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तेंदुलकर के बाउंसर से जब बंटू सिंह की नाक से निकला था खून

32 वर्ष पुराने वाक्ये को दिल्ली के बल्लेबाज़ ने किया याद

Sachin Tendulkar turns 50 during this year's IPL, and Mumbai Indians got the celebrations going a couple of days early at their game against Punjab Kings, Mumbai, April 22, 2023

24 अप्रैल को सचिन तेंदुलकर का 50वां जन्म दिन है  •  Mumbai Indians

सचिन तेंदुलकर ने अपनी ज़बर्दस्त बल्लेबाज़ी से कई गेंदबाजों के मन में जीवन भर के लिए ख़ौफ पैदा किया है लेकिन बंटू सिंह ने 'मास्टर ब्लास्टर' में 'कर्टली एम्ब्रोस' जैसी तेज़ गेंदबाज़ी वाला पैनापन भी देखा है, जब तेंदुलकर की बाउंसर से बंटू की नाक से खून बहने लगा था। यह वाक्या है दिल्ली और मुंबई के बीच रणजी मैच का और वो साल था 1991। वो बाउंसर इतनी ख़तरनाक थी कि बंटू की नाक में कई फ़्रैक्चर भी हो गए थे।
मध्य 80 से मध्य 90 के दशक के दौरान बंटू दिल्ली की बल्लेबाज़ी के स्तंभों में से एक हुआ करते थे। 32 साल पुराने उस वाक्ये को याद करते हुए बंटू हंस पड़ते हैं। सचिन तेंदुलकर के 50वें जन्मदिन की पूर्व संध्या पर पीटीआई-भाषा से बातचीत के दौरान बंटू ने 20 अप्रैल, 1991 की उस घटना के बारे में बताया, 'मेरी नाक का नक्शा ही बदल गया था सचिन के उस बाउंसर के बाद। मेरे पास अब नई नाक है।'
लेकिन सचिन तेंदुलकर की उस बाउंसर की एक पृष्ठभूमि थी जिसने बंटू को सचमुच चारों खाने चित कर दिया था।
1980 और 1990 के दशक में मुंबई बनाम दिल्ली का मुक़ाबला सामान्य मैच नहीं बल्कि घमासान होता था। दिल्ली की टीम की ओर से भारी-भरकम शुद्ध पंजाबी 'लफ्ज़' सुनाई पड़ते थे तो जवाब में मिलती थी 'मुंबईया टपोरी' भाषा।
"हमने कोटला पर एक ग्रीन टॉप पिच तैयार करने की कोशिश की थी, लेकिन वो पिच बल्लेबाज़ी के लिए जैसे स्वर्ग बन गई। यह एक ज़ोरदार टक्कर थी क्योंकि हमारे तेज़ गेंदबाज़ संजीव (शर्मा) और अतुल (वासन) ने दिलीप भाई (वेंगसरकर) को, जोकि अपना आख़िरी सीज़न खेल रहे थे, कुछ बाउंसर फेंके।
बंटू याद करते हुए बताते हैं "मुझे याद है कि कम से कम दो मौकों पर,अतुल के बाउंसर से दिलीप भाई को पसली पर लगी थी और छींटाकशी शुरू हो गई।"
दिल्ली क्वार्टर फ़ाइनल में एक रन से हार गई थी क्योंकि उन्होंने पहली पारी में, मुंबई के 390 रनों के जवाब में 389 रन बनाए थे।
दोनों टीमों के लिए दूसरी पारी महज़ एक औपचारिकता थी क्योंकि कप्तान संजय मांजरेकर, सचिन तेंदुलकर और चंद्रकांत पंडित के शतकों की मदद से मुंबई ने अपनी दूसरी पारी में 719 रन बनाए थे।
"वो मैच का आख़िरी दिन था और मुंबई के लड़के हमसे थोड़ा नाराज़ थे क्योंकि हमने काफी शॉर्ट पिच गेंदें फेंकी थीं। मैंने पहली पारी में शतक लगाया था और आत्मविश्वास से लबरेज़ था। सचिन उन दिनों में तेज़ गेंदबाज़ी करते थे और वास्तव में उनकी गेंदबाज़ी में पैनापन था।" " जब उन्हें गेंद मिली, तो मैंने उन्हें कवर की दिशा में पंच किया, जवाब में उन्होंने मुझे पैनी नज़र से देखा। अगली गेंद पर उन्होंने थोड़ा और प्रयास किया और शॉर्ट लेंथ गेंद घास की सतह पर पड़कर तेज़ी से चढ़कर आई।
" मैंने कभी फ़्रंट ग्रिल वाली हेलमेट नहीं पहनी थी। मेरी हेलमेट पुराने ज़माने वाली थी जिस पर कानों के पास फ़ाइबर ग्लास था। जैसे ही गेंद मुझ पर चढ़ी, मैंने मिड-विकेट पर पुल शॉट खेलने की कोशिश की लेकिन गेंद, मेरे बल्ले के निचले किनारे से टकराकर रॉकेट की तरह मेरी ओर आई।
बंटू ने गहरी सांस लेते हुए बताया "उन दिनों, जब दिल्ली में कोई भी रणजी मैच होता था, तो हम 'क़ीमती' नाम की एक स्थानीय कंपनी की लाल गेंद का इस्तेमाल करते थे। आज की पीढ़ी जो एसजी टेस्ट गेंद खेलते हुए पली-बढ़ी है, वह नहीं जानती होगी कि 'कीमती' गेंदें ईंट की तरह होती थी। जैसे ही गेंद मुझे लगी, मेरी आंखों के सामने धुंधलाहट छा गई और इससे पहले कि मैं अपना संतुलन खोता, मुंबई के कप्तान संजय (मांजरेकर) स्लिप से तेज़ी से भागते हुए आए और मैं उनकी बाहों में गिर गया।"
"मेरी शर्ट खून से लथपथ हो गई थी, यहां तक कि संजय की शर्ट पर भी खून लगा गया था। मैं अपने साथियों की मदद से मैदान के बाहर निकला।"
बंटू को कोटला के ठीक पीछे संजीवन अस्पताल ले जाया गया और जहां पता चला कि उनकी नाक में कई फ़्रैक्चर हुए हैं, जिसके लिए सर्जरी की ज़रूरत है। उन्हें कम से कम दो महीने तक लिक्विड डाइट पर रहना पड़ा।
लेकिन बंटू, सचिन को बतौर इंसान याद करते हुए कहते हैं "मुंबई की टीम, मैच समाप्त होने के बाद, उसी शाम को चली गई थी। रात के लगभग 11 बजे थे कि हमारे लैंडलाइन फोन की घंटी बजी और मेरे पिताजी ने उठाया। दूसरी तरफ सचिन थे, जिन्होंने मेरा नंबर पता नहीं कैसे खोज निकाला था, उन्होंने मेरे पिताजी से पूछा, 'बंटू कैसे हैं? डॉक्टर क्या कह रहे हैं?' मेरे पिताजी द्रवित हो गए थे।"
"बाद में, हम जब भी मिलते थे, वह पूछते थे," 'नाक ठीक है न तेरी'।"