विराट कोहली वह मापदंड थे जिसके माध्यम से देश में खेल के स्वास्थ्य और यहां तक कि पूरे देश के स्वास्थ्य को मापा जा सकता था। अगर कोहली ने कहा कि उन्हें टेस्ट क्रिकेट पसंद है, तो टेस्ट क्रिकेट में अब भी जान है। कोहली ने शाहिद अफ़रीदी से हाथ मिलाया तो दोनों देशों के बीच सामंजस्य की कल्पना की जा सकती थी। यदि कोहली एक सीरीज़ में नहीं खेलते हैं, तो उस देश की क्रिकेट अर्थव्यवस्था बर्बाद हो जाती है। प्रसारकों ने सारे कैमरे कोहली की तरफ़ घूमाकर यह भी कह दिया कि क्रिकेट तो 11 खिलाड़ियों की एक टीम का खेल है।
मैदान पर कुछ समय के लिए कोहली अचूक, अथक, अजेय और सबसे बढ़कर अपरिहार्य थे। वह इस दुनिया से परे थे। सभी बड़े और विद्वान इस दौर से गुज़रते हैं, और उनके बीच का अंतर भी बहुत छोटा होता हैं। लोग आश्चर्य करने लगते हैं कि उनकी यह महानता रुकेगी तो कैसे। उस सूची में हर एक महान व्यक्तियों के बारे में हम यही सोचते हैं कि क्या वह सर्वश्रेष्ठ कहलाएगा।
और फिर, सबका ध्यान जाता है उस सिलसिले पर जब उस महान खिलाड़ी के बल्ले से रनों की कमी होने लगती है। यह सिलसिला खामोश दिनों, खामोश महीनों से होते हुए एक खामोश वर्ष में बदल जाता है। यह सिलसिला उस सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी को दोबारा श्रेष्ठा के पथ पर ले आता है। यह उसका अंत नहीं है बल्कि एक ऐसा सबक़ है जिसे हम हर बार ख़ुशी-ख़ुशी भूल जाते हैं - गुरुत्वाकर्षण (डॉन ब्रैडमैन के सिवाय) अंत में सभी को मिलता है।
बात 33 वर्षीय कोहली की हो रही हैं जो फ़िटनेस के मामले में सबसे आगे हैं। ऐसे समय में जब अधिक खिलाड़ी लगभग 40 साल तक खेल जाते हैं, अगले पांच, छह वर्षों में कोहली के करियर का नया दौर देखने को मिल सकता है। आख़िर वह कोहली ही हैं जो किसी को ग़लत साबित करने से पीछे थोड़ी हटेंगे।
लेकिन जब आप कोहली की तरह तेज़ जलते हैं, तो हमेशा जोख़िम होता है कि ज्वालामुखी जल्द फट सकता है। जिस प्रकाश में, कोहली का यह खामोश सिलसिला चल रहा है, उसका भार अधिक महसूस होने लगा है। युवा खिलाड़ी इसे पार कर लेता है जबकि अनुभवी खिलाड़ियों को मदद की आवश्यकता होती है।
दो साल में उनके बल्ले से एक भी शतक नहीं निकला है और टेस्ट मैचों में उनकी औसत में पांच रनों की गिरावट हुई है। यदि वह इस सीरीज़ में हर पारी में बल्लेबाज़ी करते है और हर बार आउट होते हैं और कुल 198 रन नहीं बनाते हैं, तो उनकी टेस्ट औसत 50 से कम हो जाएगी। इसका मतलब है कि उनके 100वें टेस्ट तक, विराट कोहली की टेस्ट औसत 50 से कम हो सकती है।
हालांकि उम्र की तरह, औसत कभी-कभी सिर्फ़ एक संख्या भी हो सकती है। यह हमेशा इस बात का संकेत नहीं देती है कि कोई कैसा महसूस करता है, ख़ासकर इसे रिकॉर्ड आंकड़ों के साथ जोड़ा जाए। फिर भी कोहली को 50 से नीचे की औसत वाले टेस्ट बल्लेबाज़ के रूप में देखना अजीब है। आख़िरी बार अगस्त 2017 में उन्होंने उस 50 की औसत के आसपास एक वर्ष बिताया था। उनसे पहले भारत के दो सबसे महान बल्लेबाज़, तेंदुलकर और राहुल द्रविड़ की अपने 100वें टेस्ट में औसत 57 थी।
इन सब के बीच, कोरोना ने कोहली के इस रन की कमी को खोलकर रख दिया है। ऐसा लगता है कि दोनों कुछ समय के लिए चले गए हैं लेकिन दोबारा वापस आ जाते है। दो साल काफ़ी समय है, लेकिन उन्होंने इस समय में 13 टेस्ट खेले हैं, जबकि इससे पहले के दो साल की अवधि में उन्होंने लगभग दो बार 24 टेस्ट खेले हैं।
अगर सवाल केवल बल्लेबाज़ी का होता तो बात ठीक थी क्योंकि वह हमेशा लय में नज़र आए हैं। पिछली 11 टेस्ट पारियों में 44, 42, 20, 55, 50, 44 और 36 के स्कोर शामिल हैं। लेकिन कोहली अब प्रशासकों से भिड़ रहे हैं। दो साल पहले, यह अकल्पनीय था। उन्हें कोई छू भी नहीं सकता था। कोई उनसे झगड़ा नहीं कर सकता था। प्रशासकों की समिति ने और कोच ने, खिलाड़ियों ने उन्हें जैसे थे वैसे रहने दिया। उन सभी के ऐसा करने से उन्हें एक दिन प्रेस कॉन्फ़्रेंस में बीसीसीआई की प्रेस विज्ञप्ति के ख़िलाफ़ उत्तर देना ठीक लगा।
वह अब सभी प्रारूपों के कप्तान नहीं। एक प्रारूप में तो उन्हें कप्तानी से हटाया भी गया। इससे उनके मन में एक अकल्पनीय विचार का कीटाणु घर कर सकता है कि कि जल्द ही ऐसा समय भी आ सकता है जब वह किसी एक टीम से ड्रॉप भी किए जाएंगे। और अगर बीसीसीआई प्रतिशोध लेना चाहे, तो वह दोनों टीमों से बाहर हो सकते हैं। सोच बहुत दूर की है लेकिन फिर एक बार बोर्ड और स्टार खिलाड़ी के बीच दरार पड़ना नियमित रूप से होने लगा है। ऐसा पहले भी हो चुका है। हमने इसे पहले देखा है दूसरे सितारों के साथ। कोहली इन सबको पार करने जा रहे थे लेकिन अब उनके साथ भी ऐसा ही हुआ।
उनका प्रभाव इतना है कि वह साउथ अफ़्रीका में टीम इंडिया के साथ वह हासिल कर सकते है जो किसी और एशियाई कप्तान ने नहीं किया। यदि वह अगले साल कप्तान बने रहकर, इंग्लैंड के ख़िलाफ़ खेले जाने वाले टेस्ट में हार से बचते है, तो वह इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और साउथ अफ़्रीका में टेस्ट सीरीज़ जीतने वाले पहले एशियाई कप्तान बन सकते हैं।
यह कोहली की नई दुनिया है, जिसमें उन्हें सबसे महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में नहीं देखा जा रहा है। कमोबेश तीन दशकों से, भारतीय क्रिकेट और कुछ हद तक विश्व क्रिकेट में एक वैश्विक सितारा रहा है। पहले तेंदुलकर, फिर धोनी और अब कोहली के ज़रिए खेल ने ख़ुद को बाहरी दुनिया में विकसित करने की कोशिश की है। प्रत्येक के माध्यम से उसने बाहरी दुनिया के ख़िलाफ़ खुद को मापने, अपनी जगह खोजने और प्रसार करने की मांग की है। हर किसी पर बोझ पिछले वाले से ज़्यादा रहा है। शायद उस पंक्ति में अगले खिलाड़ी के बारे में सोचने का समय आ रहा है।
इन सबके बीच ज़ाहिर है कोहली को यह सोचने की ज़रूरत है कि उन्हें दरकिनार किया जा रहा है, यह सोचने की कि उनके सामने पराजित करने के लिए कई विरोधी हैं। इस नई दुनिया में, उस पुरानी प्रेरणा को खोजने के लिए अब से बेहतर समय नहीं हो सकता है।
उस्मान समिउद्दीन ESPNcricinfo में सीनियर एडिटर हैं। अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी में सीनियर सब एडिटर निखिल शर्मा ने किया है।