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चैपल : टी20 मनोरंजन की दिशा में बहुत आगे निकल गया है

प्रशासकों को बल्ले और गेंद दोनों के बीच आदर्श संतुलन खोजने की आवश्यकता है

Mitchell Marsh and Pat Cummins celebrate with the trophy, Australia vs New Zealand, T20 World Cup final, Dubai, November 14, 2021

ऑस्ट्रेलिया ने पहली बार टी20 विश्व कप पर क़ब्ज़ा जमाया है  •  ICC via Getty Images

लगभग एक दशक तक ऑस्ट्रेलिया के पकड़ से बाहर रही टी20 विश्व कप आख़िरकार उनके हाथ आ ही गई। आक्रामक बल्लेबाज़ी के साथ साथ सटीक गेंदबाज़ी से यह संभव हो पाया। निश्चित रूप से इसमें टॉस ने ऑस्ट्रेलियाई टीम का काफ़ी साथ दिया और वह ज़्यादातर मैचों में टॉस जीतने में क़ामयाब रहे। यूएई के कई बड़े मैचों में भी टॉस जीतो - मैच जीतो वाला हाल था।
इस टी20 विश्व कप कप को अच्छी-ख़ासी सफलता प्राप्त हुई लेकिन सुपर 12 और नॉकआउट मैचों में टॉस का मैच के परिणाम पर इस तरीक़े से प्रभाव पड़ना, इस वैश्विक टूर्नामेंट की सबसे बड़ी कमज़ोरी थी।
हालिया वक़्त में इस तरह के टी20 टूर्नामेंटों की मांग बढ़ी है। लोग चाहते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह के टूर्नामेंट हो। साथ ही हम फ़्रैंचाइज़ी क्रिकेट की सफलता और इसकी मांग के बारे में भी भलि-भांति जानते हैं।
हालांकि टी20 प्रारूप में सुधार के लिए ज़रूरी बदलावों पर व्यापक सर्वेक्षण करने की ज़रूरत है। इसे और भी अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए, टूर्नामेंट में यह सुनिश्चित करने का एक तरीक़ा ढूंढना होगा कि टॉस खेल में उतना महत्वपूर्ण ना बने।
टी20 क्रिकेट पर व्यापक रूप से दो अलग-अलग विचार हैं। लंबे समय से क्रिकेट प्रशंसकों को डर है कि आने वाले समय में अन्य प्रारूपों की तुलना में यह प्रारूप सबसे अधिक अहम हो जाएगा जो सिर्फ़ छक्के मारने वाले बल्लेबाज़ों का समर्थन करता है, जिसमें ज़्यादातर लक्ष्य का पीछा करने वाली टीम को जीत मिलती है। फिर कुछ प्रशंसक ऐसे हैं, जो बल्ले और गेंद के बीच होने वाली प्रतिस्पर्धा की कमी से चिंतित नहीं हैं।
इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि मेरी इस उम्र में मैं बल्ले और गेंद की बीच एक अच्छी प्रतिस्पर्धा देखना चाहता हूं, और अगर यह बल्लेबाज़ी की प्रदर्शनी बन जाती है, तो मैं जल्द ही इस खेल में रुचि खो दूंगा। मेरा विचार है कि प्रशंसकों को बल्ले और गेंद के बीच की प्रतियोगिता से जुड़े रहना चाहिए, टीम और व्यक्तिगत दोनों तरह की सामरिक लड़ाइयों का आनंद लेना चाहिए और बल्लेबाज़ी में एक निश्चित मात्रा में कलात्मकता की आवश्यकता होती है, इस बात तो समझने की आवश्यकता है। यदि ये विशेषताएं या तो गायब हैं या लगभग न के बराबर हैं, तो खेल को क्रिकेट के रूप में देखने की कल्पना करना भी एक संघर्ष के जैसा है।
इसके बाद बात खेल और मनोरंजन के संतुलन पर आती है। मेरी राय में टी20 क्रिकेट में संतुलन मनोरंजन के लिए 60 और 40 खेल के आसपास होना चाहिए। फ़िलहाल यह असंतुलित है और शुद्ध मनोरंजन के पक्ष में है।
प्रशासकों को बल्ले और गेंद दोनों के बीच आदर्श संतुलन खोजने और क्रिकेट के मूल्यों पर प्रशंसकों को शिक्षित करने की आवश्यकता है। यह ठीक है जब गेंद बल्ले के बीच में लगी हो और वह सीमा रेखा के बार स्टैंड्स में जाकर गिरे। साथ ही एक गेंदबाज़ को बेहद गुस्सा भी होना चाहिए जब एक मिस हिट सीमा रेखा के बाहर जाकर गिरे। यह समस्या बड़े ऑस्ट्रेलियाई मैदानों पर इतनी स्पष्ट नहीं है। हालांकि मुझे पता नहीं है कि किस विवेक के साथ बल्लेबाज़ी और छोटी सीमा रेखाओं का एक संयोजन तैयार किया गया है। यह संयोजन गेंदबाज़ों को महज़ बोलिंग मशीन तक सीमित कर रहा है। यह अच्छे गेंदबाज़ों के लिए एक गंभीर मामला है और इसे तुरंत ठीक करने की ज़रूरत है।
जब कोई गेंदबाज़ नियमों से प्रेरित या मजबूर होकर बड़े शॉट से बचने के लिए जानबूझकर ऑफ़ स्टंप के काफ़ी बाहर गेंदों को फेंकता है, तो यह खेल को ख़राब कर देता है। उनके पास स्टंप्स पर गेंद को निशाना बनाने का विकल्प होना चाहिए, क्योंकि यह बल्लेबाज़ो को दबाव में रखने का अब तक का सबसे अच्छा तरीक़ा है। स्टंप्स से बाहर गेंदों को फेंकना, और मुख्य रूप से आउट होने के लिए बल्लेबाज़ की ग़लती पर भरोसा करना, प्रतियोगिता को काफ़ी कम कर देता है।
जब मैं बेसबॉल, गॉल्फ़ और टेनिस जैसे खेलों को उनके छोटे रूपों में खेलते देखता हूं, तो मुझे इस तथ्य से ख़ुशी होती है कि वह खेल अभी भी मूल रूप से वही है। टी20 प्रारूप में देखा जाने वाला खेल टेस्ट क्रिकेट से काफ़ी अलग है। यहां तक कि यह 50 ओवर वाले क्रिकेट से भी अलग ही दिखता है। क्रिकेट को मनोरंजन की ज़रूरत है, लेकिन इसे अपनी जड़ों के साथ एक मज़बूत जुड़ाव भी बनाए रखना चाहिए। खेल के भविष्य की योजना बनाते समय प्रशासकों को इस महत्वपूर्ण बिंदु को याद रखना चाहिए।

पूर्व ऑस्ट्रेलियाई कप्तान एक स्तंभकार हैं।