टी20 विश्व कप ने फिर से दिखाया है कि कलाइयों के स्पिनर्स की भूमिका क्रिकेट के इस सबसे छोटे फ़ॉर्मेट में बहुत महत्वपूर्ण है। आदिल रशीद, राशिद ख़ान, ऐडम ज़ैम्पा, तबरेज़ शम्सी, शादाब ख़ान और ईश सोढ़ी जैसे लेग स्पिनरों ने अपने टीम की वर्तमान सफलता में अहम भूमिका निभाई है। इंग्लैंड ने इसके महत्व को समझते हुए आलराउंडर लियम लिविंगस्टन को दूसरे लेग स्पिन विकल्प के रूप में टीम से जोड़ा।
1985 में महान ऑस्ट्रेलियाई लेग स्पिनर
बिल ओ रेली ने अपने किताब 'टाइगर : क्रिकेट के 60 साल' में लिखा था कि लेग स्पिनर्स अब इस खेल से बाहर हो चुके हैं, उनकी भूमिका बहुत ही सीमित हो चुकी है। अगर ऊपर के स्पिनरों के नाम देखें तो ओ रेली की बात कहीं ना कहीं सही भी साबित होती है। इनमें से कोई भी स्पिनर अपनी टेस्ट टीम का नियमित हिस्सा नहीं हैं।
महान लेग स्पिनर
शेन वार्न का कहना है कि जहां पुराने लेग स्पिनर्स एक निश्चित लाइन-लेंथ तय करके घंटों लगातार एक ही टप्पे पर गेंदबाज़ी करते थे, वहीं आधुनिक लेग स्पिनर्स विविधता पर जोर देते हैं, ताकि टी20 क्रिकेट में उन्हें आसानी से पढ़ा नहीं जा सके।
वार्न कहते हैं कि आजकल के स्पिनर्स बाउंड्री खाने से डरते हैं, वह इसके बज़ाय सिंगल देना पसंद करते हैं। इसका मतलब है कि हर गेंद पर एक दूसरा बल्लेबाज़ आपके सामने होगा, जिससे आप बल्लेबाजों पर दबाव नहीं बना पाएंगे। इसके अलावा पहले लेग स्पिनर्स अधिक आक्रामक और धैर्यवान होते थे, अब के स्पिनर्स में उस धैर्य की भी कमी देखी जा सकती है।
प्रथम श्रेणी क्रिकेट में भी कलाइयों के स्पिनर्स की भूमिका सीमित होती जा रही है। ऑस्ट्रेलिया का क्वीन्सलैंड अपने सबसे प्रमुख लेग स्पिनर मिचेल स्वेप्सन को बहुत ही कम मौक़ा देता है, जबकि वह टेस्ट खेलने की क्षमता रखते हैं। हालांकि जब भी उन्हें मौक़ा मिला है, उन्होंने औसतन हर मैच में 6 विकेट लिए है।
मुझे लगता है कि आज कल के लेग स्पिनर्स अपनी कला को भी सही ढंग से समझ नहीं पाते हैं। ऐसा कप्तानी और कोचिंग के कारण भी होता है। कलाइयों के स्पिनर्स को लगातार समर्थन की ज़रूरत होती है। लेकिन आज कल के कप्तान त्वरित सफलता की आस में इतना धैर्य नहीं दिखा पाते हैं।
अगर आज के युवा लेग स्पिनर्स सही तरीक़े से तैयारी करें, उन्हें कोच और कप्तान का समर्थन और प्रक्षिक्षण मिले, तो वे सिर्फ़ टी20 ही नहीं बल्कि क्रिकेट के हर फ़ॉर्मेट में सफल हो सकते हैं।