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देबायन : क्यों ऐंजलो मैथ्यूज़ टाइम्ड आउट मामले में शाकिब अल हसन को दोषी मानना उपयुक्त नहीं है

मैथ्यूज़ का आउट होना दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन आधुनिक क्रिकेट में आप नियमों के दायरे में जीतने के लिए ही खेलते हैं

Angelo Mathews was the first batter to be timed out in internationals, Bangladesh vs Sri Lanka, Men's ODI World Cup, November 6, 2023

ऐंजलो मैथ्यूज़ अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट इतिहास में पहले ऐसे बल्लेबाज़ बने जिन्हें टाइम्ड आउट दिया गया  •  Associated Press

मैं शुरुआत में ही दी बातें स्पष्ट कर दूं। मैं क्रिकेटर शाकिब अल हसन का बहुत बड़ा फ़ैन हूं। लेकिन वह व्यक्तिगत जीवन में कैसे हैं, इसका मुझे ना पर्याप्त ज्ञान है और ना ही इस पूरे सिलसिले से इसका कुछ भी लेना-देना है। दूसरी बात यह कि मेरी राय से कई लोग पूरी विपरीत सोच रखेंगे (जैसे हमारे एक्सपर्ट और मेरे दोस्त दीप दासगुप्ता) और इसमें भी कोई ख़राबी नहीं है।

पहले टाइम्ड आउट के पूरे सिलसिले को समझ लेते हैं। सदीरा समरविक्रमा के आउट होने पर ऐंजलो मैथ्यूज़ मैदान पर उतरते हैं। यह विश्व कप का मैच है, जहां प्रतिद्वंद्वी बांग्लादेश और श्रीलंका के बीच वैसे ही हालिया राइवलरी काफ़ी मसालेदार रही है। इस मैच के परिणाम से इन दोनों टीमों के 2025 चैंपियंस ट्रॉफ़ी में शामिल होने की संभावनाएं भी जुड़ी हैं।

मैथ्यूज़ आते हैं और लगभग दो मिनट बाद (हालांकि मैथ्यूज़ के अपने सोशल मीडिया पोस्ट्स के मुताबिक़ केवल एक मिनट और 50 या 55 सेकंड ज़ाया हुए थे) स्ट्राइक लेते हैं, जब उन्हें पता चलता है उनके हेलमेट का स्ट्रैप टूट गया है। वह तुरंत 12वें खिलाड़ी की ओर इशारा करते हैं और नया हेलमेट मंगवा लेते हैं।
कप्तान शाकिब गेंदबाज़ी जारी रखने के लिए तैयार खड़े हैं। मैथ्यूज़ नया हेलमेट पहनते हैं, लेकिन इतने में शाकिब टाइम्ड आउट की अपील करते हैं। उन्होंने बाद में बताया कि यह सोच उनके दिमाग़ में किसी जूनियर खिलाड़ी ने डाला (मैं मैदान पर नहीं था लेकिन ब्रॉडकास्ट पर देखते हुए मैं समझता हूं यह शायद टीम के युवा खिलाड़ी नजमुल हुसैन शांतो थे)। अंपायर उनसे पूछते हैं कि क्या वह इस अपील को जारी रखना चाहेंगे और शाकिब कहते हैं हां। ऐसे में मैथ्यूज़ को आउट दिया जाता है और दोनों डिसमिसल के बीच लगभग पांच मिनट का समय गुज़रता है।

अब यह विवेचन करना कि क्या नियमों के हिसाब से मैथ्यूज़ सही समय पर आ गए थे या नहीं, यह अंपायरों की ज़िम्मेदारी है। विरोधी टीम का काम होता है नियमों के दायरे में रहते हुए अपने विपक्षी टीम के विकेट निकालना। शायद यह अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट के 146 सालों में नहीं हुआ था, लेकिन क्या इसका सीधा मतलब हुआ कि यह ग़लत है?

खेल भावना और 'जेंटलमैन' का खेल कहा जाने वाला क्रिकेट अपनी जगह सही है, लेकिन 21वीं सदी में एक पेशेवर खेल में आप कहां तक दक़ियानूसी चीज़ों को अपने साथ लेकर बैठेंगे?

मैं इतिहास के पन्नो से कुछ संदर्भ जोड़ते हुए आपको बताता हूं कि क्रिकेट को 'जेंटलमेंस गेम' कहना कितना निरर्थक है। दरअसल खेल के जन्मदाता देश इंग्लैंड में खिलाड़ी दो सामाजिक वर्ग से आते थे। शौक़ के लिए खेलने वाले 'ऐमच्योर' या 'जेंटलमैन' (आप इन्हें इंग्लैंड के राजा-महाराजा मान सकते हैं) और पेशेवर 'प्रोफ़ेशनल', जो मध्य वर्ग या उससे भी निचले सामाजिक वर्ग से आते थे। इन्हें खेलने के पैसे मिलते थे और आप कह सकते हैं देश-विदेश में जाकर खेलना उनकी नौकरी थी। कप्तान हमेशा ऐमच्योर ही होता था और अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में लगभग 100 से अधिक साल लगे जब इंग्लैंड ने अपने शीर्ष के दो विश्वविद्यालय (ऑक्सफ़र्ड या केम्ब्रिज) के बाहर पढ़े किसी खिलाड़ी को इंग्लैंड की कप्तानी सौंपी। अगर भारत में ऐसा कोई नियम रहा होता, तो लाला अमरनाथ, कपिल देव और महेंद्र सिंह धोनी कभी कप्तानी के लायक नहीं समझे जाते। इसके अलावा दोनों वर्गों के ड्रेसिंग रूम और संसाधन भी अलग हुआ करते थे।
वह दौर कुछ और था। 1982 से पहले केवल 10 ही टीमों ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट खेला था। आज आईसीसी में 100 से अधिक सदस्य हैं और 12 टीमों को टेस्ट टीम का दर्जा मिला है। आप तब के और अब के क्रिकेट की तुलना नहीं कर सकते।
आधुनिक क्रिकेट में पहले से कहीं ज़्यादा आर्थिक फ़ायदा है और टीमों पर ज़्यादा दबाव भी। समर्थकों और मीडिया के दबाव में अगर कोई क्रिकेटर हर हाल में जीतने का माद्दा रखता है, तो उसका तिरस्कार नहीं, सराहना होनी चाहिए। अगर टाइम्ड आउट के लिए अपील करना उचित नहीं, तो गेंद जब लेग साइड पर वाइड के लिए निकलती है, उस पर अपील करना भी ग़लत है। अगर बल्लेबाज़ के हेलमेट के स्ट्रैप टूटने से उसका आउट होना दुर्भाग्यपूर्ण है तो सीधे ड्राइव पर गेंदबाज़ के ऊंगलियों से लगकर गेंद के स्टंप्स पर छूने से नॉन-स्ट्राइकर का रन आउट होना भी दुर्भाग्यपूर्ण है। कभी आप इन दो अवसरों पर फ़ील्डिंग टीम को दोष देते हैं या कप्तान को अपील वापस लेने की मांग करते है?
सबसे मज़े की बात लगी कि शाकिब के कई आलोचक कुछ महीने पहले एक भारतीय क्रिकेट के बड़े नाम की तारीफ कर रहे थे, जब उन्होंने आईपीएल में नियमों का फ़ायदा उठाते हुए एक मैच को रोके रखा था। उनका तर्क़ यह था कि एक क़रीबी मैच में उनके युवा गेंदबाज़ मैदान से नौ मिनट बाहर थे, लेकिन समीकरण के हिसाब से उन्हीं से अगला ओवर करवाया जाना था। तो ऐसे में खेल नौ मिनट रुका रहा, अंपायर्स लाचार थे (फ़ील्डिंग टीम को आख़िर में पेनल्टी के तौर पर एक खिलाड़ी को दायरे के अंदर रखना था) और जीत फ़ील्डिंग टीम की ही हुई। इसे 'गेम अवेयरनेस' और 'मास्टरस्ट्रोक' कहा जाने लगा। हालांकि ईएसपीएनक्रिकइंफ़ो पॉडकास्ट पर देखिएगा, मैंने तब भी यह कहा था कि यह ग़लत था और अंपायर्स को हस्तक्षेप करना चाहिए था। टाइम्ड आउट के सिलसिले में भी यह कहना उचित है। दिल्ली में प्रदूषण के चलते वैसे भी खिलाड़ी काफ़ी स्ट्रेस में थे। अगर ऐसे में बल्लेबाज़ कोई ग़लत हेलमेट लेकर उतरता है तो अंपायर्स को उसे थोड़ी ढील देनी चाहिए थे। इसके अलावा आजकल के क्रिकेट में ओवर रेट का मामला भी रहता है, लेकिन उसे इस पूरे विवाद में लाकर मैं चीज़ों को और पेचीदा नहीं बनाना चाहता।

लेकिन इस पूरे सिलसिले में शाकिब को विलेन बनाना? यह मेरे हिसाब से बिल्कुल मुनासिब नहीं।

देबायन सेन ESPNcricinfo में सीनियर सहायक एडिटर और स्थानीय भाषा प्रमुख हैं @debayansen