ाया हुए थे) स्ट्राइक लेते हैं, जब उन्हें पता चलता है उनके हेलमेट का स्ट्रैप टूट गया है। वह तुरंत 12वें खिलाड़ी की ओर इशारा करते हैं और नया हेलमेट मंगवा लेते हैं।
एंजलो मैथ्यूज़ अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में टाइम आउट होने वाले पहले खिलाड़ी बने
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अब यह विवेचन करना कि क्या नियमों के हिसाब से मैथ्यूज़ सही समय पर आ गए थे या नहीं, यह अंपायरों की ज़िम्मेदारी है। विरोधी टीम का काम होता है नियमों के दायरे में रहते हुए अपने विपक्षी टीम के विकेट निकालना। शायद यह अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट के 146 सालों में नहीं हुआ था, लेकिन क्या इसका सीधा मतलब हुआ कि यह ग़लत है?
खेल भावना और 'जेंटलमैन' का खेल कहा जाने वाला क्रिकेट अपनी जगह सही है, लेकिन 21वीं सदी में एक पेशेवर खेल में आप कहां तक दक़ियानूसी चीज़ों को अपने साथ लेकर बैठेंगे?
मैं इतिहास के पन्नो से कुछ संदर्भ जोड़ते हुए आपको बताता हूं कि क्रिकेट को 'जेंटलमेंस गेम' कहना कितना निरर्थक है। दरअसल खेल के जन्मदाता देश इंग्लैंड में खिलाड़ी दो सामाजिक वर्ग से आते थे। शौक़ के लिए खेलने वाले 'ऐमच्योर' या 'जेंटलमैन' (आप इन्हें इंग्लैंड के राजा-महाराजा मान सकते हैं) और पेशेवर 'प्रोफ़ेशनल', जो मध्य वर्ग या उससे भी निचले सामाजिक वर्ग से आते थे। इन्हें खेलने के पैसे मिलते थे और आप कह सकते हैं देश-विदेश में जाकर खेलना उनकी नौकरी थी। कप्तान हमेशा ऐमच्योर ही होता था और अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में लगभग 100 से अधिक साल लगे जब इंग्लैंड ने अपने शीर्ष के दो विश्वविद्यालय (ऑक्सफ़र्ड या केम्ब्रिज) के बाहर पढ़े किसी खिलाड़ी को इंग्लैंड की कप्तानी सौंपी। अगर भारत में ऐसा कोई नियम रहा होता, तो लाला अमरनाथ, कपिल देव और महेंद्र सिंह धोनी कभी कप्तानी के लायक नहीं समझे जाते। इसके अलावा दोनों वर्गों के ड्रेसिंग रूम और संसाधन भी अलग हुआ करते थे।
वह दौर कुछ और था। 1982 से पहले केवल 10 ही टीमों ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट खेला था। आज आईसीसी में 100 से अधिक सदस्य हैं और 12 टीमों को टेस्ट टीम का दर्जा मिला है। आप तब के और अब के क्रिकेट की तुलना नहीं कर सकते।
लेकिन इस पूरे सिलसिले में शाकिब को विलेन बनाना? यह मेरे हिसाब से बिल्कुल मुनासिब नहीं।
देबायन सेन ESPNcricinfo में सीनियर सहायक एडिटर और स्थानीय भाषा प्रमुख हैं @debayansen